महाराष्ट्र संकट : नयी रणनीति, बीजेपी फिर पीछे हटी, अकेले लड़ते दिखेंगे एकनाथ

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद महाराष्ट्र की सियासत में नयी पेंच आ गयी है। बागी शिव सैनिकों के नेता एकनाथ शिंदे को एक साथ कई बातें कहनी पड़ी हैं। “वे और उनके समर्थक विधायक सभी शिवसेना में हैं”, “उनके साथ दो तिहाई विधायकों से ज्यादा हैं” और “वे शीघ्र ही मुंबई पहुंचने वाले हैं”। खासतौर से जो बात कहनी पड़ी है वह यह कि “बीजेपी ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया है।” कहीं अपने ही लोगों का दिल न बैठ जाए- इसलिए यह भी एकनाथ शिंदे ने जोड़ा है कि “देखते हैं आगे क्या होता है”।

एकनाथ शिन्दे के बयान में रणनीति है और यह रणनीति मीडिया में आ रही उन खबरों के अनुकूल नहीं है जिसके तहत कहा जा रहा था कि बीजेपी अब खुलकर सामने आने वाली है और महाराष्ट्र में सरकार बनाने वाली है। वडोदरा में देवेंद्र फडनवीस और एकनाथ शिन्दे की मुलाकात, जो अमित शाह की मौजूदगी में हुई बतायी जा रही है, के बाद यह चर्चा जोरों पर थी कि बागी विधायक एक मुश्त बीजेपी में जा सकते हैं और महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए आवश्यक गणित को पूरा कर ले सकते हैं। मगर, ये बातें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से पहले की हैं। अब नीति और रणनीति बदल गयी है।

दो तिहाई समेटे रहने पर जोर

नयी रणनीति के तहत शिन्दे के नेतृत्व वाले विधायक समूह को ऐसा कोई भी काम नहीं करना है जिससे उनकी संख्या में कमी होने की आशंका बन जाए। इस समूह के बीजेपी में विलय की बात करने से कुछेक विधायक छिटक सकते हैं। अब लगभग यह तय हो चुका है कि महाराष्ट्र विधानसभा के फ्लोर पर जो कुछ घटनाएं आने वाले दिनों में घटने वाली हैं वह सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में घटेंगी। ऐसे में राजनीतिक प्रतिबद्धता के सवाल को सामने रखकर बागी गुट आगे बढ़ना नहीं चाहता। वह विशुद्ध रूप से शिवसैनिक होकर उद्धव ठाकरे की कमजोर हो चुकी पकड़ को साबित करने की ओर बढ़ रहा है।

नयी रणनीति के दो फायदे साफ हैं- 

1. एक अपने आपको इकट्ठा रखना 

2. दूसरा उद्धव ठाकरे पर दबाव बढ़ाना। 

लेकिन, नयी रणनीति के दो नुकसान भी उतने ही साफ हैं-

1. यह अनुत्तरित रहेगा कि अगली सरकार कैसे बनेगी?

2. इस भ्रम के कारण मुंबई आने पर कुछेक बागी विधायकों के मन बदल सकते हैं।

उद्धव ठाकरे अगर अपनी ही पार्टी के भीतर आयी बगावत की इस सुनामी से लड़ पा रहे हैं तो इसके भी दो स्पष्ट वजह हैं

1. शिवसेना ने ठान लिया है कि अधिक से अधिक क्या होगा- सरकार ही तो जाएगी।

2. महाविकास अघाड़ी के घटक दल पूरी मजबूती से उद्धव ठाकरे के साथ खड़े हैं।

आगे है सत्र बुलाने की रणनीति

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्यपाल के सुगबुगाने की बारी है। सत्र बुलाने की मांग हो सकती है। अब जल्दी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की ओर से नहीं, बागी विधायकों की ओर से होगी। कहने की जरूरत नहीं कि बागी विधायक वही कदम उठाएंगे जो बीजेपी बोलेगी। 

