पेगासस स्पाइवेयर भारत सरकार ने रक्षा समझौते के तहत खरीदा था: द न्यूयार्क टाइम्स का खुलासा

अमेरिकी अखबार द न्यूयार्क टाइम्स ने इस 28 जनवरी के अपने संस्करण में इस तथ्य का खुलासा किया है कि इजरायली जासूसी साफ्टवेयर पेगासस आधिकारिक तौर पर भुगतान करके भारत सरकार ने खरीदा था। यह खरीददारी 2017 में इजरायल के साथ हुए रक्षा उपकरणों की खरीदारी के समझौते के पैकेज के तहत हुई थी। इस पैकेज के भारत सरकार ने इजरायल से 2 बिलियन डॉलर के हथियारों की खरीददारी की थी। इसमें मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी शामिल था।

एक साल तक चली अपनी पड़ताल के बाद अखबार ने कहा है कि “फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने भी स्पाईवेयर को खरीदा था और टेस्ट किया था। उसने कहा है कि सालों तक इसको घरेलू जासूसी के लिए इस्तेमाल करने की योजना के बाद आखिरकर एजेंसी ने पिछले साल उपकरणों को तैनात नहीं करने का फैसला किया”।

रिपोर्ट में इस बात को विस्तार से बताया गया है कि कैसे स्पाईवेयर को वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल किया गया। मैक्सिको ने पत्रकारों और विरोधियों के खिलाफ तथा सऊदी अरब ने महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और स्तंभकार जमाल खाशोगी, सऊदी आपरेटिव ने जिनकी हत्या कर दी थी, के सहियोगियों के खिलाफ इस्तेमाल किया था। रिपोर्ट कहती है कि इजरायली रक्षा मंत्रालय से लाइसेंस प्राप्त एक नई डील के तहत पेगासस को पोलैंड, हंगरी और भारत तथा अन्य देशों को दिया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जुलाई 2017 के दौरे को चिन्हित करते हुए- किसी एक भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा उस देश का पहला दौरा- न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट में कहा कि यह दौरा इसके बावजूद हुआ कि भारत ने एक ऐसी नीति बना रखी थी जिसे वह फिलिस्तीन मामले के प्रति प्रतिबद्धता और इजरायल से उसके रिश्ते बेहद रूखे थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “हालांकि मोदी का दौरा उल्लेखनीय तौर पर सद्भावपूर्ण एवं उनके और प्रधानमंत्री नेतनयाहू द्वारा सावधानीपूर्वक पहले से तैयार किए गए स्थानीय समुद्र के किनारे नंगे पैर चहलकदमी करने के रूप में पूरा हुआ था। उनके पास गर्माहट महसूस करने के कारण थे। दोनों 2 बिलियन डॉलर के सोफिस्टिकेटेड हथियारों और खुफिया उपकरणों की खरीद के पैकेज पर सहमत थे, जिसमें पेगासस और एक मिसाइल सिस्टम मुख्य पीस के तौर पर शामिल था।”

रिपोर्ट इस बात का जिक्र करती है कि कुछ महीनों बाद इजरायली प्रधामंत्री नेतनयाहू ने भारत का सरकारी दौरा किया। और जून 2019 में भारत ने इजरायल के समर्थन में सुंयक्त राष्ट्र के इकोनामिक एंड सोशल कौंसिल में फिलीस्तीनी मानवाधिकार संगठन को एक आब्जर्बर का दर्जा देने से इंकार कर दिया। ऐसा उसने पहली बार किया था।

अभी तक न ही भारत सरकार और न ही इजरायली सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि भारत ने पेगासस खरीदा था।

रिपोर्ट आने के बाद विपक्ष ने हमला शुरू कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि “मोदी सरकार ने हमारे लोकतंत्र की प्राथमिक संस्थाओं, राज नेताओं व जनता की जासूसी करने के लिए पेगासस ख़रीदा था। फ़ोन टैप करके सत्ता पक्ष, विपक्ष, सेना, न्यायपालिका सब को निशाना बनाया है। ये देशद्रोह है। मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है”।

