Saturday, April 20, 2024

नफरत और घृणा की संघी भट्टी पर तैयार हुआ ‘लव जिहाद’ का नया भाजपाई विष

आरएसएस, बीजेपी और उनके समर्थित तमाम कट्टरपंथी हिंदूवादी संगठनों में मुस्लिम और दलित विरोधी विचारधारा और नफ़रत किसी से छिपी नहीं है और समय-समय पर इसके कई उदाहरण भी हमारे सामने आते रहे हैं। मुसलमानों से नफ़रत और इस्लाम के खिलाफ़ दुष्प्रचार ये संगठन समय-समय पर करते रहते हैं। कोरोना संक्रमण के फैलाव के लिए तब्लीगी जमात के बारे में बीजेपी समर्थक मीडिया ने जो झूठ और नफ़रत फैलाया था उस पर पहले बॉम्बे हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीमकोर्ट ने भी मोदी सरकार को जमकर लताड़ा है। इसके बाद भी बीजेपी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा है।

अब जब कोरोना महामारी, धराशाई अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और महंगाई से जनता बेहाल है तो बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कथित ‘लव जिहाद’ की चिंता सता रही है और वे इस पर सख्त कानून लाने की तैयारी में लग गये हैं।

हालांकि राज्यों के पास कानून बनाने का पूरा अधिकार है किंतु सवाल है कि इस वक्त जब देश में भुखमरी, बेरोजगारी और कोरोना महामारी की समस्या हावी है ऐसे में बीजेपी मुख्यमंत्रियों को ‘लव जिहाद’ कानून क्यों सबसे जरुरी विषय लग रहा है?

कथित ‘लव जिहाद’ कानून के बारे में प्रतिक्रिया देते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि, ‘लव जिहाद’ बीजेपी का देश को बांटने के लिए बनाया गया एक शब्द है। गहलोत  ने ट्वीट में कहा कि शादी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है, इसे रोकने के लिए कानून लाना पूरी तरह असंवैधानिक है। वहीं, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री असलम शेख ने भी कहा कि उनकी सरकार अपना काम कुशलता से कर रही है और उसे ऐसे कानून लाने की जरूरत नहीं है। 

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर पांच साल तथा सामूहिक धर्मांतरण कराने के मामले में 10 साल तक की सजा का प्रावधान किए जाने की तैयारी है। यह अपराध गैरजमानती होगा।

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह सरकार ने भी उत्तर प्रदेश के स्तर पर ही धर्मांतरण विवाह पर कानून बनाने की बात कही है। इसके बाद हरियाणा सरकार ने भी इस पर कानून लाने की बात कही है। वहीं बीजेपी शासित असम और कर्नाटक में भी इस पर कानून लाने की तैयारी चल रही है।

बीजेपी शासित राज्यों द्वारा कथित ‘लव जिहाद’ पर प्रस्तावित कानून के सवाल पर मार्क्सवादी चिंतक और लेखक सुभाष गाताडे सवाल करते हुए कहते हैं –“ लव जिहाद का नारा – हिटलर के यहूदी विरोधी कदमों की गूंज है।

इतिहास गवाह है कि आर्यन नस्ल किस तरह सबसे सुप्रीम नस्ल है, इसे प्रमाणित करने के लिए हिटलर की अगुआई वाले जर्मनी में 30‘-40 के दशक में तरह-तरह के कदम बढ़ाये जाने लगे।

वह ऐसा कालखंड था जब अंतरनस्लीय अंतर्क्रिया रोकने के लिए तथा आर्यन किस तरह ‘मास्टर रेस’ हैं, इसे मजबूती दिलाने के लिए वर्ष 1933 के बाद नए-नए कानूनों को बनाया जाने लगा। अन्य तमाम बातों के अलावा इन कदमों का मकसद लड़कियों को अपने घरों में कैद /सीमित रखना था। लव जिहाद के नाम पर अदालतों ने किस तरह ऐसी घटनाओं को ही खरिज किया, इन सबके बावजूद सरकार की शरारतपूर्ण कार्रवाइयां चल रही हैं। इन कदमों का मजबूत विरोध जरूरी है।”