सत्र बुलाने की मांग के साथ ही फ्लोर टेस्ट की मांग उठेगी। जिन 16 विधायकों की अयोग्यता का मसला डिप्टी स्पीकर के पास सुप्रीम कोर्ट की वजह से लंबित हो चुका है, उस पर फैसला हुए बगैर फ्लोर टेस्ट का मतलब है उद्धव सरकार का स्पष्ट रूप से गिर जाना। लिहाजा फ्लोर टेस्ट के संभावित फैसले को उद्धव सरकार सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाएगी-यह भी तयशुदा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत कह भी दिया है।

डिप्टी स्पीकर पर फैसले का रहेगा इंतज़ार

सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता पर फैसले को जिस वजह से रोका है वह है डिप्टी स्पीकर के खिलाफ प्रस्ताव। इस प्रस्ताव के बारे में सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना है कि अपने ही बारे में किसी प्रस्ताव को लेकर डिप्टी स्पीकर खुद जज नहीं बन सकते। डिप्टी स्पीकर से पांच दिन में जवाब मांगा गया है। लिहाजा फ्लोर टेस्ट की मांग भी पांच दिन से पहले नहीं होने वाली है। 

चूंकि सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई 11 जुलाई को करेगा, इसलिए इस पर फैसला भी 11 जुलाई को ही होगा कि डिप्टी स्पीकर के पास बहुमत है या नहीं- इसका परीक्षण होना चाहिए कि नहीं। अगर डिप्टी स्पीकर के बहुमत की बात ठहर गयी तो नया स्पीकर चुना जाना तय हो जाएगा। उस स्थिति में स्पीकर के चुनाव में ही बहुमत परीक्षण हो चुका होगा। बाद में सिर्फ औपचारिकता ही बची होगी।

बीजेपी को राज्यपाल से है उम्मीद

बीजेपी उत्साहित इसलिए है कि वह इस बात की संभावना देख रही है कि राज्यपाल से सदन में प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करवा लिया जाए। यह संभावना बीजेपी का अति उत्साह है। अगर राज्यपाल ऐसा करते हैं तो भी यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के पास विचार के लिए जाना तय है। 

स्पष्ट है कि उद्धव सरकार जो ‘अब गयी, तब गयी’ की स्थिति में चल रही थी- उसे सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों से दो हफ्ते की स्पष्ट मोहलत मिल गयी है। न सिर्फ मोहलत मिली है बल्कि इससे उद्धव सरकार की उखड़ती सांस को रोकने वाला गैस सिलेंडर मिल गया लगता है।

उद्धव भी बागियों के ‘घर वापसी’ की उम्मीद में

उद्धव ठाकरे को उम्मीद है कि बहुतेरे विधायक ऐसे हैं जो उन दो विधायकों की तरह डराकर या धमकाकर जबरन सूरत और फिर गुवाहाटी ले जाए गये हैं जिन्होंने जान बचाकर भागने की हिम्मत जुटायी और वापस उद्धव के पास लौट आए। अगर कुछेक विधायक भी उनकी उम्मीदों के हिसाब से उनके पास लौटे तो एकनाथ शिन्दे की दो तिहाई बहुमत वाली स्थिति खत्म हो जाएगी। फिर सारा गणित ही उल्टा पड़ जाएगा। तब न सिर्फ 16 विधायक अयोग्य ठहराए जा सकेंगे, बल्कि इस जद में वे सारे विधायक आ जाएंगे जो बागी हैं। तब शिवसेना के हाथ में होगा कि कितने विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की पहल हो जिससे उनकी सरकार बचाने का गणित उपयुक्त रहे।

एकनाथ शिन्दे के गुट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद पटाखे ज़रूर फोड़े लेकिन जो वक्त मिला है उसका फायदा उन्हें होता नहीं दिख रहा। अयोग्यता की तलवार ज़रूर दूर हुई है लेकिन इस तलवार की धार से उनकी गर्दन बच जाएगी- इसकी गारंटी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से नहीं हुई है। उल्टे उद्धव ठाकरे को दो हफ्ते की संजीवनी मिली है। कहीं यही हफ्ते महीने में और महीने साल में न बदल जाएं। अगर ऐसा हुआ तो एक बार फिर बीजेपी की नाक कट जाएगी। 

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

प्रेम कुमार
Published by
प्रेम कुमार