सेवा में,
श्री अश्विनी वैष्णव,
रेल मंत्री,
भारत सरकार
बालासोर, उड़ीसा में घटी ट्रेन दुर्घटना और त्रासदी अत्यंत दुखदायक है। कृषि और ग्रामीण मजदूरों के साथ काम करने वाले और देश भर में मौजूद संगठनों के रूप में, हम ग्रामीण मजदूरों को उनके परिवारों के साथ जोड़ने में रेलवे के महत्व को समझते हैं। अधिकांश ग्रामीण परिवारों की स्थिति यह है कि उनके परिवार के युवा देश के विभिन्न हिस्सों में काम की तलाश में प्रवास कर रहे हैं। रेलवे प्रवासी श्रमिकों और मेहनतकश गरीबों के लिए जीवन रेखा है और इसका सुचारू संचालन देश के ग्रामीण गरीबों की आजीविका और आर्थिक कल्याण में मदद करता है।
हालांकि, उड़ीसा के बालासोर में हुई दुर्घटना और त्रासदी प्रवासियों की दुर्दशा की दुखद याद दिलाती है। इस हादसे में जनरल बोगियों के चपेट में आने से बड़ी संख्या में बंगाल, झारखंड, बिहार, उड़ीसा और अन्य राज्यों के प्रवासी श्रमिकों की मौत हो गई। इस दुर्घटना, जो टाली जा सकती थी, से सैकड़ों परिवार तबाह हो गए हैं। शवों को निकालने के जो विचलित करने वाले दृश्य सामने आए हैं, वे न केवल हादसों से बचने बल्कि आपदा से निपटने की भी तैयारी में कमियों को दर्शाते हैं।
बालासोर की घटना दुखद रूप से प्रवासी श्रमिकों की रेलवे सम्बंधित दुर्दशा का बस एक सिरा भर है। प्रवासी मजदूर देश के कोने-कोने में निर्माण कार्य, फसलों की कटाई और शहरी क्षेत्रों में कई सेवाएं प्रदान करने के लिए जाते हैं और देश के विकास में योगदान करते हैं। रेलवे उन्हें अपने कार्य स्थल से जोड़ता है। उनके जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जब ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी में बाधा उनके आजीविका कमाने के अवसर को प्रभावित करती है। जब रेलवे दुर्गम हो जाता है, यह देश में कहीं भी काम करने के उनके मौलिक अधिकार का हनन करता है। निजीकरण और हाल के वर्षों में रेलवे की उपेक्षा ने विकास की प्रक्रियाओं में श्रमिकों के योगदान को रोका है।
महामारी के बाद की अवधि में सैकड़ों यात्री ट्रेनें अभी भी निलंबित हैं, जिससे उनकी गतिशीलता प्रभावित हो रही है।
एक्सप्रेस ट्रेनों की जनरल बोगियों को हटा दिया गया है या कम कर दिया गया है। रेल टिकटों की ऊंची कीमतों के कारण ग्रामीण गरीबों के लिए स्थान सीमित हो गए हैं, जो सामान्य डिब्बे में यात्रा के लिए आश्रित हैं। पर्याप्त ट्रेनों और बोगियों के अभाव में ट्रेनों में अत्यधिक भीड़ ने परिवारों के आवागमन को प्रतिबंधित कर दिया है जिससे प्रवासी श्रमिक अपने परिवारों से अलग होने का दंश झेल रहे हैं।
दुर्घटनाएं आम हो गई हैं क्योंकि गरीब खेतिहरों द्वारा ली गई लाइनें और ट्रेनें उपेक्षा का सामना कर रहे।
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्टे रेलवे में बड़ी संख्या में खाली रिक्तियों, रोजगार में देरी और सिस्टम के रखरखाव के अभाव को दर्शाती है। यह चिंताजनक है कि 3.12 लाख पद खाली पड़े हैं और सिर्फ 2022-23 में 48 परिणामी और 162 गैर-परिणामी रेल दुर्घटनाएं हुई हैं। रेलवे के निजीकरण ने टिकटों की कीमतों में वृद्धि की है और फंड को आवश्यक सेवाओं से हटा कर अमीरों के लिए लक्जरी रेल यात्रा की ओर मोड़ दिया गया है।
हम कृषि और ग्रामीण मजदूरों के संगठन इसलिए मांग करते हैं,
1. बालासोर ट्रेन हादसे के शोकसंतप्त परिवारों को पच्चीस लाख का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को रेलवे में नौकरी दी जाए।
2. उचित रख-रखाव के लिए विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों का समय पर कार्यान्वयन, सिस्टम अपग्रेड और रिक्तियों की भर्ती की जाए।
3. महामारी के समय से निलंबित किये गए पैसेंजर ट्रेन सेवाओं को फिर से बहाल किया जाए।
4. ट्रेन में मांग के अनुसार जनरल बोगियों की संख्या बढ़ाना तथा इनमें पानी, शौचालय और भोजन की उचित व्यवस्था सुनिश्चित हो।
5. ट्रेनों की आवृत्ति और संख्या में वृद्धि करके ट्रेनों में भीड़भाड़ को कम किया जाए।
6. रेलवे में रिक्तियों को तत्काल भरा जाए।
7. सीनियर सिटीजन रियायत को पुनर्बहाल किया जाए जिससे मजदूर परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को यात्रा में सहूलियत मिले।
8. कृषि और ग्रामीण श्रमिकों को रेलवे रियायत पहचान पत्र जारी किया जाए।
9. रेलवे और उसकी सेवाओं का निजीकरण बंद किया जाए।
(अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन की ओर से जारी)