इतिहासकारों को इतिहास और वैज्ञानिकों को विज्ञान पढ़ाना चाहते हैं मोदी: सैनफ्रांसिस्को में राहुल गांधी

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कुछ महीने पहले हमने दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यात्रा संपन्न की। राजनीति में उपयोग में लाये जाने वाले सामान्य माध्यमों से राजनीति संभव नहीं हो पा रही थी। इस प्रकार की मीटिंग, सार्वजनिक सभा इन सभी पर भाजपा और सरकारी एजेंसियों का नियंत्रण बना हुआ था, आम लोगों से संवाद का क्रम नहीं बन पा रहा था, क्योंकि लोग डरे-सहमे हुए थे। ऐसे में हमने भारत के सुदूर दक्षिणी हिस्से से श्रीनगर की यात्रा का निर्णय लिया और हम नतीजे के बारे में पूरी तरह से अनजान थे। हमने सिर्फ यही सोचा कि “देखेंगे क्या होता है?’

हमने अपनी यात्रा शुरू की और प्रतिदिन 25 किमी (हाफ मैराथन से कुछ अधिक) पैदल चलना शुरू किया। इसी बीच अचानक से मेरे घुटनों का पुराना जख्म फिर से हरा हो गया था, जिसने कुछ दिनों तक मुझे काफी तकलीफ दी। लेकिन कुछ दिनों बाद मैंने अचानक महसूस किया कि मुझे जरा भी थकान नहीं महसूस हो रही थी, सुबह 6 बजे से लेकर शाम 7:30 बजे तक चलने के बावजूद थकान का नामोनिशान नहीं था। साथ के  सहयात्रियों से पूछने पर उनकी भी यही प्रतिक्रिया थी। तब मैंने महसूस किया कि असल में हम ही यात्रा नहीं कर रहे थे, बल्कि हमारे साथ समूचा हिंदुस्तान चल रहा था।

और इस भीड़ में सभी धर्मों, सभी समुदायों के लोग शामिल हो रहे थे। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं सभी शामिल थे, और वे एक ऐसा वातावरण निर्मित कर रहे थे, जिसमें प्रेम और स्नेह था जिसके चलते किसी को भी थकान महसूस नहीं हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे सभी एक साथ मिलकर चल रहे थे, एक दूसरे की मदद हो रही थी, जिसके कारण थकान महसूस नहीं हो रही थी। यही वह वातावरण था जिसमें हमारे मन में “नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान” खोलने का आइडिया आया।  

जब सब लोग एक साथ पैदल चल रहे थे, तो एक बिल्कुल अलग तरह की ऊर्जा से हम ओत-प्रोत हो रहे थे। सरकार ने इस यात्रा को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किये। उन्होंने पुलिस का इस्तेमाल किया, लेकिन कुछ काम नहीं कर रहा था। यात्रा का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा था। क्यों हुआ, क्योंकि आप सबने हमारी मदद की। भारत में ही नहीं बल्कि ‘भारत जोड़ो’ का आइडिया आप सभी के दिलों में है। यह एक दूसरे के सम्मान करने और प्रेम सद्भाव का प्रतीक बन गया था। ना कि यह एक-दूसरे के खिलाफ हिंसक हो जाने या एरोगैंट होने में था।

मैं यहाँ पर अपने सिख भाइयों को देख पा रहा हूं, जिनके आराध्य गुरु नानक देव जी का समूचा जीवन ही इसी संदेश के लिए समर्पित है, और वह है सहिष्णु बनो और उन्होंने प्रेम और सद्भावना की शिक्षा दी। हम लोग गुरु नानक जी की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। गुरु नानक जी तो तमाम बाधाओं के बावजूद सऊदी अरब के मक्का तक गये, वे थाईलैंड से लेकर श्रीलंका तक की यात्रा पर गये। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा पर हमारे पैदा होने से काफी पहले ही चले गये थे।

यही बात मैं अपने कर्नाटक के मित्रों के लिए भी कह सकता हूँ, जहाँ बसवान्ना हुए, इसी तरह केरल के मित्रों से कह सकता हूँ कि नारायण गुरु जी इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि देश के हर प्रदेश में ऐसे दिग्गज लोग हुए हैं, और उन सभी ने अपने संदेश में यही बात कही है कि एक-दूसरे को सुनो, सिर्फ अपने धर्म, भाषा या संस्कृति के प्रति सम्मान के बजाय सभी धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के प्रति प्रेम और आदर का भाव अपने भीतर उत्पन्न करो, क्योंकि मूलतः सभी एक ही हैं। 

लेकिन जो हमला आज भरत में किया जा रहा है, वह असल में हमारे जीवन मूल्यों पर हो रहा है। जैसा कि सैम पित्रोदा जी ने अपने पूर्व वक्तव्य में बताया कि कैसे उन्होंने अपना बचपन विभिन्न धर्मों, समुदायों, भाषा और संस्कृतियों को मानने वाले लोगों के बीच में प्रेम और सद्भाव के बीच गुजारा था, आज वही जीवन शैली खतरे में है और उस पर हमला हो रहा है। 

एक चीज और जो भारतीय परंपरा में है, जिस पर गुरुनानक जी, बसवान्ना जी और  गांधी जी ने जोर दिया, वह यह है कि हमें कभी भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि हम सब कुछ जानते हैं, दुनिया इतनी बड़ी और जटिल है कि किसी व्यक्ति को यह गुमान नहीं होना चाहिए कि वह हर चीज के बारे में जानता है और सब चीजों के बारे में उसकी समझ पुख्ता है।

लेकिन भारत में यह बीमारी कुछ समूह के लोगों में घर कर गई है, जो इस बात से पूरी तरह से मुतमईन हैं कि उन्हें सब कुछ पता है। वास्तव में वे यहाँ तक सोचते हैं कि वे ईश्वर से भी अधिक जानते हैं। यहां तक कि यदि वे ईश्वर के सामने बैठ जाएं तो उन्हें भी समझा सकते हैं कि देश-दुनिया में क्या चल रहा है। और निश्चित ही हमारे प्रधानमंत्री जी इसका एक नमूना हैं। मुझे लगता है कि यदि मोदी जी को ईश्वर के सामने बैठा दिया जाए तो वे ईश्वर को समझाने लगेंगे कि ब्रह्मांड कैसे काम करता है। ईश्वर खुद भ्रम में पड़ जायेगा कि उसने किस प्रकार से सृष्टि की रचना की थी। 

ये बातें मजाकिया हो सकती हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा ही कुछ हो रहा है। हमारे यहां कुछ लोग हैं जो समझते हैं कि वे सब जानते हैं। वे वैज्ञानिकों से बात कर उन्हें विज्ञान के बारे में बता सकते हैं, इतिहासकारों को इतिहास के बारे में सिखा सकते हैं, सेना को युद्ध कौशल की जानकारी दे सकते हैं, वायुसेना को कैसे जहाज उड़ाना है सिखा सकते हैं। लेकिन असल में ऐसे लोग बौड़म हैं और कुछ नहीं जानते हैं। क्योंकि जब तक आप दूसरों को सुनते नहीं हैं तो आप कुछ भी सीख नहीं सकते हैं। भारत जोड़ो यात्रा में जो सबसे बड़ा सबक मुझे सीखने को मिला वह था दूसरों को सुनना। वास्तव में हर व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है।

वास्तव में देखें तो यही बात भारतीय परंपरा में पहले से है। यदि आप अपने देश पर निगाह डालें तो आप पायेंगे कि उसमें यह अद्भुत क्षमता है कि वह किसी भी अन्य विचार को अंगीकार करने में सक्षम है। भारत ने कभी किसी विचार को अस्वीकार नहीं किया, इतिहास में जो भी भारत आया उसका दोनों बाहें फैलाकर स्वागत किया गया, और उसे भारत के भीतर समाहित कर दिया। और यही वह भारत है जिसे हम सभी पसंद करते हैं। विश्व भी जिस भारत का सम्मान करता है, वह भारत सहिष्णुता वाला है, और सद्भावना से ओतप्रोत है। इन्हीं मूल्यों का आप लोग भी प्रतिनिधित्व करते हैं, और यदि ऐसा नहीं होता तो आप इस कक्ष में मौजूद नहीं होते। यदि आपका विश्वास क्रोध, घृणा और हेकड़ी भरा होता तो आप बीजेपी की बैठक में होते, और मैं ‘मन की बात’ कर रहा होता।

इसके साथ ही राहुल ने इंडियन डायसपोरा को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा, “तिरंगा हाथ में लिए आप सभी को धन्यवाद। अमेरिका में आपको यह जाहिर करना है कि भारतीय होना क्या है, इसे उनका और उनकी संस्कृति का आदर कर उन्हें आपसे सीखने और सम्मान हासिल करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। आप सभी हमारे देश के राजदूत हैं। जब अमेरिका कहता है कि भारतीय बेहद बुद्धिमान हैं, भारत के लोग आईटी क्षेत्र में अव्वल हैं, भारतीय लोग सम्माननीय हैं, तो यह सब आपके कार्यों और व्यवहार के माध्यम से अर्जित हुआ है। इसके लिए मैं आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ।   

और व्यवहार के आधार पर कहते हैं इसलिए धन्यवाद।

आज मैं 16 घंटे की यात्रा कर सुबह 6:30 बजे पहुंचा, तो मुझे लगा कि मैं यात्रा की थकान के बीच रहूँगा, लेकिन इस कक्ष में आपकी एनर्जी को देखकर कोई थकान नहीं महसूस हो रही है। इसके लिए आप सबका आभार। 

राहुल गांधी के भाषण के बाद आयोजकों ने सवाल-जवाब का सत्र भी रखा, जिसमें 5-6 प्रश्नों को जगह दी गई थी। 

इसमें भारत के सभी जातियों, धर्मों और लैंगिक प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया।

