Tuesday, March 19, 2024

जुनैद-नासिर हत्याकांड पर जांच रिपोर्ट: हरियाणा सरकार का गोरक्षा टास्क फोर्स बना हत्यारा गिरोह

गाय के नाम पर इंसानों की हत्यायें बढ़ती जा रही हैं। अभी ताजा मामला मेवात के घाटमीका गांव का है। घाटमीका गांव के जुनैद व नासीर की गौरक्षा टास्क फोर्स व बजरंग दल के गुंडों ने बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी। 16 फरवरी को भिवानी में लौहारू के जंगलों में एक बोलेरो गाड़ी में दो बुरी तरह जले हुये शव मिलने से प्रदेश भर में सनसनी फैल गयी। इनको सीट बेल्ट से बांधकर गाड़ी सहित आग के हवाले किया गया था। शवों की हालत इतनी खराब थी कि इनकी पहचान करना भी संभव नहीं था। यह एक दिल दहला देने वाली घटना थी।

इससे एक दिन पहले 15 फरवरी को राजस्थान में जिला भरतपुर के गोपालगढ़ थाना में गांव से अगवा किये गये इन दोनों युवकों के रिश्तेदार इस्माइल नामक व्यक्ति ने एक एफआईआर दर्ज करवाई थी कि आज सुबह लगभग पांच बजे उसका चचेरा भाई जुनैद (35 वर्ष) और नासिर (25 वर्ष) अपनी बोलेरो कार में किसी निजी काम से गांव से बाहर गये थे। सुबह करीब छह बजे गोपालगढ़ के जंगल की ओर जा रहे इन दोनों को आठ-दस लोगों ने बुरी तरह पीटा। उनकी हालत बहुत गंभीर थी। हमलावरों ने उनका अपहरण कर लिया।

भिवानी पुलिस ने बोलेरो गाड़ी के चेसिस नम्बर के आधार पर राजस्थान में मृतकों के परिवार से संपर्क किया व राजस्थान पुलिस को मामले की सूचना दी। एक बार फिर, ये दोनों मुस्लिम युवक गाय के नाम पर चल रही गुंडागर्दी की भेंट चढ़ गये। जुनैद व नासिर के परिजनों ने बजरंग दल से जुड़े गौरक्षकों को नामित करते हुये गोपालगढ़ थाना में मुकदमा दर्ज करवा दिया है।

मौके के गवाहों ने जुनैद व नासिर का अपहरण करने वालों के नाम- मोहित यादव उर्फ मानू मानेसर, लोकेश सिंगला, रिन्कू सैनी, श्रीकांत व अनिल बताये हैं। फिरोजपुर झिरका निवासी रिन्कू सैनी को राजस्थान पुलिस ने पहले ही हिरासत में ले लिया है। रिन्कू सैनी द्वारा किये गये खुलासों के आधार पर राजस्थान पुलिस आरोपियों को पकड़ने के लिये भिवानी, नूंह के अलावा हरियाणा के कैथल, करनाल, जींद जिलों में भी छापेमारी कर रही है।

गौरक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना कोई नई बात नहीं है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद ऐसी वारदातों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है। एक बेहद घृणित राजनीतिक ऐंजेडा के तहत यह अभियान चलाया जा रहा है जिसमें राज्य के खुल्लम खुल्ला सहयोग से कट्टरपंथी विचारधारा के संगठन बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस अल्पसंख्यकों, आदिवासियों व दलितों को निशाना बना रहे हैं। इस प्रकार की अमानवीय घटनायें हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, झारखंड आदि राज्यों में हो रही हैं।

जुनैद व नासिर की नृसंश हत्याओं में नामित कथित गौरक्षक सीधे तौर पर बजरंग दल से जुड़े हैं और बजरंग दल, विहिप आदि के संबंध सत्ताधारी भाजपा से जगजाहिर है। ये कट्टरपंथी गिरोह धार्मिक जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का प्रयोग राजनीतिक लाभ के लिये करते है ताकि भाजपा के पक्ष में हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके।

इनकी जहर उगलने वाली भाषणबाजी पर न्यू देल्ही टेलीविजन के एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि हाल के समय में हिंदू-मुसलमान पर जहरीली भाषा के उपयोग में लगभग 500 प्रतिशत बढोतरी हुई है और ऐसा करने वाले 90 प्रतिशत नेता भाजपा के हैं। गौरक्षा ऐसे भाषणों का मुख्य विषय बनी रही है। मुस्लिम समुदाय गाय के नाम पर की जाने वाली इस गुंडागर्दी के निशाने पर हैं।

ह्यूमेन राइट वाच की एक रिर्पोट के अनुसार मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच भारत के 12 राज्यों में कम से कम 44 लोग इस प्रकार की हिंसा में मारे गये जिसमें 36 मुस्लिम थे। इसी अवधि में, 20 राज्यों में 100 से अधिक अलग अलग घटनाओं में करीब 280 लोग घायल भी हुये हैं। 

इन कट्टरपंथी गिरोहों को संरक्षण प्रदान करने के लिये भाजपा की हरियाणा सरकार ने वर्ष 2015 में गौरक्षा कानून पारित करके गौहत्या, गौमांस का खानपान, भंडारण व व्यापार तथा एक पशु के रूप में गाय के व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया है। जिसमें कानून का उल्लंघन करने वालों के लिये भारी जुर्माने सहित 3 से 7 वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है। इसी कानून के तहत प्रदेश व जिला स्तरों पर गौरक्षा टास्क फोर्स का गठन किया गया है। जुनैद और नासिर की अपहरण के बाद जघन्य हत्या में जिन कथित गौरक्षकों के नाम आ रहे हैं, वे सब इसी गौरक्षा टास्क फोर्स से संबंधित हैं।

हम विभिन्न जनसंगठनों- प्रोग्रेसिव स्टूडेंटस फ्रंट, छात्र एकता मंच, भारतीय किसान यूनियन एकता उग्राहान, भारतीय किसान पंचायत, नरेगा मजदूर सभा, मजदूर अधिकार संगठन, राष्ट्रीय मजदूर किसान संगठन व सोशल मीडिया प्लेटफार्म जनमंच से जुड़े कार्यकर्ताओं की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने राजस्थान में घाटमीका गांव का दौरा किया।

टीम गौरक्षक गुंडों द्वारा जलाकर मारे गये दोनों मृतक जुनैद व नासिर के घरों में गयी तथा उनके परिजनों से बातचीत की। स्थानीय लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि इस पूरे इलाके में, राजस्थान और हरियाणा दोनों तरफ गाय के नाम पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्यायें हुई हैं, शारीरिक चोटें पहुंचाई गई है, यहां तक कि पुलिस व गौरक्षक गठजोड़ के कारण बहुत से लोगों को जेलों में डालकर यातनायें दी गई है।

जांच टीम ने गाय के नाम पर गौरक्षा टास्क फोर्स का चोला ओढ़े बजरंग दल जैसे हिंदू कट्टरपंथी गिरोहों की गुंडागर्दी का शिकार हुये अनेक भुक्त-भोगियों से बातचीत की और उनका दर्द जानने की कोशिश की। तीन दिन के इस मेवात दौरे में टीम राजस्थान में स्थित जुनैद व नासिर के गांव घाटमीका के अलावा हरियाणा के नूंह जिले में राऊली, कौल, शेखपुर व रवा आदि गांवों में गयी। इस रिर्पोट के जरिये मेवात में गाय के नाम पर चल रहे आतंक की राजनीति व अर्थिकता की पड़ताल की गई।

संघ परिवार मेवात के बारे जो भ्रांतियां आम जन में फैला रहा है, मेवात ऐसा कभी नहीं रहा। बल्कि राजाराम भादू की माने तो मेव समुदाय की संस्कृति को हिंदू या मुसलमान के संकुचित आधारों पर विभाजित नहीं किया जा सकता। मेव समुदाय की संस्कृति- आदिवासी, हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों का सम्मिश्रण है। मूलतः आदिवासी मेवों ने हिंदू जाति प्रथा को अपना लिया था। मेव संस्कृति पर ब्रज, राजस्थानी व इस्लामी संस्कृतियों का मिलाजूला प्रभाव है। इस्लाम धर्म के अनुयायी होने के बावजुद मेवातियों ने नजदीक रक्त संबंध में विवाह संबंध बनाना आज भी स्वीकार नहीं किया है। मेव आज भी जाटों की तरह गोत्र छोड़कर शादियां करते हैं।

