Thursday, March 28, 2024

सोशल मीडिया से घबरायी मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से की रेगुलेशन की मांग

क्या नरेंद्र मोदी सरकार नहीं चाहती कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर उच्चतम न्यायालय नकेल लगाये ? क्या सरकार गोदी मीडिया और उसके एंकरों अर्णब गोस्वामी, अमीष देवगन, सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप, दीपक चौरसिया, सरदाना और रजत शर्मा आदि द्वारा ऐन केन प्रकारेण सामाजिक वैमनस्य बिगाड़ने के संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाते रहने पर कोई रोक नहीं लगाना चाहती क्योंकि वोट की राजनीति में भाजपा को यह सूट करता है।

ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि यदि मीडिया से जुड़े दिशा-निर्देश (रेगुलेशन) उसे जारी करने ही हैं तो सबसे पहले वह डिजिटल मीडिया की ओर ध्यान दे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े दिशा-निर्देश तो पहले से ही हैं। उसने यह भी कहा है कि डिजिटल मीडिया पर ध्यान इसलिए भी देना चाहिए कि उसकी पहुँच ज़्यादा है और उसका प्रभाव भी अधिक है।

गौरतलब है कि 15 सितम्बर को सुनवाई के दौरान केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि एक पत्रकार की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। तुषार मेहता ने कहा था कि जर्नलिस्ट के विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुप्रीम है। लोकतंत्र में अगर प्रेस को कंट्रोल किया गया तो ये विनाशकारी होगा। एक समानांतर मीडिया भी है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से अलग है और लाखों लोग नेट पर कंटेंट देखते हैं। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि हम सोशल मीडिया की आज बात नहीं कर रहे हैं। हम एक को रेगुलेट न करें सिर्फ इसलिए कि सभी को रेगुलेट नहीं कर सकते? इसके बावजूद केंद्र सरकार ने शरारतपूर्ण हलफनामा दाखिल करके डिजिटल मीडिया को जबरन इसमें घसीटने की कोशिश की है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक आदेशों के तहत शुक्रवार को पीठ के गठन की अनुमति के अधीन शुक्रवार दोपहर 12 बजे तक सुदर्शन चैनल के मुख्य मामले को स्थगित कर दिया क्योंकि पीठ अन्यथा कल नहीं बैठी है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने प्रस्तुत किया कि चैनल ने अपना जवाबी हलफनामा दायर किया है और इस मामले पर जल्द विचार के लिए अनुरोध किया है क्योंकि प्रसारण को रोक दिया गया है।

पीठ ने 15 सितंबर को चैनल को पहली नजर में ये टिप्पणी करने के बाद शो के बाकी एपिसोड टेलीकास्ट करने से रोक दिया था क्योंकि इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को कलंकित करना था। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि एक समुदाय को अपमानित करने का एक कपटपूर्ण प्रयास है और कहा कि एक संवैधानिक न्यायालय बहुलतावादी समाज में किसी भी समुदाय को कलंकित करने की अनुमति नहीं दे सकता है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ इस आधार पर चैनल के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके द्वारा आयोजित शो के प्रसारण के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि वह यूपीएससी में मुसलमानों के प्रवेश को सांप्रदायिक रूप दे रहे हैं। चैनल ने अपने जवाबी हलफनामे में दावा किया है कि वह विदेशों से आतंकी संगठनों से संबंध रखने वाले समूहों के प्रशिक्षण केंद्रों के मुस्लिम समूहों को फंडिंग को देखते हुए खोजी पत्रकारिता कर रहा है।

