बंटेंगे तो कटेंगे के बाद, एक हैं तो सेफ हैं का जुमला

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जुमले बाजी के दौर में नारों के निर्माण में जिस तरह की होशियारी के साथ भाजपा करवट लेती है, यह संघ के आचरण की घिसी-पिटी लकीर है। देश भर के भाईचारे को आग में झोंककर बंटेंगे तो कटेंगे कहना तो यही सिद्ध करता है। सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली कहावत यूं ही नहीं बनी।

कहते हैं राजनीति और युद्ध के मैदान में सब जायज़ होता है इस लीक पर आज भी चलना निश्चित हमारे पिछड़ेपन को दर्शाता है।

एक लोकतांत्रिक देश जो दुनियाभर के श्रेष्ठ संविधान से संचालित होता है उसे तहस नहस करना और फिकरेबाजी से सत्ता हथिया लेना आम जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक ही नहीं है, उनकी आशा आकांक्षाओं को नेस्तनाबूद करने जैसा है।

नैतिकताओं और श्रेष्ठ सनातनी परम्पराओं से संचालित हमारा देश आज झूठ की जिस ऊंचाई पर पहुंचा है, उसे विश्वगुरु कहा जा रहा है और तो और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी को भी कथित विश्वगुरु की जीत का मंत्र बताया जा है।

वस्तुत:आज जुझारू और जनहित के लिए काम करने वाली ताकतें पूरी दुनियां में कमज़ोर नज़र आ रही हैं। वे दहशतज़दा हैं और आज के सिस्टम में अपने को एडजस्ट नहीं कर पा रहीं हैं। सारी जनतांत्रिक व्यवस्थाओं को क्षतिग्रस्त कर संविधान प्रदत्त अधिकारों को ताक पर रख लिया गया है।

चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय जिस तरह से सत्ता के गुलाम हैं, उसी से सब कुछ गड़बड़ होता जा रहा है। झूठ और जुमले सिरमौर बन गए हैं। आम आदमी इतने आर्थिक संकट से गुज़र रहा है कि वह पांच किलो राशन, महिलाओं को मिलने वाली राशि को अहोभाग्य समझ, सब कुछ बर्दाश्त कर रहा है। आयुष्मान जैसे लोकलुभावन वादे पर यकीं कर रहा है।

इसलिए बंटेंगे तो कटेंगे जैसे सम्मोहक जाल में फंस जाता है, उन्हें कौन समझाए ये राष्ट्रपिता बापू के हत्यारे हैं। हिंदू राष्ट्र बनाने की कुचेष्टा में लगे हुए हैं। बांटने और काटने का काम बंटवारे के समय ये कर चुके हैं। बुलडोजर का सबसे पहले अल्पसंख्यक बस्तियां उजाड़ने में ही किया गया।

गोमांस और लव-जिहाद अभियान ने अनेकों को मौत के घाट उतार दिया। सीएसए कानून लाया गया। उनसे पाकिस्तान जाओ कह दिया जाता है। उनकी जमानतें भी नहीं होती। तिस पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेएम कहते हैं, जुमले की तरह मैंने एक से ज़ेड तक सबको जमानत दी है।

भारत ने अपने विकास क्रम में सनातनी आधार पर सदैव शरणागत को सहारा दिया है, यहां के मूल निवासी तो जंगलों और पहाड़ों पर मौजूद हैं, जो आज बड़ी तादाद में भारत भू पर मौजूद हैं, वे बाहर से आई विभिन्न प्रजातियों के मिलन से बने लोग हैं।

इसलिए भारत में जातीय शुद्धता की बात कहना बेमानी है। इसलिए देश में सदैव अनेकता में एकता की बात कही जाती रही है।
अब एक है तो सेफ़ हैं का जुमला जोर पकड़ रहा है, पुनः मूषको भव बनने का यह उपक्रम चुनाव तक ही सीमित रहेगा। कौन सेफ है सब जानते हैं।

सबसे ज़्यादा तो हिन्दू ख़तरे में है की ख़बरें आती हैं, यह भी एक शिगूफा है जो ख़तरे में हैं उनकी चर्चा कभी नहीं होती। लद्दाख में चीन के विस्तार और सांसद वांगचुक के अनशन की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं। मणिपुर जल रहा है वहां आग लगाकर केंद्र शांत बैठा हुआ है।

देशवासी मंहगाई और बेरोज़गारी से पीड़ित हैं। तब एक हैं तो सेफ है से तो यही समझ आता है कि एक अकेला जो कभी सब पर भारी था आज की तारीख में तो वहीं सेफ़ है। धन्य हैं हमारे देश के लोग जो अपने जीवन को उनकी सेफ्टी के लिए समर्पित किए हुए हैं।

जबकि वक्त की मांग है कि इस छद्म,छल, प्रपंच को समझें तथा सब मिलकर देश के संविधान को बचाने के लिए एक हों। पड़ोस में हुई जनक्रांति से सबक लें। माना कि देश में शांति प्रिय और अहिंसा के पुजारी लोग बहुतायत से हैं, किंतु अन्याय के विरुद्ध बापू के रास्तों पर चलकर बदलाव की एक इबारत अभी भी लिखी जा सकती है।

और वसुधैव कुटुम्बकम की सनातन भावना की अलख को जगाया जा सकता है। आइए झूठ और जुमले बाजी से सावधान रहें और सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा बचाने का संकल्प लें। देश को बर्बाद होने से बचाएं।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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