मेव इस्लाम का त्याग कर सकता है लेकिन गौत्र का नहीं, यह बात जामा मस्जिद में बैठे बड़े-बड़े मौलवियों को भी भली भांति मालूम है। इसके अलावा दादाखेड़ा, भेरूनाथ व हनुमान आदि की आज भी मेवातियों में बहुत मान्यता है। मेवात की औरतें बुर्का नहीं पहनती। यह सही है कि आर्य समाज ने मेवात में रहने वाले जाटों, सैनियों, गूज्जरों, वैष्यों व अन्य हिंदुओं का वैदिक शिक्षा का पाठ पढ़ाकर विशुद्ध हिंदू संस्कृति से जोड़ेने का प्रयास किया है और तबलीग जमात ने मेवों को इस्लामी शिक्षा का पाठ पढ़ाया है। लेकिन मेवों का मेवातीपन शायद ही परिवर्तित हुआ है।

बदनाम करने के लिये मेवात को मिनी पाकिस्तान का नाम दिया जा रहा है। लेकिन मेवातियों का इतिहास हमेशा सघंर्शों का रहा है। मेव सरदार हसन खां मेवाती की बहादुरी के किस्से इतिहास में दर्ज हैं। मुस्लिम राजाओं से मेव सरदारों का टकराव यह बताता है कि मेव इस्लाम से नियंत्रित न होकर स्वदेशी हितों के प्रति ज्यादा अग्रशील थे।

‘हरियाणा क्षेत्र में कंपनी राज के खिलाफ बगावत की पहली चिंगारी 11 मई 1857 को गुड़गांव पर कब्जा कर लिए जाने से शुरू हुई। गुड़गांव जिले का पहाड़ी भाग जो उत्तर में दिल्ली और दक्षिण में अलवर और भरतपुर तक फैला है, मेवात कहलाता है। उस समय सदरूद्दीन नामक एक मेव किसान ने बागी सेना, किसानों व कारीगरों को नेतृत्व प्रदान किया था। मेवात के बागी इतने शक्तिशाली हो गए थे कि जयपुर की कछवाहा रियासत के रेजीडेंट मेजर एडन को 6,000 सैनिकों और 7 तोपों को लेकर मेवात को काबू करने के लिए आना पड़ा था।

इस दौरान बड़ी संख्या में मेवों को पेड़ों से लटकाकर फांसी दे दी गई। नूंह अडवर और शाहपुर नंगली के 52 मेव चैधरियों को बरगद के पेड़ पर लटकाकर फांसी दी गई। मेवों के गांव ही नहीं उनकी संपत्ति को भी बर्बाद कर दिया गया है। अंग्रेजी सेना की बर्बरता और भारी तोपों, गोला बारूद और सैनिक शक्ति के बावजूद मेवात के वीरों ने हार नहीं मानी। वे बार बार सदरूद्दीन के नेतृत्व में संगठित होते रहते थे और अपने देश की रक्षा के लिए आखिरी दम तक लड़ते रहते थे.’ अंग्रेजों ने मेवों को जरायम पेशा जनजाति के रूप में अनुसूचित कर दिया।

राजसत्ता का क्रूर से क्रूर दमन भी मेवातियों के हौसले नहीं तोड़ सका। राजधानी दिल्ली के नजदीक एक फौलादी मेवात भला राजसत्ता को कैसे रास आता। इसलिये एक षड़यंत्र के तहत मेवात की एकता को छिन्न भिन्न करने के उद्देश्य से मेवात को टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जैसाकि लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन इसी मकसद से किया था। ठीक इसी तरह से आदिवासियों की एकता को तोड़ने के लिये उनको अलग अलग राज्यों के साथ नत्थी कर दिया गया। आज गोंडवाना राज्य एक काल्पनिक कथाओं का राज्य मात्र बन कर रह गया है। वैसे ही आज का मेवात हरियाणा, राजस्थान व उत्तरप्रदेश राज्यों में विभाजित है।

नौ दशक पहले जो हिंदू-मेव एकजुट होकर अंग्रेज हकूमत के विरूद्ध लड़ रहे थे। विभाजन के दौर में उन्हीं के बीच खूनी मारकाट होती है। भरतपुर के सरकारी आंकड़े 30 हजार मेव मृत बताते हैं। अलवर में 1961 में मुसलमानों की कुल जनसंख्या 52,803 थी जबकि 1872 की प्रथम जनगणना में यह संख्या 1,51,727 थी अर्थात 90 वर्ष बाद भी यह संख्या बढ़ने की बजाय घटकर आधी रह गयी। इस मारकाट को शैल मायाराम ने जेनोसाइड का नाम दिया है यानि एक पूरी कौम का नामोनिशान मिटाने की कोशिश।

इस क्षेत्र में मारकाट से पहले प्रजा मंडल के नेतृत्व में बढ़ी हुई लगान दरों के खिलाफ एक उग्र व व्यापक किसान आंदोलन चल रहा था। इस किसान आंदोलन को कुचलने के लिये भरतपुर व अलवर के तत्कालीन राजाओं ने कट्टरपंथी हिंदू ताकतों को शह दी। आर्य समाज की तरफ से शुद्धी अभियान चलाया गया और अलवर में आरएसएस सक्रिय हो गया।

मेवात के साथ धार्मिक आधार पर किया जा रहा है भेदभाव

मेवात के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। लंबे समय से मेवात में काम कर रहे डाक्टर मोहम्मद अशफाक आलम का यही कहना है। 2005 से पहले मेवात का यह हिस्सा उसी गुड़गांव में पड़ता था जो आज पूरी दुनिया में स्मार्ट सिटी के नाम से जाना जाता है, विकसित औद्योगिक क्षेत्र व बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियों के लिये जाना जाता है तथा विकसित जिला व शहर के रूप में जाना जाता है। मेवात का यह भाग भी उसी गुड़गांव का हिस्सा रहा है। हालांकि तब भी मेवात उतना ही पिछड़ा था। इसलिये इस पिछड़ेपन को दूर करने के लिये 2005 में मेवात जिले का गठन किया गया लेकिन भेदभाव का वह पुराना सिलसिला आज भी बदस्तुर चल रहा है।

राष्ट्रीय राजमार्ग संखा 248ए जो गुड़गांव के राजीव चौक से चलकर अलवर की तरफ जाता है। ये 1980 से पहले भी राष्ट्रीय राजमार्ग था। जब राव विरेन्द्र सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने तो इस सड़क का दर्जा घटाकर स्टेट हाईवे का कर दिया गया। यह भारत का पहला राजमार्ग है जिसका दर्जा घटाया गया है। इस हाईवे को भी रिवाड़ी की तरफ निकाल कर ले गये। ये भी मेवात के साथ भेदभाव के कारण ही हुआ। क्योंकि हम सब जानते है कि सड़कें किसी भी क्षेत्र के विकास के लिये बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। अब जिसको राष्ट्रीय राजमार्ग 248ए बनाया गया है, उसको फोरलेन बनाने के लिये मेवात के सामाजिक संगठनों को लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है।

यहां पर साल में सैकडों लोगों की मौत हो जाती है। हजारों लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपाहिज बन रहे हैं। लेकिन इस रोड़ को फोरलेन नहीं बनाया जा रहा है। राज्य सरकार के इस वर्ष के बजट में भी इस रोड़ को फोरलेन बनाने के लिये कुछ भी नहीं दिया है। राश्ट्रीय राजमार्ग 248ए भी सोहना तक तो छः लेन का है। नूंह मुख्यालय तक फोरलेन है। लेकिन 45 किलोमीटर के क्षेत्र में जिसमें असली मेवात बसता है। जहां से अलवर और भरतपुर को जोड़ता है, वहां पर आज भी उसको दो लेन का ही रखा गया है। जिस पर रोज हत्यायें हो रही हैं।

जिन सरकारी सीनियर सकेंडरी स्कूलों में सन् 1970 में शिक्षा की बेहतरीन व्यवस्था होती थी आज वहां पढ़ाई नहीं हो रही है। उन स्कूलों की हालत बहुत दयनीय है। जब हम मेवात में स्कूलों की स्थिति पर बात करेंगे तो उसमें भी मेवात के साथ भेदभाव का ही पता चलता है। मेवात के बाहर, मेवात के बारे में यह कुप्रचार किया जाता है कि मेवात में लोग शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है और लड़कियों की शिक्षा के प्रति तो बिल्कुल भी नहीं। यह सब निराधार आरोप है।

