झारखंड चुनाव : राजनीति में भक्ति के ख़तरे और मोदी की आत्ममुग्धता 

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झारखंड। झारखंड विधानसभा चुनाव (2024) की बढ़ती सरगर्मियों के बीच भाजपा ने शनिवार को अपना घोषणापत्र जारी किया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा प्रमुखता से उभरकर सामने आया है। 76 पन्नों के इस घोषणापत्र में लगभग हर तीसरे पृष्ठ पर मोदी की तस्वीर दिखाई दे रही है।

कुल मिलाकर, इसमें मोदी की 23 तस्वीरें शामिल की गई हैं, जो घोषणापत्र का एक बड़ा हिस्सा घेरती हैं।

इसके विपरीत, पार्टी के प्रमुख आदिवासी नेताओं, जैसे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा, की उपस्थिति घोषणापत्र में लगभग नदारद है। इसी तरह, महिला नेताओं, विशेषकर आदिवासी महिलाओं, को भी इस दस्तावेज़ में खास स्थान नहीं दिया गया है। आधी आबादी की यह उपेक्षा भाजपा के महिला सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

घोषणापत्र में मोदी की बड़ी तस्वीरें प्रमुखता से जगह पाती हैं, जबकि आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी की मात्र दो छोटी तस्वीरें शामिल कर औपचारिकता निभाई गई है। मरांडी, जो प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं, को पूरी तरह से नज़रअंदाज करना संभव नहीं था।

दूसरी ओर, अर्जुन मुंडा केवल एक स्थान पर दिखते हैं, और उस तस्वीर में भी मोदी ही केंद्र में हैं, जबकि मुंडा तस्वीर के ‘फ्रेम’ में पीछे खड़े दिखाई दे रहे हैं।

भारतीय समाज में आदिवासियों को जिस तरह हाशिए पर रखा जाता है, कुछ वैसा ही भाजपा के इस घोषणापत्र में परिलक्षित होता है। दिलचस्प बात यह है कि जिस चंपई सोरेन के प्रति भाजपा पहले सहानुभूति व्यक्त कर रही थी, वह भी इस घोषणापत्र से गायब हैं।

जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा था, तब भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर उनके साथ भेदभाव का आरोप लगाया था। लेकिन अब, जब भाजपा के नेतृत्व का अवसर है, तो उन्होंने चंपई सोरेन को भी भुला दिया।

घोषणापत्र की तस्वीरों में प्रधानमंत्री मोदी को बिरसा मुंडा (1875-1900), तेलंगा खड़िया (1806-1880), और वीर बुधु भगत (1792-1832) जैसे आदिवासी नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दिखाया गया है। इसके माध्यम से मोदी, आदिवासी समुदाय के बीच यह संदेश देना चाहते हैं कि वे इन महान आदिवासी नायकों का सम्मान करते हैं।

लेकिन जब झारखंड के भाजपा घोषणापत्र को ध्यान से पढ़ते हैं, तो उन मूल्यों की कोई झलक नहीं मिलती जिनके लिए इन नायकों ने संघर्ष किया था।

आज भी इन नायकों का सपना अधूरा है, जिसमें आदिवासियों को उनके संसाधनों पर अधिकार मिले और वे अपनी संस्कृति के साथ स्वतंत्र जीवन जी सकें। मोदी के शासनकाल में या झारखंड में पूर्व भाजपा सरकारों के समय, आदिवासियों के जल, जंगल और ज़मीन की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकी है।

एक अन्य तस्वीर में मोदी महिलाओं के एक समूह के बीच नजर आते हैं, जो उन्हें महिलाओं के कल्याण के प्रति समर्पित नेता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है। लेकिन वास्तविकता यह है कि उनके शासनकाल में आदिवासी महिलाओं की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है।

झारखंड में तो नहीं ही, बल्कि दिल्ली में भी, जहां से मोदी शासन करते हैं, आदिवासी महिला घरेलू कामगारों का भीषण शोषण हो रहा है।

इसके अलावा, घोषणापत्र में मोदी को प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के लाभों का वितरण करते हुए भी दिखाया गया है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि मोदी और भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारें झारखंड के किसानों को ठोस राहत देने में असफल रही हैं।

एक अन्य तस्वीर में उन्हें एक ‘पॉटर’ के साथ बातचीत करते हुए दिखाया गया है, लेकिन उनके शासनकाल में बड़े पूंजीपतियों के खुदरा क्षेत्र (‘रिटेल सेक्टर’) में प्रवेश से छोटे कारीगरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। एक और तस्वीर में मोदी बच्चों के साथ खेलते हुए नजर आते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि आज भी कई आदिवासी बच्चे बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

कई तस्वीरों में मोदी को आदिवासियों और कमजोर वर्गों के “मसीहा” के रूप में प्रस्तुत किया गया है। पेज 67 पर एक बड़ी तस्वीर में उन्हें हाथ जोड़े खड़ा दिखाया गया है, माथे पर चंदन का टीका लगाए हुए। यह घोषणापत्र की आखिरी तस्वीर है, जो यह संकेत देती है कि मोदी की प्रमुख पहचान एक आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में है।