गौरतलब है कि साल 1933 में यहूदियों को सरकारी सेवा से हटाने के लिए नया कानून बना, यहूदियों को वकील बनने से मना किया गया; पब्लिक स्कूलों में यहूदी छात्रों की संख्या सीमित कर दी गयी। प्राकृतिक यहूदियों और “अवांछनीय तत्वों” की नागरिकता रद्द की गई; संपादकीय पदों से उन्हें प्रतिबंधित किया गया; ‘कोषेर’ (पशुओं के वध पर प्रतिबंध) कर दिया गया। फिर वर्ष 1934 में यहूदी छात्रों को दवा, दंत चिकित्सा, फार्मेसी और कानून की परीक्षा में बैठने से मना कर दिया गया; यहूदियों को सैन्य सेवा से बाहर कर दिया गया।

इस बारे में जब हमने जनकवि बल्ली सिंह चीमा से बात की तो उन्होंने कहा कि, प्रेम अपनी जगह पर है, इसमें धर्म/मजहब को शामिल करना गलत है। किन्तु देखना यह भी होगा कि प्रेम के नाम पर शादी के बाद यदि लड़की को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है तो वह प्रेम नहीं। कहीं न कहीं षड्यंत्र ही माना जायेगा।

इसी ‘लव जिहाद’ कानून पर जब हमने वरिष्ठ आर्थिक विशेषज्ञ, लेखक और IMPAR के प्रवक्ता मुशर्रफ़ अली से प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने कहा, “लव जिहाद और उसको रोकने के नाम पर क़ानून बनाना इसके पीछे जो कारण बताए जा रहे हैं वो नोटबन्दी की तरह ही बिल्कुल हैं। इसके पीछे जो असली वजह मुझे नज़र आती है उनमें से पहली भारत की जनता जिन समस्याओं से जूझ रही है उन समस्याओं को उसके ज़हन से हटाकर उस खाली जगह में मुसलमान को सबसे बड़ी समस्या बनाकर भर देना। यह प्रयोग काफ़ी समय से सफलता पूर्वक चल रहा है। दूसरी वजह आर्थिक गतिविधियों में सरकारी हस्तक्षेप में विश्वास करने वाली पुरानी आर्थिक नीति को बदलकर तेज़ी से मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था लागू किया जाना।

पुराने आर्थिक ढांचे को तेजी से ध्वस्त करने से जो जनता को तकलीफ़ उठानी पड़ रही है उससे उसका ध्यान हटाना दूसरा बड़ा कारण है। मुसलमानों का जिन तरीक़ों से भी दानवीकरण किया जा सके उसके अनेक लाभ वर्तमान सरकार को मिले हैं उनमें से एक वोटों का ध्रुवीकरण है तो लव जिहाद को रोकने के लिये क़ानून बनाकर चर्चा को मुसलमानों के इर्द गिर्द केंद्रित रखना है। और साम्प्रदायिक प्रचार से जो मतदाता तैयार किया गया है उसको इससे तसल्ली देना है कि भले ही तुमको रोज़गार नहीं मिल पा रहा है, महंगाई आसमान छूने लगी है तो क्या हुआ हम तुम्हारी महिलाओं की सुरक्षा के लिये तो प्रयासरत हैं।”

हिटलर ने क्या किया था जर्मनी में

न्यूरेम्बर्ग कानून (1935): इस कानून के तहत  यहूदियों को जर्मन या जर्मन-संबंधित रक्त” वाले व्यक्तियों के साथ विवाह करने या यौन संबंध बनाने से प्रतिबंधित किया गया। यह बदनाम कानून के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद 1935-36 में  यहूदियों के लिए पार्क, रेस्तरां और स्विमिंग पूल पर प्रतिबंध लगा दिया गया; विद्युत, ऑप्टिकल उपकरण, साइकिल, टाइपराइटर या रिकॉर्ड के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई; जर्मन स्कूलों और विश्वविद्यालयों से यहूदी छात्र हटाए गए; यहूदी शिक्षकों को सरकारी स्कूलों में प्रतिबंधित कर दिया गया।

