प्रधानमंत्री की स्वास्थ्य बीमा योजना इन दिनों खुद बीमार चल रही है। इस योजना की शुरुआत बड़े पैमाने पर की गई थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश भर के 28,433 अस्पतालों में से लगभग एक चौथाई अस्पताल केंद्र की प्रमुख राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल है। जिसमें गरीब परिवारों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की लागत शामिल है। लेकिन इस योजना के माध्यम से अब तक एक भी मरीज को सूचीबद्ध निजी अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया है। ऐसा मैं नहीं बल्कि सरकारी आंकड़ें कह रहे हैं।
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के अपडेटेड डेटा के मुताबिक 28,433 अस्पतालों में से 6,414 (22.5 प्रतिशत) अस्पताल योजना में जोड़े जाने के बाद से काम नहीं कर रहे हैं। जिसका अर्थ है कि पीएमजेएवाई के तहत कोई मरीज वहां भर्ती नहीं हुआ है। वहीं 5,084 (17.9 प्रतिशत) अस्पताल भी पिछले छह महीनों में निष्क्रिय पड़े हुए हैं।
निजी अस्पतालों के निकाय एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (एएचपीआई) ने इसके लिए बड़ी संख्या में निष्क्रिय पड़े अस्पतालों को जिम्मेदार ठहराया है। जिसके कारण योजना के मुताबिक गरीबों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। एएचपीआई ने कहा कि यह योजना कई प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध ही नहीं है। कई निजी अस्पतालों पर गड़बड़ी करने के आरोप भी लग रहे हैं।
वहीं पीएमजेएवाई से जुड़े कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बुनियादी ढांचे या चिकित्सा संबंधी सुविधाओं की कमी के कारण रोगी कई अस्पतालों में जाते ही नहीं हैं जिस कारण वे सभी अस्पताल निष्क्रिय हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश भर में लगभग 500 लाख गरीबों के लिए सितंबर 2018 में पीएमजेएवाई योजना की शुरुआत की थी। जिसमें उन्हें कैशलेस अस्पताल में भर्ती किए जाने के लिए हर साल 5 लाख रुपये दिया जाना था।
योजना को लॉन्च किए जाने के बाद उसमें 15,505 सरकारी अस्पतालों और 12,908 निजी अस्पतालों को जोड़ा गया है और अस्पतालों को देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के फंड का उपयोग किया जाता है। पिछले महीने 812,000 से अधिक अस्पतालों के साथ साथ 43.7 मिलियन से अधिक अस्पतालों को योजना में जोड़ा गया है। कई तरह की बीमारियों के साथ साथ कैंसर, हार्ट संबंधी समस्या, गुर्दे की बीमारी, आंखों से जुड़ी बीमारी, प्रसूति और स्त्री रोग से परेशान मरीज इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
योजना में शामिल होने के बाद से निष्क्रिय अस्पतालों का अनुपात अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। जैसे महाराष्ट्र में 10 प्रतिशत से कम (1,110 में से 70), उत्तर प्रदेश (3,363 में से 257), और केरल में (761 में से 49), गुजरात में (2,728 में से 487), दिल्ली में (109 में से 52) लगभग 40 प्रतिशत से अधिक और आंध्र प्रदेश में (2,476 में से 1,296) है।
एएचपीआई के महानिदेशक गिरधर ज्ञानी का कहना है कि, “योजना में शामिल कुछ अस्पताल शायद इसलिए निष्क्रिय हैं क्योंकि योजना के तहत मौजूदा भरपाई दर कुछ प्राइवेट अस्पतालों के लिए कम पड़ रहा है या लाभकारी नहीं हैं।” एएचपीआई सरकार से भरपाई दरों को बढ़ाने जाने का आग्रह कर रहा है।
बहरहाल, योजना के सही तरीके से काम नहीं करने का खामियाजा तो गरीबों को ही उठाना पड़ रहा है। “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना-मुख्यमंत्री योजना” जन-जन तक नहीं पहुंच पा रहा है। कारण चाहे जो हो लेकिन योजना के प्रति निजी अस्पतालों की बेरूखी जांच का विषय है। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वास्थ्य योजना का भी हाल जर्जर सरकारी अस्पतालों की तरह तो नहीं होता जा रहा है।
+ There are no comments
Add yours