Friday, March 29, 2024

आईबी ने 2017 में पेगासस निर्माता एनएसओ से कौन सा हार्डवेयर खरीदा था? 

भारत में एक बार जो जिन्न बाहर निकलता है वह जल्दी वापस लौट कर नहीं जाता।ऐसे ही जिन्न बोफोर्स घोटाला और राफेल डील हैं, जिन पर कुछ न कुछ सामने आता रहता है। अब सबसे ताजा जिन्न पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर का है, जो एक बार फिर सतह पर आ गया है। संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) की एक रिपोर्ट आयात संबंधी दस्तावेज़ों के हवाले से बताती है कि 2017 में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी ने इज़रायली कंपनी एनएसओ समूह से ऐसा हार्डवेयर खरीदा था, जो पेगासस स्पाईवेयर के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों के विवरण से मेल खाता है।

भारतीय अधिकारियों ने स्पाईवेयर खरीदने की अफवाहों को ‘सनसनीखेज’ बताकर खारिज कर दिया। परंतु व्यापार डेटा 2017 में इंटेलिजेंस ब्यूरो को हार्डवेयर शिपमेंट दिखा रहा है। आयात के दस्तावेज दिखाते हैं कि देश की मुख्य घरेलू खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो ने इजरायली स्पाईवेयर कंपनी एनएसओ ग्रुप से हार्डवेयर खरीदा, जिसका विवरण एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर को लागू करने के लिए अन्य जगहों पर इस्तेमाल किए गए उपकरणों से मेल खाता है ।  

इस खुलासे से इस साल की शुरुआत में न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा रिपोर्ट किए गए इस दावे को बल मिलता है कि भारत सरकार ने 2017 में इजरायल के साथ एक बड़े आयुध सौदे के तहत पेगासस स्पाईवेयर खरीदा था ।

पेगासस, जो गोपनीय तरीके से मोबाइल फोन को इस निगरानी सॉफ्टवेयर से संक्रमित करता है, अलग-अलग देशों में पत्रकारों, एक्टिविस्टों, विपक्षी राजनेताओं और असहमति रखने वालों की जासूसी करने के लिए कई मामलों में इस्तेमाल किया गया है ।  

पेगासस एक मिलिट्री-ग्रेड स्पाईवेयर है जिसके माध्यम से यूजर- जो इजरायल के निर्यात कानून के तहत एक सरकारी इकाई होनी चाहिए- को किसी व्यक्ति के मोबाइल फोन तक पूरी पहुंच प्राप्त होती है। कंपनी का दावा है कि स्पाईवेयर का इस्तेमाल आपराधिक और आतंकी गिरोहों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन पेरिस स्थित फॉरबिडन स्टोरीज के नेतृत्व में मीडिया संगठनों के एक अंतरराष्ट्रीय कंसोर्टियम ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत जुलाई 2021 में बताया था कि दुनिया भर के कई देशों में इसका इस्तेमाल पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया गया था ।

पिछले साल पेगासस प्रोजेक्ट नाम के सॉफ्टवेयर द्वारा निशाना बनाये गए लोगों की एक संबद्ध जांच से पता चला कि भारत में कई फोन संभावित रूप से संक्रमित हो गए थे, जिनमें कई बड़े पत्रकार और विपक्षी दल कांग्रेस के राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ राजनेता भी शामिल थे ।  

द वायर, न्यूज़ लौंड्री और एंट्रैकर में प्रकाशित रिपोर्टों में खा गया है कि  भारत सरकार ने इस बात की पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया है कि उसने पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा है या नहीं । पिछले साल जुलाई में देश के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने इन रिपोर्ट्स को “सनसनीखेज” बताकर खारिज कर दिया और उन्हें “भारतीय लोकतंत्र और उसके प्रमाणित संस्थानों को बदनाम करने का प्रयास” बताया।  