इसी तरह से सत्ता में आने के बाद हिटलर ने 1938 में जर्मनी की संसद ने अपने देश में यहूदियों, रोमनों, अश्वेतों और विरोधियों के खिलाफ भेदभाव करने वाले कानूनों को पारित किया था। और कहा गया था कि ये कानून जर्मन रक्त शुद्धता और जर्मन सम्मान के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। 

साल 1939 में बहुत सारे यहूदियों को उनके घरों से निकाला गया; यहूदियों के रेडियो जब्त किये गए; यहूदियों को मुआवजे के बिना राज्य को सभी सोने, चांदी, हीरे और अन्य कीमती सामान सौंपने को कहा; यहूदियों के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया। फिर 1940 में यहूदियों के टेलीफोन जब्त; युद्ध के समय के कपड़े और राशन कार्ड बंद कर दिए गए।



साल 1941 में यहूदियों के लिए सार्वजनिक टेलीफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया; वे पालतू जानवर नहीं रख सकते थे; उन्हें देश छोड़ने से मना किया गया और 1942 में सभी यहूदियों के ऊनी वस्तुओं और फर कोट आदि जब्त किए गए; वे अंडे या दूध नहीं ले सकते थे।

बीजेपी और आरएसएस हमेशा इस जुगत में रहते हैं कि कैसे मुसलमानों में भय और असुरक्षा की भावना कायम की जा सके। बीते वर्ष मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून उसी योजना का ही हिस्सा था। वहीं एनआरसी और एनपीआर भी उसी योजना का ही हिस्सा है। इसके बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड  यानी देश में हर नागरिक के लिए एक समान कानून का होना। इसी कड़ी में ही इस लव जिहाद कानून को जोड़ कर देख रहे हैं कुछ विशेषज्ञ।

दिवाली से पहले ‘तनिष्क’ विज्ञापन विवाद सभी को याद है। इस विज्ञापन पर हिंदूवादी संगठनों के हंगामा और दबाव के बाद टाटा ने इस विज्ञापन को बंद कर दिया था।  

जबकि, तनिष्क की तरफ से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि ‘एकत्वम’ कैंपेन के पीछे विचार इस चुनौतीपूर्ण समय में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों, स्थानीय समुदाय और परिवारों को एक साथ लाकर जश्न मनाने के लिए प्रेरित करना था लेकिन इस फ़िल्म का जो मक़सद था उसके विपरीत, अलग और गंभीर प्रतिक्रियाएं आईं। हम जनता की भावनाओं के आहत होने से दुखी हैं और उनकी भावनाओं का आदर करते हुए और अपने कर्मचारी और भागीदारों की भलाई को ध्यान में रखते हुए इस विज्ञापन को वापस ले रहे हैं। ये विज्ञापन अलग-अलग समुदाय के शादीशुदा जोड़े से जुड़ा था और इसमें एक मुस्लिम परिवार में हिंदू बहू की गोद भराई की रस्म को दिखाया गया था।

जब इस संदर्भ में हमने इस विज्ञापन को तैयार करने वालों में से एक व्यक्ति से ‘लव जिहाद’ के प्रस्तावित कानून के बारे में प्रतिक्रिया लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि कंपनी की ओर से मनाही के कारण वह इस पर कुछ भी कह नहीं पायेंगे। किन्तु इस विज्ञापन को बनाने वालों का एक इन्टरव्यू अंग्रेजी दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स में 21 अक्तूबर को प्रकाशित हुआ था।

इस विज्ञापन को पलाश श्रोत्रिय ने लिखा था, पलाश ने इस इन्टरव्यू में कहा, यह बात ही मुझे अपने आप में मजाक लगता है, मेरे लिए यह समझना कठिन है कि अर्बन नक्सल या टुकड़े-टुकड़े गैंग या लव जिहाद जैसे विरोधाभाषी शब्दों का क्या तुक है?

