Saturday, April 20, 2024

फैसले पर एक चश्मदीद की प्रतिक्रिया: यह उकसावा; पूर्व तैयारी नहीं, तो क्या था जज साहब?

तारीख 18 नवम्बर, 92; समय- शाम 5 बजे ,स्थान- इलाहाबाद (अब प्रयागराज) रेलवे स्टेशन का प्लेटफोर्म नम्बर-4, प्लेटफोर्म पर पत्रकारों और भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं की भीड़, कालका-हावड़ा मेल प्लेटफार्म पर आकर रुकी, एसी कम्पार्टमेंट के गेट पर लाल कृष्ण आडवाणी आगे और उनके पीछे प्रमोद महाजन प्रगट हुए। भीड़ ने जय श्रीराम का नारा लगाया और आडवाणी ने हाथ हिलाकर सबको चुप रहने को कहा फिर बोले ‘इस बार अयोध्या में वास्तविक कार सेवा होगी’ भीड़ ने फिर उद्घोष किया जय श्रीराम, जय श्रीराम। 5 मिनट के ठहराव के बाद ट्रेन आगे चल पड़ी।दिल्ली से लेकर हावड़ा तक हर ठहराव में यह दृश्य दोहराया गया। माननीय जज साहब यह उकसावा नहीं था तो क्या था?

 तारीख 28 नवम्बर; स्थान-बाबरी मस्जिद का पिछवाड़ा, समय- अपरान्ह लगभग 3 बजे, शिवसेना के तत्कालीन एमपी सतीश प्रधान और फैजाबाद के स्थानीय नेता पवन पांडेय स्थलीय निरीक्षण करते हुए, अचानक इलाहाबाद से मैं और मेरे वरिष्ठ पत्रकार साथी एसके दुबे वहां पहुंचे तो पवन पांडेय ने सतीश प्रधान से हमारा परिचय करवाया। सतीश प्रधान ने कहा ‘इस बार किसी भी कीमत पर बाबरी मस्जिद नहीं बचेगी’।अब यह बाबरी मस्जिद गिराने की पूर्व तैयारी अर्थात षड्यंत्र नहीं था तो क्या था जज साहब ?

6 दिसम्बर, 92 से कई दिन पहले से अयोध्या के वेद भवन में 11 बजे दिन में विहिप की पत्रकार वार्ता होती थी जिसमें शुरू में वास्तविक कार सेवा का दावा किया जाता था लेकिन जब यूपी के मुख्यमंत्री ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दिया तबसे पत्रकार वार्ता में बोली भाषा बदल गयी और प्रतीकात्मक कार सेवा की बात की जाने लगी। लेकिन पत्रकार वार्ता में मौजूद विनय कटियार और उमा भारती पत्रकारों से फुसफुसा कर कहते थे अब की बार नहीं बचेगी बाबरी मस्जिद। अब यह बाबरी मस्जिद गिराने की पूर्व तैयारी अर्थात षड्यंत्र नहीं था तो क्या था जज साहब ?

एक दिसम्बर 92 को मेरे नार्दन इंडिया पत्रिका के सहकर्मी अनिल शुक्ल और फोटोग्राफर सहकर्मी एसके यादव फैजाबाद पहुंच गये और मैं 2 दिसम्बर को वहां पहुंचा। 4 दिसम्बर को एसके यादव को अचानक बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द कुछ बलिष्ठ लोगों की वह टीम दिख गयी जो ध्वस्तीकरण के सामान से लैस थी और उसके लोग मौका मुआयना कर रहे थे। एसके यादव ने जगह की फोटो खींच ली जो 5 दिसम्बर के अंक में नार्दर्न इंडिया पत्रिका और अमृत प्रभात में प्रकाशित हुई। जिसमें यह कहा गया था की तैयारी पूरी है। प्रशासन ने जरा सी चूक की तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस निश्चित है। अब यह बाबरी मस्जिद गिराने की पूर्व तैयारी अर्थात  षड्यंत्र नहीं था तो क्या था जज साहब?

इधर प्रतीकात्मक कार सेवा का दावा हो रहा था पर बाहर से आये कारसेवक इससे सहमत नहीं थे और लगातार बातचीत में कहते थे कि क्या बाबरी मस्जिद गिराने के लिए बार-बार यूपी में कल्याण सिंह की सरकार बनवानी पड़ेगी? इस बार नहीं टूटी तो फिर कभी नहीं। प्रतीकात्मक कार सेवा के लिए एक दिन पहले सरयू से जल लेकर परिक्रमा पथ होते हुए राम चबूतरे के पार्श्व में जल देने और एक मुठ्ठी रेत डालने का रिहर्सल भी कारसेवकों का कराया गया लेकिन उनके नारे स्पष्ट कर रहे थे कि मामला बहुत गम्भीर है। एक नारा जो सभी लगा रहे थे वो ये था ‘जब क… काटे जायेंगे तो राम-राम चिल्लाएंगे’।जज साहब ये पूर्व तैयारी नहीं थी तो फिर क्या था?    