  1. महिला सशक्तीकरण के मुद्दे पर चांसी रेड्डी ने भारत में महिला आरक्षण बिल के कई दशकों से अधर पर लटके होने और महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर राहुल से सवाल किये। इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि पिछली दफा हमारी कुछ सहयोगी पार्टियों ने इसे पारित नहीं होने दिया। अगली बार मौका मिला तो हम इसे लागू करेंगे। महिला सशक्तीकरण का मुद्दा भी इसी से जुड़ा है, जिसमें उन्हें राजनीति, देश चलाने के फैसले में निर्णयकारी भूमिका प्रदान कर हासिल किया जा सकता है। 
  2. तमिलों का प्रतिनिधित्व पूगल अन्डू ने किया। उन्होंने ‘नफरत के बाजार के खिलाफ मुहब्बत की दुकान’ का उल्लेख करते हुए 3,500 वर्ष पुराने तमिल पूर्वजों का उद्धरण दिया। उन्होंने इस परंपरा से जोड़ते हुए सवाल किया कि क्या भारत के विभिन्न राज्य भी संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ इंडिया बनाने की ओर बढ़ेंगे। इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि हमारे संविधान के भीतर ही यूनियन ऑफ स्टेट्स का नाम देकर राज्यों को संघीय ढांचे में रखा गया है, और वे अपनी स्वायत्तता के साथ काम करने में सक्षम हैं। लेकिन हाल के दिनों में बीजेपी सरकार इसके खिलाफ काम कर रही है।
  3. आंबेडकर किंग सर्किल से कार्तिक ने देश के भीतर बढ़ते फासीवाद और उसके चलते बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी को जिम्मेदार बताते हुए राहुल गांधी से इस पर लगाम लगाने के उपायों के बारे में जानना चाहा, जिस पर राहुल का कहना था कि इसके लिए हमने पिछली सरकार में जातीय जनगणना की थी, ताकि सही जानकारी के साथ उन क्षेत्रों पर काम किया जाये और गैर-बराबरी को कम किया जा सके। और इसके लिए भाजपा पर लगातार जातीय जनगणना को सार्वजनिक करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। न्याय स्कीम के जरिये न्यूनतम आय हर नागरिक के लिए, एवं मनरेगा सहित कई अन्य उपायों के माध्यम से वंचित तबकों को न्यूनतम संवैधानिक अधिकार प्रदान किये जा सकते हैं।   
  4. सिलिकॉन वैली से ईसाई समुदाय के जय ने देश की लोकसभा की मौजूदा 545 सीटों को मोदी सरकार द्वारा बढ़ाकर 888 करने पर कुछ राज्यों, अल्पसंख्यकों और वंचित समुदायों को और भी पीछे धकेल दिए जाने पर चिंता जताते हुए सवाल उठाये, जिसके जवाब में राहुल गाँधी ने कहा कि अभी सरकार की क्या योजना है के बारे में ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है, लेकिन सभी राज्यों को महसूस होना चाहिए कि उनके साथ सही प्रतिनिधित्व किया जा रहा है। संसद भवन इत्यादि यह सब ध्यान भटकाने वाले मुद्दे हैं। देश के असली मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई, सांप्रदायिक उन्माद और घृणा, शिक्षा में गिरावट, शिक्षा और स्वास्थ्य का लगातार महंगा होता जाना इत्यादि हैं। 
  5.  बेरिया मुस्लिम समुदाय से मुहम्मद खान ने ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान’ लगाने पर राहुल गांधी का आभार जताते हुए बताया कि किस प्रकार देश में मुस्लिम समुदाय खुद को बेहद असुरक्षित और असहाय पा रहा है। शांति और स्थायित्व के लिए राहुल गांधी की क्या योजना है, के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि आज मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सबसे अधिक आक्रामक रूप से हमले किये जा रहे हैं, लेकिन असल में देखें तो सिख, ईसाई, दलित ही नहीं बल्कि जो सबसे गरीब लोग हैं, उन सभी लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। आज जो मुस्लिम समुदाय के साथ हो रहा है, वह 80 के दशक में दलित समुदाय के खिलाफ किया गया। हमारा प्रयास लगातार इसके खिलाफ जारी रहेगा। 
  6. छात्र समुदाय से एक छात्रा ने देश में महिला पहलवान खिलाड़ियों के न्याय की मांग पर राज्य द्वारा किये जा रहे बर्ताव पर भारत वापस आकर देश के लिए काम करने पर सवालिया निशान उठाया, जिस पर राहुल का कहना था कि आप लोगों को मीडिया में जो दिखाया जा रहा है, वैसा नहीं है। देश को आप जैसे नौजवान लोगों की सबसे अधिक जरूरत है। आप सभी लोग देश के राजदूत हैं, आप अपने जवाब को घृणा और गुस्से में न देकर प्रेम और सद्भाव के साथ दें, और अंततः यही भारत का आईडिया भाजपा को परास्त करेगा।

(कैलिफोर्निया में दिए गए राहुल गांधी के इस भाषण को रविंद्र पटवाल ने ट्रांसस्क्रिप्ट किया है।)

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