मेवात के स्कूलों में बच्चों की कमी नहीं है, इसके विपरित स्कूल चाहे वे प्राईमरी लेवल के हों या उससे उच्च लेवल के, बच्चों से भरे पड़े हैं। स्कूलों में बच्चों की संख्या या विशेषकर लड़कियों की संख्या की कोई कमी नहीं है। बसीम गांव के आठवीं तक के सरकारी स्कूल में आज भी 850 बच्चों के नाम दर्ज हैं। लेकिन शिक्षक कितने है? प्राईमरी लेवल पर केवल दो शिक्षक हैं और मिडल में केवल एक शिक्षक है। मेवात के सभी स्कूलों की यही हालत है।

मेवात एक ऐसा इलाका है जहां भवन-विहिन स्कूल भी हैं। भवन नहीं है परन्तु स्कूल है। यह बहुत अदभुत बात है। पूरे मेवात जिला में कुल 62 स्कूल भवन विहिन हैं। 107 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। मेवात में बिना शिक्षक के स्कूल भी है। यह कोई पुरानी बात नहीं बल्कि एक महिना पहले तक उपलब्ध आंकडों की तस्वीर है। मेवात की बेटियां पढ़ना चाहती हैं और मेवाती भी अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण जिसको सरकारी स्तर पर कभी पूरा नहीं किया गया, जिला के तमाम मिडल कन्या स्कूलों को लड़कों के मिडल स्कूलों में मर्ज कर दिया गया है।

राजस्थान के जिला भरतपुर के कामा क्षेत्र के कुजरा गांव में केवल दो कमरों में मॉडल संस्कृति स्कूल बनाया गया है। इस स्कूल में केवल एक शिक्षक है। एक कमरे में स्कूल का फर्नीचर आदि भरा पड़ा है। दूसरे कमरे में शिक्षक रहता है। बच्चे बरामदे में आकर बैठ जाते हैं। सरकार इसको मॉडल संस्कृति स्कूल कहती है। फिरोजपुर झिरका के मदापुर में भी एक मॉडल संस्कृति स्कूल है। यह एक प्राईमरी स्कूल है। पिछले साल वहां 65 बच्चों का दाखिला हुआ था।

सरकार ने अब वहां 500 रूपये महीना फीस लेनी शुरू कर दी है। इस साल वहां केवल 15 बच्चे दाखिला करवा पाये। बच्चों की संख्या कम होने का एकमात्र कारण फीस लेना है। यही स्थिति यहां के तमाम मॉडल संस्कृति स्कूलों की है। नरीयाला गांव में भी एक सीनियर सकेंडरी मॉडल संस्कृति स्कूल है। वहां पर अब तक एक ही शिक्षक होता था। हमारे हस्तक्षेप करने के बाद दो और शिक्षक प्रतिनियुक्ति के आधार पर आये हैं। यह एक सीनियनर सकेंडरी स्कूल है लेकिन इसमें छठी से लेकर बाहरवीं तक केवल तीन शिक्षक हैं।

दोनों ही प्रदेशों, राजस्थान व हरियाणा में पड़ने वाले मेवाती क्षेत्रों की हालत एक समान है। किसी भी राजनीतिक पार्टी की सरकार दोनों तरफ आने से मेवातियों के हालात पर कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ता। दोनों तरफ सत्ता बदलती रहती है लेकिन मेवात को बदलने का प्रयास कोई नहीं करता। रेलमार्ग की मांग हम लोग करते रहे हैं। एक तरफ भरतपुर होकर रेलमार्ग निकाला गया है। दूसरा रिवाड़ी होकर रेल को निकाला गया है। कांग्रेस की सरकार में जब ममता बनर्जी रेलमंत्री थी, तब मेवात से रेल निकालने का बजट भी पास हुआ था। लेकिन इस क्षेत्र से भेदभाव फिर आड़े आ गया, रेल नहीं निकाली गयी।

ये जुनैद व नासिर का गांव है

जुनैद व नासिर का गांव घाटमीका, तहसील पहाड़ी, जिला भरतपुर राजस्थान में पड़ता है। यह गांव तहसील मुख्यालय पहाड़ी से 7-8 किलामीटर दूर है। यह अत्यंत पिछड़ा हुआ गांव है। इस गांव में 90 प्रतिशत घर आज भी कच्चे हैं। 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग खेतीबाड़ी या गाय बकरी पाल कर अपना जीवन यापन करते हैं। फोरलेन एक्सप्रेसवे के जमाने में घाटमीका तक जाने वाली सड़क आज भी कच्ची है।

जुनैद की उम्र 35 साल थी। वह 6 बच्चों का बाप है। इसके अलावा जुनैद के भाई के 13 बच्चों का पालन पोषण करना भी जुनैद की ही जिम्मेदारी थी। जुनैद की गांव में एक छोटी सी दुकान थी। जोकि उसने किराये पर ले रखी थी। जैसाकि क्षेत्र के बहुत से नौजवान आजीविका के लिये ट्रक चलाते हैं, नासिर भी ट्रक चालक था। वे तीन भाई तीन बहन हैं। उसके पिता का देहांत हो चुका है। उसने एक चार साल की लड़की को गोद लिया हुआ है। इनके परिवार के पास 5 बीघा जमीन है। जिस पर परिवार खुद खेती करता है। अपने खेतों पर काम करने के अलावा इनको दूसरों के पास मजदूरी भी करनी पड़ती है।

मृतकों के परिवार वालों ने टीम को बताया कि 15 फरवरी को सुबह पांच बजे दोनों चाचा-भतीजा जुनैद की ससुराल जाने के लिये निकले थे। जुनैद और नासिर पास के ही गांव पीरूका के नजदीक गौरक्षकों के हत्थे चढ़ गये। आसपास मौजुद लोगों ने गौरक्षा टास्क फोर्स के गुंडों को जुनैद व नासिर का अपहरण करते देखा था। गुंडे इनको बेरहमी से पीट रहे थे। कासिम नामक यूवक पीरूका गांव के पास ही खोखे में दुकान चलाता है। कासिम ने हमारी टीम को बताया कि गौरक्षक तीन गाड़ियों में आये थे और वहीं पर जुनैद व नासिर को बूरी तरह पीट रहे थे। एक अन्य युवक साजिद ने भी इस वारदात को देखा है कि उनको गर्ल स्कूल के पास से अगवा किया गया था।

हमलावर गौरक्षा टास्क फोर्स के लोग जुनैद और नासिर को पीरूका से अगवा करके फिरोजपुर-झिरका थाना में ले आये। अगर जुनैद व नासिर की हालत ठीक होती तो इनको गाय तस्करी के फर्जी केस में फंसाकर जेल भेज दिया जाता। लेकिन अत्याधिक पीटाई के कारण इनकी हालत बहुत नाजुक हो गयी थी। इसलिये नूंह पुलिस ने इनको हिरासत में लेने से मना कर दिया। अगले दिन 16 फरवरी को गौरक्षक गुंडें अपरहरण किये दोनों मुस्लिम युवकों को भिवानी में लौहारू के जंगलों में ले गये। वहां पर जुनैद व नासिर के साथ जो दरिन्दगी हुई, वो अपने आप में मानवता के माथे पर कलंक है।

स्थानीय लोगों ने हमारी टीम को बताया कि मोनू मानेसर की अगुवाई में गौरक्षक जुनैद व नासिर को 15 फरवरी को सुबह 7 बजे सीआईए थाना फिरोजपुर झिरका लेकर आये थे। उनकी पैर व कमर की हड्डी टूटी हुई थी। लोगों ने जुनैद व नासिर को सीआईए थाना में गंभीर हालत में देखा था। सीआईए इंचार्ज विरेन्द्र व एक अन्य पुलिस कर्मचारी सुरेश के गौरक्षकों के साथ अच्छे संबंध हैं। आमतौर पर सीआईए पुलिस के लोग सिविल ड्रेस में इन गौरक्षकों के साथ ही होते हैं। उपरोक्त पुलिस अधिकारियों के मोबाईल फोनों की काल डिटेल व लोकेशन की जांच करने से सच्चाई सामने आ जायेगी।

जुनैद व नासिर की हत्या के आरोपियों में से तीन रिन्कू सैनी, लोकेश सिंगला और श्रीकांत नूंह पुलिस के सूचीबद्ध मुखबीर हैं। पिछले दो महीनों में इन पुलिस मुखबीरों द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर फिरोजपुर झिरका थाना में कई मुकदमें दर्ज हुये हैं। पुलिस इन कथित गौरक्षकों का संरक्षण करती है। स्थानीय लोगों ने टीम को बताया कि जब स्थानीय लोग गौरक्षकों की गुंडागर्दी का प्रतिरोध करते है तो पुलिस गौरक्षकों का बचाव करने के लिये आम जनता पर मुकदमें दर्ज कर देती है। थाना फिरोजपुर झिरका में इस प्रकार के अनेक मुकदमें दर्ज किये गये हैं।

जुनैद के चाचा इस्माइल ने हमारी टीम को बताया कि पहले तो गौरक्षा टास्क फोर्स द्वारा गाय तस्करी नाम पर निर्दोश लोगों को अगवा किया जाता है। फिर उनको फर्जी गाय तस्कारी के मुकदमें से बाहर निकालने के लिये भारी भरकम वसूली की जाती है। जो लोग पुलिस व गोरक्षक गुंडों की मांग को पूरी नहीं कर पाते उनको जेल में ठूंस दिया जाता है। जुनैद व नासिर के पास कोई गाय बरामद नहीं हुई। जुनैद के खिलाफ पहले का कोई गाय तस्करी का मामला पुलिस बता रही है। वह यहीं रहता था, पहले तो पुलिस कभी उसको पकड़ने नहीं आयी।

उमर खान भी घाटमीका का ही था

उमर खान के बेटे ने बताया कि नवंबर 2017 को मेरी मां को बच्चा पैदा हुआ था। मेरे पिताजी उमरखान दूध का काम करता थे। दूध वाले से कुछ पैसे लेकर गाय खरीदने दूसरे गांव में चले गये। मेरे पिताजी के साथ गांव के ही ताहिर व जावेद भी थे। जावेद पिकअप गाड़ी चला रहा था। मेरे पिताजी और ताहिर ने एक-एक गाय खरीद ली। दोनों ही दूध देने वाली गायें थी। यह राजस्थान के अलवर जिला की वारदात है। जब वे गायें लेकर वापस आ रहे थे तो खेड़कर गांव के पास बजरंग दल वालों ने फायरिंग शुरू कर दी।

गोली मेरे पिताजी की छाती में लगी क्योंकि वे खिड़की तरफ बैठे थे। एक गोली ताहिर की बाजू में लगी और गोली उसकी बाजू में ही अटक गई। जावेद उतर कर भाग गया। ताहिर जब भाग रहा था तो गौ रक्षक गुंडों ने उसको भी गिरा लिया। ताहिर को मरा समझकर गुंडे वापिस मेरे पिताजी के पास आए। मेरे पिताजी को कुल्हाड़ी से काट डाला। मेरे पिताजी का पूरा चेहरा कटा हुआ था। सिर्फ पीछे के थोड़े से बाल दिख रहे थे। ताहिर भी जान बचाकर भागने में कामयाब हो गया।

उमरखान का बेटा कहता है कि उसके अब्बु की मौत के बाद उसके बूढ़े दादाजी चारपाई पर बैठ गये है। वह अपने बेटे की मौत का सदमा झेल नहीं सके। उमर की लाश एक दिन बाद रेलवे लाईन पर मिली। परिवार ने आरोप लगाया कि हत्या को दुर्घटना करार देने के लिये बजरंग दल के गुंडों ने शव को रेलवे लाइन पर फेंक दिया है।

लेकिन राजस्थान पुलिस ने तीनों के खिलाफ गाय तस्करी का मुकदमा दर्ज कर लिया। ताहिर व जावेद को पुलिस ने पकड़ लिया। बाद में चौतरफा विरोध के कारण पुलिस ने उमर की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है और इस मुकदमें में जनवरी 2018 तक आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सभी आरोपियों का संबंध बजरंग दल से है।

अरसद के घाव पर एसिड डाल दिया

अरावली की पहाड़ियों से सटा नूंह जिला का ही एक अन्य गांव रवा भी मोनू मानेसर व गौरक्षा टास्क फोर्स की गुंडागर्दी की कहानी बताता है। कुछ महीने पहले की बात है। अरसद की कहानी सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अरसद ने बताया कि वह उस दिन जंगलात विभाग के काम पर था। सरकारी पेड़ लगाने के लिये गड्ढे खोद रहा था। उसके साथ 4-5 अन्य मजदूर भी काम पर लगे हुये थे। इनमें तीन मजदूर नजदीक के गांव घाटा के रहने वाले थे।

तीन गाड़ियों और छह मोटरसाइकिलों पर सवार होकर हथियारों से लैश कम से कम 30 गौरक्षक वहां आ धमके। मोनू मानेसर और रिन्कू दोनों इनके साथ थे। उन्होनें अरसद को बुलाकर पूछा कि यहां क्या कर रहे हो। अरसद ने उनको बताया कि वह जंगलात विभाग के पेड़ों की रोपाई करने लिये गड्डे खोद रहा है। अरसद ने हमारी टीम को बताया, ‘उन्होनें हम सबको काम से रोक दिया और जबरदस्ती सड़क पर ले आये। एक व्यक्ति हमारे गांव के सिंडिकेट बैंक में काम करने वाला कर्मचारी था। एक आदमी अपने खेत में छान बांधने के लिये जा रहा था। गौरक्षकों ने उन सबको भी पकड़ लिया। हमें वहीं पर पीटना शुरू कर दिया।

जब अरसद ने अपने आपको बेकसूर बता कर गुंडों का विरोध किया तो उन्होंने अरसद के शरीर पर लाठियों से कम से कम 700 वार किये और मार मार कर गाड़ी की सीटों के नीचे फंसा दिया। अरसद, 4-5 मजदूरों व बैंक में काम करने वाले लड़के सहित गुंडे सबको गाड़ियों में चढ़ाकर थाना फिरोजपुर झिरका ले गये। इन्होनें पुलिस को बताना चाहा कि उनको काम की जगह से उठाया गया है और वे बेकसूर है।

इस पर पुलिसवाले अरसद को पीटने लगे, लाठियों की खोद सिधी अरसद की छाती में मारी और मां बहन की गालियां देकर पूछने लगे, अब तुम्हीं बताओ कि असली कसूरवार कौन है? साहब हम नहीं जानते किसने गलत काम किया है, मुझे तो ये भी नहीं पता कि किस कारण से मुझे उठाकर लाया गया है, असलम ने हिम्मत करके पुलिसवाले की बात का जवाब दिया। पुलिस थाने में भी अरसद को यातनायें दी गयीं। गुंडों की पीटाई की वजह से अरसद के कुल्हे पर घाव बन गया था। उस घाव पर पुलिस थाने में बजरंग दल के गुंडों ने एसिड डाल दिया। इसके कारण घाव की हालत ज्यादा खराब हो गयी।

पुलिस वाले अरसद को पहले से डरा धमकाकर ले गये थे कि यदि उसने अदालत के सामने यातनाओं के निशान दिखाये या जज को सच्चाई बताई तो जान से मार देगे। इसके बावजूद अरसद ने जज को बताया कि उसको बेकसूर पकड़ा गया है और पुलिस ने उसका मेडिकल चेकअप भी नहीं करवाया है। अदालत के कहने के बाद पुलिस वाले अरसद का मेडिकल करवाने मांडीखेड़ा सरकारी अस्पताल ले गये। वहां जाने के बाद राधेश्याम थानेदार ने अरसद के पीठ में कई जगह इंजेक्शन की सूईयां गोद दी, थानेदार इस बात से नाराज था कि उसने अदालत में पुलिस की शिकायत क्यों की।

मांडीखेड़ा अस्पताल के डाक्टर ने भी अरसद के घाव नहीं देखे, खाली कागजों पर उसके साईन करवाकर और उसको मेडीकल में फिट दिखा दिया। अरसद ने टीम को बताया कि खून के निशान आज भी उसके कपड़ों पर बने हुये हैं, बार बार धोने के बाद भी नहीं छूट रहे। उसके बाद पुलिस ने अरसद को जेल में बंद करवा दिया। एक महीना जेल में रहने के बाद अरसद जमानत पर रिहा हुआ। जेल में भी अरसद का इलाज नहीं करवाया गया।

जेल से बाहर आने के बाद अरसद ने घटना का एक वीडियो भी अदालत को दिया जिसमें गुंडे उसको बेरहमी से पीट रहे हैं और घसीटते हुये ले जा रहे हैं। यह वीडियो गांव के ही एक लड़के ने घटना वाले दिन बनाया था। अरसद को कोई उम्मीद नहीं कि उसको कभी न्याय मिलेगा। घटना वाले दिन अरसद की बेगुनाही की बात करने कम से कम 5000 लोग थाने पर गये थे। उनमें आसपास के सभी गांवों के लोग शामिल थे। क्षेत्र के सभी विधायकों ने पुलिस अधिकारियों को फोन किये था लेकिन किसी की बात नहीं सुनी गयी। मामन खान व इलियास दोनों आये थे। लेकिन सरकार गुंडों से मिली हुई है।

श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता शिवकुमार भी हमारी इस फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा हैं, जिसको हरियाणा के सोनीपत जिला की पुलिस ने 16 जनवरी 2021 से 23 जनवरी 2021 तक अवैध हिरासत में रखा, अमानवीय यातनायें दीं और निचली अदालत व डाक्टरों के सांठगांठ करके बिना मेडीकल चेकअप के जेल में बंद करवा दिया।

जेल में बंद शिव कुमार ने जब अपने परिवार वालों को पुलिस यातनाओं के बारे में बताया और परिवार ने शिव कुमार पर हुई पुलिस ज्यादतियों की शिकायत माननीय उच्च न्यायालय पंजाब व हरियाणा, चंडीगढ़ के सामने की, परिणामस्वरूप उच्च न्यायालय के आदेश के बाद हरियाणा से बाहर हुये शिवा के मेडीकल से इस बात का खुलासा हुआ कि पुलिस की यातनाओं के कारण शिव कुमार की हड्डियां टूटी हुई हैं।

शिव कुमार की याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी दीपक गुप्ता, जिला व सत्र न्यायाधीश, पंचकुला ने अपनी रिर्पोट माननीय उच्च न्यायालय को सौंप दी है जिसमें पुलिस पर शिव कुमार को यातनायें देने व अवैध हिरासत में रखने के आरोप साबित हुये हैं।

रावा गांव के पास में ही एक भूगोला गांव है। दोनों गांवों के बीच मात्र एक किलोमीटर का फासला है। दिल्ली मुम्बई एक्सप्रेसवे दोनों गांवों के बीचोबीच गुजरता है। इस एक्सप्रेसवे के साथ में ही इसराज नामक मेव किसान अपने खेत में मकान बना कर रहता है। एक्सप्रेसवे पर इसराज का बेटा चाय की दुकान चलाता है। बजरंग दल से जुड़े लोग रात के अंधेरे में इनके घर पर हमला कर देते हैं। हमले में वे इनकी दुकान से कोल्ड ड्रिंक की बोतलें उठाकर इनकी तरफ फेंकते हैं।

जब वे अपने बचाव में चिल्ला रहे होते हैं तो एक्सप्रेस वे पर खड़े बदमाश गोलियों से फायर करना शुरू कर देते हैं। गोली के छर्रे इसराज की 16 साल की पोती शबनम के पेट में लगते हैं। वह अपने अब्बु को बचाने घर से बाहर निकल आयी थी। लंबा समय गुजर जाने के बाद आज भी शबनम के पेट में गोली के छर्रे मौजूद है क्योंकि उनका परिवार गरीब है। मंहगा इलाज करवाना उनके बस की बात नहीं है। इसलिए गोली के छर्रे उसके पेट में ही हैं।

लड़की की मां वरीशा ने टीम को बताया कि बजरंग दल के गुंडे 7 से 8 गाड़ियों में आये थे। वे मां बहन की गालियां दे रहे थे और हाईवे से कोल्ड ड्रिंक की कांच की बोतलें उठाकर हमारी तरफ फेंक रहे थे। जब मैं मेरे पति को बचाने बाहर निकली तो उन्होंने फायर किया। मेरी बेटी अब भी दर्द से करहा रही है क्योंकि हम उसका इलाज करवाने में सक्षम नहीं हैं।

इस घर का मालिक इसराज है। वह एक 70 साल का बुजुर्ग है। उसने बताया कि घटना के बाद मेरे बेटे को पुलिस वाले झूठ बोलकर गाड़ी में बैठा ले गए। वे उसको फिरोजपुर झिरका थाने में ले जाने की बजाय नगीना थाने में लेकर गए। मेरे बेटे ने मुझे बताया कि नगीना थाने में दबाव बनाकर उससे राजीनामा के साइन करवा लिए। दबाव बनाने में पुलिस और बजरंग दल के लोग थाने में मौजूद थे। हमें अब तक इंसाफ नहीं मिला है। हमारी सरकार से मांग है कि मेरी बेटी का इलाज करवाया जाए व हमें इंसाफ दिलवाया जाए।

इसी तरह की एक और घटना रावा गांव में हुई। गोपालकों की गाय छीनकर ले जाने के लिये झज्जर से बदमाश लोग आये थे। उनसे झगड़ा हुआ। दोनों तरफ से मारपीट हुई। लेकिन पुलिस ने सारे मुकदमें रवा गांव वालों के खिलाफ दर्ज कर दिये। छह युवकों को पुलिस ने उठा लिया। उनको जेल में डाल दिया गया। इसके साथ मारपीट करने वाले गोरक्षक कानून की संरक्षण में खूले घूम रहे हैं। मोनू मानेसर के खिलाफ गाय के नाम पर गुंडागर्दी के 302 के अनेक मुकदमें दर्ज हैं।

वारिस अब जिंदा नहीं है

नूंह के ही हुसैनपुर गांव के रहने वाले वारिस नामक मुस्लिम की हत्या का आरोप भी मोनू पर लगा है। यह 28 जनवरी 2023 की वारदात है। हमारी फैक्ट फाइंडिंग टीम हुसैनपुर भी गई। हुसैनपुर के बस स्टैंड पर गांव का इतिहास बताता गौरवपट्ट लगा हुआ है जिस पर देश की आजादी की लड़ाई में कुर्बानी देने वाले शहीदों के नाम दर्ज हैं। हमारी टीम वारिस के घर गई। हमें वहां पर वारिस का भाई मिला।

वारिस के परिवार वालों का कहना है कि वारिस की हत्या करने से पहले मोनू मानेसर की गौरक्षा टास्क फोर्स ने वारिस का पीछा किया। पीछा करने की यह सारी वारदात मोनू मानेसर ने खुद लाइव दिखायी। वीडियो में मोनू मानेसर वारिस से गाय तस्करी बाबत पूछताछ करते नजर आ रहा है। उस समय वारिस बिल्कुल ठीक नजर आ रहा है।

दो घंटे बाद पुलिस का फोन वारिस के परिजनों के पास आता है कि आपका बेटा अस्पताल में है और उसकी मृत्यु हो गयी है। वारिस के परिवार द्वारा हत्या का शक जताया गया लेकिन पुलिस ने गौरक्षक मोनू व अन्य गुंडों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया। पुलिस का कहना है कि वारिस की मौत एक सड़क दुर्घटना में हुई है।

इस बाबत एक एफआईआर संख्या 48 दिनांक 28/01/2023 धारा 279/337/ 304ए/427 /429 आईपीसी धारा 11 पशु क्रुरता रोकथाम अधिनियम 1960 व धारा 13 हरियाणा गौवंश संरक्षण व संवर्द्धन अधिनियम 2015 थाना तावडू जिला नूहं में अब्बदुल करीम निवासी गांव डिढ़ारा जिला नूहं की शिकायत पर दर्ज किया है। अब्बदुल करीम ने बाद में यह बताया है कि पुलिस ने उसके कुछ खाली कागजात पर हस्ताक्षर करवाये थे। उसने खुद कोई दुर्घटना की वारदात दर्ज नहीं करवाई। बल्कि यह फर्जी मुकदमा वारिस की हत्या में शामिल मोनू मानेसर व अन्य गौरक्षकों को बचाने के लिये खुद पुलिस ने दर्ज किया है।

इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय सिंह चैटाला ने मीडिया को बताते हुए सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार हत्या के आरोपी मोनू मानेसर जिन पर हत्या के कई आरोप हैं, गिरफ्तार नहीं कर रही है। सरकार सीधा-सीधा कातिलों को बचा रही है, संरक्षण दे रही है।

मेवात से विधायक मामन खान ने विधानसभा में सरकार पर आरोप लगाये कि सरकार गुंडों को हथियार देकर मेवात में भेज रही है। मोनू मानेसर सरकार का आदमी है। विधायक इलियास चैधरी ने विधानसभा में कहा कि पुलिस और गौरक्षक गुंडे मिलकर मेवात में उत्पात मचाए हुए हैं। इस पर सरकार रक्षात्मक स्थिति में आ गयी और सरकार की तरफ से उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला ने वारिस की हत्या के मामले में एक पारदर्शी जांच करवाने का आश्वासन सदन को दिया।

हकमु रोजे कर रहा था

50 साल का हकमुद्दीन गांव रावली जिला नूंह का रहने वाला है। इसकी गांव में ही एक छोटी सी दुकान है। हकमु के पास खेती की जमीन नहीं है। वह नरेगा में मजदूरी करता है लेकिन उसको केवल एक आध महिना ही काम मिल पाता है। हकमु का पीला राशन कार्ड बना हुआ है। एक कमरे के मकान में परिवार के साथ रहता हैं। यह मकान हकमु ने बैंक से लोन लेकर बनाया था।

कोई दसेक महीने पहले की बात है। हकमु रमजान के महीने में अपने बच्चों के लिये दुधिये से दुध लेकर आ रहा था। तभी गांव में बजरंग दल का मोनू, रिन्कू सैनी फिरोजपुर झिरका व 18-20 अन्य गुंडे तीन चार गाड़ियों में भरकर आये और गांव में गोलीबारी करने लगे। उन्होनें हकमु को पकड़ लिया व उसके ऊपर लाठियों-डंडों से ताबड़ तोड़ हमला कर दिया। शोर शराबा सुनकर हकमु का छोटा भाई वहां पहुंच गया। उसने हकमु को बचाने की कोशिश की। उन्होनें उसको भी दबोच लिया। लाठियां के वार करके उसको भी जमीन पर पसार दिया।

हकमु ने टीम को बताया कि वे हम दोनों को बोलेरो गाड़ी में चढ़ा कर पीटते-पीटते पहाड़ की तरफ ले गये। वहां ले जाकर इतना मारा कि हकमु की एड़ी व पसलियों की हड्डियां टूट गयी। इन दोनों भाईयों के शरीर पर कोई जगह नहीं छोड़ी, जहां पर गुंडों ने लाठियां ना मारी हो। इसके बाद इन दोनों भाईयों को गौ हत्या का केस लगाकर जेल भेज दिया। सभी गुंडे हथियारों से लैश थे, स्थानीय लोग चाह कर भी उनकी कारवाई का विरोध नहीं कर सके। गांव के लोग मौके पर आ गये थे लेकिन गोलियों चलने से सब भयभीत होकर चुपचाप खड़े रहे।

हकमु ने हमारी टीम को बताया कि मुझे नहीं मालूम गौकशी किसी जगह पर हुई थी। मैंने तो किसी गाय को देखा तक नहीं था, मारना तो दूर की बात है। हकमु तो रमजान के रोजे रख रहा था। शरीर पर ज्यादा चोटें होने के कारण उसको 20 दिन तक जेल के अस्पताल में ही रखा गया। उसके भाई को 30 दिन बाद जमानत मिली। हकमु डेढ महीने बाद जेल से बाहर आया। सारे क्षेत्र में बजरंग दल का आतंक है। सबको भय रहता है कि कहीं उसको बजरंग दल वाले गुंडे ना उठा कर ले जायें। इसलिये गांव से बाहर जाते समय सभी चैकन्ने रहते हैं। बजरंग दल के गुंडे आये दिन ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं।

राऊली गांव की एक और घटना है। गांव से एक बुढ़े आदमी को अपहरण करके कुछ सिविल कपड़ों में आये गुंडे घर से निकाल कर मारते पीटते हुये, घसीटते हुये वीडियो बनाते हुये गाड़ी में चढाकर ले जाते है। बाद में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है। उसको भी जेल में बंद करवा दिया जाता है।

रकबर भाग न सका

21 जुलाई 2018 को अलवर जिले में गौरक्षा टास्क फोर्स व बजरंग दल के गुंडों ने रकबर खान की हत्या कर दी। हरियाणा के नूंह जिले के कौल गांव के रहने वाले रकबर खान व असलम पर बजरंग दल के गुंडों ने उस समय हमला बोल किया जब वे दो गायें खरीदकर राजस्थान से वापस अपने गांव कौल आ रहे थे। गौरक्षकों के हमले में जिंदा बचे असलम ने टीम को बताया कि रकबर दूध का काम करता था।

हम दोनों शाम पांच बजे के आसपास रकबर की मोटरसाइकिल पर सवार होकर गाय खरीदने के लिये नजदीक के गांव लाडपुर के लिये गये थे। वहां पर रकबर ने 62,000 रुपये में दो गाय खरीद ली। हमने गाय को वाहन में चढ़ा कर ले जाने के लिये गांव से वाहन किराये पर लेने की कोशिश की। लेकिन किसी भी वाहन मालिक ने इसके लिये हां नहीं की। काफी पता करने पर भी गांव में हमें कोई वाहन चालक नहीं मिला। इसके बाद हमने गाय को लेकर पैदल ही निकलने का मन बना लिया। हमारा गांव यहां से 10-12 किलोमीटर की दूरी पर था।

रकबर ने गाय को पकड़ लिया और बछड़ा मेरे पास था और हम पैदल ही निकल पड़े। पीछे से 10-15 लोग आये, हमें जबरदस्ती रोक लिया और कहने लगे कि तुम गाय तस्कर हो। हमने उनको समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सूनी। बरसात का मौसम था। वे हमारे साथ मारपीट करने लगे। मैं उनसे छुड़वा कर नजदीक के कपास के खेत में छुप गया। उन्होनें रकबर को जमीन पर गिरा लिया। उनके हाथों में लाठी, बिन्डे थे। उन्होनें गोली के फायर भी चलाये। रकबर उनसे रहम की भीख मांग रहा था। वह कह रहा था कि मुझे मत मारो, मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं, पुलिस को सोंप दो। लेकिन उनको दया नहीं आयी।

हमला करने वाले आपस में नाम लेकर बात कर रहे थे। वे नवल किशोर, धर्मेंद्र, विजय, नरेश, परमजीत, सुरेश नाम लेकर बोल रहे थे। हमलावरों ने टार्च जला रखी थी। ये रात को डेढ़ बजे की बात है। मैने उनके चेहरे पहचान लिये थे। मैं अपनी जान बचाकर घर पर भाग आया और घटना की सूचना घर वालों को दी। रकबर के शरीर में एक भी हड्डी ऐसी नहीं थी जो टूटी नहीं हो।

रकबर की हत्या का मुकदमा अलवर में चल रहा है। सभी आरोपियों को अदालत से जमानत मिल चुकी है। नवल किशोर गौशाला का बड़ा अधिकारी है। पुलिस पर उसका बहुत ज्यादा दबाव है। वह चाहता है कि रकबर की हत्या का आरोप पुलिस के ऊपर ही लग जाये। असलम ने हत्यारों को अदालत में पहचान लिया है।

हिंदू संगठनों से जुड़े आरोपी लगातार असलम को धमकियां दे रहे थे कि वह अदालत के सामने गवाही न दे। असलम को रकबर के मुकदमें में न्याय मिलने की उम्मीद है लेकिन साथ ही वह यह भी कहता है कि पंडित नवल किशोर बड़ा आदमी है, उसकी पहुंच ऊपर तक है। नवल किशोर की रिश्तेदारी असलम के गांव में भी है, वह अपने रिश्तेदारों के जरिये भी असलम पर लगातार दबाव बना रहा है।

कोल गांव का ही रज्जाक खान नामक मेव मुसलमान भी मोनू मानेसेर की गुंडागर्दी का शिकार बना। रज्जाक पहले कसाई का काम जरूर करता था लेकिन अब उसने गाड़ी चलाकर अपने परिवार का गुजारा करना शुरू कर दिया था। मोनू मानेसर की टीम ने उसके घर पर हमला किया। इन गुंडों ने उसको, उसकी पत्नी को और उसकी बेटी को बेरहमी से पीटा। उसके बाद वे रज्जाक को पकड़ कर ले गये।

बजरंग दल के गुंडों ने खुद ही कहीं से भैंस का मीट खरीदा और पुलिस की मिलीभगत के साथ गाय का मांस बता रज्जाक से बरामद दिखा दिया और यह अफवाह उड़ा दी कि रज्जाक के पास से गौमांस बरामद हुआ है। इस गुंडागर्दी के खिलाफ जब गांव के लोग इकट्ठा होकर थाने की तरह जाने लगे तो गौमांस वाली अफवाह सुनकर सब घबरा गये और बीच रास्ते से ही वापिस गांव लौट आए। यह सारी घटना गांव के एक बुजुर्ग ने हमें बतायी।

इस इलाके में काम कर रहे एक सामाजिक कार्यकर्ता सगीर अहमद ने टीम को बताया कि इस इलाके में गाय के नाम पर 20 के आसपास हत्यायें हो चुकी हैं। इस तरह की घटनाओं में दर्जनों लोग घायल हुये व बाद में जिनको जेल में भेज दिया गया। लगभग 35 लोगों को पुलिस ने एनकाउंटर मार डाला है। पुलिस ने जिन लोगों को फर्जी एनकाउंटर में मारा हैं उन पर कोई बड़े केस नहीं थे। उसने हमें बताया कि जो मामले मीडिया में आ जाते हैं, उन सबका तो हमको मालूम होता है लेकिन ऐसे अनेक मामले हैं जो मीडिया में नहीं आते, उन पर कोई बात भी नहीं करता है।

पेमाखेड़ा भी मेवात का ही एक गांव है। वहां के तीन नौजवान शेर सिंह जो दलित समुदाय से था, फरीद और साहू मेव मुसलमान थे। तीनों ईद के मौके पर कपड़ा खरीदने बल्लभगढ़ गए थे। यह 2017 की बात है। गौ रक्षकों ने उन्हें गाय तस्करी के आरोप में जान से मार दिया जबकि उनके पास से कोई गाय बरामद नहीं हुई।

शेखपुर में भी शाम सात बजे के आसपास इसी प्रकार के गुंडे आते है। एक आदमी का अपहरण करते है और उसको मारते हुये, पीटते हुये वीडियो बनाते हुये, वीडियो को वायरल करते हुये ले जाते है। बाद में उस पर भी बाकि मामलों की तरह एफआईआर दर्ज होती है।

गौरक्षा का गोरखधंधा

ऊपर से देखने में तो यही लगता है कि हिंदू गाय को पवित्र पशु मानते हैं इसलिये गौकशी की घटनाओं से हिंदूओं की धार्मिक भावनाओं को आघात लगता होगा और वे अपने पवित्र पशु को बचाने के लिये किसी भी हद तक चले जाते होंगे। जहां तक गाय पालन का सवाल है, मेवात के गावों में हर घर में गाय हैं और ये दूध देने वाली गायें हैं।

जांच टीम ने पाया कि हर घर में कम से कम 5 से 7 तक गाय हैं। यहां हर गांव में गोपालक हैं। नगीना, झिमरावट, चादन, पाटखोरी आदि गांवों में कई ऐसे मेव मुसलमान हैं जो 500 से 1000 गायें पालते हैं। बेटी को अगर बेटा होता है तो उसके मायके वाले ससुराल में गाय भेजते हैं। बेटियों की शादियों में गाय देने की प्रथा आज भी मेवात में है। लेकिन हरियाणा के हिंदू बहूल गांवों के किसी भी घर में आज गाय नहीं मिलती या बिल्कुल नाममात्र की गाय होती हैं। हरियाणा के इन क्षेत्रों जो भी गायें होती हैं वे आवारा गायें होती है।

गऊ सेवा आयोग की आधिकारिक वेबसाईट पर मौजुद आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में राज्य की गौशालाओं में कुल 410295 गायें हैं। यह स्वाभाविक सी बात है कि जिन जिलों में आम जनता ज्यादा गौ पालन नहीं करती, उन्हीं जिलों की गौशालाओं में गायों की संख्या ज्यादा होगी। गऊ सेवा आयोग के आंकड़ों से यह बात स्पष्ट होती है कि नूंह जिले 10 गौशालाओं में केवल 7000 गायें हैं।

जबकि हिसार में 50000, जींद में 28000, करनाल में 20000, कैथल में 22000 गायें गौशालाओं में हैं। इसके अलावा इन जिलों की सड़कों पर भी आवारा गायों के झुंड के झुंड बैठे रहते हैं। ऐसा मेवात में नहीं है। मेवाती खुद गाय पालते हैं। जैसाकि टीम ने खुद देखा है कि मेवात के हर गांव में 200 से ज्यादा पालतु गायें है।

कोलगांव के रहने वाले हकीम खान कहते हैं, मेव समाज के लोगों के ताकतवर न होने के चलते इनके अच्छे कामों को भी न तो लोग तवज्जो देते हैं और न ही ये बातें मीडिया की खबर बनती हैं। जैसा कि पूरे हरियाणा और राजस्थान के उन इलाकों में महिलाओं का लिंगानुपात बेहतर है जहां पर मेव मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। लेकिन मेव मुसलमानों को गो-तस्कर बताने वाले उन्हें बेटी रक्षक नहीं बताते हैं।

अब गो-तस्करी को ही लेकर कुछ महीने पहले मेवात इलाके के उलेमाओं, मौलानाओं और पंच-सरपंचों ने पुन्‍हाना क्षेत्र के गांव जखोकर में एक पंचायत कर गो-तस्करों और उनका समर्थन करने वालों पर 21 हजार का जुर्माना लगाने की घोषणा की थी। यही नहीं जुर्म साबित होने पर आरोपी का हुक्का-पानी बंद कर सभी रिश्ते खत्म करने की भी धमकी दी है। लेकिन यह किसी को पता नहीं है।

आम मेव मुसलमान गौहत्या का कभी समर्थन नहीं करता। राजस्थान-हरियाणा सीमा पर नौगांवा कस्बे के पास आंरावली गांव में सन् 2000 में पशुओं की हड्डी पीसने की फैक्ट्री लगाये जाने का स्थानीय हिन्दू व मेव मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया। हालांकि इस फैक्ट्री का मालिक हिन्दू था। विरोध का परिणाम यह हुआ कि फैक्ट्री मालिक को आखिर यहां फैक्ट्री लगाने का इरादा बदलना पड़ा।

हकीम खान आगे कहते हैं, कि ‘बात जहां तक गो-तस्करों की है तो मेरे ख्याल से उन्हें गाय चोर कहना ज्यादा बेहतर होगा। इस पूरे इलाके में 200 से 300 गाय चोर सक्रिय होंगे लेकिन उनके चलते 40 लाख मेवों की छवि खराब हो रही है। हम एनकाउंटर के खिलाफ हैं, कोई गो-तस्करी कर रहा है तो सरकार उसे पकड़े और जितने साल की सजा का प्रावधान है उतने साल तक जेल में रखे। लेकिन बेगुनाह लोगों को निशाना न बनाया जाए।

बजरंग दल व गौरक्षकों की तमाम गुंडागर्दी के बावजुद मेवातियों ने गौ पालन का त्याग नहीं किया है। यह सच्चाई है कि जो लोग गाय के नाम पर लोगों की जान ले रहे हैं, उनके हाथ पैर तोड़ रहे हैं, इन तथाकथित गौरक्षकों के घर गाय की बाछड़ी भी नहीं है। मेवात की जानकारी रखने वालों ने हमारी टीम को बताया कि बजरंग दल वाले गुंडे गायों से ज्यादा प्यार नहीं करते बल्कि उनका यह धन्धा है। ये लोग खुद दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में गौमांस की अवैध सप्लाई करने में शामिल हैं।

जब कभी इनका मोल भाव को लेकर कोई मामला हो जाता है या पैसे के लेन देन को लेकर कोई मामला हो जाता है तब ये गौरक्षा का झंडा उठाकर उसकी जान ले लेते हैं। ये कोई गौमांस खाने का खेल नहीं है। जब गौमांस के बड़े कारोबारियों में विवाद उत्पन्न होता है। तब ये मौत का खेल होता है। इन हत्याओं को जायज ठहराने के लिये ही हरियाणा सरकार ने गौ संरक्षण और संवर्द्धन कानून बना रखा है। जिसमें गौ रक्षा टास्क फोर्स के नाम पर प्राईवेट लोगों को शामिल होने की इजाजत दे रखी है।

गऊ सेवा आयोग और गौरक्षा टास्क फोर्स

हरियाणा सरकार ने गायों के सरंक्षण के लिये गऊ सेवा आयोग का गठन किया है। 2016 में हरियाणा सरकार की तरफ इस आयोग को 20 करोड़ रुपये की ग्रांट दी गई। 2018 में यह राशि बढकर 30 करोड़ हो गयी। 2021-22 में पहली किस्त में ही 12 करोड़ 82 लाख रुपये की ग्रांट गऊ सेवा आयोग के लिये दी गई है। हरियाणा में 2015 में गौरक्षा के लिये नया कानून बनने के बाद गौरक्षकों की संख्या में बेतहाशा बढोतरी हुई है। गौ रक्षा टास्क फोर्स जैसे हत्यारे गिरोह सरकारी ग्रांट पर फल फूल रहे हैं। 2023-24 में हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार ने गौरक्षा का बजट दस गुना बढ़ाकर 400 करोड़ कर दिया है।

