मीडिया रिपोर्ट के अनुसार PM CARES फंड में सरकार की बड़ी हिस्सेदारी वाली 57 कंपनियों का योगदान, दान देने वाली करीब 247 निजी कंपनियों की तुलना में अधिक है। दान की कुल रकम 4,910.50 करोड़ रुपये (सरकारी एवं निजी कंपनियों) में सरकारी कंपनियों का योगदान 59.3% रहा है। यह सूचना नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों पर नजर रखने वाली फर्म प्राइमइन्फोबेस डॉट कॉम द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर है।
इन 57 कंपनियों में से शीर्ष 5 कंपनियों में ओएनजीसी ONGC (370 करोड़ रुपये), एनटीपीसी NTPC (330 करोड़ रुपये), पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (275 करोड़ रुपये), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (265 करोड़ रुपये) और पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन (222.4 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जनता से आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए 27 मार्च 2020 को पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया था, लेकिन तभी से यह फंड अपने कामकाज में अत्यधिक गोपनीयनता बरतने को लेकर आलोचनाओं को घेरे में है। 2020 में जब यह फंड बनाया गया था तब जिन महत्वपूर्ण सरकारी कंपनियों ने योगदान किया था के कुछ आंकड़े इस प्रकार हैं। यह आंकड़े, फंड के गठन के तत्काल बाद के और केंद्र सरकार के 50 विभागों के हैं जो तब के इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर से लिये गये हैं।
157.23 करोड़ रुपये के इस अनुदान में से 93 प्रतिशत से अधिक की धनराशि यानी क़रीब 146 करोड़ रुपये अकेले रेलवे के कर्मचारियों के वेतन से दान किए गए हैं। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा सूचना का अधिकार कानून यानी कि आरटीआई एक्ट के तहत प्राप्त की गई जानकारी के मुताबिक इस राशि में से 146.72 करोड़ रुपये अकेले रेलवे से दान किए गए हैं। यह केंद्रीय कर्मचारियों द्वारा कुल 157.23 करोड़ रुपये के अनुदान का 93 फीसदी से अधिक है। यह अंशदान रेलवे कर्मचारियों के द्वारा किया गया है। आरटीआई की यह सूचना रेलवे से अखबार ने जुटाई थी।
इसके बाद दूसरे नंबर पर अंतरिक्ष विभाग है, जिसके कर्मचारियों के वेतन से पीएम केयर्स फंड में 5.18 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया था। विभाग ने इस अंशदान के बारे में तब यह भी बताया था कि, यह धनराशि, कर्मचारियों ने अपने स्तर पर दान की है। पर्यावरण विभाग की ओर से 1.14 करोड़ रुपये का योगदान दिया गया है।
विभिन्न मंत्रालय और विभागों की ओर पीएम केयर्स फंड में दान की गई राशि। (स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस) पीएमओ ने कहा है कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ नहीं है, क्योंकि इसका गठन केंद्र सरकार या किसी सरकारी आदेश के जरिये नहीं हुआ है। इस आधार पर प्रधानमंत्री कार्यालय पीएम केयर्स से जुड़ी कोई भी जानकारी को आरटीआई एक्ट के तहत सार्वजनिक करने से इनकार कर रहा है।
लेकिन जब आलोचना होने लगी और इस फंड को लेकर, तमाम आपत्तियां उठने लगीं तो, लंबे समय के बाद पीएम केयर्स ने सिर्फ यह जानकारी दी है कि “इस फंड को बनने के पांच दिन के भीतर यानी कि 27 मार्च से 31 मार्च 2020 के बीच में कुल 3076.62 करोड़ रुपये का डोनेशन प्राप्त हुआ है।” इसमें से करीब 40 लाख रुपये विदेशी चंदा है।
आरटीआई के जरिये पता चला था कि महारत्न से लेकर नवरत्न तक देश भर के कुल 38 सार्वजनिक उपक्रमों यानी कि पीएसयू या सरकारी कंपनियों ने पीएम केयर्स फंड में 2,105 करोड़ रुपये से ज्यादा की सीएसआर राशि दान की थी।
तब सार्वजनिक उपक्रम ओएनजीसी ने सबसे ज्यादा 300 करोड़ रुपये, एनटीपीसी ने 250 करोड़ रुपये, इंडियन ऑयल ने 225 करोड़ रुपये की सीएसआर राशि पीएम केयर्स फंड में डोनेट की थी। नियम के मुताबिक सीएसआर राशि को उन कार्यों में खर्च करना होता है, जिससे लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, नैतिक और स्वास्थ्य आदि में सुधार हो तथा आधारभूत संरचना, पर्यावरण और सांस्कृतिक विषयों को बढ़ाने में मदद मिल सके।
इंडियन एक्सप्रेस की ही एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के कम से कम सात बैंकों और सात अन्य शीर्ष वित्तीय और बीमा संस्थाओं ने अपने कर्मचारियों के वेतन से कुल मिलाकर 204.75 करोड़ रुपये की राशि पीएम केयर्स फंड में दान की है। इसके अलावा कई केंद्रीय शिक्षण संस्थानों ने अपने स्टाफ की सैलरी से पीएम केयर्स में 21.81 करोड़ रुपये की राशि दान की थी।
कोरोना महामारी के दौरान स्थापित इस PM CARES फंड के चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं। पीएम केयर्स फंड की कानूनी स्थिति पर, दिल्ली हाईकोर्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि पीएम केयर फंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत “राज्य” नहीं है और सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत “सार्वजनिक प्राधिकरण” के रूप में गठित नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 12 में राज्य की परिभाषा दी गई है। पीएमओ ने उसी परिभाषा का उल्लेख किया है।
