महाकुंभ की महात्रासदी: मानव निर्मित राजनीतिक महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ा महाकुंभ

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मौतों और घायलों का आंकड़ा अंततः चाहे जो हो, यह साफ है कि यह महात्रासदी मानव निर्मित है जिसे हर हाल में रोका जा सकता था। दरअसल इस सब के मूल में महाकुंभ को एक मेगा इवेंट बनाकर इससे राजनीतिक लाभ लेने की मंशा थी, जो दांव शायद अब उल्टा पड़ चुका है।

शुरू से ही अबकी बार के महाकुंभ को लेकर जबरदस्त प्रचार किया गया कि 144 साल बाद यह संयोग आया है। इसे लेकर अरबों का बजट निर्गत किया गया, अखबारों को करोड़ों रुपए के विज्ञापन दिए गए होर्डिंगों और डिजिटल डिस्प्ले से लखनऊ सहित सारे शहर पट गए।

यहां तक कि देशभर में इसका युद्धस्तर पर प्रचार किया गया। ऐसा माहौल बना दिया गया कि लोगों को ऐसा लगने लगा कि जो इसी समय संगम में डुबकी लगाकर पुण्य नहीं कमा लेगा, वह पीछे छूट जाएगा। प्रचार में बड़े-बड़े अतिशयोक्तिपूर्ण दावे किए जाने लगे जिसमें कई करोड़ लोगों के स्नान की खबरें आने लगीं।

नतीजा यह हुआ कि तमाम लोग न सिर्फ इलाहाबाद के आसपास से बल्कि देश के तमाम राज्यों से, यहां तक कि विदेशों से भी इलाहाबाद की ओर चल पड़े। इलाहाबाद कोई मेट्रो सिटी भी नहीं है। इतनी बड़ी तादाद में लोगों को सुविधा और व्यवस्था दे पाना उसकी क्षमता के बाहर था।

नतीजतन दूर-दूर तक बैरिकेडिंग कर के भीड़ नियंत्रण के प्रयास शुरू हुए। शहर के अंदर तो जाम और डायवर्जन के कारण लोगों को भारी समस्या का सामना करना ही पड़ रहा था, स्नानार्थियों को भी, जिनमें महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग भी शामिल थे, बीसियों किमी की दूरी पैदल तय करके संगम तक जाने को मजबूर किया गया।

हादसे के स्थल पर, जो संगम का संकरा सा स्पेस है वहां रात में लोग सो रहे थे, शायद इस उम्मीद में कि शुभ मुहूर्त में स्नान करके वहां से निकलेंगे। वहां कमिश्नर पंत का वीडियो भी वायरल हो रहा है कि भगदड़ हो सकती है।

इससे यह साफ है कि भगदड़ की संभावना का आभास पहले से हो गया था लेकिन उसे रोकने के लिए पहले से कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए। बल्कि शायद इस चेतावनी ने वहां लोगों को भयभीत करने में ही भूमिका अदा की। बिना वहां सोए लोगों को उठाए और हटाए, स्नानार्थियों का रेला वहां क्यों आने दिया गया?

बहरहाल सबसे दुखद और शर्मनाक पहलू रहा भाजपा सरकार के शासन और प्रशासन द्वारा दुर्घटना पर लम्बे समय तक चुप्पी और शायद उसको दबाने और छिपाने का प्रयास। यह अभूतपूर्व और अकल्पनीय था कि जब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की श्रद्धांजलि आ गई, उसके बाद उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा मौतों का आंकड़ा जारी किया गया।

कुछ लोग इसे भाजपा की अंदरूनी राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं। बाद में खबर आई कि भगदड़ झूंसी में भी हुई थी जिसमें सरकारी आंकड़े के हिसाब से 7 लोगों की मौत हुई। पांटून ब्रिज पर भी भगदड़ की खबर है। इसी तरह आए दिन वहां अलग-अलग जगहों से अग्निकांड की खबरें आ रही हैं।

सोशल मीडिया को धन्यवाद दीजिए कि उसकी वजह से हादसे की कुछ सच्ची तस्वीर सामने आ पाई, वरना कारपोरेट नियंत्रित मीडिया का वश चलता तो सरकार के इच्छानुरूप करोड़ों के स्नान और पुष्पवर्षा की ही खबरें चलती रहती, जो संवेदनहीनता की पराकाष्ठा थी। एक तरफ मासूमों की लाशें थीं, दूसरी ओर पुष्पवर्षा हो रही थी!

