भारत सरकार के बेहद प्रतिष्ठित सार्वजनिक जीवन बीमा निगम (एलआईसी) पर आरोप है कि उसके द्वारा आज भी अडानी के स्टॉक खरीदे जा रहे हैं, और इस प्रकार देश के करोड़ों आम बीमाधारकों के बहुमूल्य निवेश को दांव पर लगाकर अडानी को डूबने से बचाया जा रहा है।
यह खबर देश के सभी वित्तीय समाचारपत्रों में प्रमुखता से छपी है, जिसका कांग्रेस पार्टी ने संज्ञान लिया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाते हुए मंगलवार को अपने बयान में कहा है कि अडानी समूह को बचाने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का इस्तेमाल किया जा रहा है। अपने आरोप में खड़गे की ओर से अडानी के शेयरों में जनवरी से अब तक 60% की गिरावट के बावजूद एलआईसी द्वारा 3.75 लाख करोड़ शेयर्स की खरीद पर सवाल खड़े किये गये हैं।
खड़गे ने अपने ट्वीट में कहा है कि इस नए खुलासे के बाद संयुक्त संसदीय जांच (जेपीसी) अनिवार्य हो जाती है। अपने ट्वीट में खड़गे ने कहा है, “जनवरी से लेकर मार्च 2023 के बीच में एलआईसी ने अडानी समूह के अतिरिक्त 3.75 लाख शेयर्स खरीदे! देश में करोड़ों लोगों ने अपने जीवनभर की जमापूंजी गाढ़े वक्त के लिए एलआईसी में निवेश कर रखी है। लेकिन मोदी जी ने उस पैसे को क्यों अडानी को लाभ पहुंचाने के लिए खर्च कर दिया, जो आम लोगों को मुसीबत के समय में बचा सकता था? इसका एक ही जवाब =जेपीसी।”
वहीं कांग्रेस महासचिव और मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने एक बयान में एलआईसी की अडानी समूह में बढ़ती भागीदारी का चौंकाने वाला ब्यौरा दिया है। जयराम रमेश के अनुसार जून 2021 तक अडानी समूह में एलआईसी की हिस्सेदारी जहां 1.32% तक सीमित थी, वह दिसंबर 2022 तक बढ़कर 4.23% हो गई थी। लेकिन 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद जब अडानी समूह पर “गंभीर सवाल” उठने शुरू हो गए, उसके बाद भी एलआईसी का अडानी समूह में निवेश बढ़ना गंभीर सवाल खड़े करता है। अब पता चल रहा है कि अडानी ग्रुप में एलआईसी का निवेश बढ़कर 31 मार्च 2023 तक 4.26% हो गया है।”
उन्होंने आरोप लगाया है कि “यह साफ़-साफ़ दिखाता है कि पीएम के खास व्यावसायिक समूह को मुसीबत से निकालने के लिए एलआईसी को उसके बीमाधारकों के धन को लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।”
एलआईसी की ओर से इस बयान पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है। बता दें कि अडानी मसले पर एलआईसी की ओर से आखिरी टिप्पणी 30 जनवरी को आई थी, जिसमें कहा गया था कि अडानी समूह में ग्रुप की ओर से मात्र 36,474.78 करोड़ रूपये का निवेश किया गया है, जोकि कंपनी के कुल निवेश के एक प्रतिशत से भी कम है।
हालांकि एलआईसी के इस तर्क को तत्काल कई आर्थिक विशेषज्ञों के द्वारा यह कहकर सिरे से खारिज कर दिया गया था कि एलआईसी के द्वारा घोषित रूप से निवेश सरकारी उपक्रमों में लगा करता आ रहा था। ऐसे में इस प्रकार से महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव के बारे में करोड़ों बीमाधारकों को अंधेरे में रखकर कैसे किया गया? उससे भी बड़ी बात तो यह है कि यदि निजी कॉर्पोरेट समूह में निवेश ही करना है तो देश में हजारों-हजार कंपनियां पंजीकृत हैं। फिर अडानी समूह में इतने बड़े निवेश को किस आधार पर किया गया है?
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों से अडानी समूह के शेयरों में कमोबेश तेजी का रुख बना हुआ है। राहुल गांधी ने 20,000 करोड़ रूपये अडानी समूह के पास कहां से आये, के जवाब में अडानी समूह की ओर से लिखित जवाब दे दिया गया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि विपक्ष के आरोपों के बारे में लिखित जवाब देकर छुट्टी पा ली गई है। इस कॉर्पोरेट समूह को बचाने के लिए परोक्ष-अपरोक्ष रूप से मदद का सिलसिला जारी है। हाल ही में ईपीएफओ के जरिये पिछले छह माह से अडानी समूह में निवेश की खबर समाचार पत्रों में आ चुकी है। अब एलआईसी के द्वारा अपने जोखिम को कम करने के बजाय और निवेश की खबर से विपक्षी दलों के आरोपों को पुष्टि ही मिलती है।
शेयर बाजार में तेजी और गिरावट की रफ्तार पिछले कुछ हफ्तों में इतनी अधिक हो चुकी है कि बड़ी संख्या में नए शेयरधारकों ने भी अडानी समूह के शेयरों में बड़ी मात्रा में निवेश किया है। इसने भी अडानी समूह को बड़ी राहत पहुंचाई है। खबर है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों के द्वारा अडानी समूह से ऋण वापसी के बावजूद लगभग 11 लाख नए शेयरधारकों ने कंपनी में अपना धन लगाया है। उन्हें उम्मीद है कि 60% कम मूल्य के अडानी के शेयर उन्हें जल्द ही बड़ा मुनाफा दिला सकते हैं। सरकार का मजबूती के साथ अडानी के बचाव में आना इस फैसले के पीछे एक बड़ी वजह हो सकता है। कुल 22.50 लाख शेयरधारकों में से नए शेयरधारकों ने हाल ही में करीब 1.8 अरब डॉलर का निवेश किया है।
एलआईसी के बारे में आया यह चौंकाने वाला खुलासा एनसीपी के नेता शरद पवार के लिए भी सांसत में डालने वाला है, जिन्होंने हाल ही में अडानी के चैनल एनडीटीवी में अडानी विवाद पर शेष विपक्षी दलों से इतर राय पेश की थी, और जेपीसी जांच को निरर्थक कवायद बताकर राहुल गांधी के नेतृत्व में उभर रहे विपक्षी एकता की मुहिम पर पलीता लगाने की कोशिश की।
लेकिन एनसीपी को इस खुलासे के बाद अपने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में खासी मुसीबत पेश होने वाली है। वैसे भी विपक्षी दलों और अपने आधार क्षेत्र में अडानी के समर्थन और मोदी सरकार के बचाव की शरद पवार की कोशिश ने भारी नाराजगी को जन्म दिया है। इसी के चलते अगले ही दिन शरद पवार ने पाला बदलकर विपक्ष एक साथ खुद को खड़े रहने की बात दुहराई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल विपक्ष के सामने अभी यह बना हुआ है कि बोफोर्स घोटाले से भी कई गुना बड़े इस मुद्दे को प्रेस कांफ्रेंस और ट्वीट के माध्यम से आम लोगों के बीच ले जाने के बजाय देश के कोने-कोने तक ले जाने के लिए वह कब उतरती है?
( रविंद्र पटवाल जनचौक के मैनेजिंग एडिटर हैं।)