नई दिल्ली। राहुल गांधी ने कहा है कि केंद्र की बीजेपी-एनडीए का वंशवादी राजनीति के मुद्दे पर दोहरा रुख है क्योंकि मोदी सरकार के मंत्रालय में एक चौथाई मंत्री राजनीतिक परिवारों से आते हैं।
20 वंशवादी परिवारों में छह को उन्होंने ‘परिवार मंडल’ का सदस्य बताया न कि ‘मंत्रिमंडल’ का। और ये सभी मोदी के पहले मंत्रिमंडल में भी शामिल थे। यह पहला मौका है जब कांग्रेस के पहले परिवार ने एक ऐसी लाठी से सत्ता पक्ष पर हमला किया है जिसका अक्सर उसके खिलाफ इस्तेमाल किया जाता रहा है।
राहुल गांधी ने एक्स पर मंत्रिमंडल में शामिल वंशवादी राजनेताओं की एक पूरी सूची पोस्ट किया। उन्होंने लिखा कि वो लोग जो संघर्ष की परंपरा, सेवा और पीढ़ियों के बलिदान को वंशवादी करार देते हैं अब सरकारी परिवारों में सत्ता का वितरण कर रहे हैं। इस दोहरेपन को नरेंद्र मोदी करार दिया जाता है। कैबिनेट मंत्रियों में नौ लोग जिसमें एचडी कुमारस्वामी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजिजू, चिराग पासवान, जेपी नड्डा, किन्जारापू राममोहन नायडू, पीयूष गोयल, वीरेंद्र कुमार खटिक और धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं।
कुमारस्वामी पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे हैं। सिंधिया तीसरी पीढ़ी के राजनीतिज्ञ हैं, रिजिजू के पिता अरुणाचल प्रदेश के पहले प्रोटेम स्पीकर थे। चिराग राम विलास पासवान के बेटे हैं। नड्डा मध्य प्रदेश के एक नेता जयश्री बनर्जी के दामाद हैं। नायडू, गोयल और प्रधान के पिता पूर्व में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। जबकि खटिक के ससुर मध्य प्रदेश के मंत्री रह चुके हैं।
लिस्ट में दूसरे मंत्री जो राजनीतिक परिवारों से आते हैं उनमें प्रमुख रूप से रक्षा खड़से, जयंत चौधरी, कमलेश पासवान, राम नाथ ठाकुर, जितिन प्रसाद, शांतनु ठाकुर, राव इंद्रजीत सिंह, कीर्ति वर्धन सिंह, रवनीत सिंह बिट्टू, अनुप्रिया पटेल और अन्नपूर्णा देवी शामिल हैं।
रक्षा महाराष्ट्र के मंत्री एकनाथ खड़से की बहू हैं। जयंत चौधरी तीसरी पीढ़ी के राजनेता हैं। पासवान के पिता राजनीतिज्ञ थे। ठाकुर कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं। जितिन कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे हैं। शांतनु बंगाल के पूर्व मंत्री के बेटे हैं। इंद्रजीत हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे हैं। कीर्ति यूपी के पूर्व मंत्री के बेटे हैं। रवनीत पंजाब में मारे गए मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के बेटे हैं। अनुप्रिया बीएसपी के संस्थापक सदस्य की बेटी हैं। अन्नपूर्णा पूर्व बिहार एमएलए की पत्नी हैं।
इनमें से कोई भी नेहरू गांधी के दौर की राजनीति से तालमेल नहीं खाता है। लेकिन राहुल गांधी को ज़रूर इसके जरिये अपने आलोचकों को चुप कराने का मौका मिल गया है जो इस मुद्दे पर उनकी घेरेबंदी करते रहते थे।