सबसे शर्मनाक भूमिका मेनस्ट्रीम मीडिया की रही जो सरकार के भोंपू की तरह काम करती रही। इतने बड़े हादसे के सही तथ्यों को खोज कर पेश करने, उसके असल कारणों का विश्लेषण करने और सरकार से सवाल पूछने तथा उसे कटघरे में खड़ा करने की बजाय जिससे आगे ऐसे हादसे से बचा जा सके, ऐसा लग रहा था कि मीडिया वही खबरें दिखाता रहा जो संभवतः सरकार की ओर से उसे भेजी जा रही थी।

हिंदी के एक बड़े अखबार ने अपनी बैनर न्यूज बनाया कि हादसे के बावजूद नहीं टूटा हौसला ! साढ़े सात करोड़ लोगों ने किया मौनी अमावस्या पर स्नान! भगदड़ में मौतों की खबर को दबाने की हर संभव कोशिश की गई।

स्नानार्थियों की संख्या को सारी लोक-लाज त्याग कर खूब बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया। जो सात करोड़, दस करोड़ आदि की संख्या बताई जा रही है, वह वास्तविकता के धरातल पर इलाहाबाद जैसे छोटे शहर में भौतिक रूप से आ पाना ही असंभव है।

यह प्रचार करने में बागेश्वर धाम जैसे बाबाओं ने अहम भूमिका निभाई। धार्मिक आस्था के वशीभूत होकर तो जनता वैसे ही कुंभ में जा रही थी। बाबा बागेश्वर धाम जैसों ने इसे राष्ट्रवाद से भी जोड़ दिया। उन्होंने बयान दिया कि कुंभ में जो स्नान करने नहीं जाएगा, वह राष्ट्रद्रोही है ! यह बयान अपने आप में एक राष्ट्रद्रोही वक्तव्य है जो जनता के बीच नफरत फैलाने के उद्देश्य से प्रेरित है।

सरकार तो पहले से नफरत का वातावरण बनाने में लगी थी, बताया जाता है कि गंगा जमनी तहजीब के केंद्र इलाहाबाद में अबकी बार कुंभ क्षेत्र में मुसलमानों का प्रवेश वर्जित था, उन्हें दुकानें तक नहीं लगाने दिया गया। इस सबके बावजूद मुस्लिम इलाकों में पूरा समुदाय कुंभ तीर्थयात्रियों की अपनी शक्ति भर खिदमत में लगा हुआ है।

यादगारे हुसैनी कॉलेज से लेकर रोशन बाग तक हादसे के बाद तमाम तीर्थयात्री रखे गए हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग मदद में उनकी हर संभव मदद में उतरे हुए हैं। यही मिली-जुली साझी संस्कृति, भाई चारा और मुहब्बत हिंदुस्तान की असली पहचान है जिसे बर्बाद करने पर कॉरपोरेट हिंदुत्व की ताकतें आमदा हैं।

दरअसल यह सब कुंभ के बहाने हिंदूहृदय सम्राट बन जाने की योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षा का नतीजा है। जिस तरह महाकुंभ के लिए युद्धस्तर पर प्रचार चलाया गया, तमाम सेलिब्रिटी धनकुबेरों को स्वयं योगी ने जाकर निमंत्रण पत्र बांटे, वे इसकी बड़े पैमाने पर मार्केटिंग करके हिंदुत्व खेमे में अपने को कतार में सबके आगे खड़ा करना चाहते थे, उसका यह सब नतीजा है।

धार्मिक कार्यक्रम में वीआईपी और आम लोगों के बीच अंतर करने का क्या औचित्य था? लेकिन ऐसा लगता है कि शासन प्रशासन की पूरी ऊर्जा, संसाधन, आवागमन के रास्ते, वहां का बड़ा स्पेस वीआईपी की सेवा में लग गया और आम लोगों की भीड़ भगवान भरोसे छोड़ दी गई, जिसका नतीजा यह भयानक हादसा है।

बस उम्मीद ही की जा सकती है कि इतने बड़े हादसे से सबक लेते हुए सरकार आने वाले दिनों के स्नान को सकुशल सम्पन्न कराएगी। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए धर्म के घोर दुरुपयोग का परिणाम है महाकुंभ हादसा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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