Friday, March 29, 2024

वेंटिलेटरों की खरीद में दिखी पीएमओ की नई कारस्तानी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार की कोविड-19 महामारी के प्रति लापरवाही न केवल आपराधिक दर्जे की है बल्कि भ्रष्टाचार के परनाले में डूबकर यह और भी ज्यादा भयावह हो गयी है। इनसे जुड़े सामने आये ताजा मामलों ने मोदी सरकार की कलई खोल दी है। बताया जा रहा है कि 31 मार्च, 2020 को भारत सरकार ने 40,000 वेंटिलेटर खरीदने का ऑर्डर दिया था। और यह 40 हजार वेंटिलेटर 2 कंपनियों से खरीदा जाना था। 30,000 वेंटिलेटर ‘स्केन रे टेक्नॉलोजी’ से खरीदने की बात थी और 10,000 वैंटिलेटर एग्वा, ‘Agva हेल्थ केयर’ नाम की कंपनी को मुहैया कराना था। उसके बाद 23 जून को पता चलता है कि पीएम केयर फंड ने इस मद में 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। ये सारी बातें कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कही है।

और साथ ही 50,000 वेंटिलेटर खरीदे जाने की पीएमओ से विज्ञप्ति जारी होती है। अब एक तरफ 31 मार्च का एक मामला है जिसमें भारत सरकार 40,000 वेंटिलेटर खरीदने का 2 फर्मों को ऑर्डर देती है। और फिर उसके कुछ दिन बाद यह बात कही जाती है कि पीएम केयर का 2,000 करोड़ का इस्तेमाल होगा और 50,000 वेंटिलेटर इसके द्वारा खरीदे जाएंगे। अब यह सवाल बन जाता है कि क्या 40000 वेंटिलेटर अलग हैं और 50000 वेंटिलेटरों की खरीद का मामला उससे अलग है या फिर दोनों आपस में जुड़े हुए हैं? एक दिलचस्प बात यह है कि जब 31 मार्च को 40000 वेंटिलेटरों की खरीद की बात कही गयी थी तब पीएम केयर फंड की स्थापना का नोटिस भी जारी नहीं हुआ था। लिहाजा भारत सरकार के सामने यह प्रश्न बना ही रह जाता है कि 40,000 में वेंटिलेटर खरीदे जाने का मामला 50000 का हिस्सा है या फिर उससे अलग है?

 फिर 23 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से बताया जाता है कि 1,340 वेंटिलेटरों की सप्लाई हुई है। 40000 वेंटिलेटरों का ऑर्डर दिया गया 31 मार्च को और सप्लाई आती है 23 जून को वह भी महज 1340। पूरी दुनिया में यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है कि लॉकडाउन कोरोना का कोई इलाज नहीं बल्कि एक पॉज बटन है। यानी हेल्थ से लेकर मरीजों के देखभाल से जुड़े सारे इंफ्रास्ट्रक्चर की तैयारी का काल। अब इन ढाई महीनों- पूरा अप्रैल का महीना, मई का महीना और 22 जून तक, यानी दो महीने और 22 दिन में सरकार को केवल 1,340 वेंटिलेटर मिल पाए। ये एबनॉर्मल देरी क्यों हुई, इसके लिए कौन जिम्मेदार है यह सबसे बड़ा सवाल है।

मामला यहीं तक सीमित नहीं है। वेंटिलेटर तो समय से नहीं आए। भ्रष्टाचार की गंध ज़रूर आ गयी। प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति में साफ लिखा है कि 2,000 करोड़ रुपए में 50,000 वेंटिलेटर खरीदे जाएंगे। यानी एक वेंटिलेटर की कीमत हुई 4 लाख रुपए। यह बात प्रधानमंत्री कार्यालय की विज्ञप्ति कह रही है। जबकि 10000 वेंटिलेटर सप्लाई का आर्डर हासिल करने वाली Agva हेल्थ केयर कंपनी एक वेंटिलेटर की कीमत डेढ़ लाख रुपये बताती है। यह बात उसके सीईओ ने खुलेआम प्रेस कांफ्रेंसों में कही है। अब कोई पीएम से पूछ सकता है कि जब डेढ़ लाख का वेंटिलेटर मिला है तो फिर पीएम केयर से रिलीज होने वाला प्रति वेंटिलेटर ढाई लाख रुपये का अतिरिक्त धन कहां गया? वह किसके और किन लोगों के फायदे के लिए है? वह पैसा किसके खाते में गया है। यह सबसे बड़ा सवाल बन गया है। 

तीसरा सवाल खरीद की पूरी प्रक्रिया को लेकर है। जब भारत सरकार कोई चीज खरीदती है तो उसे सभी नियमों की पूर्ति करनी पड़ती है, ओपन टेंडरिंग होती है, कॉम्पिटेटिव बिडिंग होती है। 10000 वेंटिलेटर की सप्लाई का जिम्मा लेने वाली Agva कंपनी और 30000 सप्लाई करने वाली स्कैन रे को यह बिड ओपन टेंडरिंग के जरिये हासिल हुई है। और अगर नहीं तो फिर यह आर्डर उनको कैसे मिल गया? देश को यह जानने का हक है क्योंकि यह ट्रांसपेरेंसी का मामला है। किसी को नहीं भूलना चाहिए कि पीएम केयर्स फंड में किसी का व्यक्तिगत पैसा है। 100 फीसद वह जनता का पैसा है। और उसके खर्चे का पूरा हिसाब जनता को जानने का हक है। लिहाजा देश जानना चाहता है कि क्या कॉम्पिटेटिव ऑर्डर हुए थे? कब ओपन टेंडरिंग की गयी? उसके डिटेल तो कभी नहीं दिखे।

इस देरी और भ्रष्टाचार से भी बड़ा आपराधिक मामला है वेंटिलेटरों का अक्षम और नकारा होना। लिहाजा सवाल यह नहीं है कि इन हासिल किए गए 1340 वेंटिलेटरों को कहां और किस अस्पताल में लगाया गया। बल्कि सवाल यह है कि उनकी उपयोगिता क्या है?

क्योंकि हेल्थ पैनल एक्सपर्ट और डॉक्टरों की व्यक्गित राय यह है कि, Agva कंपनी द्वारा सप्लाई किए गए वेंटिलेटरों का कोई इस्तेमाल नहीं है। अब सवाल यह है कि ढाई महीने में आए भी तो 1,340  वेंटिलेटर और वह भी इस्तेमाल के लिहाज बिल्कुल नकारा। जब देश में कोविड के केसेस प्रतिदिन 24 हजार से ऊपर जा रहे हैं और सबको पता है कि कोविड के गंभीर केसेस को सिर्फ और सिर्फ वेंटिलेटर की सहायता से बचाया जा सकता है, वरना संक्रिमति मरीज मृत्यु के मुंह में जाने के लिए अभिश्पत है । तब सरकार वेंटिलेटरों की खरीद में धांधली कर रही है। भला इसको अपराध की किस श्रेणी में रखा जाएगा। यह लोगों के जीवन से खुलेआम खिलवाड़ नहीं तो और क्या है?

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि जून के अंत तक 60,000 वेंटिलेटर देश में एडिशनल आ जाएंगे, जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय की विज्ञप्ति मात्र 1,340 23 जून तक का आंकड़ा दे रही है। इन सारे मुद्दों को कांग्रेस ने उठाना शुरू कर दिया है। और उसके प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने आज इन्हीं मुद्दों पर सरकार की घेरेबंदी की। 

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