मैं और अनिल शुक्ला लगभग 8 बजे अयोध्या के बाबरी परिसर में पहुंच गये थे लेकिन दस बजते-बजते हम भीड़ के रेले से बिछड़ गये। 11 बजे तक सरयू से लौटी लाखों कारसेवकों की भीड़ बाबरी मस्जिद के बाहर लगभग एक किलोमीटर के दायरे में इकट्ठा हो चुकी थी। पूर्व निर्धारित राज्यों के  कारसेवकों के समूहों को अधिग्रहीत स्थल की बाहरी बैरिकेटिंग जो कि लोहे के मोटे पाइप से दस फुट ऊंची बनाई गई थी, के बाहर रोक कर रखा गया था। पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार 12.10 बजे से सांकेतिक कार सेवा शुरू होनी थी, जिसमें लोगों को अधिग्रहीत स्थल की बाहरी बैरिकेटिंग से एक छोटे रास्ते से भीतर आकर भीतरी बैरिकेटिंग के बाहर यज्ञ स्थल पर जल और रेत डाल कर मंदिर निर्माण की सांकेतिक शुरुआत करके पीछे दूसरे रास्ते से बाहर होकर वापस चले जाना था।

इस बीच, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, बीजेपी आदि हिन्दू संगठनों के शीर्ष नेता यज्ञ स्थल पर आने लगे। आडवाणी, जोशी, उमा भारती, कलराज मिश्र, अशोक सिंघल और विहिप से जुड़े बड़े साधू संत मस्जिद के ठीक सामने यज्ञ स्थल पर पहुंच गये थे। लेकिन पहले से तोड़-फोड़ के लिए तैयार भीड़ भीतर घुसने के लिए व्याकुल हो चुकी।

साढ़े ग्यारह बजे तक मस्जिद से करीब चार सौ मीटर दूर रामकथा कुंज नाम के एक बड़े और खुली छत वाले भवन के छत पर सप्ताह भर से चल रहा कंट्रोल रूम और केंद्रीय प्रसारण केंद्र एक भव्य और विशाल हिंदूवादी ऐतिहासिक सभा मंच में तब्दील हो चुका था। आडवाणी, जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल, आचार्य धर्मेंद्र, महंत अवैद्यनाथ, साध्वी ऋतंभरा सहित सभी दिग्गज फायर ब्रांड हिन्दू नेता माइक से कारसेवकों को नियंत्रित, संबोधित और उनमें जोश का संचार कर रहे थे।

मेरे फोटो सहकर्मी ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है कि अचानक उनकी नजर रामकथा कुंज कंट्रोल रूम के भूतल के कमरों से जुड़ी कारसेवकों की कतार और उसमें हलचल की तरफ पड़ी। मेरे सामने आज की सबसे एक्सक्लूसिव तस्वीर थी।करीब दो ढाई सौ कारसेवक इन कमरों से बड़े-बड़े हथौड़े, सड़क खोदने वाला औजार, बेलचा, रस्से आदि निकालकर मस्जिद के पीछे की तरफ बढ़ रहे थे। पिछले पांच दिनों से अनुशासित और नियंत्रित कारसेवक अब बेहद आक्रामक, अराजक और हिंसक हो चुके हैं।

विशाल, बहुत ऊंचे और मजबूत मस्जिद के ढांचे के चारों तरफ लगी बेहद मजबूत लोहे की बैरिकेटिंग कारसेवकों के सैलाब से माचिस की तीली मानिंद टूट चुकी है। दस बीस करके धीरे-धीरे सैकड़ों कारसेवक तीनों गुम्बदों पर चढ़ने में सफल हो गए हैं, जो औजार कुछ देर पहले कंट्रोल रूम से निकाले गए थे, वो कहर बनकर ढांचे पर टूट पड़े हैं। इस अफरा तफरी में पथराव भी हुआ और परिसर में खड़े पत्रकार या तो मानस भवन में चले गये या बाबरी के बगल में स्थित सीता रसोई में चले गये। मैं भी सीता रसोई वाले भवन में चला गया जहाँ छत पर पुलिस कंट्रोल रूम का स्थायी टावर लगा हुआ था।