वे आगे कहते हैं कि अलगाववादी या फिरकापरस्त ताकतें इस मुल्क में बड़े सुनियोजित तरीके से जनमानस के जेहन में ज़हर घोल रही हैं, ये नफ़रत हमारी ज़िंदगियों में गहरे रूप से दाखिल हो चुका है।

ये कुटिल व्यवस्था द्वारा इस्तेमाल किये गये ऐसे शब्द हमारे अवचेतन में इतना गहरे पैठ गये हैं कि एक औसत आदमी इस सियासी साजिश से पूरी तरह से अनभिज्ञ है।  

जहां प्रेम है, वहां ‘जिहाद’ कैसे हो सकता है? प्रेम के दुश्मन ही जिहाद की बात कर सकते हैं। दो वयस्क जब देश की सरकार चुनने के लिए मतदान कर सकते हैं तो अपनी पसंद से अपना जीवन साथी क्यों नहीं चुन सकते? संविधान में यह एक वयस्क नागरिक का मौलिक अधिकार है जिसे बीजेपी सरकार कुचलना चाहती है और नफ़रत और भय फैलाना चाहती है।

कुछ लोगों का मानना है कि दरअसल “यह कानून लड़कियों की आज़ादी छीन लेगा। उन्हें जो सोचना होगा अपने समुदाय और धर्म के भीतर रह कर सोचना होगा।”

इस संदर्भ में अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) द्वारा जारी वक्तव्य महत्वपूर्ण है, जिसे पढ़ा जाना चाहिए।

ऐपवा ने कहा है कि, “हिंदू महिलाओं के संविधान प्रदत अधिकारों को खत्म करना चाहती है भाजपा। नफ़रत रोकने के कानून की जगह प्रेम रोकने का कानून बना रही है भाजपा।”

ऐपवा का पूरा बयान इस प्रकार है:

कई भाजपा शासित राज्यों ने घोषणा किया है कि वे “लव जिहाद” के खिलाफ कानून बनाएंगे। केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी बिहार में ऐसे कानून की मांग की है। ऐपवा ऐसे किसी भी कानून का विरोध करती है क्योंकि ऐसा कानून हिन्दू महिलाओं की आज़ादी पर, जीवन के फैसले खुद लेने के उनके संवैधानिक अधिकार पर करारा हमला है। ऐसे कानून की अम्बेडकर के संविधान को मानने वाले भारत में कोई जगह नहीं है।

अभी तक देश और कई राज्यों के पुलिस तंत्र, जांच एजेंसी और अदालतों ने कहा है कि “लव जिहाद” नाम का कोई प्रकरण है ही नहीं। इसका कोई सबूत नहीं है कि मुस्लिम नौजवान हिन्दू महिलाओं का प्रेम के बहाने धर्म परिवर्तन की साजिश रच रहे हैं। सच तो यह है कि भारत का युवा वर्ग, जाति और धर्म के बंधन को तोड़कर प्रेम कर रहे हैं- और यह स्वागत योग्य है, देश हित में है। भाजपा के अनुसार, हिन्दू महिला किसी मुस्लिम पुरुष से प्रेम करे, तो इसे “लव जिहाद” माना जाएगा और इस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। कुल मिलाकर प्रेम के खिलाफ पितृसत्तात्मक हिंसा यानी “ऑनर क्राइम” को कानूनी हथियार सौंपा जा रहा है।