घोषणापत्र में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को स्थान दिया गया है, लेकिन किसी अन्य प्रमुख भाजपा नेता की अनुपस्थिति से पार्टी में मोदी के बढ़ते प्रभुत्व का संकेत मिलता है। यह भारतीय राजनीति, भाजपा और आरएसएस के भीतर मोदी की आत्ममुग्धता को भी दर्शाता है।

राजनीतिक विश्लेषकों ने आगाह किया है कि जब राजनीति में किसी एक नेता की महिमामंडन की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और उसे भगवान की तरह पूजा जाने लगे, तो यह देश की एकता के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।

संसदीय लोकतंत्र में विभूतिपूजा या ‘हीरो-पूजा’ एक खतरनाक प्रवृत्ति है। किसी एक नेता का पार्टी और सरकार पर हावी होना लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। यह बढ़ते “अधिनायकवाद” का संकेत है, जो लोकतंत्र के लिए “कैंसर” के समान होता है।

जब एक ही नेता की तस्वीरें बच्चों के स्कूल बैग, शहर की होर्डिंग्स, वैक्सीन प्रमाणपत्रों, चुनावी घोषणापत्रों, रैलियों, पोस्टरों, टीवी स्क्रीन, और विभिन्न अन्य स्थानों पर व्यापक रूप से दिखाई देने लगें, तो यह स्पष्ट संकेत है कि देश का लोकतंत्र बीमार हो चुका है। यह प्रवृत्ति संघीय ढांचे के लिए भी बेहद खतरनाक है।

25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में दिए गए भाषण में, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने राजनीति में ‘व्यक्तिपूजा’ के खतरों के प्रति आगाह किया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि भारतीय राजनीति में किसी एक व्यक्ति की भक्ति, पूजा या महिमामंडन की प्रवृत्ति को नहीं रोका गया, तो यह लोकतंत्र को नष्ट कर तानाशाही में बदल देगा।

अंबेडकर ने कहा था, “भारत में भक्ति, भक्ति का मार्ग अथवा विभूतिपूजा [Hero-Worship] अन्य  किसी देश की राजनीति की तुलना में सबसे अधिक दिखाई देगी। धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकती है लेकिन राजनीति में भक्ति अथवा व्यक्तिपूजा अधःपतन और अंततः तानाशाही की ओर ले जाने वाला मार्ग साबित होगा” (डॉ अम्बेडकर वांग्मय, खंड 40, भाग 3, पृष्ठ 149)।

अंबेडकर व्यक्तिपूजा की आलोचना इसलिए भी करते थे कि भारत जैसे जाति-आधारित समाज में किसी एक व्यक्ति को सभी लोगों के हितों का प्रतिनिधि मानने का दावा नहीं किया जा सकता। समाज की विविधता का प्रतिबिंब सभी संस्थानों, राजनीतिक दलों, और सरकारी निकायों में दिखाई देना चाहिए।

अंबेडकर ने कहा था कि यदि कानून अच्छा भी बन जाए, लेकिन इसे लागू करने वाले लोग वंचित समाज से न हों, तो कमजोर तबकों को न्याय नहीं मिल पाएगा। अक्सर ताकतवर लोग कानून का दुरुपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं और वंचितों के हितों को हानि पहुंचाते हैं। इसलिए नीति-निर्माण के समय विभिन्न समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।

संसदीय लोकतंत्र में भी कैबिनेट के मंत्रियों के साथ सलाह-मशविरा पर ज़ोर दिया गया है। प्रधानमंत्री अपने सभी निर्णय स्वयं नहीं ले सकता; उसके अधिकार भी उतने ही हैं जितने किसी अन्य कैबिनेट मंत्री के होते हैं। हालांकि, मोदी की आभा को इस हद तक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है कि उनके मंत्रिमंडल के सदस्य उसके सामने धुंधले पड़ जाते हैं या अदृश्य हो जाते हैं।

भाजपा में मोदी के प्रति बढ़ती विभूतिपूजा पार्टी के “लोकतांत्रिक” सिद्धांतों और आंतरिक बहस के लिए “पर्याप्त स्थान” होने के दावे को भी चुनौती देती है। मोदी के केंद्रीय नेतृत्व में उभार ने न केवल उनके प्रतिद्वंद्वियों को हाशिए पर धकेल दिया है, बल्कि उनके समर्थक भी उनकी छाया में खो गए हैं।

भाजपा अक्सर परिवारवाद को लेकर विपक्षी दलों की आलोचना करती है और जेएमएम पर भी उसने परिवारवाद का आरोप लगाया है। यह सही है कि राजनीति में परिवारवाद उचित नहीं है और इसे समाप्त होना चाहिए। परंतु, सवाल यह है कि क्या परिवारवाद केवल भाजपा के बाहर फैला हुआ है, या इसकी छाया भाजपा पर भी पड़ चुकी है?

