सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा रद्द

Estimated read time 1 min read

उच्चतम न्यायालय की चेतावनी के बाद उत्तर प्रदेश में इस साल की कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में योगी सरकार को एक दिन का अल्टीमेटम देकर इस बारे में फैसला करने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अगर सरकार ने फैसला नहीं किया तो कोर्ट आदेश जारी करेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने अब कहा है कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए सरकार ने कांवड़ यात्रा को रद्द करने का फैसला किया है।

गौरतलब है कि शुक्रवार को ही उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा की अनुमति को लेकर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई थी। सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने यूपी सरकार से कहा था कि या तो वह सांकेतिक ‘कांवड़ यात्रा’ आयोजित करने पर पुनर्विचार करे या हम आदेश पारित करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को सोमवार तक का समय दिया था।

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस रोहिंगटन एफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा था कि महामारी देश के सभी नागरिकों को प्रभावित करती है, शत-प्रतिशत शारीरिक यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती। प्रथम दृष्ट्या हमारा विचार है कि यह प्रत्येक नागरिक से संबंधित मामला है और धार्मिक सहित अन्य सभी भावनाएं नागरिकों के जीवन के अधिकार के अधीन हैं। पीठ ने यूपी सरकार को सोमवार तक अपना विचार रखने का समय दिया है।

पीठ ने कहा कि योगी सरकार की ओर से शत-प्रतिशत फिजिकल यात्रा की अनुमति उचित नहीं है। न्यायमूर्ति ने कहा कि अधिकारियों को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए कि क्या फिजिकल कांवड़ यात्रा को आयोजित किया जाएगा अन्यथा अदालत इस मामले में आदेश पारित करेगी।

पीठ ने कहा कि हम पहली नजर में मानते हैं कि यह हर नागरिक से जुड़ा मामला है और धार्मिक सहित अन्य सभी भावनाएं नागरिकों के जीवन के अधिकार के अधीन हैं। पीठ ने यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन से कहा कि कोविड महामारी और तीसरी लहर का डर है, जो सभी भारतीयों पर हावी है। क्या प्राधिकरण धार्मिक कारणों से यात्रा की अनुमति देने पर पुनर्विचार करेगा?जस्टिस नरीमन ने कहाथा कि यूपी राज्य इसके साथ आगे नहीं बढ़ सकता। इस पर वैद्यनाथन ने जवाब दिया था कि हमने यूपी सरकार से हलफनामा जमा कर दिया है। हम सिर्फ एक प्रतीकात्मक यात्रा चाहते हैं। उन्होंने कहा था कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इस पर विचार-विमर्श किया और कहा कि अगर कोई धार्मिक कारणों से यात्रा करना चाहता है, तो उन्हें अनुमति लेनी चाहिए। आरटी-पीसीआर रिपोर्ट नकारात्मक होनी चाहिए और पूरी तरह से टीका लगाया जाना चाहिए।

जस्टिस नरीमन ने कहा था कि हम आपको फिजिकल रूप से यात्रा करने पर विचार करने का एक और अवसर दे सकते हैं या फिर हम एक आदेश पारित करते हैं। जस्टिस नरीमन ने कहा कि हम सभी भारतीय हैं और यह स्वत: संज्ञान लिया गया है क्योंकि अनुच्छेद 21 हम सभी पर लागू होता है। या तो आप इस पर पुनर्विचार करें या हम आदेश देंगे।

वैद्यनाथन ने कहा था कि अधिकारियों को अवगत कराया जाएगा और सोमवार सुबह तक अतिरिक्त हलफनामा पेश किया जाएगा कि क्या इन शर्तों के बीच फिजिकल यात्रा आयोजित करने पर पुनर्विचार किया जा सकता है।

14 जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने चल रहे कोविड महामारी के बीच कांवड़ यात्रा की अनुमति देने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर स्वत: संज्ञान लिया था।

यूपी सरकार ने पहले कांवड़ यात्रा की अनुमति दे दी थी। फिर उच्चतम न्यायालय ने सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का मौका दिया था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी और डीजीपी मुकुल गोयल कांवड़ा संघों से चर्चा कर रहे थे। अब कांवड़ा यात्रा को रद्द करने का फैसला लिया गया है। अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने ये जानकारी दी है।

गौरतलब है कि पिछले साल कांवड़ संघों से सरकार ने चर्चा के बाद खुद कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया था। इस साल भी सरकार ने कांवड़ संघों से चर्चा करने के बाद फैसला लिया है। हालांकि यूपी सरकार इस बार कोरोना प्रोटोकॉल के साथ कांवड़ यात्रा निकालना चाहती थी। इस बीच उत्तराखंड सरकार कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी। साथ ही बाहर से आने वाले कांवड़ियों को प्रवेश देने से इंकार कर दिया।

इस बार उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी थी। साथ ही बीते दिन राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने भी राज्य में कांवड़ यात्रा को बैन कर दिया। यात्रा पर बिहार, उड़ीसा, झारखंड में भी रोक लगाई जा चुकी है।

उच्चतम न्यायालय में अब सोमवार को फिर से मामले की सुनवाई होनी है, जिसमें राज्य सरकार सावन महीने में कांवड़ यात्रा को रद्द किए जाने की जानकारी देगी। श्रद्धालुओं को सावन के महीने में गंगाजल मुहैया कराने की योजना को लेकर भी सरकार कोर्ट में प्लान बता सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author