Tuesday, April 23, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

कुकी-मैतेई हिंसा के बाद मणिपुर में ‘कुकीलैंड’ की मांग तेज

नई दिल्ली। मणिपुर में हिंसा करीब दो सप्ताह बाद थोड़ा कम हुई है। घाटी और पर्वतीय इलाकों में रहने वाले जनजातीय समूहों के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है। लेकिन अब दिल्ली से लेकर मणिपुर में राजनीति तेज हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने आज यानि बुधवार को मणिपुर हिंसा पर मणिपुर ट्राइबल फोरम और हिल एरिया कमेटी की याचिका समेत 3 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अब तक किए गए सभी राहत और पुनर्वास प्रयासों पर एक नई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

इस दौरान केंद्र और राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक स्थिति रिपोर्ट दायर की गई है और राज्य में स्थिति में सुधार हुआ है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्य में जिला पुलिस और सीएपीएफ द्वारा संचालित कुल 315 राहत शिविर स्थापित किए गए हैं। राज्य सरकार ने राहत उपायों के लिए 3 करोड़ रुपये का आकस्मिक कोष स्वीकृत किया है। अब तक करीब 46,000 लोगों को मदद मिल चुकी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य का विषय है और शीर्ष अदालत के रूप में, यह सुनिश्चित करेगा कि राजनीतिक कार्यपालिका इस मामले पर आंख न मूंद ले। 8 मई को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने विस्थापितों के पुनर्वास, राहत कैंपों में दवाओं और खाने-पीने जैसी जरूरी चीजों का इंतजाम करने का निर्देश दिया था। साथ ही राज्य में धार्मिक स्थलों की हिफाजत के लिए भी कदम उठाने को कहा था।

अब तक मणिपुर हिंसा में 73 लोगों की मौत और 231 लोगों के घायल हुए हैं। करीबन 1,700 घर और धार्मिक स्थलों को जला दिया गया है। मणिपुर के 16 में से 10 जिले हिंसा से पीड़ित हैं। मणिपुर के विभिन्न इलाकों से चिन-कुकी-मिजो जनजातीय समुदाय के करीब 6000 लोग मिजोरम के 6 कैंपों में रह रहे हैं। इनमें से आइजोल जिले में 2021, कोलासिब में 1,847 और सैतुअल में 1,790 लोगों ने शरण ली है। मिजोरम के एक अफसर ने बताया कि राहत शिविरों में 5822 लोग रह रहे हैं।

कांग्रेस मणिपुर की स्थिति का पता लगाने के लिए पर्यवेक्षकों की एक टीम भेज रही है। मणिपुर कांग्रेस के नेता और पूर्व सीएम ओकराम इबोबी सिंह ने पार्टी के राज्य नेताओं के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की और उन्हें राज्य की स्थिति से अवगत कराया।

संविधान के तहत एक अलग प्रशासन की मांग

मणिपुर की कुकी-ज़ोमी जनजातियों और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष के कुछ दिनों बाद अब एक बार फिर कुकी जनजातियों के लिए “संविधान के तहत एक अलग प्रशासन” बनाने की मांग तेज हो गई है। राज्य के 10 कुकी-ज़ोमी विधायकों ने अलग प्रशासनिक क्षेत्र की मांग करते हुए कहा, “हमारे लोग अब मैतेई लोगों के साथ नहीं रह सकते …” क्योंकि मैतेई लोगों के बीच फिर से रहना मौत के समान है…।”

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह सोमवार को अपने दो मंत्रियों और आदिवासी कानून विशेषज्ञों सहित दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। जिसके एक दिन बाद शाह ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, चार राज्य मंत्रियों (सभी मैतेई) और मणिपुर के महाराजा एवं राज्यसभा सदस्य लीशेम्बा सनाजाओबा के साथ बैठक की थी।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह केंद्रीय गृह मंत्री को राज्य के हालात की जानकारी देकर इंफाल लौट गए। उन्होंने 10 कुकी विधायकों की मणिपुर से अलग प्रशासन की मांग ठुकराते हुए कहा कि यह तय करने के उपाय किए जा रहे हैं कि उग्रवादी, जिन्होंने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, अपने निर्धारित स्थानों पर लौटें।

गृहमंत्री अमित शाह की देखरेख में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन के तहत उग्रवादी समूहों को वापस लाने और सामान्य स्थिति बहाली के उपाय किए जा रहे हैं। जबकि बीरेन ने जोर देकर कहा है कि “मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जाएगी”, जातीय संघर्षों ने एक अलग प्रशासन की मांग को फिर से जन्म दिया है, जो कुकी-ज़ोमी विद्रोही समूहों और सरकार के बीच शांति वार्ता के बाद शांत हो गया था।

कुकी मातृभूमि की मांग का इतिहास

“कुकीलैंड” की मांग 1980 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुई, जब कुकी-ज़ोमी विद्रोही समूहों का पहला और सबसे बड़ा, कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) अस्तित्व में आया। यह संगठन समय-समय पर कुकीलैंड की मांग करता रहा है।

2012 में जब यह सुनिश्चित हो गया कि एक अलग राज्य के रूप में तेलंगाना की मांग को स्वीकार किया जाएगा। कुकी स्टेट डिमांड कमेटी (केएसडीसी) नामक एक संगठन ने कुकीलैंड के लिए आंदोलन की घोषणा कर दिया था। केएसडीसी पहले भी समय-समय पर हड़ताल और आर्थिक बंद का आह्वान कर राजमार्गों को अवरुद्ध कर माल को मणिपुर में प्रवेश करने से रोकता रहा है।

केएसडीसी मणिपुर के 22,000 वर्ग किमी क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक यानि ने 12,958 वर्ग किमी “कुकीस और कुकीलैंड” के लिए मांगता है। “कुकीलैंड” के क्षेत्र में सदर पहाड़ियां (जो तीन तरफ से इंफाल घाटी को घेरे हुए हैं), कुकी-वर्चस्व वाला चुराचांदपुर जिला, चंदेल, जिसमें कुकी और नागा आबादी का मिश्रण है। यहां तक कि नागा बहुल तमेंगलोंग और उखरूल के कुछ हिस्से भी शामिल हैं।

केएसडीसी और कुकी-ज़ोमी समुदाय के वर्गों ने कहा है कि आदिवासी क्षेत्रों को “अभी तक भारतीय संघ का हिस्सा बनना है।” उन्होंने तर्क दिया है कि 1891 के एंग्लो-मणिपुर युद्ध में मणिपुर के राजा की हार के बाद, राज्य एक ब्रिटिश संरक्षित बन गया। लेकिन कुकी-ज़ोमी की भूमि समझौते का हिस्सा नहीं थी। केएसडीसी ने यह भी कहा कि एक अलग देश की नगा मांग के विपरीत, वह केवल भारतीय संघ के भीतर एक अलग राज्य की मांग कर रहा था।

इस आंदोलन के प्रभाव के कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने यूनाइटेड नगा काउंसिल के कड़े विरोध के मद्देनजर, कुकी-बहुल सदर हिल्स, नागा-बहुल सेनापति जिले का हिस्सा, एक अलग जिले के रूप में घोषित किया।

क्या है स्वतंत्रता की भूमि ?

कुकीलैंड की मांग की जड़ें जलेन-गम, या “स्वतंत्रता की भूमि” के विचार में हैं। कुछ कुकी-ज़ोमी लोग, विशेष रूप से विद्रोही समूह, इस आख्यान का विरोध करते हैं कि उनके पूर्वजों को बर्मा की कुकी-चिन पहाड़ियों से ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट द्वारा लाया गया था और इम्फाल घाटी के आसपास मणिपुर राज्य को लूटने वाले नागा हमलावरों से बचाने के लिए उत्तर दिशा में बसाया गया था। वे कुकी-ज़ोमी के खानाबदोश मूल के विचार का भी विरोध करते हैं।

उनका मानना है कि कुकी ज़ालेन-गम भारत के पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से और वर्तमान म्यांमार के एक हिस्से तक फैला हुआ था। और 1834 की संधि के तहत अंग्रेजों ने इस भूमि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बर्मा के राजा अवा को सौंप दिया था।

केएनओ के अनुसार, ज़ालेन-गम में म्यांमार में चिंदविन नदी तक का क्षेत्र शामिल था और भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों, उत्तरी म्यांमार में नांटालिट नदी के आसपास के क्षेत्रों और दक्षिण में चिन राज्य तक फैला हुआ था। भारत में कुकी मातृभूमि में मणिपुर के पहाड़ी जिले शामिल थे, जिनमें नागा क्षेत्र, कंजंग, अखेन, फेक और नागालैंड में दीमापुर के कुछ हिस्से, कार्बी-एंगलोंग, उत्तरी कछार हिल्स और असम में हाफलोंग और त्रिपुरा समेत बांग्लादेश में चटगांव पहाड़ी इलाकों के कुछ हिस्से शामिल थे। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में, मातृभूमि की यह कल्पना मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्मित एक राज्य के रूप में सिकुड़ गई है, जिसमें नागा जनजातियों का प्रभुत्व भी शामिल है।

केएनओ का घोषणापत्र

केएनओ के अध्यक्ष पी एस हाओकिप ने 2018 में प्रकाशित एक पुस्तक में मणिपुर के कुकी लोगों के प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर और चंदेल जैसे पहाड़ी जिलों की कथित उपेक्षा के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा कि यह सब कुकी लोगों के क्षेत्र को पीछे रखने के उद्देश्य से मैतेई बहुल राज्य सरकार द्वारा किया गया।

हाओकिप ने यह भी शिकायत की कि नगा विद्रोही समूह दशकों से कुकी की जमीन हड़पने का प्रयास कर रहे हैं। 1993 के नागा-कूकी संघर्ष के बाद एक अलग “कुकीलैंड” की मांग तेज हो गई। जिसमें केएनओ के अनुसार, 1,000 से अधिक कुकी मारे गए और कई बार विस्थापित हुए। केएनओ ने आरोप लगाया है कि मैतेई उस समय कुकियों की मदद के लिए नहीं आए थे। केएनओ का घोषणापत्र “पैतृक कुकी क्षेत्र को उसकी सही स्थिति में पुनर्स्थापित करने” का वचन देता है।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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