नई दिल्ली। अमेरिकी चुनाव में भारतीय मूल की कमला हैरिस डेमोक्रैटिक पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की प्रत्याशी होंगी। पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिदेन ने कल इसकी घोषणा की। बहुत दिनों से इस बात को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि आखिर डेमोक्रैटिक पार्टी का उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार कौन होगा।
हैरिस का नामांकन भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने एक दूसरी भारतीय मूल की महिला और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की सदस्य प्रमिला जयपाल का उस समय साथ दिया था जब कश्मीर के मसले पर जयपाल द्वारा भारत सरकार की आलोचना करने के चलते पिछली दिसंबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर के उनसे और कांग्रेस के दूसरे सदस्यों से मुलाकात करने से इंकार कर दिया था। उन्होंने जयशंकर के इस फैसले की आलोचना की थी।
एक दूसरे मौके पर जब अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले के बाद उनसे कश्मीर की स्थिति पर टिप्पणी पूछी गयी तो उन्होंने कहा था कि ‘हम देख रहे हैं’।
उन्होंने कई मौकों पर अपनी मां का जिक्र किया है खास कर सीनेटर के तौर पर पिछले चार सालों के दौरान। और यहां तक कि इंदिरा गांधी को भी एक मजबूत नेता के तौर पर पेश करती रही हैं। वह अमेरिका में अप्रवासियों के पक्ष में बोलती रही हैं। ट्रम्प के मुस्लिम अप्रवासियों पर लगाए गए प्रतिबंध का उन्होंने विरोध किया। इसके साथ ही महिला अप्रवासियों के पक्ष में भी वह आवाज उठाती रही हैं। खासकर उन महिला अप्रवासियों की एच-4 वीसा के तहत नौकरी के लिए जिनके पति एच-1बी वीजा होल्डर हैं।
इसके अलावा वह सीनेट के भीतर चीन में मानवाधिकारों के हनन के मसले को भी उठाती रही हैं।खासकर यूइगर्स के मसले को।
हैरिस जिनकी मां भारतीय रही हैं, की पैदाइश और पालन-पोषण अमेरिका में हुआ है। उपराष्ट्रपति पद पर उनका नामांकन अमेरिकी चुनावों में न केवल किसी दूसरी रंग की महिला के लिए ऊंचे पद का रास्ता खोला है बल्कि इसके जरिये उन्होंने खुद को डेमोक्रैटिक पार्टी की उच्च श्रेणी में स्थापित कर लिया है।
लेकिन भारत के लिए उनकी प्रासंगिकता केवल उनकी भारतीय जड़ों के चलते नहीं है। हालांकि सीनेट में पिछले चार सालों में वह अपनी भारतीय विरासत को लेकर काफिर मुखर रही हैं।
जयशंकर-जयपाल घटना
दिसंबर, 2019 में जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर यूएस हाउस की विदेश मामलों की समिति से मिलने वाले थे जिसकी भारतीय मूल की अमेरिकी कांग्रेस सदस्य प्रमिला जयपाल भी सदस्य थीं, तो उन्होंने कमेटी की चेयरपर्सन इलियट एंगेल के सामने यह शर्त रख दी कि जब तक जयपाल को कमेटी से हटाया नहीं जाता वह पैनल से मुलाकात नहीं करेंगे। एंगेल ने जयशंकर की शर्त मानने से इंकार कर दिया और इस तरह से आखिरी मौके पर तय बैठक रद्द कर दी गयी।
उस दौरान हैरिस ने अपनी सहयोगी के पक्ष में एक ट्वीट जारी किया जिसमें लिखा गया था कि “यह किसी भी विदेशी सरकार के लिए गलत है कि वह बताए कैपिटल हिल में होने वाली बैठक में किन सदस्यों को भाग लेने की इजाजत होगी।” अमेरिकी सीनेट में भारतीय मूल की पहली सीनेटर हैरिस ने जयपाल से कहा था कि वह उनके साथ खड़ी हैं। उन्होंने कहा था कि “मैं इस बात से प्रसन्न हूं कि उसके सहयोगियों ने भी सदन में ऐसा किया।”
अपनी मातृ पक्ष से भारत के साथ जुड़ाव के मसले पर उन्होंने कहा कि “मैं एक कठिन, पथ प्रदर्शक और अभूतपूर्व विरासत की प्रतिनिधि हूं। मेरी नानी भारत के गांवों में जाकर गरीब महिलाओं को बच्चा पैदा करने पर नियंत्रण के बारे में बताती थीं। मेरी मां 19 साल की उम्र में पढ़ाई करने के लिए अमेरिका आयी थीं और उन्होंने यूसी बर्कले यूनिवर्सिटी में एनडोक्रिनोलॉजी में प्रवेश लिया था। और इस कड़ी में ब्रेस्ट कैंसर की अगुआ रिसर्चर बनीं।”
अपने कई भाषणों में वह अपनी मां का जिक्र करती रही हैं। 3 जुलाई, 2017 को एक समारोह में जब 41 बच्चों और युवकों को अमेरिकी नागरिकता की शपथ दिलायी जा रही थी तो उन्होंने कहा कि “इस समूह को देखकर मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकती बल्कि उस एक नौजवान महिला के बारे में सोच रही हूं जो तकरीबन तुम लोगों की ही उम्र की रही होगी।
वह दक्षिण भारत के चेन्नई में पैदा हुई थी, जहां वह बेहद प्रतिभाशाली गायिका और अनियतकालीन छात्रा थी। और इस युवा महिला ने वैज्ञानिक होने का सपना देखा। वह दुनिया के चोटी के विश्वविद्यालयों में से एक बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में पढ़ना चाहती थी। वह केवल 19 साल की थी लेकिन उसके पिता ने उसे आधी दुनिया का चक्कर काटने की इस सहमति से इजाजत दी थी कि जब वह अपने स्कूल की पढ़ाई खत्म कर लेगी तो घर वापस लौट आएगी और परंपरागत भारतीय तरीके से शादी करेगी।”
उन्होंने कहा कि “लेकिन बर्कले में इस महिला की एक युवक से मुलाकात हुई जो खुद एक अप्रवासी था। जमाइका का एक अर्थशास्त्र का टॉपर। और इसलिए परंपरागत शादी के बजाय उसने हजारों साल की परंपरा के विरोध में जाकर प्रेम विवाह करने का फैसला किया। वह महिला मेरी मां थी, श्यामला गोपालन। यह बेहद कड़ा और बहादुराना फैसला था जिसे उन्होंने लिया और जो प्यार और संभावनाओं से भरा था।”
हालांकि उन्हें एक मौके पर सिख समुदाय के लोगों की आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। जुलाई, 2019 में सिख एक्टिविस्टों के एक समूह ने आनलाइन याचिका की शुरुआत कर उनसे क्षमा मांगने की मांग की थी। क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर 2011 की उस भेदभाव पूर्ण नीति का समर्थन किया था जिसमें जेलों के गार्डों को दाढ़ी रखने पर रोक लगा दी गयी थी। हालांकि मेडिकल कारणों से अपवाद स्वरूप इसमें छूट भी दी गयी थी।
(इंडियन एक्सप्रेस से इनपुट लिए गए हैं।)