Thursday, April 25, 2024

नागरिकता कानून पर गांधी को लेकर झूठ बोल रहे हैं मोदी और शाह

नई दिल्ली। महात्मा गांधी न तो लोगों की जेहनियत से मिटाए जा सकते हैं और न ही उनके विचार इतनी आसानी से खत्म किए जा सकते हैं। गांधी को कोई इतनी आसानी से इस्तेमाल भी नहीं कर सकता है। क्योंकि वह इस देश की आत्मा हैं। उनके विचारों के खत्म होने का मतलब है इस देश का खात्मा। लेकिन सरकार न केवल उन्हें बार-बार मारने और लोगों की स्मृतियों से ओझल कर देने की कोशिश कर रही है बल्कि मौके-मौके पर इस्तेमाल करने से भी बाज नहीं आ रही है।

वह यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि उनकी जगह उनके हत्यारे गोडसे को स्थापित करने की कोशिशें भी उसी के समानांतर जारी हैं। और अब तो उनके नेता सार्वजनिक मंचों से “गोडसे जिंदाबाद” के नारे लगाने लगे हैं। जैसा कि इंडिया टूडे टीवी की एक डिबेट में दिखा जब बीजेपी नेता अमिताभ सिन्हा ने कन्हैया के उकसावे पर बाकायदा “गोडसे जिंदाबाद” का नारा लगाया।

नई खबर आयी है कि दिल्ली स्थित बड़ला हाउस जहां गांधी ने आखिरी सांस ली थी, के म्यूजियम से गांधी की हत्या और उसके बाद की तस्वीरों को डिजिटलाइजेशन के नाम पर हटाया जा रहा है। बताया जाता है कि गांधी के आखिरी क्षणों की इन तस्वीरों को फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्टियर ब्रेसन ने बिड़ला हाउस में ही लिया था जब 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या की गयी थी। इस हटाए जाने का संज्ञान खुद बापू के पोते तुषार गांधी ने लिया है। उन्होंने बाकायदा ट्वीट कर इस पर अपना गहरा ऐतराज जाहिर किया है। उन्होंने कहा है कि “हेनरी कार्टियर की विचारोत्तेजक फोटो गैलरी जिसमें गांधी की हत्या के बाद की तस्वीरें लगी हैं, प्रधान सेवक के आदेश पर उन्हें हटा दिया गया है। बापू के हत्यारे ऐतिहासिक साक्ष्य को खत्म कर रहे हैं। हे राम”।

हालांकि इस पर सरकार की तरफ से सफाई भी आयी है। गांधी स्मृति के निदेशक ने भी इसका खंडन किया है। लेकिन उन्हीं के हवाले से यह बताया गया है कि डिजिटल तस्वीरों का अब लूप बना दिया गया है। जिससे डिस्प्ले में वह एक के बाद दूसरी आएगी। इसके पीछे के पूरे मकसद को समझा जा सकता है। इसमें तस्वीरों को देखने के लिए अब किसी शख्स को एक जगह देर तक खड़े रहना होगा। और सामने से तस्वीरें एकाएक गुजर जाएंगी। यानि फिजिकल फोटो से डिजिटल और डिजिटल से कब उसे आर्काइव में डाल दिया जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है।

यह खबर किसी के लिए छोटी हो सकती है लेकिन इसके गहरे निहितार्थ हैं। दरअसल सरकार किसी भी कीमत पर हिंदूवादियों के माथे पर लगे गांधी की हत्या के दाग को धोना चाहती है। लिहाजा उसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि गांधी से जुड़े संस्थानों और सरकार संचालित संस्थाओं में चलने वाली किताबों में बदलाव किया जाए। दूसरी तरफ गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे और उनकी हत्या के आरोपी रहे विनायक दामोदर सावरकर के महिमामंडन का सिलसिला भी जारी रहे। और फिर एक प्रक्रिया में गांधी को गोडसे से प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा।

