Tuesday, April 23, 2024

जनता कर्फ्यू बनाम कोरोना महोत्सव

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम् विहिनस्य दर्पण: किं करिष्यति।। अर्थात जिसके पास स्वयं की बुद्धि नहीं है, उसका शास्त्र भी कल्याण नहीं कर सकते। जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण किसी काम का नहीं होता।

आज दिन भर लगा कि देश के लोग कोरोना वायरस की चुनौती का मुकाबला करने के लिए बेहद संजीदा हैं। प्रधानमंत्री के आह्वान पर जनता कर्फ्यू के तहत सब लोग घरों में बंद रहे। लेकिन शाम के 5 बजते ही देश में बुद्धि-विरोधी आंदोलन का महाविस्फोट हुआ, ठीक वैसा ही जैसा 21 सितंबर 1995 को हुआ था, जब समूचे उत्तर और पश्चिमी भारत में गणेश प्रतिमाओं के दूध पिलाने की नौटंकी का मंचन हुआ था। 

प्रधानमंत्री के आह्वान पर लोगों ने अपने घर के दरवाजे पर और बॉलकनी में खड़े होकर नागरिक सेवाओं में लगे लोगों के सम्मान में थाली, ताली और घंटी बजाई, यहां तक तो ठीक था, लेकिन देश के कई शहरों में इस मौके पर आतिशबाजी भी की गई और जुलूस भी निकाले गए। कई शहरों में लोग जश्न मनाने के अंदाज में कॉलोनी के पार्कों में जमा हो गए। कहीं डीजे तो कहीं ढोलक, सीटी और शंख फूंका गया। इस तरह एक बड़े मकसद से उठाया गया एक बड़ा कदम अपने अंतिम चरण में आकर एक फूहड़ राजनीतिक आयोजन और व्यक्ति पूजा के महोत्सव में बदल गया। बेखबरी और बिकाऊ टीवी चैनलों ने अपनी स्वभावगत जाहिलपन का प्रदर्शन करते हुए पूरे भक्तिभाव से इस महोत्सव की झलकियां भी दिखाईं। सत्तारुढ़ दल के प्रवक्ताओं और जाहिल डॉक्टरों-प्रोफेसरों ने भी टीवी चैनलों पर इस आत्मघाती नौटंकी का औचित्य साबित करते हुए अपनी जघन्य मूर्खता का परिचय दिया।

संगठित मूर्खता का ऐसा विराट प्रदर्शन दुनिया में और कहीं नहीं हो सकता। दुनिया के बाकी देश तो सिर्फ कोरोना वायरस की चुनौती का ही सामना कर रहे हैं लेकिन भारत को कोरोना वायरस के साथ ही मूर्खता के वायरस की चुनौती की गंभीर चुनौती का भी मुकाबला करना पड़ेगा।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles