Friday, June 9, 2023

ग्राउंड रिपोर्ट: आगरे की उजड़ती चमड़े की दुनिया!

यूपी में पहले चरण के चुनाव के लिए 10 फरवरी को मतदान किया जाएगा। जिसकी तैयारी जोरों-शोरों से चल रही है। पहले चरण में ही आगरा की सभी नौ सीटों पर मत डाला जाएगा। जिसके लिए लोगों में कहीं उत्साह है तो कहीं लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी। आगरा मुख्य रूप से दो उद्योगों के लिए जाना जाता है। एक पर्यटन है दूसरा लेदर (चमड़ा) के जूते। आप कभी अगर आगरा घूमने के लिए आए होंगे तो आपको घुमाने वाले ने यह ज़रूर कहा होगा कि यहां के लेदर के जूते बहुत मशहूर हैं। इसे ज़रूर लेकर जाएं। लेकिन आज यही उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है।

आगरा के कई घरों में यह काम चलता है। कई लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। कई घरों में छोटे-छोटे कारखाने हैं जहां से जूते तैयार होकर बड़े मालिकों के पास जाते हैं और वहां से मार्केट आते हैं। हमने कुछ घरों में जाकर लोगों से इस उद्योग में लगातार आती गिरावट और उनकी स्थिति के बारे में पूछा।

एक गांव में जब मैं गई तो घर का दरवाजा खुला हुआ था। जिसमें दो खाट बिछी हुई थी। उन पर मां और बेटी बैठकर जूते का काम कर रही थीं। दोनों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बात की। बेटी खाट पर बैठकर जूते को सूई धागे के साथ डिजाइन दे रही थी। वह कहती है “मेरी पढ़ने की उम्र है। मैं पढ़ती भी थी। लेकिन घर की स्थिति ऐसी है क्या करें। काम कुछ मिल नहीं रहा है।

इसलिए मैं और मम्मी यह काम करते हैं ताकि घर चल सके”। वह बताती है कि “एक जोड़ी जूते को डिजाइन करने पर उसे 6 रुपए मिलते हैं”। वहीं दूसरी ओर से मां भी कहना शुरू कर देती है, “क्या करें कोई काम धंधा तो ढंग से चल नहीं रहा है। जब भी कुछ काम आगे बढ़ता है तो लॉकडाउन की बात कह दी जाती है। क्या करें इस कोरोना ने तो पूरा घर बर्बाद कर दिया है। जो पैसे रखे थे तो वह पति की बीमारी में लगा दिए हैं। अब भाड़े के घर में धक्के खा रहे हैं। पहले जूते का काम अच्छा चलता था तो इतनी दिक्कत नहीं होती थी। अब तो बस दाल-रोटी ही चल रही है”।

shoe agara3

इससे आगे निकली तो मुझे एक अच्छी सी बिल्डिंग दिखी मुझे किसी ने बताया कि यहां जूते का काम होता है। इस बिल्डिंग के आस-पास और भी जगहों में काम चल रहा था। लेकिन यह तीन मंजिला बिल्डिंग बड़ी सुंदर थी। मुझे लगा किसी अच्छे मालिक का कारखाना है। जैसे ही मैं अंदर गई उसमें तीन व्यक्ति एक बल्ब जलाकर काम कर रहे थे। एक मशीन पर बैठा सिलाई कर रहा था। दो अन्य लोग जूते की कटिंग कर रहे थे।

यहां जूता पूरा तैयार नहीं होता है। बल्कि जूते के कुछ हिस्से के काम को किसी कारखाने से लाकर ये तीन लोग करते हैं। मशीन पर बैठे सज्जन तेजी से मशीन चलाते हैं और कहते हैं कि यह मकान हमारा नहीं है। यह तो हमने किराए पर लिया है। क्या करें मकान तो अपना था। लेकिन कोरोना और कुछ सरकार की मेहरबनियों के कारण सब बेचना पड़ा। आज हालात ऐसे हैं कि सप्ताह में दो दिन काम मिलता है चार दिन मिलता नहीं है। ऐसे में घर चलाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है।

दूसरी ओर से भोलू जूते के ऊपर के हिस्से को फिनिशिंग देते हुए कहते हैं कि क्या बताएं आपको पहले नोटबंदी फिर जीएसटी और अब कोरोना तो हम लोगों को ले डूबा है। मजदूर लोग हैं हम लोग। कारखाने से काम लाते हैं और उसे करके देते हैं। लेकिन जब मालिक के पास ही काम नहीं है तो वह हमें कहां से लाकर देगा। कोरोना के बाद से एक जोड़ी जूते के पीछे मजदूरी भी कम हो गई है।