बाबरी मस्जिद का ध्वस्तीकरण शुरू होते ही केंद्रीय पुलिस बल, पीएसी सभी कई सौ वर्ग गज पीछे जाकर खड़े हो गये और मूक दर्शक बने रहे। केंद्र सरकार की पहल पर भेजी गयी फ़ोर्स कई किमी दूर अपने ठिकाने से निकली ही नहीं। सीता रसोई की छत पर मुलायम काल की गोली बारी में मारे गये कोठारी बन्धुओं का पूरा परिवार मौजूद था जो ध्वस्तीकरण के साथ साथ न केवल मुलायम सिंह यादव को मां-बहन की गलियां बक रहा था बल्कि छत पर जमा देश-विदेश के पत्रकारों को भी गालियां दे रहा था।

कोठारी बन्धुओं का एक फुफेरा भाई ध्वस्तीकरण में शामिल था और जब वह एक ईंट लेकर आया तो कोठारी बन्धुओं की बुआ ने न केवल हम सभी को गन्दी-गन्दी गलियाँ दी बल्कि उसी ईंट से कई महंगे वीडियो कैमरे तोड़ दिए और हमारे सिर फोड़ने की धमकियां देने लगीं। बीबीसी और विदेशी पत्रकार लगभग 3 बजे सीता रसोई के पीछे के रास्ते से निकल गये। मैंने अपने बचाव के लिए अयोध्या पहुंचते ही एक राम नामी खरीद ली थी उसी को फाड़कर अपने सिर में फटके तौर पर बांध लिया था। और इस तरह से किसी प्रकार सभी पत्रकार वापस फैजाबाद लौटे।

बाबरी विध्वंस केस में सभी 32 आरोपियों को लखनऊ की सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी और यह अचानक हुई थी। कोर्ट ने सीबीआई के कई साक्ष्यों को भी नहीं माना और 28 साल से चले आ रहे इस विवाद पर अपना फैसला सुना दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह पूर्व नियोजित घटना नहीं थी बल्कि अचानक हुई थी। अदालत ने कहा कि जो साक्ष्य हैं वो सभी आरोपियों को बरी करने के लिए पर्याप्त हैं। सिर्फ तस्वीरों के आधार पर किसी को गुनहगार नहीं ठहरा सकते। कोर्ट ने सीबीआई के साक्ष्य पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि एसएपी सील बंद नहीं थी और इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

फैसले में जज एसके यादव ने कहा कि बाबरी मस्जिद को लेकर कुछ भी पहले से तय प्लान के तहत नहीं हुआ था। फोटो, वीडियो, फोटो कॉपी में जिस तरह से सबूत दिए गए हैं, उनसे कुछ साबित नहीं होता है। तस्वीरों के निगेटिव पेश नहीं किए गए।अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में टेम्पर्ड सबूत पेश किए गए। गुंबद पर कुछ असामाजिक तत्व चढ़े। आरोपियों ने भीड़ को रोकने की कोशिश की थी।अखबारों में लिखी बातों को सबूत नहीं मान सकते।

अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले  में 6 दिसंबर, 1992 को 2 एफआईआर दर्ज हुई। पहली एफआईआर 3:15 पर थाना रामजन्मभूमि के तत्कालीन एसओ प्रियंवदा नाथ शुक्ला ने हज़ारों कारसेवकों के खिलाफ और दूसरी एफआईआर 3:25 पर सब इंस्पेक्टर गंगा प्रसाद तिवारी ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल समेत कई आरोपियों को नामजद करते हुए दर्ज कराई थी। इसके अलावा अयोध्या के अलग-अलग थानों में 47 एफआईआर मीडियाकर्मियों ने दर्ज कराई थी, जिसमें उनके कैमरे छीने जाने, तोड़े जाने का आरोप था।

माननीय जज साहब जब छोटे-छोटे नुक्तों पर मुकदमों के फैसले होंगे तब किसी को भी सजा मिलना अपवाद ही होगा। अगर नुक्तों पर फैसला होता तो सम्भवतः तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी के हत्यारों को भी फांसी का दंड नहीं मिलता, बलात्कार के एक भी मामले में सज़ा नहीं होती। जज साहब हर मामले में दो पहलू होते हैं, आप चाहे आधा गिलास खाली के पक्ष में तर्क दें या आधा गिलास भरे के पक्ष में।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। बाबरी मस्जिद के ध्वंस की उन्होंने इलाहाबाद से निकलने वाले नार्दर्न इंडिया पत्रिका के लिए कवरेज की थी। और उन्होंने सब कुछ अपनी खुली आंखों से देखा था।)   

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