इस मामले में दाखिल अपने 33 पृष्ठ के हलफनामे में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि यह डिजिटल मीडिया है जिसे अदालत को पहले देखना चाहिए और फिर टीवी या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देखना चाहिए क्योंकि बाद वाले मामलों और पूर्ववर्ती द्वारा नियंत्रित होते हैं। हलफनामे में कहा गया है कि मुख्य धारा के मीडिया में (चाहे इलेक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट), प्रकाशन / टेलीकास्ट एक बार का कार्य है, डिजिटल मीडिया की व्यापक दर्शकों / पाठकों से व्यापक पहुंच है और व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक जैसे इलेक्ट्रॉनिक एप्लिकेशन के कारण वायरल होने की संभावना है । गंभीर प्रभाव और क्षमता को ध्यान में रखते हुए, यह वांछनीय है कि यदि यह न्यायालय नियमन करने का निर्णय लेता है, तो इसे पहले डिजिटल मीडिया के संबंध में किया जाना चाहिए क्योंकि पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट के संबंध में पर्याप्त रूपरेखा और न्यायिक घोषणाएं मौजूद हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान और अदालत के फ़ैसले हमेशा ही रहे हैं। पहले के मामलों और फ़ैसलों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नियमन होता है। केंद्र ने यह स्पष्ट किया है कि चूंकि वर्तमान याचिका केवल एक चैनल अर्थात् सुदर्शन टीवी तक ही सीमित है, इसलिए उच्चतम न्यायालय एमिकस या व्यक्तियों की एक समिति की नियुक्ति के बिना किसी और दिशा-निर्देश को लागू करने की कवायद नहीं कर सकती है।  

एनबीए ने भी हलफनामा दायर किया कि किसी विशेष समुदाय के सांप्रदायिकता के आरोपों के बारे में निजामुद्दीन मरकज मामले में समान मुद्दों पर याचिका मुख्य न्यायाधीश की अदालत में लंबित हैं। एनबीए ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून पहले से ही मौजूद हैं। उनके पास न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड रेगुलेशन (एनबीएसआर) है, जिसमें पूरी तरह से स्वतंत्र नियामक निकाय न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीएसए) स्थापित करने की योजना है।

यदि एनबीएसए को पता चलता है कि कोई भी प्रसारण उनके आचार संहिता या नियमों के खिलाफ है, तो एक जांच आयोजित की जाती है जिसके बाद चैनल को सुना जाता है। दोषी पाए जाने पर ब्रॉडकास्टर पर अधिकतम 1 लाख का जुर्माना लगाया जाता है। एनबीए ने अदालत को बताया कि लाइसेंस के निरस्तीकरण या निलंबन के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी संदर्भित किया जाता है।प्रसारकों को भी सेंसर किया जाता है। एनबीए ने आगे कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया से अलग है और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून पहले से मौजूद हैं।

इस मुद्दे पर 15 सितम्बर को सुनवाई के दौरान पीठ ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन को भी आड़े हाथों लिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि हमें आपसे यह पूछने की ज़रूरत है कि क्या आपका (एनबीए) लेटर हेड से आगे बढ़कर भी कुछ अस्तित्व है। जब किसी आपराधिक मामले की समानांतर जाँच या मीडिया ट्रायल चलता है और प्रतिष्ठा धूमिल की जाती है तो आप क्या करते हैं? एनबीए यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन टेलिविज़न चैनलों के मालिकों की एक संस्था है और न्यूज़ ब्राडकॉस्टिंग स्टैंडर्स अथॉरिटी यानी एनबीएसए प्रसारण में आचार संहिता और दिशा-निर्देशों को लागू कराता है। ये दिशा-निर्देश उन चैनल के लिए होते हैं जो इसके सदस्य होते हैं।

अखिल भारतीय सेवाओं में मुसलमानों के प्रवेश को लेकर उच्चतम न्यायालय में विवादास्पद कार्यक्रम बिंदास बोल का बचाव करते हुए सुदर्शन न्यूज टीवी ने दावा किया है कि वह नागरिकों और सरकार को राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी गतिविधियों के बारे में जगाने के लिए खोजी पत्रकारिता कर रहा है। चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने अपनी ओर से जो हलफनामा प्रस्तुत किया है, उसमें कहा गया है कि उनका किसी भी समुदाय या व्यक्ति के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है और यह भी चार एपिसोड जो प्रसारित किए गए हैं उनमें कोई बयान या संदेश नहीं था कि किसी विशेष समुदाय के सदस्यों को यूपीएससी में शामिल नहीं होना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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