स्थिति यह है कि लोगों के पास काम नहीं है इसलिए लोग कम में भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। मॉर्केट में कम्पटीशन इतना ज्यादा है कि मालिक से अधिक पैसों की मांग करने पर वह कहते हैं कि फला आदमी तो इतना में कर रहा है। इसलिए हमारी मजबूरी हो गई है कि हम इतना में ही काम करें नहीं तो भूखे रहने के दिन आ जाएंगे।

shoe agara2

लेदर के जूते के कारोबार में लगातार आती गिरावट के बारे में भोलू कहते हैं कि इसका एक कारण यह है कि अब यह उद्योग अन्य शहरों में भी विकसित हो गया है। जयपुर और लुधियाना में यह उद्योग अच्छे तरीके से बढ़ रहा है। आगरा के अच्छे मजदूर जो इस उद्योग से जुड़े थे। वह दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में चले गए हैं। जिसके कारण आगरा में इस उद्योग में गिरावट आई है।

आगरा की पहचान ताजमहल है। इसलिए मैंने ताजमहल के पास घूमते हुए पाया कि ताजगंज में भी जूते के छोटे कारखाने हैं। जहां से जूते तैयार होकर मालिक के पास जाते हैं या फिर लोकल मार्केट में। मैंने एक जूता कारोबारी से बात करने की कोशिश की। लेकिन उसने यह कहते हुए बात करने से मना कर दिया की वह व्यस्त है। वह जूतों को पैक करके मॉर्केट में पहुंचा रहा था।

इस जगह पर दो गलियां छोड़ने के बाद एक और घर मिला जहां जूते का काम चल रहा था। एक तरीके का छोटा सा कारखाना था। जहां कुछ स्टॉफ के लोग काम कर रहे थे। कारखाने के मालिक लोकेश ने बात करते हुए कहा कि फिलहाल वह इस कारोबार से सिर्फ तीन सालों से जुड़े हैं। लेकिन इससे पहले उनके पिताजी यह काम देखते थे।

shoe new

वह बताते हैं कि इन तीन सालों में कमाई में एक लंबा अंतर देखने को मिला है। लगभग 75 प्रतिशत काम खत्म हो चुका है। 25 प्रतिशत काम से सिर्फ जिंदगी चल रही है। जीएसटी और लॉकडाउन के कारण काम पर बहुत बुरा असर पड़ा है। सरकार ने 5 प्रतिशत से सीधे 12 प्रतिशत जीएसटी बढ़ा दी है। इसका बुरा असर पड़ा धंधे पर। उसके बाद लॉकडाउन के दौरान साढ़े सात महीने काम पूरी तरह बंद रहा। इस समय ने धंधे की पूरी कमर ही तोड़ दी।

वह बताते हैं कि पहले उनके पास 32 व्यक्ति काम करते थे। अब सिर्फ 8 रह गए हैं। वह कहते हैं कि जब काम ही नहीं है तो स्टॉफ से क्या काम कराएं। बड़े-बड़े पूंजीपतियों की ही स्थिति ठीक है। चूंकि जीएसटी के कारण सब कुछ महंगा हो गया है तो मालिक हमें मेटेरियल बढ़े हुए दाम पर देते हैं। लेकिन जब हम उन्हें जूता तैयार करके देते हैं तो वह हमसे पुराने दाम पर लेते हैं। जिसका नतीजा यह है कि आज एक जोड़ी पर हमें 15 रुपए का नुकसान उठाना पड़ा रहा है। मान लीजिए कि हम सिर्फ 5 रुपए जोड़ी पर ही धंधा कर रहे हैं।

shoe agara4
नईम।

वहां से चलते-चलते एक जगह पर कुछ लोग आग सेक रहे थे। ठंड बहुत थी इसलिए मैंने सोचा मैं भी आग सेक लूं। तभी वहां एक शख्स ने बताया कि वह न्यू डिस्टेंशन फुटवियर में पिछले 25 साल से काम रहे थे। नईम ने बताया कि उनकी कंपनी के पास काम न होने के कारण अब स्टॉफ को निकाल दिया गया है। उन्हें भी पिछले 5 सालों से बैठा दिया गया है। वह बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान तो कंपनी के पास पहले के कुछ ऑर्डर थे। तो काम चलता गया। लेकिन धीरे-धीरे विदेशों से ऑर्डर आना बंद हो गए तो काम भी बंद हो गया। जिसका भुगतान अब मजदूरों को झेलना पड़ रहा है।

यह थी आगरा के जूते कारोबार से जुड़े लोगों की कहानी। कैसे जीएसटी नोटबंदी और लॉकडाउन ने लोगों की जिदंगी को अर्श से फर्श पर ला दिया है।

(आगरा से प्रीति आज़ाद की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

इंटरनेशनल रेफरी ने भी महिला पहलवानों के आरोपों की पुष्टि की

नई दिल्ली। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक और सत्यव्रत...