भारत-इजरायल के संबंधों की प्रगाढ़ता और फिलिस्तनियों के प्रति भारत के बदलते रूख के पीछे एक बड़ा कारण पेगासस स्पाइवेयर इजरायल से हासिल करना भी था। जिसका इस्तेमाल नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों, चुनाव आयुक्त और अन्य लोगों के खिलाफ किया। जिसमें राहुल गांधी, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, प्रशांत किशोर और वर्तमान सूचना एवं तकनीकी मंत्री अश्विनी वैष्णव भी शामिल थे। इसमें 40 से अधिक पत्रकार भी शामिल थे। इन पत्रकारों में द इंडियन एक्सप्रेस दो वर्तमान और एक भूतपूर्व संपादक भी शामिल थे।

जब जासूसी साफ्टवेयर पेगासस का मामला आया था, उसी समय यह बात करीब स्पष्ट थी कि यह साफ्टवेयर भारत सरकार ने खरीदा है, क्योंकि इजरायल की सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट कर दिया था कि यह साफ्टवेयर बिना इजरायल की सरकार की अनुमति के बेचा नहीं जा सकता था। भले ही यह साफ्टवेयर एनएसओ (NSO) नामक इजरायल प्राइवेट फर्म ने तैयार किया था, लेकिन उसका इजरायल की सरकार से यह स्पष्ट समझौता है कि बिना इजरायल की सरकार की अनुमति के यह साफ्टवेयर वह कंपनी किसी को बेच नहीं सकती है। इसमें दूसरा प्रावधान यह भी था कि यह साफ्टवेर सरकारों और सरकारी एजेंसियों को ही बेचा जा सकता है किसी प्राइवेट कंपनी को नहीं।

जब पेगासस का मुद्दा सामने आया था, तो उस समय द इंडियन एक्सप्रेस से बात-चीत में इजरायल के राजदूत नोर गिलान ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि प्राइवेट कंपनी एनएसओ द्वारा इस साफ्टवेटर का निर्यात किया जाता है,लेकिन यह कार्य इजरायल सरकार की देख-रेख में होता है और यह भी कहा था कि इस कंपनी साफ्टवेयर का निर्यात करने के लिए इजरायल की सरकार से लाइसेंस लेना होता है।

भारत सरकार ने पेगासस साफ्टवेर इजरायल से खरीदा, उसके लिए आर्थिक भुगतान किया और उस साफ्टवेयर का इस्तेमाल सरकार ने जासूसी के लिए किया, भारत सरकार संसद और संसद से बाहर लगातार इससे इंकार करती रही। इस मुद्दे पर लंबे समय तक संसद ठप्प रही। सरकार और सरकार के मंत्री कहते रहे है कि यह मनगढंत खबर और आरोप है और इसके माध्यम से भारतीय लोकतंत्र एवं सराकर को बदनाम किया जा रहा है। द न्यूयार्क टाइम्स ने लंबे समय की जांच-पड़ताल के बाद यह रिपोर्ट प्रकाशित की है, इस रिपोर्ट के आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि जासूसी साफ्टवेयर पेगासस भारत सरकार ने इजरायल से रक्षा समझौते के तहत खरीदा, उसके लिए भुगतान किया और उसका इस्तेमाल बड़े पैमाने राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों, संवैधानिक संस्थाओं में बैठे लोगों और अन्य संभावित विरोधियों के खिलाफ किया गया। इस तथ्य के आने के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि पेगासस के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों और अन्य लोगों के आरोप पूरी तरह सच थे, इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी की सरकार लगातार झूठ बोलती रही और देश को गुमराह करती रही।

हालांकि दर्जनों याचिका दाखिल होने के बाद भारत के उच्चतम न्यायालय ने 27 अक्टूबर पेगासस मामले की जांच के लिए सेवानिवृत न्यायाधीश आर. वी. रविंद्रन के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच समिति निुयक्त की। इस जांच समिति की अंतिम रिपोर्ट आनी अभी बाकी है।

इस खुलासे के बाद उच्चतम न्यायालय की जांच समिति क्या रूख अपनाती है, यह देखने वाली बात होगी।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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