Friday, March 29, 2024

पेगासस मामले में पश्चिम बंगाल का जांच आयोग सक्रिय: अखबारों में दिया पब्लिक नोटिस

पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी का प्रकरण तूल पकड़ता जा रहा है। एक ओर इस पर उच्चतम न्यायालय और बाम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हो गयी है तो दूसरी ओर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर और कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य के जाँच आयोग ने कार्य करना शुरू कर दिया है। इससे आने वाले समय में केंद्र की मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।  

गुरुवार को सभी प्रमुख समाचार पत्रों में जांच आयोग ने एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया, जिसमें लोगों से और संबंधित हितधारकों से पेगासस स्पाइवेयर जासूसी मामले से संबंधित आरोपों के बारे में जानकारी मांगी। आयोग का गठन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा 26 जुलाई को आयोग अधिनियम, 1952 की धारा 3 उप-धारा (1) और (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार किया गया है।

न्यूज पोर्टल द वायर ने 16 अन्य मीडिया संगठनों के समूह पेगासस प्रोजेक्ट ने हाल ही में एक ‘निगरनी लिस्ट’ जारी किया था, जिसमें दिखाया गया कि एक्टिविस्ट, राजनेता, पत्रकार, जज और कई अन्य इजरायली फर्म एनएसओ ग्रुप के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए साइबर निगरानी के संभावित लक्ष्य थे। नोटिस में लिखा गया है कि नोटिस के अनुसार सभी व्यक्तियों, व्यक्तियों के समूह, संघों, संस्थानों और संगठनों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से परिचित या जानकारी रखने वाले, इसके नियमों और संदर्भ में आयोग को संदर्भित मामलों से संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हैं और इसमें रुचि रखते हैं। उपरोक्त मामले से संबंधित और प्रासंगिक अपने बयान आयोग को व्यक्तिगत रूप से या पंजीकृत स्पीड पोस्ट या कूरियर या इलेक्ट्रॉनिक मेल के माध्यम से प्रस्तुत कर सकते हैं।

नोटिस में इसके अलावा यह निर्दिष्ट किया गया है कि नोटिस के प्रकाशन के 30 दिनों के भीतर सूचना को सख्ती से प्रस्तुत किया जाना है, क्योंकि जांच समयबद्ध है। जाँच आयोग को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 6 महीने के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। कोई भी जानकारी या प्रासंगिक विवरण [email protected] पर मेल किया जा सकता है या आयोग के आधिकारिक पते, एनकेडीए बिल्डिंग 001, मेजर आर्टेरियल रोड, न्यू टाउन, कोलकाता- 700156  पर पंजीकृत स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजा जा सकता है।

इसके अलावा यह निर्देश भी दिया गया है कि प्रस्तुत किए गए किसी भी बयान के साथ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी या शपथ दिलाने के लिए अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष दिए गए बयान के समर्थन में शपथ पत्र देना होगा।

नोटिस में कहा गया है कि बयान में सूचना के स्रोत के बारे में एक घोषणा भी शामिल होनी चाहिए, जिसमें किसी भी व्यक्ति या संगठन का नाम और संपर्क जानकारी शामिल है, जिससे ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है। यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रस्तुत किए गए बयानों के साथ उन दस्तावेजों की अनुक्रमित सूची होनी चाहिए जिन पर संबंधित व्यक्ति भरोसा करना चाहता है। नोटिस में लिखा गया है कि यह ध्यान दिया जा सकता है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 193 और 228 के तहत आयोग के समक्ष कार्यवाही एक न्यायिक कार्यवाही है।

बीते महीने पेगाससप्रोजेक्ट ने अपनी वैश्विक जांच के आधार पर रिपोर्ट दी है कि भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए गए। केंद्रीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, कारोबारियों और अहम पदों पर बैठे सरकारी अधिकारियों की जासूसी की बात इसमें कही गई है। इनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर सहित कई पत्रकार भी शामिल हैं।

इस मामले को लेकर ससंद में भी काफी ज्यादा हंगामा देखने को मिल रहा है। इस सॉफ्टवेयर को बनाने वाली कंपनी का कहना है कि वो सिर्फ सरकारों को ही ये सॉफ्टवेयर बेचती है। ऐसे में विपक्ष का आरोप है कि सरकार ही ये जासूसी करा रही थी। ऐसे में सरकार इस पर संसद में बहस करे और जवाब दे। वहीं सरकार इस मुद्दे को गैरजरूरी कहकर टाल रही है।

जांच आयोग के पास देश के किसी भी हिस्से से किसी भी शख्स को समन भेजकर उपस्थित होने का आदेश देने की शक्ति है। इसके अलावा आयोग के पास देश के किसी भी कोर्ट या ऑफिस से कोई पब्लिक रिकॉर्ड कॉपी मंगाने की शक्ति होती है।

ममता सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक यह आयोग जासूसी मामले की जांच करेगा और यह पता लगाएगा कि इसके जरिए जुटाई गई जानकारियों का इस्तेमाल किस तरह से किया गया। अधिसूचना के मुताबिक यह सार्वजनिक महत्व का निश्चित मामला है।

ममता बनर्जी ने आयोग का गठन कर केंद्र सरकार पर इस मामले पर जवाब देने का दबाव बढ़ाया है।  वह लगातार इस मामले पर केंद्र सरकार पर हमला बोल रही हैं और तृणमूल कांग्रेस के सांसद संसद में इसे उठा रहे हैं। ममता बनर्जी का पेगासस जासूसी मामले में पहल इसलिए भी अहम है, क्‍योंकि मामले में जिन लोगों की जासूसी किए जाने को लेकर नाम आए हैं, उनमें एक ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और दूसरे प्रशांत किशोर का नाम भी है।  प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस के चुनाव सलाहकार रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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