डॉ अम्बेडकर मनुवादी पितृसत्ता की ताकतों का मुकाबला करते हुए, हिन्दू कोड बिल पारित कराना चाहते थे जिसमें हिन्दू महिलाओं की बराबरी और आजादी के कई पहलू थे। दहेज और सती प्रथा के खिलाफ लंबी लड़ाई के बाद कानून बने। इन कानूनों को कमजोर करने और हिंदू महिलाओं के संविधान प्रदत अधिकारों को छीन लेने की भाजपाई साजिश है “लव जिहाद” के खिलाफ कानून। इसलिए आज हिन्दू लड़कियों और महिलाओं को मुस्लिम युवकों से नहीं बल्कि हिन्दुओं के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा से खतरा है। इतिहास गवाह है कि किसी भी धर्म के नाम पर देश चलाने वाली ताकतें महिलाओं के अधिकारों की दुश्मन होती हैं।

डॉ. बीआर आंबेडकर।

लव कभी जिहाद या युद्ध नहीं हो सकता। निकिता तोमर को मुस्लिम नौजवान ने स्टॉक किया और उसकी हत्या की- पर यह “लव जिहाद” नहीं था क्योंकि निकिता को उस नौजवान से प्रेम यानी लव नहीं था। स्टॉकिंग और हत्या तो प्रियदर्शिनी मट्टू की संतोष सिंह ने भी किया। उसी तरह बिहार की गुलनाज़ की हत्या कुछ हिंदू नौजवानों ने किया- यह भी पितृसत्तात्मक हिंसा है, “प्रेम युद्ध” नहीं।

किसी भी वयस्क नागरिक को अधिकार है कि वह किसी भी धर्म को अपने निजी विवेक के अनुसार अपनाए और प्यार और शादी के मामले में निर्णय खुद ले। वैसे शादी के लिए धर्म परिवर्तन अक्सर इसलिए होता है क्योंकि स्पेशल मैरेज एक्ट में विवाह के लिए एक महीने की नोटिस देनी पड़ती है जिसके चलते ऐसी शादियों के खिलाफ हिंसा का डर रहता है। इसी हिंसा से बचने के लिए लोग धर्म परिवर्तन करते हैं। ऐपवा की मांग है कि स्पेशल मैरेज एक्ट के प्रावधान को बदला जाये और एक महीने के वेटिंग पीरियड को खत्म किया जाए।

देश की महिलाओं से और युवा लोगों से ऐपवा की अपील है कि अपनी आज़ादी और स्वायत्तता बचाने के लिए उठ खड़े हों। जहां “हेट” यानी नफ़रत के खिलाफ बेहतर कानून और कार्यवाही चाहिए वहां भाजपा लव यानी प्यार के खिलाफ कानून बनाना चाहती है! भाजपा की इस साजिश को नाकाम करें। संगठन का यह बयान रति राव, राष्ट्रीय अध्यक्ष; मीना तिवारी, राष्ट्रीय महासचिव और कविता कृष्णन, राष्ट्रीय सचिव द्वारा जारी किया गया है।

मध्य प्रदेश के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने तो यह तक कह दिया कि धर्म बदल कर शादी करने वाली एससी-एसटी लड़कियों का आरक्षण ही छीन लेना चाहिए। मतलब यदि वे धर्म बदल कर अन्य धर्म में शादी करती हैं तो उन्हें आरक्षण का कोई लाभ न मिले!

हरियाणा के मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि राज्य में ऐसा कानून बन जाने के बाद ऐसे जोड़ों की पहचान की जाएगी जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर शादियां की हैं!

