जम्मू-कश्मीर पर बैठक: पीएम ने कहा-चुनाव पहले, राज्य बाद में; पार्टियों ने किया पहल का स्वागत

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिहाज से चुनाव कराने और भविष्य में उसे राज्य का दर्जा देने पर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। यह बात कल पीएम मोदी के साथ तकरीबन दो साल बाद सूबे के नेताओं की दिल्ली में हुई बैठक में कही गयी। गौरतलब है कि दो साल पहले जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया गया था।

अलग से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि केंद्र चुनाव कराने और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही उन्होंने जेलों में बंद लोगों के मामलों की समीक्षा करने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर के नेतृत्व में एक कमेटी भी गठित करने की मांग की।

पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बैठक उस दिशा में पहला कदम है। उन्होंने बताया कि यही कसरत अगर 5 अगस्त, 2019 के पहले कर ली गयी होती और अच्छा होता। लेकिन उन्होंने कहा कि मुख्य बात यह है कि “केंद्र सरकार जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार बहाल करना चाहता है। प्रधानमंत्री जल्दी परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा कर लेना चाहते हैं। इसका मतलब है कि वो विधानसभा चुनाओं तक उसे पूरा होते हुए देखना चाहते हैं।”

पीएम के आवास पर हुई यह बैठक तकरीबन साढ़े तीन घंटे चली। आठ दलों के तकरीबन 14 प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया। जिसमें चार पूर्व मुख्यमंत्री थे। जिसमें फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी आजाद शामिल थे। बताया जा रहा है कि सभी ने खुलकर अपनी बात रखी।

हालांकि धारा 370 की बहाली की बात भी बैठक में उठी। खासकर इस मुद्दे को महबूबा मुफ्ती ने उठाया। इस पर सरकार का कहना था कि मामला न्यायालय के अधीन है और इस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगा।

प्रधानमंत्री ने नेताओं से कहा कि वो पहले ही नेताओं से मिलना चाहते थे लेकिन कोविड-19 के चलते ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने परिसीमन की प्रक्रिया को बहुत जल्द पूरी करने की इच्छा जाहिर की। जिससे वहां जल्द चुनाव संपन्न कराए जा सकें। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि पीएम ने कहा कि वह ‘दिल की दूरी’ और ‘दिल्ली की दूरी’ दोनों कम करना चाहते हैं।

बैठक के बाद ट्विटर पर पीएम मोदी ने कहा कि “विकसित और प्रगतिशील जम्मू-कश्मीर, जहां सभी दिशाओं में विकास जरूरी है, के लिहाज से जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ आज की बैठक बेहद महत्वपूर्ण रही।”

उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी लोकतंत्र को मजबूत करना है। परिसीमन बहुत जल्द पूरा हो जाना है जिससे जम्मू-कश्मीर में चुनाव हो सकें और वह एक चुनी हुई सरकार हासिल कर सके जो जम्मू-कश्मीर को विकास के नये फलक पर ले जा सके। हमारे लोकतंत्र की ताकत एक मेज पर बैठकर विचारों के आदान-प्रदान की है। मैंने जम्मू-कश्मीर के नेताओं को बताया कि ये लोग और खासकर युवा हैं जिन्हें जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक नेतृत्व देना है। और इस बात को सुनिश्चित करना है कि उनकी आकांक्षाएं पूरी हों।

सूत्रों का कहना है कि शायद परिसीमन आयोग भी परिसीमन प्रक्रिया पर जम्मू-कश्मीर के दलों की बैठक बुलाकर उनके सुझावों को सुने।

पीएमओ में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि परिसीमन में सबकी भागीदारी को लेकर विस्तार से बातचीत हुई। बैठक में मौजूद सभी दलों ने इस प्रक्रिया में शामिल होने पर अपनी सहमति दी है।

सूत्रों का कहना है कि गुलाम नबी आजाद सबसे पहले बोले। फारुक अब्दुल्ला को बोलने के लिए सबसे पहले कहा गया था लेकिन उन्होंने कहा कि वह पहले लोगों को सुनना चाहेंगे। उसके बाद महबूबा मुफ्ती ने अपनी बात रखी फिर फारुक अब्दुल्ला और फिर जम्मू-कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम मुजफ्फर हुसैन बेग बोले। बताया जा रहा है कि पीएम मोदी ने अपनी बात सबसे बाद में रखी।

गुलाम नबी आजाद ने कहा कि उनकी पार्टी ने बैठक में पांच मांगें रखीं जिसमें राज्य की बहाली, जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव, स्थानीय लोगों की सरकारी नौकरियों में गारंटी, संपत्ति और डोमेसाइल, कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास और सभी बंदियों की रिहाई प्रमुख हैं। धारा 370 के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि धारा-370 पर ज्यादातर दलों का रुख है कि उनके लिए मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना उचित रहेगा।

उमर अब्दुल्ला का कहना था कि हमने कहा कि परिसीमन की कोई जरूरत नहीं थी। जब बाकी देश का 2026 में परिसीमन होगा तो फिर जम्मू-कश्मीर के साथ अलग तरह का व्यवहार क्यों हो रहा है?

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि उन्होंने धारा-370 के मुद्दे को उठाया और इस बात को चिन्हित किया कि जिस तरह से इसे खत्म किया गया उसको लेकर लोग नाराज हैं। यह हमारी पहचान का सवाल है। इसको हमने पाकिस्तान से नहीं हासिल किया है। बल्कि जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा दिया गया है। यह हमें जमीन और रोजगार पर अधिकार देता है। इस पर किसी भी तरह का समझौता नहीं हो सकता है। इसके अलावा मैंने कहा कि आप चीन से बात कर रहे हैं जहां लोग शामिल नहीं हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में लोग शामिल हैं। मैंने पीएम की इस बात पर तारीफ की कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ बात की और नतीजतन घुसपैठों में कमी आयी है। अब अगर जम्मू-कश्मीर के लिए पाकिस्तान से बात करने की जरूरत पड़े तो वह इस काम को भी करेंगे। ऐसी उनसे उम्मीद है। मैंने कहा कि एलओसी व्यापार को जल्द शुरू किया जाना चाहिए।

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)

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