न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार हाईकोर्ट के एक सिटिंग जज के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोप में मामला दर्ज किया है। सीबीआई ने मेडिकल कॉलेज घोटाले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ केस दर्ज किया है। शुक्ला पर एक मामले में मेडिकल कॉलेज का पक्ष लेने का आरोप है।
मेडिकल कॉलेज घोटाले में सीबीआई ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एसएन शुक्ला के लखनऊ स्थित घर पर छापेमारी की। सीबीआई ने इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव के खिलाफ भी केस दर्ज किया है। इस मामले में जस्टिस एसएन शुक्ला की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है। जस्टिस कुद्दूसी जमानत पर जेल से बाहर हैं।
सीबीआई ने चार दिसंबर 2019 को धारा 120 बी आईपीसी सपठित भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7, 8,12 और 13 (2), 13 (1 डी) के तहत आरोपियों पर मामला दर्ज किया है। एफआईआर दर्ज होने के बाद सीबीआई ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में कई स्थानों पर छापेमारी की। मामला दर्ज होने की जानकारी सीबीआई की वेबसाइट पर दी गई है।
उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार द्वारा मेडिकल एडमिशन घोटाले में जस्टिस एसएन शुक्ला के विरुद्ध महाभियोग चलाने की सिफारिश पर कोई कार्रवाई न होने पर ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सीबीआई को मामला दर्ज करने की मंजूरी दे दी थी। इसके लगभग तीन महीने बाद सीबीआई ने एफ़आईआर दर्ज की है।
गौरतलब है कि मई 2017 में केंद्र ने प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज समेत 46 अन्य मेडिकल कॉलेजों को उप-मानक सुविधाओं और आवश्यक मापदंडों को पूरा न करने के कारण छात्रों का एडमिशन लेने से मना कर दिया था। केंद्र के इस फैसले को ट्रस्ट ने उच्चतम न्यायालय में याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी। इसके बाद एफआईआर में नामजद लोगों ने साजिश रची और अदालत की अनुमति से याचिका वापस ले ली गई।
अधिकारियों ने कहा कि 24 अगस्त 2017 को हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष एक और याचिका दायर की गई थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि याचिका पर 25 अगस्त 2017 को अदालत की एक खंडपीठ ने सुनवाई की। इसमें जस्टिस शुक्ला शामिल थे और उसी दिन एक आदेश पारित किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि अपने पक्ष में आदेश पाने के लिए ट्रस्ट की ओर से एफआईआर में नामित एक आरोपी को अवैध रूप से पैसा दिया गया था।
इसके पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर जस्टिस शुक्ला को हटाने का प्रस्ताव संसद में लाने को कहा था। 19 महीने पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी यही सिफारिश की थी, जब एक आंतिरक समिति ने जस्टिस शुक्ला को गंभीर न्यायिक कदाचार का दोषी पाया था। इस घटना के सामने आने के बाद से ही जस्टिस शुक्ल से न्यायिक कार्य वापस ले लिए गए हैं।
पीएम मोदी को पत्र लिखने से पहले मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने न्यायिक कार्य फिर से आवंटित करने का जस्टिस शुक्ला का आग्रह खारिज कर दिया था। गौरतलब है कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ कदाचार की उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की शिकायत पर सितंबर 2017 में सीजेआई दीपक मिश्रा ने एक आंतरिक जांच समिति गठित कर दी थी।
इस समिति में मद्रास हाई कोर्ट की तत्कालीन चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीके जयसवाल शामिल थे। समिति को जांच कर पता करना था कि क्या जस्टिस शुक्ला ने वाकई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में विद्यार्थियों के एडमिशन की समय सीमा बढ़ा दी थी?
सीबीआई ने मुख्य न्यायाधीश गोगोई को पत्र लिखकर उनसे मामले की जांच करने की इजाजत मांगी थी। सीबीआई के निदेशक ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा था कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ पीठ, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला और अन्य के खिलाफ सीबीआई ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की सलाह पर तब प्रारंभिक जांच दर्ज की थी जब न्यायमूर्ति शुक्ला के कथित कदाचार के मामले को उनके संज्ञान में लाया गया था।
दरअसल मेडिकल प्रवेश घोटाले के नाम से जाने जाने वाले इस पूरे मामले की एसआईटी जांच की मांग करने वाली एक याचिका उच्चतम न्यायालय में आई, जिसकी सुनवाई नौ नवंबर, 2017 को जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जे चेलामेश्वर की पीठ ने की। पीठ ने इसे गंभीर माना और इसे पांच वरिष्ठतम जजों की पीठ में रेफर कर दिया। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को भी रखा गया और सुनवाई के लिए 13 नवंबर 2017 की तारीख तय की गई।
इसी तरह के एक और मामले का जिक्र कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटबिलिटी एंड रिफॉर्म (सीजेएआर) नाम की संस्था ने भी आठ नवंबर 2017 को जस्टिस चेलामेश्वर की अगुवाई वाली पीठ के सामने रखा था। उस मामले में पीठ ने 10 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय की थी।
10 नवंबर को उच्चतम न्यायालय में हुए एक हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने जस्टिस चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा नौ नवंबर को दिए गए उस फैसले को खारिज कर दिया। इसमें अदालत को रिश्वत देने के आरोपों में एसआईटी जांच की मांग वाली दो याचिकाओं को संविधान पीठ को रेफर किया गया था।
इस पूरी बहस के दौरान वकील प्रशांत भूषण और चीफ जस्टिस के बीच तीखी नोंकझोंक हुई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी रिपोर्ट या एफआईआर में किसी जज का नाम नहीं है। दरअसल सीबीआई ने जिस आधार पर ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व जज कुद्दूसी और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था, उसका आधार वह बातचीत थी, जिससे आभास मिलता है कि उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट की अदालतों में रिश्वत देने की योजना बनाई जा रही है।
आरोप है कि कुद्दूसी ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को कानूनी मदद मुहैया कराने के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय में भी मामले में मनमाफिक फैसला दिलाने का वादा किया था।
इससे तीस साल पहले उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई 1991 को किसी भी जांच एजेंसी को उच्चतम या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायमूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से रोक दिया था और कहा गया था कि एजेंसी को मुख्य न्यायाधीश को मामले से जुड़े सुबूत दिखाए बिना किसी सिटिंग जज के खिलाफ एफआईआर करने की मंजूरी नहीं दी जाएगी।
1991 से पहले किसी भी जांच एजेंसी ने उच्च न्यायालय के सिटिंग जज के खिलाफ जांच नहीं की है। यह पहली बार है जब मुख्य न्यायाधीश ने सिटिंग जज के खिलाफ जांच एजेंसी को एफआईआर दर्ज करने की इजाजत दी और एफआईआर दर्ज भी हो गई।
सीबीआई ने प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में मेडिकल एडमिशन घोटाले को लेकर उड़ीसा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के मालिक बीपी यादव, पलाश यादव और बिचौलिए विश्वनाथ अग्रवाल, भावना पांडेय समेत मेरठ के एक मेडिकल कॉलेज के सुधीर गिरि और अन्य अज्ञात सरकारी और निजी संस्थान से जुड़े लोगों पर केस दर्ज किया था और जनवरी 2020 में कोर्ट ने पेशी के लिए इन्हें तलब भी किया है।
उच्चतम न्यायालय ने 46 मेडिकल कॉलेज पर अनियमिताओं के चलते अगले एक-दो साल तक छात्रों के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी, जिसमें प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज का नाम भी शामिल था।
(जेपी सिंह पत्रकार होने के साथ ही कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)