हत्याओं के आरोपी मोनू मानेसर को पुलिस का साथ

2014 के बाद भाजपा शासित सभी राज्यों ने गौहत्या पर रोक लगाने वाले नये व संगीन कानून बना दिये हैं। इन कानूनों ने कट्टरपंथी गिरोहों को फलने फूलने के नये अवसर प्रदान किये हैं। कानूनी संरक्षण प्राप्त ये गिरोह ज्यादातर मुस्लिमों व दलितों पर हमले करते हैं।

पीयूडीआर ने हरियाणा के 2015 के गौरक्षा कानून के प्रभावों पर 2017 में एक रिर्पोट में बताया कि ये गौरक्षा कानून बनने के बाद गौरक्षकों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। ये गौरक्षक प्रशासन की आंख और कान के रूप में काम करते हैं। रिर्पोट में यह भी कहा गया कि 2015 से गौरक्षकों के हाथों हुई लगभग एक-तिहाई हत्याओं में पुलिस ने पीड़ितों या गवाहों के खिलाफ ही मामले दर्ज कर दिये है। वारिस के खिलाफ दर्ज एफआईआर इसका ताजा उदाहरण है।

माननीय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने मार्च 2016 में हरियाणा पुलिस के रवैये पर सख्त टिप्पणी करते हुये कहा था कि राज्य पुलिस ने गौरक्षकों को बेखौफ होकर आतंक बरपा करने की छूट दे रखी है। पुलिस का रवैया कानून का पालन करने में उसकी असफलता को दर्शाता है और पुलिस अब्बास की हत्या पर पर्दा डालने की कोशिश करते हुये नजर आ रही है। गौरक्षकों ने सहारनपुर के मुस्तैन अब्बास को कुरूक्षेत्र में मौत के घाट उतार दिया था। यह मार्च 2016 की वारदात है। उच्च न्यायालय मुस्तैन अब्बास के परिजनों द्वारा दाखिल बंदी-प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

हमने जांच पड़ताल में यह पाया है कि फिरोजपुर झिरका पुलिस जुनैद व नासिर की हत्याओं में प्रत्यक्ष रूप से शामिल है। एक अन्य तथ्य जो अब तक की राजस्थान पुलिस की जांच से सामने आया है, उससे भी इन हत्याओं में नूहं पुलिस की सीधी संलिप्तता उजागर होती है। बजरंग दल व गौरक्षा टास्क फोर्स के गुंडों ने जुनैद और नासिर को अगवा करने में जिस गाड़ी का उपयोग किया गया था, वह गाड़ी हरियाणा सरकार के पंचायत विभाग के नाम से पंजीकृत है।

उस गाड़ी की सीटों पर मिले खून के निशान खुद इस बात की गवाही देते हैं कि हरियाणा सरकार खुद इस हत्याकांड में शामिल है। डीएनए के आधार पर यह भी साबित हो चुका है कि लौहारू के जंगलों में बोलेरो गाड़ी में जुनैद व नासिर को ही जलाया गया था। फिरोजपुर झिरका के डीएसपी ने स्थानीय अखबारों को बताया कि गाय तस्करी के मामलों में अब गौरक्षा टास्क फोर्स रेड नहीं करेगी। डीएसपी का यह ब्यान गौरक्षा टास्क फोर्स की अपराध में शामिल होने की पुष्टि करता है।

हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार द्वारा गाय के नाम पर गठित किया गया गौरक्षा टास्क फोर्स कुछ नहीं बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों व दलितों पर हमले संचालित करने के लिये सरकारी स्तर पर बनाया गया एक हत्यारा गिरोह है। यह विडंबना यह है कि इस हत्यारे गिरोह के सारे खर्चे सरकार वहन करती है। इस गिरोह में शामिल बदमाशों को सरकारी हथियार दिये गये हैं, पुलिस इनका संरक्षण करती है तथा ये सरकारी वाहनों का इस्तेमाल करते हैं।

भाजपा यही प्रयोग छत्तीसगढ़ में पहले भी कर चुकी है। आदिवासियों पर हमले करने के लिए रमन सिंह की सरकार ने वहां प्राईवेट लोगों को हथियार पकड़ा कर सलवा जुडम बनाया था। जिसको बाद में उच्चतम न्यायालय ने गैर कानूनी ठहराया और भंग करने के आदेश दिये। हरियाणा की भाजपा सरकार ने गौरक्षा टास्क फोर्स भी इसी तर्ज पर बनायी है।

मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण मेवात भारत के हिंदूत्ववादी उच्च्जातीय शासक वर्गों के निशाने पर रहा है। आरएसएस व भाजपा के सत्ता में आने के बाद मेवातियों पर गाय के नाम पर हिंसा का तांडव जारी है। मेवात में होने वाली इन अमानवीय घटनाओं में जिन आरोपियों के नाम सामने आ रहे हैं, उनका संबंध सत्ताधारी भाजपा व भाजपा को समर्थन करने वाले कथित कट्टरपंथी संगठनों से उजागर हुये है।

जुनैद- नासिर व वारिस की हत्यायें इसके ताजा उदाहरण है। इन मामलों में भी भाजपा व विहिप के बड़े बड़े नेता गाय के नाम पर हत्या करने वाले लम्पट गौरक्षा टास्क फोर्स के गुंडों का बचाव बड़ी बेशर्मी से कर रहे हैं। धार्मिक आधार पर पंचायतें आयोजित करके जांच एजेसियों को धमकाया जा रहा है।

जांच टीम की मांगें

  1. गौरक्षा टास्क फोर्स को निरस्त किया जाये। नूंह जिला की गौरक्षा टास्क फोर्स के जिम्मेदार व्यक्तियों को जुनैद व नासिर की हत्या का षडयंत्र करने, शवों को खुर्दबुर्द करने व साक्ष्य मिटाने के जुर्म में गिरफ्तार करो। इस हत्याकांड में नामित आरोपी मोनू मानेसर सहित सभी दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाये। मोनू मानेसर की सम्पति की जांच की जाये।
  2. वारिस की हत्या करने के जुर्म में मोनू मानेसर के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो। जिन पुलिस वालों ने वारिस के मामले को दुर्घटना का मामला बनाया है, उनके खिलाफ कानूनी करवाई की जाये। मोनू मानेसर को वारिस की हत्या के केस में गिरफ्तार करो।
  3. मेवातियों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन व गौ-पालन है। इसलिये प्रत्येक किसान को सालाना प्रत्येक गाय पर 20,000/ रुपये वित्तीय सहायता मिले।
  4. मेवात क्षेत्र में अब तक हुई ऐसी सभी हत्याओं की न्यायिक जांच की जाए। प्रभावित परिवारों को जल्द से जल्द न्याय, आर्थिक मदद, सत्कार और पीड़ितों के परिवारों को एक-एक सरकारी नौकरी व एक-एक करोड़ मुआवजा दिया जाये और इन घटनाओं के संबधित सभी मुकदमें फास्ट ट्रेक अदालतों में चलें।
  5. आम जनता के खिलाफ दर्ज तमाम फर्जी गौ तस्करी के मुकदमें निरस्त किये जायें व फर्जी मुकदमें दर्ज करने वाले दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कानूनी कारवाई की जाये।
  6. गौरक्षा गिरोह के अपराधियों के साथ अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त नूहं जिला के दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कानूनी कारवाई की जाये। सीआईए फिरोजपुर झिरका के इंचार्ज व अन्य दोषी पुलिसवालों को जुनैद व नासिर की जघन्य हत्याओं के मामले में गोपालगढ़ थाना में दर्ज मुकदमा में गिरफ्तार किया जाये।
  7. शेखपुर, रावा, बघोला और रावली के गांवों में इस तरह की विभिन्न घटनाओं में एक ही वाहन का इस्तेमाल किया गया है। इसकी अलग से न्यायिक जांच होनी चाहिए और अपराधी गौरक्षा कार्य बल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करो।
  8. अपराधियों के पक्ष में आयोजित की जा रही पंचायतों पर रोक लगाई जाये। राजस्थान पुलिस को मामले की जांच करने में बाधा डालने वालों व साम्प्रदायिक हिंसा का खतरा पैदा करने वाली पंचायतों का आयोजन करने वालों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किये जाये।
  9. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू हो।
  10. मेवात में शिक्षा के लिये सरकारी शिक्षण संस्थानों का ढांचा मजबूत किया जाये और शिक्षकों की कमी को पूरा किया जाये।
  11. मेवात में सरकारी यूनिवर्सिटी खोली जाये, जिसमें 50 फीसदी सीटें मेवात के छात्रों के लिये हों।
  12. मेवात के अन्दर नहरी पानी का प्रबन्ध नहीं है, इसलिये किसानों को टयूबवेल लगाने के लिये वित्तीय सहायता दी जाये।

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