Tuesday, March 19, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

मोदी के जन्मदिन पर अकाली दल का ‘तोहफा’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शान में उनके मंत्री जब ट्विटर पर बेमन से कसीदे काढ़ रहे थे, उस समय देश में दो घटनाएं परवान चढ़ रही थीं। पहला देश भर में छात्र, युवा और किसान मोदी के जन्मदिन को पूरे मन से ऐलानिया “राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस” के रूप में मना रहे थे। इस क्रम में वे पुलिस-प्रशासन से बेखौफ थे। दूसरा मोदी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर उनके मंत्रिमंडल की सहयोगी हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा का ऐलान कर रही थीं। हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा कृषि विधेयकों के विरोध में है जिसे हाल ही में मोदी सरकार ने पेश किया था और लोकसभा से पारित हो चुके हैं। 

कृषि विधेयकों के विरोध की यह कोई पहली घटना नहीं है। हरियाणा से लेकर पंजाब तक में किसान धरना-प्रदर्शन करके इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उस विरोध की कड़ी में आज हरसिमरत कौर बादल का एक नाम और जुड़ गया। लेकिन यह इस्तीफा भाजपा सरकार, एनडीए और हिंदुत्व की राजनीति के एक अध्याय का अंत है। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल मोदी सरकार में अकाली दल की एकमात्र प्रतिनिधि थीं। और अकाली दल भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है। इसके पहले शिवसेना ने भी भाजपा का साथ छोड़ दिया था। 

शिवसेना का भाजपा से अलग होना और अकाली दल का सरकार से अलग होने की घटना मात्र एक राजनीतिक दल का अलग होना नहीं है। शिवसेना और अकाली दल राजनीति में क्षेत्रीय अस्मिता और धर्म के घालमेल के लिये जाने जाते हैं। जो भाजपा जैसे उग्र हिंदुत्व की राजनीति करने वाले दल के पूरक बने थे। नब्बे के दशक में जब भाजपा राजनीतिक रूप से कमजोर थी तो शिवसेना और अकाली दल ही इसके सहयोगी थे। भाजपा भावनाओं का जो ज्वार देश भर में उभारने की कोशिश कर रही थी वही ज्वार महाराष्ट्र में शिवसेना के मुखिया बाला साहब ठाकरे “मराठा अस्मिता” के नाम पर कर रहे थे। पंजाब में वही काम अकाली दल के मुखिया प्रकाश सिंह बादल “सिखी और किसानी की रक्षा” के नाम पर कर रहे थे। भाजपा के सहयोग से दोनों दलों को “सत्ता सुख” और “सत्ता से युद्ध” का मौका दिया। लेकिन इस बीच दोनों दलों को यह लगने लगा कि भाजपा सरकार उसके जनाधार को निगलने के साथ ही देश के साथ भी कुछ अच्छा नहीं कर रही है।

अब जरा देखिए कि हरसिमरत कौर ने ट्विटर पर इस्तीफे की जानकारी देते हुए क्या लिखा है, “मैंने किसान विरोधी अध्यादेशों और कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने का गर्व है।”

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 पर चर्चा में भाग लेते हुए सुखबीर बादल ने कहा था, ‘शिरोमणि अकाली दल किसानों की पार्टी है और वह कृषि संबंधी इन विधेयकों का विरोध करती है।’

यह अलग बात है कि शिरोमणि अकाली दल के कार्यवाहक अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अभी कह रहे हैं कि, “हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथी हैं।” लेकिन वह यह भी कह रहे हैं कि मोदी सरकार के कृषि अध्यादेशों से देश भर के किसान नाराज हैं और हमने सरकार को किसानों की भावना बता दी थी। हमने इस विषय को हर मंच पर उठाया। हमने प्रयास किया कि किसानों की आशंकाएं दूर हों लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी सरकार कृषि अध्यादेशों पर अपनी राय नहीं बदलने वाली है और देश में मोदी सरकार के प्रति जनता का नजरिया देखते हुए अब अकाली दल को भाजपा के साथ रहने में फायदा कम नुकसान ज्यादा दिख रहा है। लिहाजा उसने अपना रास्ता अलग कर लिया है। शिवसेना के बाद अकाली दल का भाजपा से विमुख होने का मतलब राजनीति को अंतत: भावनाओं के ज्वार से हट कर जनता के रोजमर्रा की जरूरतों पर ध्यान देना ही होगा।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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