Thursday, March 28, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों ने एक सुर में बोला- जीएन साईबाबा को रिहा करो

नई दिल्ली। दिल्ली स्थित हरकिशन सिंह सुरजीत ऑडिटोरियम कल पांच दिसंबर को छात्रों, प्राध्यापकों और बुद्धिजीवियों से भरा था। माहौल में संजीदगी थी। सोमवार को माओवादियों से साठ-गांठ के आरोप में सालों से जेल में कैद प्रो. जीएन साईबाबा, हेम मिश्रा, प्रशांत राही, महेश तिर्की एवं विजय तिर्की की रिहाई की मांग के लिए भारी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे। अदालत द्वारा निर्दोष बताये जाने के बावजूद साईबाबा और अन्य को रिहा न करने पर लोग आक्रोशित थे।

कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों की आम राय थी कि जनता के लोकतांत्रिक हकों और मानवाधिकार पर काम करने वालों को गैरकानूनी तरीके से जेल में डाला जा रहा है। तथाकथित कानून सत्ता का औजार बना हुआ है। संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। वहां उपस्थित लोग एक बात पर एक मत थे कि आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों के पक्ष में खड़े होने वाले और जल-जंगल-जमीन पर कॉरपोरेट की लूट का विरोध करने और उस पर देशवासियों का अधिकार बताने वाले कार्यकर्ताओं को केंद्र और राज्य सरकारें फर्जी मामलों में फंसा कर जेल में डाल रही हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आदिवासियों के हितों की रक्षा के सिए संघर्ष करने वालों को माओवादी और नक्सली बता कर यूएपीए और एनएसए लगाया जा रहा है।

सोमवार को दिल्ली के हरकिशन सिंह सुरजीत भवन में जीएन साईबाबा, हेम मिश्रा प्रशांत राही, महेश तिर्की एवं विजय तिर्की की रिहाई की मांग करते हुए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन 36 संगठनों के संयुक्त मोर्चे “कंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन” द्वारा किया गया था।

माओवादियों से साठ-गांठ के आरोप में लंबे समय से जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा की पत्नी बसंथा ने कहा कि, “मेरे वकील ने मुझे तत्काल नागपुर आने को कहा था, जिससे 14 अक्टूबर को ही रिहाई हो जाए, वकील का कहना था कि विलंब होगा तो कोई नई अड़चन आ जायेगी। वकील साहब के कहे अनुसार मेरा देवर वहां पहुंच भी गया लेकिन मेरे पति (प्रो. जीएन साईबाबा) की रिहाई नहीं हो सकी। सरकार में बैठे ताकतवर लोगों ने रिहाई की राह में नया रोड़ा अटका दिया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने तुरंत रिहा करने को कहा था। इस खुशी में साईबाबा ने जेल में अपना सब सामान दूसरे कैदियों में बांट दिया। जमानत के लिए 50 हजार की जमानत राशि देनी थी। लेकिन अदालत ने नगद को जमानत राशि के रूप में स्वीकार नहीं किया। स्थानीय जमानतदार और अचल संपत्ति अब हम महाराष्ट्र में कहा से लाएं? हम हैदराबाद के हैं, तो हेम मिश्रा उत्तराखंड के रहने वाले हैं। दूसरे आरोपी भी महाराष्ट्र के नहीं हैं।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बसंथा ने कहा कि, “हमारे देश में ऐसा कहा जाता है कि कानून के समक्ष सब बराबर है। लेकिन कानून और अदालत द्वारा निर्दोष साबित होने के बावजूद 90 प्रतिशत विकलांग साईबाबा और अन्य आरोपियों को रिहा नहीं किया जा रहा है। बल्कि कानून को तोड़ा जा रहा है।”

उन्होंने कहा कि साईबाबा को अंडा सेल में रखा गया है। 90 फीसद विकलांग साईबाबा को नित्य कर्म से लेकर हर काम के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है। जेल में उन्हें जरूरी चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिल पाता। नागपुर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर भी कोई रिपोर्ट देने से डरते हैं।