पिछले साल अक्टूबर में देश के उच्चतम न्यायालय ने, पेगासस प्रोजेक्ट के जरिये रिपोर्ट किए गए सरकार द्वारा स्पाईवेयर के इस्तेमाल के दावों की जांच शुरू की।   समिति ने अगस्त में यह कहते हुए अपनी जांच समाप्त कर दी कि उसे कुछ फोनों की जांच में मैलवेयर ज़रूर मिला, लेकिन उसे पेगासस को इस्तेमाल किया जाने का निर्णायक सबूत नहीं मिला।  

हालांकि ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) द्वारा जांचे गए आयात डेटा से पता चलता है कि अप्रैल 2017 में, नई दिल्ली स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो को इज़रायल स्थित एनएसओ से पेगासस सॉफ़्टवेयर चलाने के लिए अन्य जगहों पर इस्तेमाल किये गए उपकरणों के विवरण से मेल खाते हुए हार्डवेयर का शिपमेंट प्राप्त हुआ ।  

राष्ट्रीय सीमा शुल्क दस्तावेजों से जानकारी उठाने वाले एक वैश्विक व्यापार डेटा प्लेटफॉर्म के जरिये हासिल हुए लदान के बिल के अनुसार, इस खेप में डैल के कंप्यूटर सर्वर, सिस्को के नेटवर्क उपकरण और आउटेज की परिस्थिति में बिजली प्रदान करने वाली “अनइंटरप्टिबल पावर सप्लाई यानी अबाधित बिजली आपूर्ति” बैटरी शामिल हैं ।  

हवाई मार्ग से पहुंचाया गया ये शिपमेंट, “रक्षा और सैन्य उपयोग के लिए” चिह्नित किया गया था और इसकी लागत 315,000 अमेरिकी डॉलर थी। वह विवरण और शिपमेंट का समय – न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा जनवरी में दिए गए विवरण से मेल खाता था, जिसमें रिपोर्ट किया गया था कि इजरायल और भारत के बीच 2017 के एक प्रमुख हथियार सौदे के “केंद्र बिंदु” पेगासस व एक मिसाइल प्रणाली थे।  

इस सौदे के समापन की घोषणा सीमा शुल्क दस्तावेजों के शिपमेंट से डेढ़ हफ्ते पहले उसी वर्ष 6 अप्रैल को इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज द्वारा की गई थी, जिसे मिसाइल रक्षा प्रणालियों की आपूर्ति का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था ।  

निश्चित रूप से यह कहना संभव नहीं है कि आयातित हार्डवेयर का इस्तेमाल पेगासस के लिए भी किया गया, लेकिन इसका विशिष्ट विवरण, 2019 में फेसबुक और व्हाट्सएप की मूल कंपनी मेटा द्वारा एनएसओ ग्रुप के खिलाफ एक अमेरिकी अदालत में दायर मुकदमे में जमा किए गए पेगासस स्पाईवेयर के एक ब्रोशर में दिए गए विनिर्देशों से मेल खाता है।  

उल्लेखित ब्रोशर – जो इंगित करता है कि “तैनाती पर सिस्टम के साथ आवश्यक हार्डवेयर की आपूर्ति की जाती है” – आउटेज की परिस्थिति में सर्वर को चालू रखने के लिए दो कंप्यूटर रैक, नेटवर्क उपकरण, सर्वर, नेटवर्क केबल और बैटरी की आवश्यकता को रेखांकित करता है । पेगासस प्लेटफॉर्म को चलाने और मोबाइल फोनों से निकाले गए डेटा के संग्रह के लिए इस हार्डवेयर की जरूरत होती है ।  

ये विनिर्देश, एक मैक्सिकन कंपनी और एनएसओ समूह के बीच पेगासस के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट में उल्लिखित विशेष विवरण से भी मेल खाते हैं, जिन्हें पहले एक मैक्सिकन समाचार आउटलेट अरिस्तेगुई नोटिसियास द्वारा रिपोर्ट किया गया था और फिर उन्हें ओसीसीआरपी और उसके सहयोगियों ने हासिल किया। मेटा के मुकदमे के दस्तावेज, एनएसओ समूह के एक अन्य ग्राहक घाना को भी ऐसे ही हार्डवेयर का शिपमेंट दिखाते हैं । दो खुफिया अधिकारियों जिनमें से एक वरिष्ठ अधिकारी और एक कांट्रेक्टर है – ने भी ओसीसीआरपी को बताया कि पेगासस को 2017 में सरकार द्वारा खरीदा गया था। दोनों ने नाम न छापने की शर्त पर बात की क्योंकि उनकी नौकरियां उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलने से रोकती हैं ।  

एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक सुरक्षा शोधकर्ता एटीएन मेनियर ने कहा कि ये जानकारी भारतीय अधिकारियों के साथ निगरानी (सर्विलांस) ट्रांसफर्स के सशक्त व चौंकाने वाले सबूत प्रदान करती है ।  

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई में हुई इजरायल की ऐतिहासिक यात्रा से पहले कथित तौर पर फरवरी के आखिर में इजरायल का दौरा किया था ।  

हालांकि एजेंसी का आधिकारिक अधिदेश काउंटर-इंटेलिजेंस और घरेलू आतंकवाद का मुकाबला करना है, लेकिन कथित तौर पर अतीत में इसका इस्तेमाल गोपनीय राजनीतिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए किया गया है । इंटेलिजेंस ब्यूरो को विनियमित करने के लिए कोई औपचारिक कानून नहीं है और पिछले कुछ वर्षों में इसकी संवैधानिकता को कई बार चुनौती दी गई है।  2018 के अंत में, गृह मंत्रालय ने इंटेलिजेंस ब्यूरो को भारत में किसी भी डिवाइस से एकत्र की गई किसी भी जानकारी को डिक्रिप्ट करने का अधिकार दे दिया ।  

उल्लेखनीय है कि 2021 में एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये दुनियाभर में नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे।इस कड़ी में 18 जुलाई 2021 से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए ऐसे मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थीं, जिनकी पेगासस स्पाईवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे।

इस पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर पाए गए थे, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है।

भारत में इसके संभावित लक्ष्यों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, अब सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (वे उस समय मंत्री नहीं थे) के साथ कई प्रमुख नेताओं के नाम शामिल थे।तकनीकी जांच में द वायर के दो संस्थापक संपादकों- सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु के साथ अन्य पत्रकारों जैसे सुशांत सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता और एसएनएम अब्दी, डीयू के मरहूम प्रोफेसर एसएआर गिलानी, कश्मीरी अलगाववादी नेता बिलाल लोन और वकील अल्जो पी. जोसेफ के फोन में पेगासस स्पाईवेयर उपलब्ध होने की भी पुष्टि हुई थी।

पेगासस प्रोजेक्ट के सामने आने के बाद देश और दुनिया भर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। भारत में भी मोदी सरकार द्वारा कथित जासूसी के आरोपों को लेकर दर्जनभर याचिकाएं दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर 2021 को सेवानिवृत्त जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र जांच समिति गठित की थी। बीते अगस्त में समिति के पैनल ने अपनी रिपोर्ट तीन हिस्सों में शीर्ष अदालत को सौंपी थी, जिसके बाद कोर्ट ने बताया था कि समिति ने 29 उपकरणों (डिवाइस) में से पांच में ‘मैलवेयर’ पाया। हालांकि तकनीकी समिति ने कहा था कि वे निर्णायक तौर पर नहीं कह सकते कि डिवाइस में मिला मैलवेयर पेगासस है या नहीं। समिति ने यह भी कहा था कि सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया था।

साइबर सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित कानूनी सुधारों की सिफारिश करने वाले अनुबंध के अलावा, स्वतंत्र जांच समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। मेनियर ने कहा कि अदालत को रिपोर्ट तुरंत और बिना किसी देरी के सार्वजनिक करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में पेगासस स्पाईवेयर के दुरुपयोग के सभी पीड़ित पारदर्शिता के पात्र हैं, और भारतीय अधिकारियों को एनएसओ के साथ संबंधों को लेकर पाक-साफ हो जाना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)  

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