पीएमओ के अवर सचिव द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि, “पीएम केयर्स फंड को एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है और यह भारत के संविधान या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा या उसके तहत नहीं बनाया गया है। इस ट्रस्ट का न तो भविष्य में कोई सरकारी मदद लेने का इरादा है और न ही यह किसी सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण से किसी संस्था द्वारा वित्तपोषित ही है। साथ ही, न ही यह सरकार का कोई संसाधन है।”
यानी इस फंड का सरकार से कोई संबंध नहीं है। हलफनामे में आगे कहा गया है कि “ट्रस्ट के कामकाज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।”
हलफनामा में यह भी कहा है कि, “पीएम केयर्स फंड केवल व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा स्वैच्छिक दान स्वीकार करता है और यह फंड, सरकार के बजटीय स्रोतों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बैलेंस शीट से आने वाले योगदान को स्वीकार नहीं करता है। PMCARES फंड/ट्रस्ट में किए गए योगदान को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत छूट दी गई है, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकाला जाना उचित नहीं है कि यह एक “सार्वजनिक प्राधिकरण” है।”
पीएमओ ने हलफनामे में इसे और स्पष्ट किया और आगे कहा है कि, “फंड को सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जिस कारण से इसे बनाया गया था वह “विशुद्ध रूप से धर्मार्थ” है और न तो इस फंड का उपयोग किसी सरकारी परियोजना के लिए किया जाता है और न ही ट्रस्ट सरकार की किसी भी नीति से शासित होता है। इसलिए, पीएम केयर्स को ‘पब्लिक अथॉरिटी’ के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। इस फंड के योगदान के साथ भारत के समेकित कोष का कोई दूर दूर तक कोई संबंध भी नहीं है।”
यह कहते हुए कि, “फंड या ट्रस्ट सरकार के किसी निर्णय या कार्य के लिए अपने गठन का श्रेय नहीं देता है।” हलफनामे में यह सप्ष्ट किया गया है कि, “पीएम केयर फंड का कोई सरकारी चरित्र नहीं है “क्योंकि फंड से राशि के वितरण के लिए, सरकार द्वारा कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं किया जा सकता है। पीएम केयर्स ट्रस्ट में किए गए योगदान को अन्य निजी ट्रस्टों की तरह आयकर अधिनियम के तहत छूट प्राप्त है। यह एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है जिसमें व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा किए गए स्वैच्छिक दान शामिल हैं और यह केंद्र सरकार का कोई व्यवसाय नहीं है। इसके अलावा, पीएम केयर फंड को सरकार द्वारा धन या वित्त प्राप्त नहीं होता है।”
हलफनामा में यह भी कहा गया है कि “फंड से स्वीकृत अनुदान के साथ-साथ पीएम केयर फंड की वेबसाइट “pmcares.gov.in” पर सार्वजनिक डोमेन में, सभी जानकारियां उपलब्ध है और इसकी ऑडिटेड रिपोर्ट पहले से ही वेबसाइट पर उपलब्ध है। बाद में खातों के ऑडिट किए गए विवरण भी वेबसाइट पर उपलब्ध कराए जाएंगे, जब भी देय होगा। इसलिए, मनमानी या गैर-पारदर्शिता के बारे में याचिकाकर्ता की धारणा उचित नहीं है।”
पीएमओ ने यह भी तर्क दिया है कि “पीएम केयर्स फंड को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) की तर्ज पर प्रशासित किया जाता है क्योंकि दोनों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। जैसे राष्ट्रीय प्रतीक और डोमेन नाम ‘gov.in’ का उपयोग PMNRF के लिए किया जा रहा है, उसी तरह PM CARES फंड के लिए भी उपयोग किया जा रहा है।”
अंत में, हलफनामे में यह भी कहा गया कि “न्यासी बोर्ड की संरचना जिसमें सार्वजनिक पद के धारक, (यानी प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री आदि) पदेन रूप से शामिल हैं, तो यह केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए और ट्रस्टीशिप के सुचारू उत्तराधिकार के लिए है और इसका सरकार के नियंत्रण का न तो कोई इरादा है और न ही वास्तव में इसका कोई उद्देश्य।”
पीएम केयर्स फंड की वेबसाइट के अनुसार साल 2019-20 में इसे कुल 3,076.60 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। 2020-21 में यह रकम बढ़कर 10,990.20 करोड़ रुपये हो गई। यहीं यह जिज्ञासा उठती है कि हजारों करोड़ का यह फंड कहां गया? अगर प्रधानमंत्री खुद इसके चेयरमैन हैं तो इसका ऑडिट क्यों नहीं होने दिया गया? अगर यह भारत सरकार द्वारा नियंत्रित फंड नहीं है तो प्रधानमंत्री इसके चेयरमैन क्यों बने बैठे हैं? प्रधानमंत्री पद पर बैठकर कोई व्यक्ति निजी फंड कैसे बना सकता है? इस फंड के बारे में आरटीआई के जरिये किसी तरह की जानकारी क्यों नहीं दी जाती?
पारदर्शिता को लेकर सरकार का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। यहां तक कि सरकार, यही कोशिश करती है कि उसे अदालत में कोई रिकॉर्ड न देना पड़े। ताजा मामला बिल्किस बानो की याचिका का है जिसमें सरकार ने ग्यारह सजायाफ्ता कैदियों को समय से पहले रिहा करने से संबंधित गुजरात और केंद्र सरकार की फाइलों को सर्वोच्च न्यायालय में, इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ द्वारा पूछे जाने पर, न दिखाने के लिए समीक्षा आवेदन देने की बात कही है।
यही दांव, पेगासस जांच कमेटी को पूरे दस्तावेज न दिखाने के संदर्भ में भी आजमाया गया। सरकार का यह अपारदर्शी रवैया पीएम केयर्स को और भी अधिक रहस्यमय बनाता है।
(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस हैं।)