जर्मनी में हिटलर यहूदियों के खिलाफ 1923 से नफ़रत फ़ैलाने का मुहिम चला रहा था। हिटलर यहूदियों को कमुनिस्ट कहता था। जबकि जर्मनी में यहूदियों की आबादी एक प्रतिशत से भी कम थी। किन्तु उससे पहले यह सब कुछ वहां के कैथलिक समुदाय के साथ हो रहा था।

साल 2017 में एनडीटीवी के पत्रकार हृदयेश जोशी को दिए एक इन्टरव्यू में इतिहासकार और आलोचक दिलीप सिमियन ने कहा था-“ जर्मनी में यहूदियों ने पीढ़ियों से खुद को भाषा और संस्कृति के लिहाज से जर्मनी के साथ मिलाने की कोशिश की और वह इसमें सफल भी रहे। यह बात आपको जाननी चाहिये कि जो इस दौर में यहूदियों के साथ हो रहा था वह पहले जर्मन कैथोलिक समुदाय के साथ हो रहा था। 1870 के दौर में यही बातें जर्मन कैथोलिक समुदाय के बारे में कही जा रही थीं। उन्हें जर्मनी की बजाय पोप का वफादार कहा जाता और यह बताया जाता कि कैथोलिक समुदाय के लोग तो विदेशी विचारधारा से प्रभावित हैं। यह कहा जाता कि कैथोलिक चर्च पूरी तरह से जर्मन नहीं हैं और ये राष्ट्रहित में नहीं है कि कैथोलिक यहां रहें।

यह सब यहूदियों के साथ बाद में हुआ लेकिन जर्मन कैथोलिक लोगों की संख्या काफी भारी थी और 1933 में जर्मन कैथोलिक चर्च ने नाज़ी पार्टी के साथ समझौता कर लिया था और जब नाज़ी सत्ता में आये तो उन्होंने ऐसे कानून पास करने शुरू कर दिये जो नस्ल की सफाई करने के नाम पर थे। जैसे ‘Law To Protect The Racial Hygiene.’ ये कानून उनके मुताबिक नस्ल को बचाने के लिये थे जिसमें ये कहा गया कि आर्य और यहूदियों की शादी भी नहीं हो सकती। इस पर पाबन्दी लगा दी गई। जो पहले से शादीशुदा थे उन्हें भी बहुत दिक्कतें झेलनी पड़ी बाद में। अगर पति पत्नी में से एक जर्मन और दूसरा यहूदी होता तो वह बच कर रह सकते थे लेकिन बड़ी मुश्किल से। यहूदियों के विरोध में ये कार्यक्रम तो सन 1923 से ही चल रहा था। हिटलर ने जो अपनी आत्मकथा लिखी उसमें वह यहूदियों के खिलाफ लिख चुका था और उसने कहा कि यहूदी साम्यवाद और समाजवाद के दोषी और ज़िम्मेदार हैं।”

आरएसएस और बीजेपी का अब तक का पूरा इतिहास इसका गवाह है। भले ही किसी अदालत ने गोधरा काण्ड के लिए नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं पाया है पर सच अदालत से परे भी होते हैं। अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए किसी को दोषी नहीं पाया जबकि तमाम साक्ष्य मौजूद हैं आज भी, वे पत्रकार भी जीवित हैं जिन्होंने मस्जिद गिराते हुए देखा था। तो अदालत के न मानने से यह तो माना नहीं जा सकता कि मस्जिद अपने आप ही ढह गयी थी! जबकि अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट ने कुछ और ही कहा था मस्जिद के गिरने के बारे में।

सवाल है कि जो मुख्यमंत्री आज कथित ‘लव जिहाद’ की चिंता में रातों की नींद गवां बैठे हैं क्या वे यह बता सकते हैं कि उनके राज्यों में कितनी लड़कियों के साथ दुष्कर्म हुआ बिना लव के? कितनी लड़कियों को पुलिस वालों ने तंग किया? कितनी लड़कियों को घरेलू हिंसा और दहेज प्रथा का शिकार होना पड़ा?

इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, रहने का अधिकार है। अदालत ने ये फैसला कुशीनगर थाना के सलामत अंसारी और तीन अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया। अदालत ने कहा कि यहां तक कि राज्य भी दो बालिग लोगों के संबंध को लेकर आपत्ति नहीं कर सकता है।

(नित्यानंद गायेन पत्रकार और कवि हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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