अहमदाबाद। ‘जनचौक’ के गुजरात संवाददाता कलीम सिद्दीकी को अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर कार्यालय से एक नोटिस जारी कर पूछा गया है कि “आप को अहमदाबाद शहर, अहमदाबाद ग्रामीण, गांधी नगर, मेहसाना और गांधी नगर से क्यों न तड़ीपार कर दिया जाए।” उन्हें 30 जुलाई को अहमदाबाद पुलिस डिविजन को अपना पक्ष रखना है। बताया जा रहा है कि अहमदाबाद में एंटी सीएए आंदोलन और लॉक डाउन के समय सरकार के खिलाफ पत्रकारिता करना ही नोटिस जारी करने का कारण है।
ज्ञात हो कि नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं का बड़ा आंदोलन हुआ। जिसकी आवाज़ पूरे भारत में पहुंची। शाहीन बाग धरने की महिलाओं की आवाज़ संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया के शक्तिशाली देशों तक पहुंची।
दिल्ली के शाहीन बाग के समर्थन में अहमदाबाद के अजीत मील और रखियाल में भी 14 जनवरी को धरना शुरू हो गया था। कोरोना आपदा के कारण आंदोलनकारियों को 14 मार्च को धरना बन्द करना पड़ा था। अहमदाबाद का शाहीन बाग कहे जाने वाले अजीत मील धरने में बड़ी संख्या में आईआईएम, सीईपीटी, आईआईटी गांधी नगर, गुजरात विद्यापीठ, गुजरात यूनिवर्सिटी से छात्र और शिक्षक हिस्सा लिए थे। अन्य भाजपा शासित राज्यों की तरह गुजरात में भी पुलिस प्रदर्शन या आंदोलन नहीं करने देती थी। परंतु कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक प्राइवेट सोसाइटी के मैदान में 14 जनवरी की रात को इस धरने की शुरुआत की।
जहां शहर की मुस्लिम महिलाएं एकत्र होतीं और नागरिकता कानून, NRC और NPR का विरोध करती थीं। दो महीने तक चले इस आंदोलन का समर्थन करने के लिए इतिहासकार राम चंद्र गुहा, भगत सिंह आर्काइव के प्रो. चमन लाल, डॉ. राम पुनियानी, फिल्मी अदाकार एजाज़ खान सहित बहुत सी जानी मानी हस्तियां अजीत मील पहुंची थीं। जिसके चलते राज्य सरकार पर दबाव बना हुआ था। अजीत मील के बाद राज्य में सूरत, बड़ौदा सहित कई जगहों पर शाहीन बाग बने। इस आंदोलन के मुख्य आयोजकों मे अहमदाबाद से ‘जनचौक’ के संवाददाता कलीम सिद्दीकी भी थे।
कलीम सिद्दीकी को पुलिस द्वारा एक नोटिस भेजकर जवाब तलब किया गया है। नोटिस में दो एफआईआर को आधार बनाया गया है। एक एफआईआर अहमदाबाद के रामोल पुलिस स्टेशन में दर्ज है। दूसरी रखियाल पुलिस स्टेशन में। आपको बता दें कि दारूबंदी और गुंडों के साथ पुलिस की मिलीभगत के खिलाफ 2018 में हुए आंदोलन के समय पुलिस ने रामोल में उस एफआईआर को दर्ज किया था। रखियाल में 19 दिसंबर 2019 को नागरिकता कानून के विरोध में बंद के समय एफआईआर दर्ज की गई थी।
रामोल में दर्ज एफआईआर में 24 जनवरी 2020 को मेट्रो कोर्ट ने निर्णय दे दिया है जो कलीम सिद्दीकी के पक्ष में आया है। सिद्दीकी का कहना है, “188, 144 की मामूली धाराओं में तड़ीपार का नोटिस जारी करना ही गैर कानूनी है। पुलिस ने राज्य सरकार के इशारे पर यह कदम उठाया है। हमारे जैसे लोग ही समाज में रहने के लायक हैं।”
सिद्दीकी ने ऐसे बहुत सारे आर्टिकल लिखे हैं जिससे राज्य सरकार को बेहद आपत्ति थी। उदाहरण के तौर पर श्रमिक एक्सप्रेस के नाम पर भाजपा के नेताओं ने किया बड़ा घपला, कोरोना से हुई मृत्यु के आंकड़ों को छिपाने का खेल, बांध काम मजदूरों के वेलफेयर फंड को खाद्य आपूर्ति विभाग को देना आदि उसके चंद उदाहरण हैं। यही वजह है कि सिद्दीकी हमेशा से राज्य सरकार के निशाने पर रहे।
सिद्दीकी का कहना है कि वह नोटिस का जवाब तो देंगे ही साथ ही मामले को हाईकोर्ट में चुनौती देने पर विचार कर रहे हैं।
‘जनचौक’ ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। पोर्टल के संपादक महेंद्र मिश्र ने कहा कि यह न केवल मीडिया पर हमला है बल्कि यह आम लोगों की आवाज को बंद करने की कोशिश का हिस्सा है। यह घटना बताती है कि सत्ता अब मीडिया के उस हिस्से को भी नहीं चलने देना चाहती जो मुख्यधारा के मीडिया के उसकी गोदी में चले जाने के बाद जनता से जुड़े जरूरी मुद्दों को उठा रही थी।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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