एक तरफ सरकार गांधी को खत्म करना चाहती है। वह चाहती है कि बापू लोगों की जेहन से मिट जाएं। लेकिन दूसरी तरफ वह उनके इस्तेमाल से भी बाज नहीं आ रही है। और वह भी उनके विचारों और वक्तव्यों को तोड़-मरोड़ कर। हालिया प्रकरण नागरिकता विरोधी कानून का है। जिसमें मोदी से लेकर अमित शाह तक सार्वजनिक भाषणों में चिल्ला-चिल्ला कर इस बात को कह रहे हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का फैसला उनका निजी नहीं है। बल्कि बापू ने खुद कहा था कि ऐसे लोग जो इन देशों में प्रताड़ित महसूस कर रहे हैं उनके लिए भारत का रास्ता हमेशा खुला हुआ है।

लेकिन झूठ शायद मोदी-शाह की जेहनियत का हिस्सा बन गया है। ये जोड़ी जिस बात को गांधी के नाम से प्रचारित कर रही है वह आधा सच है। गांधी ने सही बात है कि यह बात कही थी। आजादी मिलने के बाद से शुरू होकर उनकी मौत के बीच भारत और पाकिस्तान में लोगों की रिहाइश और उनके भविष्य को लेकर तमाम तरह की बातें और आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं। और उसी कड़ी में तमाम समुदायों के नेता गांधी से मिल रहे थे। जिसका जिक्र कल एनडीटीवी के प्राइम टाइम में रवीश कुमार ने किया है। उन्होंने मशहूर साहित्यकार अशोक वाजपेयी के जरिये संकलित इस दौरान के भाषणों और प्रार्थना सभाओं में दिए गए उनके वक्तव्यों का हवाला दिया है।

जिसमें गांधी जी को साफ-साफ न केवल पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू या फिर दूसरे धर्मों से जुड़े अल्पसंख्यकों बल्कि मुस्लिम समुदाय से जुड़े दूसरे शिया, मोहम्मदिया और खास तौर पर उसमें राष्ट्रवादी मुसलमानों का जिक्र है। इन्हें ऐसे मुसलमानों के तौर पर पेश किया गया है जिनकी आस्था आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के साथ थी। इन सभी ने गांधी के सामने पाकिस्तान में शरिया के नाम पर देशद्रोही करार दिए जाने की आशंका जाहिर की थी। जिसको सुनने के बाद गांधी ने कहा था कि उनके लिए भारत के दरवाजे हमेशा-हमेशा के लिए खुले हैं। क्योंकि भारत किसी एक धर्म का नहीं है। हम इसे सेकुलर राष्ट्र बनाने जा रहे हैं जिसमें सभी धर्मों के लोगों का बराबर सम्मान होगा।

15 सितंबर, 1947 की अपनी दिल्ली डायरी में महात्मा गांधी ने लिखा था कि “हिंदू और सिख सही कदम उठाएं और उन मुसलमानों को लौटने के लिए आमंत्रित करें जिन्हें अपने घरों से भागना पड़ा था। अगर वो ये साहसिक कमद उठा पाते हैं जो कि हर तरह से सही है तो उसी समय वो शरणार्थी समस्या के हल की ओर बढ़ जाएंगे। उन्हें सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया से मान्यता मिलेगी। वो दिल्ली और भारत को बदनामी और बर्बादी से बचाएंगे”। mahatmagandhi.org पर यह हिस्सा अंग्रेजी में पढ़ा जा सकता है।

अब गांधी के इन वक्तव्यों के सामने आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह गांधी को गलत तरीके से कोट करने के लिए क्या देश से माफी मांगेंगे। हम भी किस बात की और किन लोगों से उम्मीद कर रहे हैं। इनके लिए झूठ बोलना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है। बल्कि किसी मामले में अगर भूल से कोई सच निकल जाए तो ये लोग जरूर उसके लिए पछतावा करते होंगे।

नागरिकता कानून के मसले पर कल ही लेखिका अरुंधति राय ने कहा कि यह कानून बीजेपी के लिए वैचारिक ध्रुवीकरण का महज एक मोहरा है। उन्होंने कहा कि हर देश की अपनी एक शरणार्थी नीति होती है। और भारत को भी बनानी चाहिए। जिसमें उसको ज्यादा से ज्यादा उदार रखा जाना चाहिए।

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