झारखंड। कहा जाता है कि असहमति लोकतंत्र का आधार है और इस लोकतांत्रिक आधार की रीढ़ होते हैं मतदाता। लोकतांत्रिक सरकार के चुने जाने की जरूरी शर्त है स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव।
फिलवक्त दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव 2024 होने जा रहा है। जहां महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों पर एक ही चरण 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, वहीं झारखंड में 81 सीटों के लिए दो चरण के तहत पहला चरण 13 नवंबर को और दूसरा चरण 20 नवंबर को मतदान होगा।
इस चुनावी दंगल में तमाम राजनीतिक दल एक दूसरे के आमने सामने हैं। महाराष्ट्र सहित झारखंड में भी हर तरफ चुनाव का शोर है। गांव से लेकर शहर तक के चौक-चौराहों पर चुनाव की चर्चा जोरों पर है। राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।
लोक लुभावन नारे, बड़े-बड़े वायदों का पिटारा लेकर सभी दल के उम्मीदवार मैदान में ताल ठोक रहे हैं, कई सुविधाओं के साथ चुनावी घोषणापत्र के द्वारा प्राथमिकता के आधार पर आरंभ की जाने वाली योजनाएं परोसी जा रही हैं। घोषणापत्र में सुविधाओं व वादों की भरमार है।
लेकिन संविधान के द्वारा प्रदत नागरिक स्वतंत्रता व मानवाधिकार का चुनावी घोषणापत्र में जिक्र तक नहीं है, जो इस लोकतांत्रिक आधार के लिए काफी निराशाजनक है। सबसे दुखद बात तो यह है कि राजनीतिक दलों द्वारा उपेक्षित मानवाधिकार नागरिक स्वतंत्रता गांव-बस्ती व शहरों के चौक-चौराहों पर हो रही चर्चा से भी गायब है।
सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक जीवन के लिए सबसे जरूरी मानवाधिकार और नागरिक स्वतंत्रता जैसे मसलों का चुनाव के केन्द्र में न होना मतदाता और मतदान दोनों पर कई सवाल खड़े करते हैं।
बताना जरूरी हो जाता है कि मानवीय गरिमा की उपेक्षा कर लोकतंत्र को जीवित नहीं रखा जा सकता है। यानी असहमति व प्रतिवाद लोकतंत्र की पहली शर्त है।
सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक जीवन के लिए सबसे जरूरी मानवाधिकार व नागरिक स्वतन्त्रता को चुनाव के केन्द्र में रखना इस शर्त की पहली प्राथमिकता है।
इसके अभाव में लोकतंत्र की कल्पना बेमानी है। चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष न हो तो सारा प्रपंच सिर्फ सत्ता पर काबिज होने का होकर रह जायगा और पूंजीवादी समाज के सामान्य नियमों के आधार पर ही सता का संचालन होता रहेगा।
ऐसे में आर्थिक विचारों पर समाज कल्याण की बात तो नहीं ही होगी, बल्कि धर्म के राजनीतिकरण की आलोचना भी कर पाना संभव नहीं होगा। जिसके कारण असमानता और सांप्रदायिकला को बल मिलेगा।
इस पर पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) का कहना है कि चुनाव सत्ता हथियाने का सिर्फ उपक्रम न होकर लोकतंत्र का आधार है, जिसकी गरिमा को बरकरार रखना जरूरी है। हर चुनाव में निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते रहे हैं। ऐसे में पीयूसीएल स्वतंत्र, माफ़-सुथरा व निष्पक्ष चुनाव पर बल देते हुए चुनाव आयोग से इस पर संज्ञान हेतु निवेदन करता है।
पीयूसीएल का मानना है कि झारखंड में लोकतांत्रिक आधार की रीढ़ तभी मजबूत होगी जब समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना हो, सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों की रक्षा हो, सांप्रदायिक घृणा और विभाजन पैदा करने के विरुद्ध कदम उठाए जाने का वादा हो, सामाजिक न्याय की रक्षा हो।
सूचना के स्रोतों को सरकारी राजनीतिक दबाव से मुक्त बनाने का प्रयास हो, सरकारी स्कूलों में प्रासंगिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास करने का वादा हो, संविधान की पांचवी अनुसूची के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने का प्रयास हो।
वन अधिकार कानून (FRA) 2006 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने का प्रयास हो, खनन क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक आकलन हो, मनरेगा में पारदर्शी तरीके से सामाजिक आकलन कराने के प्रयास का वादा हो, मनरेगा के गारंटीकृत कार्य दिवस 200 दिन किए जाने के प्रयास हो।
शहरी बेरोजगार रोजगार गारंटी योजना शुरू किए जाने का प्रयास हो, सभी श्रमिकों की मजदूरी बढ़ाए जाने का वादा हो, सरकारी विभागों में रिक्तियों व प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा नियुक्ति की दिशा में प्रयत्न करना हो, राज्य के विभिन्न आयोग में पूर्णकालिक नियुक्ति हो, और
विचाराधीन कैदी व पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी को ले कर माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन हो।
पीयूसीएल का मानना है कि यह सूची संपूर्ण नहीं है, लेकिन हम मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा और जरूरी समाज सुधार लाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रतिबद्धता और प्रयास की आवश्यकताओं की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं।
झारखंड राज्य के चुनाव से पहले, हम आशा करते हैं कि राजनीतिक दलों को समाज के प्रति जवाबदेह बनाने में, अन्य संगठनों के लिए भी इस अपील पत्र के मुद्दे एक लोकतांत्रिक उपकरण के रूप में काम करें।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)
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