सत्ता में अपेक्षाकृत देर से आने के कारण भाजपा में परिवारवाद नई बात है, लेकिन यह तेजी से पनप रहा है। भाजपा की दूसरी पीढ़ी के कई नेता अपने माता-पिता या रिश्तेदारों की सहायता से ऊंचे पदों पर पहुंच चुके हैं। यदि भाजपा वास्तव में परिवारवाद को समाप्त करना चाहती है, तो उसे अपने भीतर भी झांकने की आवश्यकता है।

भाजपा और आरएसएस की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, क्या मोदी के प्रति पार्टी में बढ़ती भक्ति परिवारवाद से कम खतरनाक है? क्या आरएसएस और भाजपा में नेताओं का लोकतांत्रिक तरीके से चयन न होना अपने आप में एक प्रकार का परिवारवाद नहीं है? क्या देश के संसाधनों पर विशेष सवर्ण जातियों का सदियों से बना वर्चस्व परिवारवाद का सबसे खतरनाक रूप नहीं है?

मिसाल के तौर पर, कॉर्पोरेट जगत, धार्मिक स्थल, मीडिया, और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर कुछ सवर्ण जातियों का लंबे समय तक प्रभुत्व बना हुआ है, जबकि वे बहुजनों को बाहर रखे हुए हैं। क्या इसे हम ‘जातिवादी’ परिवारवाद कह सकते हैं?

इसी प्रकार, आदिवासी नेताओं को उनके अपने ही राज्य में दरकिनार कर किसी बाहरी, गैर-आदिवासी चेहरे का महिमामंडन करना भी असमानता पर आधारित एक व्यवस्था का परिचायक है।

यदि भाजपा वंचित समुदायों की सच्ची प्रतिनिधि होती, तो वह अपने घोषणापत्र में दलित और ओबीसी नेताओं को प्रमुखता देती। इसके विपरीत, घोषणापत्र में इन समूहों की समस्याओं और कल्याण के लिए कोई ठोस कार्यक्रम पेश नहीं किया गया है।

भाजपा ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की “प्रतिबद्धता” जताई है ताकि पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल कर सके, लेकिन यह नहीं बताया गया कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम सरकार ने पहले ही ओबीसी आरक्षण को इस स्तर तक बढ़ाने का निर्णय ले लिया था।

भाजपा आदिवासी मतदाताओं को “बांग्लादेशी घुसपैठियों” के खतरे से सावधान कर एकजुट करने का प्रयास कर रही है, जबकि राज्य के मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। मुस्लिम (14.5%) और ईसाई (4.3%) अल्पसंख्यकों के कल्याण से संबंधित योजनाओं को भी नजरअंदाज कर दिया गया है।

भाजपा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) जैसे विवादित मुद्दों को उठाने का मौका नहीं छोड़ रही है और कह रही है कि वह यूसीसी लाएगी, लेकिन आदिवासी समुदाय को इससे बाहर रखेगी।

यह विरोधाभासी तर्क समझ से परे है। यदि यूसीसी लागू होती है और एक विशेष समुदाय को इससे बाहर रखा जाता है, तो इसे ‘यूनिफॉर्म’ कहना अनुचित होगा। यदि यह केवल आदिवासियों को झूठी तसल्ली देने का प्रयास है, तो यह उनके साथ एक बड़ा अन्याय होगा।

झारखंड के आदिवासी समुदाय का आरोप है कि भाजपा को ‘फंड’ करने वाली ताकतें उनकी ज़मीनों पर कब्जा करने का प्रयास कर रही हैं। संविधान आदिवासियों को उनकी संस्कृति और परंपराओं के साथ जीने का अधिकार देता है और बाहरी हस्तक्षेप से उनकी भूमि की रक्षा के लिए सुरक्षात्मक प्रावधान प्रदान करता है।

लेकिन यूसीसी लाकर इन संवैधानिक प्रावधानों को कमजोर करने की साज़िश रची जा रही है ताकि अवसर की ताक में बैठे बड़े “शिकारी” आदिवासियों की जमीनें हड़प सकें।

यह स्पष्ट है कि यूसीसी के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों और कानूनों से छेड़छाड़ कर उन्हें उनके घर-बार से बेदखल करने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के बजाय, बहुसंख्यक धर्म की पहचान में समाहित कर, समाज के सबसे निचले पायदान पर धकेला जाएगा।

भाजपा के घोषणापत्र ने झारखंड के संसाधनों के दोहन और आदिवासियों के विस्थापन जैसे अहम मुद्दों को दरकिनार कर दिया है और ध्यान “मुस्लिम घुसपैठ” और “नक्सलवाद” के खतरों पर केंद्रित कर दिया गया है।

आदिवासी नेताओं को हाशिए पर रखते हुए, घोषणापत्र में मोदी की तस्वीरों को प्रमुखता दी गई है। राजनीति में मोदी की बढ़ती आत्ममुग्धता और पार्टी की उनके प्रति भक्ति, दोनों ही देश के लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत हैं।

(डॉ. अभय कुमार एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। संपर्क: [email protected])

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