Friday, March 29, 2024

सवाल एक रुपये का नहीं, सिद्धांत का है!

क्या सुप्रीम कोर्ट को एक रुपया मिलेगा?  सुप्रीम कोर्ट को क्या एक रुपया देंगे प्रशांत भूषण? एक रुपये का मतलब क्या? यह एक रुपया सुप्रीम कोर्ट और प्रशांत भूषण दोनों के लिए बेशकीमती बन चुका है। एक रुपये का मतलब एक करोड़, एक सौ करोड़…चाहे आप कुछ भी समझ लें। 

मगर, ऐसा क्यों? ऐसा कैसे? एक रुपये तो 100 पैसे से मिलकर ही बनते हैं। और, एक-एक रुपये जोड़कर ही सौ रुपये, हजार रुपये, लाख रुपये, करोड़ रुपये, अरब-खरब रुपये बनते हैं। गिनती बदल सकती है लेकिन रुपये का मोल नहीं बदलता। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट और प्रशांत भूषण दोनों के लिए इसके मोल अलग-अलग हों?

चुटकी भर सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू!

उत्तर हम आपको बताते हैं। एक शादीशुदा हिन्दू स्त्री के लिए चुटकी भर सिंदूर का मतलब क्या होता है? चुटकी भर सिंदूर की कीमत भी तकरीबन एक रुपये ही होती है। मगर, इस सिंदूर पर चढ़ा रंग सतीत्व से जुड़ा होता है, विश्वास और सामाजिक मान्यताओं से जुड़ा होता है। ‘उन दिनों’ को छोड़ दें तो शादीशुदा महिलाएं बगैर सिंदूर के क्षण भर भी नहीं रहतीं। 

सुप्रीम कोर्ट के माथे पर भी लगा हुआ है संविधान का सिंदूर। इसके बगैर सुप्रीम कोर्ट नहीं रह सकता। कथित तौर पर इसी सिंदूर की लाज बचाने के लिए उसने प्रशांत भूषण को एक रुपये चुकाने की सज़ा सुनायी है। सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान प्रशांत भूषण को न्यायपालिका की आबरू के साथ खिलवाड़ बता रहा था। प्रशांत भूषण के वो दो ट्वीट जिनमें एक सीजेआई एसए बेवड़े के कोरोना काल में बगैर हेलमेट,  बगैर मास्क पहने बीजेपी नेता की लाखों की बाइक पर सवार होकर फोटो खिंचाने की बात थी, तो दूसरे में सुप्रीम कोर्ट पर कोरोना काल में मौलिक अधिकारों वाले मामले की सुनवाई स्थगित करने और छुट्टियां बिताने जैसी चुगली थी। 

साले को साला कहना क्या ‘गाली’ है?

प्रचलित व्यवहार में कोई व्यक्ति किसी को ‘साला’ कह दे तो वह गाली कहलाती है। मगर, साले को साला कहने पर यह रिश्ता कहलाता है। प्रशांत भूषण के अनुसार उन्होंने वही कहा जो सही लगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार उसने सही सुना और वही समझा जो न्यायपालिका को गाली देने जैसा है। जब न्यायपालिका पर उंगली उठाकर चुगली करते ट्वीट पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की, तो बात से बात बढ़ती चली गयी। आम तौर पर झगड़े में ऐसा ही होता है। मूल बात छोटी होती है। बात से निकलने वाली बात बड़ी होती चली जाती है।

सुप्रीम कोर्ट ने सलाह देने के लिए मौजूद एटॉर्नी जनरल की भी राय नहीं ली। आम तौर पर जब अदालत की अवमानना का मामला सुना जाता है तो एटॉर्नी जनरल की संस्तुति के बाद ही ऐसा होता है। मगर, यह अदालत की अवमानना का आम मामला नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था। यह मसला बहस का विषय है कि अदालत की अवमानना का मामला संज्ञान में लेने के लिए भी एटॉर्नी जनरल से पूछा जाना चाहिए या नहीं।