उन्होंने कहा कि जेल में बंद एक अन्य आरोपी पण्डु नरोटे दवा के अभाव में दम तोड़ दिए। साईबाबा की हालत ठीक नहीं है। किसी दिन कुछ भी सुनने को मिल सकता है। यह कहते हुए वह भावुक हो गयीं। और उन्होंने कहा कि यहां आकर आप लोगों के समक्ष साईबाबा की हालत का जिक्र करना इतना आसान नहीं है। मुझे बार-बार उनके दर्द को सहना पड़ता है।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के डी राजा ने कहा कि, “असहमति लोकतंत्र का मूल है। किसी भी मुद्दे पर अलग राय रखना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है। आज लोकतंत्र और संविधान के सामने गंभीर चुनौती है। असहमति को दबाने के लिए काले कानून- UAPA, SCRAP, AFSPA, NSA और PSA जैसे कानून लाए गए हैं। साईबाबा और अन्य आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। लेकिन उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है। सीपीआई जेल में बंद आरोपियों के साथ है।”

जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा जो कि माओवादियों से संबंध रखने और उन्हें सूचना पहुंचाने के आरोप में कैद हैं, उनके पिता केडी मिश्रा ने कहा कि, “मेरा बेटा हाथ से विकलांग है। वह कुमायूं विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी करके जेएनयू आया। बचपन से ही वह गीत गाता था। कॉलेज के दौरान ही वह जनवादी गीतों से लोगों को जागरूक करने का काम करता रहा। उसके हाथ की अंगुलियां नहीं हैं। इसके लिए वह चेन्नई इलाज के लिए गया था। 2013 में उसे रास्ते में ही गिरफ्तार करके महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से अहेरी लाया गया। और माओवादियों के बीच का कड़ी कहा गया।”

केडी मिश्र ने कहा कि आज सत्ता के साथ ही हर जगह भाजपा-संघ के लोगों को बैठाया जा रहा है। न्यायपालिका में भी यह किया जा रहा है। जेल में सिर्फ हेम मिश्रा और साईबाबा ही नहीं हैं, बल्कि हजारों लोग हैं जिनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि यह लंबी लड़ाई का विषय है, हमें लंबे समय तक संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. पीके विजयन ने आज के पूरे परिदृश्य को चिहिंत करते हुए कहा कि सिर्फ भाजपा सरकार की ही बात नहीं है। 2005 में तत्कालीन सरकार के गृहमंत्री ने कहा कि माओवादी आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। यह उस सरकार का विचार नहीं है। यह अमेरिकी जोजफ मैकार्थी का फ्रेज है। जो अमेरिका में 1950-60 के दशक में बोला जाता था। ध्यान देने की बात है कि अमेरिका में साठ के दशक में हुआ वह अब हमारे देश में हो रहा है।

माओवाद के नाम पर जेल में बंद करना बीमारी नहीं बल्कि लक्षण है। हमें लक्षण नहीं बीमारी से लड़ने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करना होगा। जल-जंगल-जमीन की बात करने वालों को माओवादी बताकर जेल में डाला जा रहा है।

उन्होंने कहा कि ध्यान देने की बात है कि झाऱखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र और जहां-जहां आदिवासी हैं, वहां खनिज संपदा भी बहुतायत है। उन्हीं राज्यों के लोग माओवाद के आरोप में सबसे ज्यादा जेलों मे बंद हैं। साईबाबा के जेल जाने के बाद हमारे देश में खनन के विरोध में चलने वाले आंदोलन थम गए हैं। अब खनन का विरोध कम हो गया है। सरकार की मंशा है कि प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट को सौंपने के निर्णय का विरोध न हो, नहीं तो विरोध करने वालों को यूएपीए लगाकर जेल में डाल दिया जायेगा।

सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि साईबाबा और अन्य के खिलाफ झूठे केस बनाए गए हैं। आज जो समाज के वंचित लोगों के लिए जो लड़ रहा है, मानवाधिकारों की बात कर रहा है, आदिवासियों की बात कर रहा है, उसे एनआईए और ईडी लगाकर ठिकाने लगाया जा रहा है। आज सारी एजेंसियां सरकार की कठपुतली बनी हुई हैं। आदिवासियों के लिए काम करने वालों पर यूएपीए लगाया जा रहा है। इसमें जमानत लेना मुश्किल है। संपर्क रखने के आरोप में यूएपीए लगाया जा रहा है। यह कानून का मजाक है।

उन्होंने कहा कि ऐसे लोग लंबे समय बाद जेल से छूटते हैं। कोर्ट तब मुआवजा देती है। लेकिन झूठे केस बनाने वाले अधिकारी बच जाते हैं। हमें झूठे केस बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की मांग करनी होगी। उन्होंने कहा कि मैं जीएन साईबाबा और अन्य आरोपियों की रिहाई का समर्थन करता हूं।

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