Saturday, April 20, 2024

बंगाल चुनाव में कोविड वैक्सीन बन रहा है मुद्दा

बंगाल में पांच चरणों का चुनाव निपट चुका है और तीन चरणों का चुनाव होना बाकी है। उनमें से छठे चरण का चुनाव 22 अप्रैल को पूरा हो जाएगा। इस तरह इन तीन चरणों में कुल 114 सीटों के लिए मतदान होगा। इधर 180 सीटों के लिए चुनावी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके अलावा कोरोना के कारण दो उम्मीदवारों की मौत हो जाने से इन दो सीटों पर चुनाव बाद में कराए जाएंगे। चुनाव के छठे चरण में कोविड वैक्सीन का संकट लोगों के सिर पर चढ़कर बोलने लगा है। क्या इसका असर भी मतदान पर पड़ेगा?

मतदान के लिए लोग सुबह सात बजे कतार में लग जाते हैं, लेकिन कोविड वैक्सीन के लिए सुबह चार बजे से ही कतार में लोगों को लगना पड़ रहा है। अगर भीड़ ज्यादा हो तो लोग वापस आकर मतदान की कतार में लग सकते हैं। दूसरी तरफ कोविड वैक्सीन के लिए लगने वाली कतार में इसकी गुंजाइश नहीं है, क्योंकि यहां तो सुबह चार बजे से कतार में लगने के बाद भी वैक्सीन लग जाएगी इसकी गारंटी नहीं है। अधिकांश वैक्सीनेशन केंद्रों पर नो वैक्सीन के बोर्ड लगे हैं। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि पहली मई से 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी।

मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी का सवाल है कि वैक्सीन है कहां जो लगाई जाएगी। ममता बनर्जी ने इसे बाकी तीन चरणों के लिए चुनावी मुद्दा बना दिया है और सवालों की झड़ी लगा दी है। उनका सवाल है कि जब पश्चिम बंगाल ने मुफ्त वैक्सीन लगाने के लिए वैक्सीन का आयात करने की अनुमति मांगी थी तो केंद्र सरकार ने इसे खारिज कर दिया था। लिहाजा कोविड के संक्रमण के दूसरे दौर में वैक्सीन का संकट केंद्र सरकार की नाकाम प्रबंधन का नमूना है और इसके लिए मोदी अकेले जिम्मेदार है।

दूसरी तरफ कोविड के मौजूदा मरीजों का विश्लेषण प्रधानमंत्री की उस नीति को भी खारिज करता है, जिसमें 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को पहले चरण में वैक्सीन लगाने की बात कही गई थी। इस दौर में कोविड के मरीजों में 70 से 90 फ़ीसदी ऐसे हैं, जिनकी उम्र 50 साल से कम है। इतना ही नहीं बच्चे भी कोविड पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। इस सिलसिले में मशहूर फिल्म अभिनेत्री समीरा रेड्डी के दो बच्चों का हवाला दिया जा सकता है। इतना ही नहीं डॉक्टरों के मुताबिक जिन लोगों ने वैक्सीन का एक डोज लिया है और पॉजिटिव पाए जाते हैं तो उनकी स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती है। इस तरह के मरीजों को जनरल वार्ड में ही रखा जा रहा है। यानी कोविड की वैक्सीन लगी हो तो स्थिति गंभीर होने का खतरा कम हो जाता है। अगर एक बड़ी आबादी को वैक्सीन लगा दी गई होती तो मौजूदा स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।

मोदी जी कोविड वैक्सीन के सवाल पर बैकफुट पर आ गए हैं। इतना ही नहीं कोविड वैक्सीन की कीमत के सवाल ने उन्हें और मुश्किल में डाल दिया है। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार को कॉविड वैक्सीन अभी तक डेढ़ सौ रुपये की दर से मिल रही है लेकिन राज्य सरकारों को इसके लिए चार सौ रुपये का भुगतान करना पड़ेगा। कहां तो तय था कि सभी लोगों को मुफ्त वैक्सीन लगाई जाएगी और अब राज्य सरकारों को इस खर्च को वहन करना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा था कि एक मई के बाद वैक्सीन की कीमत बाजार के आधार पर तय होगी। अगर बाजार ही कीमत तय करेगा तो लोग कहां जाएंगे।

राहुल गांधी ने मोदी जी से सवाल किया था कि सरकार वैक्सीन का आयात क्यों नहीं कर रही है। इस सिलसिले में उन्होंने रशियन वैक्सीन स्पूतनिक का हवाला भी दिया था। सवाल था कि केंद्र सरकार ने अन्य देशों की तरह वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के साथ शुरू में ही वैक्सीन आपूर्ति के लिए करार क्यों नहीं किया था। इसके जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल किया था कि क्या राहुल गांधी दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए प्रचार करने लगे हैं। इसका जवाब मोदी जी ने तीन दिनों बाद स्पूतनिक के आयात पर लगी रोक को हटा कर दिया था। इतना ही नहीं देश की विभिन्न हाई कोर्ट भी सरकार को ऑक्सीजन की कमी के सवाल पर कठघरे में खड़ा करने लगे हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह ऑक्सीजन की आपूर्ति करें, क्योंकि ऑक्सीजन के अभाव में लोगों को मरने नहीं दिया जा सकता है। यह सच भी है अखबारों में आ रही खबरों के मुताबिक ऑक्सीजन के अभाव में कोरोना के मरीज मर रहे हैं। दूसरा है कारोना के इलाज के लिए अति आवश्यक रेमेडिसविर का संकट भी बना हुआ है। कुल मिलाकर  कोविड संकट के इस दौर में ऑक्सीजन और वैक्सीन की कमी ने केंद्र सरकार को बैंक फुट ला दिया है।

इसके अलावा बंगाल फतेह पर निकले मोदी और शाह को चुनावी रैलियों और सभाओं के मामले में भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। वाममोर्चा ने सबसे पहले घोषणा कर दी कि कोविड संक्रमण के इस दौर में वह बड़ी रैलियों और सभाओं का आयोजन नहीं करेगा। इसके बाद राहुल गांधी ने बंगाल के अपने सारे चुनावी कार्यक्रमों को रद्द कर दिया। भाजपा के नेताओं ने इसके जवाब में कहा था कि उनकी सभा में लोग ही कहां आते हैं। इसके बाद ममता बनर्जी ने बड़ी सभाएं रैलियां करने से इंकार कर दिया। कोलकाता हाई कोर्ट ने भी नेताओं को रैली और सभा के बारे में सोचने की अपील की थी। लिहाजा मोदी और शाह को मजबूरी में अपनी बंगाल फतेह के अभियान में काट छांट करनी पड़ी है।

कुल मिलाकर बंगाल के इन तीन चरणों के चुनाव में कोविड वैक्सीन का सवाल मतदाताओं के जेहन पर बना रहेगा। इसका असर कितना पड़ेगा कह नहीं सकते हैं। हां, अगर इवीएम में कोविड वैक्सीन का बटन लगा होता तो शायद सर्वाधिक मतदाता उसे ही दबाकर कहते, पहले वैक्सीन फिर वोट।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कोलकाता के रहने वाले हैं।)

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