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो और अटॉर्नी जनरल से पूछा तक न जाए- यह तो अजीबोगरीब बात हो गयी। अटॉर्नी जनरल सुनवाई के दौरान मौजूद रहें और उनकी अटेंडेंस भी न दिखाई जाए, यह तो और भी बड़ा मामला हो गया। यह मुद्दा गरम होने तक सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को दोषी ठहरा चुका था। 

दोषी ठहराने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से राय मांगी। अब अटॉर्नी जनरल यह कैसे कहते फैसला गलत सुनाया है। एक और अवमानना का मामला बन जाता। लिहाजा अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि प्रशांत भूषण को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए। 

अब सुप्रीम कोर्ट थोड़ा सोचने को विवश हुआ, कहा कि अगर प्रशांत भूषण माफी मांग लें तो वे इस पर विचार कर सकते हैं। प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से मना कर दिया। अब फिर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वे माफी ही मांगने को तैयार नहीं हैं तो हम माफी कैसे दें। सज़ा नहीं देने के बारे में कैसे सोचें। जाहिर है कि अटॉर्नी जनरल मन ही मन मुस्कुराएं होंगे कि गलती आप करें और रास्ता हमसे पूछें। आप माफी देने को तैयार हैं मगर तरीका नहीं सूझ रहा। आखिर दोषी ठहराने में जल्दबाजी क्यों कर दी? पर, अटॉर्नी जनरल ऐसा कह नहीं सकते थे। ऐसी परिस्थिति में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर सोचने के लिए समय थोप दिया। वे कहते रहे कि कोई फायदा नहीं, मेरा फैसला नहीं बदलेगा लेकिन 20 अगस्त को सज़ा टाल दी गयी।

अब सज़ा सुनाने वाले जज अरुण मिश्रा को रिटायर होने से पहले आखिरी दिन सज़ा सुनाना था। उनके साथ दो और जज थे। सबसे कम सज़ा क्या हो सकती थी? पैसे को छोड़ दें तो रुपये में सबसे कम 1 रुपये ही हो सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने 1 रुपये की सज़ा सुना दी। हालांकि प्रशांत भूषण इतने रइस वकील हैं कि उनके लिए 1 लाख रुपया भी 1 रुपये के ही बराबर है। फिर भी, अदालत ने न्यूनतम सज़ा का पैमाना सामने रख दिया है। 

प्रशांत भूषण की कोई प्रतिक्रिया इस पर नहीं आयी है मगर जब आएगी तो इस लेखक का विश्वास है कि उनके पास एक रुपये भी कम पड़ जाएंगे। वो लाखों रुपये सुनवाई की प्रक्रिया में भले खर्च कर दें, अपने साथी वकीलों को रकम दे दें, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को देने के लिए एक रुपये प्रशांत भूषण के पास नहीं होंगे।

सवाल वही चुटकी भर सिंदूर का है- सुप्रीम कोर्ट के लिए भी, प्रशांत भूषण के लिए भी। प्रशांत भूषण के लिए रास्ता क्या है? प्रशांत भूषण फैसले को चुनौती देने के लिए रिव्यू पेटिशन दे सकते हैं। वे कह सकते हैं कि यह मसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझने यानी संविधान की व्याख्या का है। लिहाजा संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए। वे उन तमाम सवालों को भी उठा सकते हैं कि अटॉर्नी जनरल तक की राय की अनदेखी उन्हें सज़ा देने के लिए की गयी है। ऐसा करके वे अपना एक रुपया या फिर कहें कि चुटकी भर सिंदूर की कीमत देश और दुनिया को समझा सकते हैं। सर्वोच्च अदालत भी संविधान पीठ स्थापित कर संविधान के सिंदूर की लाली को बनाए रखने की कोशिश कर सकती है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles