Thursday, April 25, 2024

कर्नाटक: दलित-आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस का बढ़ा दबदबा, भाजपा का सफाया

नई दिल्ली/बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रहा। कांग्रेस को न सिर्फ स्पष्ट बहुमत मिला बल्कि उसने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। कर्नाटक के हर क्षेत्र में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन सबसे अधिक सफलता उसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर मिला है।

कांग्रेस की इस जीत से भाजपा के होश उड़ गए हैं। भाजपा का राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 15 सीटों में से एक पर भी खाता नहीं खुला है। जबकि कांग्रेस के प्रत्याशियों ने एसटी की 14 सीटों पर परचम लहराया है तो जेडीएस को 1 सीट पर सफलता मिली है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 7 एसटी सीट जीतने में सफल रही थी। वहीं कर्नाटक में एससी (अनुसूचित जाति) के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों की संख्या 36 है। कांग्रेस ने इस बार 21 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि 2018 में वह 12 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी। इसी तरह राज्य विधानसभा चुनाव में कुल 9 मुसलमान प्रत्याशी जीते है,और सभी कांग्रेस के हैं।

भाजपा नेताओं और संघ संगठनों का यह दावा है कि देश के दलित और आदिवासी समूह उनके साथ जुड़ गये हैं। इसका श्रेय वह आएसएस प्रचारकों को देते हैं। लेकिन कर्नाटक में दलित और आदिवासियों ने भाजपा के दावे की पोल खोलकर रख दी है।दरअसल, भाजपा समाज को बांटने की रणनीति पर काम करती है। किसी समुदाय के बीच वह एकता नहीं बल्कि टकराव के बिंदु को तलाशती है, और समय-समय पर उसे उभारने और हवा देने की रणनीति पर चलती है। लेकिन कर्नाटक में इस बार उसका यह दांव उल्टा पड़ गया। चुनाव के पहले बसवराज बोम्मई सरकार ने मुसलमानों का आरक्षण खत्म करने की और दलितों और आदिवासियों के आरक्षण में थोड़ा वृद्धि कर उसे कई भागों मे बांटने की घोषणा किया था। राज्य में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। लेकिन भाजपा को उम्मीद थी कि उसके इस कदम से दलितों का एक हिस्सा उनके पक्ष में आ जायेगा। लेकिन बांटने की राजनीति का परिणाम सामने है।

भाजपा के हाई-प्रोफाइल नेता बी श्रीरामुलु का नाम वाल्मीकि समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में शुमार है, लेकिन वह कांग्रेस प्रत्याशी एन वाई गोपालकृष्ण के सामने मोलाकलमुरु (एसटी) सीट हार गए। श्रीरामुलु को 2018 के चुनावों से पहले उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था। श्रीरामुलु को हराने वाले कुदलीगी से भाजपा के पूर्व विधायक एन वाई गोपालकृष्ण चुनाव से पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए थे।

कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष और प्रमुख आदिवासी नेता सतीश जरकिहोली, यमकनमर्दी से लगातार चौथी बार जीते हैं। कांग्रेस द्वारा जीते गए अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में शोरापुर, रायचूर ग्रामीण, मानवी, मस्की, कांपली, सिरुगुप्पा, बेल्लारी ग्रामीण, संदूर, कुदलिगी, मोलाकलमुरु, चल्लकेरे, जगलूर और एचडी कोटे शामिल हैं। करीम्मा जी नायक एसटी-आरक्षित सीटों से एकमात्र जद (एस) विधायक हैं। उन्होंने भाजपा विधायक शिवनगौड़ा को 34,256 मतों के अंतर से हराकर देवदुर्गा जीता।

एससी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से हारने वाले में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मंत्री गोविंद करजोल का भी नाम शामिल है। बागलकोट जिले के मुधोल निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार आर बी थिम्मापुर ने उन्हें हराया। हावेरी में कांग्रेस उम्मीदवार के चुनाव पर विवाद भाजपा को महंगा पड़ा और कांग्रेस के रुद्रप्पा मालानी को 11,900 मतों से जीत मिली। कोराटागेरे में केपीसीसी के पूर्व अध्यक्ष जी परमेश्वर ने भाजपा उम्मीदवार और पूर्व आईएएस अधिकारी बी एच अनिल कुमार को पछाड़ दिया।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता के एच मुनियप्पा ने देवनहल्ली निर्वाचन क्षेत्र को 4,256 मतों से जीता। नंजनगुड में, पूर्व सांसद और केपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष आर ध्रुवनारायण के बेटे, दर्शन ध्रुवनारायण, जिनकी चुनाव से कुछ दिन पहले मृत्यु हो गई थी, की जीत हुई है। भाजपा के प्रभु चौहान ने औराद में अपनी सीट बरकरार रखी, जबकि भाजपा सांसद उमेश जाधव के बेटे चिंचोली विधायक अविनाश जाधव महज 814 मतों से जीते।

पिछले अक्टूबर में, कर्नाटक सरकार ने एससी के लिए आरक्षण में 15% से 17% और एसटी के लिए 3% से 7% तक की बढ़ोतरी की घोषणा की थी। बीजेपी को उम्मीद थी कि प्रभावशाली वोकालिगा और लिंगायत समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए मुसलमानों का आरक्षण खतम करने की घोषणा की थी। भाजपा को लगता था कि इससे उसे एससी और एसटी समुदायों तक पहुंचने में मदद मिलेगी लेकिन हुआ उल्टा।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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