भारत के ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में बताया कि 2022-23 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में पंजीकृत 5 करोड़ 18 लाख 91 हजार 168 जाॅब कार्ड को रद्द कर दिया गया है। 2021-22 में रद्द किये गये जाॅब कार्ड की संख्या 1 करोड़ 47 लाख 51 हजार 247 थी। सबसे अधिक जाॅब कार्ड पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलगांना और गुजरात में रद्द किये गये। गिरिराज सिंह ने लोकसभा को बताया कि जाली जाॅब कार्ड, नकल आधारित जाॅब कार्ड, काम न करने वाले जाॅब कार्ड, प्रवासी हो चुके परिवारों के जाॅब कार्ड, जिनकी मृत्यु हो चुकी है उनके जाॅब कार्ड अर्थात फर्जी जाॅब कार्ड को खत्म किया गया है।
यह संख्या बेहद चौंकाने वाली है। 2020-21 में रद्द किये गये जाॅब कार्ड की संख्या 97 लाख 24 हजार 539 थी और 2019-20 में सिर्फ 52 लाख 28 हजार 589 ही थी। 2017 में जब ऐसे ही लगभग एक करोड़ फर्जी जाॅब कार्डों को खत्म किया गया था, तब यह संख्या कुल जाॅब कार्ड का 14 प्रतिशत थी। उस समय यह कहा गया था कि मनरेगा के नाम पर जाॅब कार्ड बनाकर जो लूट हो रही है और पैसे का जो रिसाव हो रहा है उसे रोकने के लिए ऐसा किया गया है।
जाॅब कार्ड खत्म होने में एक बड़ा कारण इसे आधार कार्ड से जोड़ना भी है और आधार कार्ड में निहित कमियां भी हैं। यह जाॅब कार्ड की वैधता के लिए अनिवार्य है। इस रोजगार व्यवस्था में पैसा आधार से जुड़े अकाउंट में ही ट्रांसफर होता है। इसमें एक बड़ा पेंच बैंक की वह प्रक्रिया है जिसमें साल भर में एक बार वह अपने ग्राहक को पुनः चिन्हित करता है। इसे केवाईसी कहा जाता है। इसके दुरुस्त न रहने पर अकाउंट में पैसे का लेन-देन रुकने का खतरा बना रहता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में आधार कार्ड पर नाम के अक्षर और मात्रा और बायो पहचान एक बड़ी समस्या बन चुकी है। खुद आधार कई सारी ऐसी खामियों से ग्रस्त है, जिसका फिलहाल निराकरण नहीं हुआ। खासकर, मजदूर वर्ग से आने वाले समूहों के लोगों के सामने आधार एक बड़ी समस्या बनकर खड़ा हो चुका है।
आमतौर पर जाॅब कार्ड का सीधा संबंध ग्राम सभा के पदाधिकारियों के साथ जुड़ा होता है। वही काम मुहैया कराता है और जाॅब कार्ड के पंजीकरण के आधार पर कार्य दिवस और बैंक द्वारा पैसे ट्रांसफर के बीच में रहता है। डाउन टू अर्थ ने इस संदर्भ में काम करने वाली एक एजेंसी के हवाले से बताया है कि जाॅब कार्ड खत्म होने के कई ऐसे मामले हैं जिसे खत्म करते समय अधिकारियों ने ग्राम सभा के पदाधिकारियों से पूछना भी गंवारा नहीं समझा।
यहां यह बता देना उपयुक्त होगा कि 2022-23 के वित्त वर्ष तक मनरेगा मजदूरों को सरकार द्वारा जो भुगतान रह गया है वह 25 हजार करोड़ रुपये पहुंच रहा है। इस साल मनरेगा मजदूर जंतर-मंतर पर लंबे समय तक धरना देकर अपनी बकाया मजदूरी मांग रहे थे। इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा मजदूरों को 1,984 करोड़ रुपया वितरित ही नहीं किया था। इसके पिछले वित्त वर्ष में यह 2,800 करोड रुपया था।
यहां एक बात और ध्यान में रखने की है कि जाॅब गारंटी का वादा करने के बावजूद जितने जाॅब की मांग होती है उससे काफी कम काम मिलता है। मसलन 2018-19 में कुल 267.9 करोड़ श्रम दिवस के मुकाबले में 2023 में कुल 225.8 करोड़ श्रम दिवस ही सृजित किया गया। 2022-23 के लिए भारत सरकार ने इस योजना के लिए 78,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जो पिछले बजट में 98,000 करोड़ था। आंकड़ों में यह लगभग एक चौथाई कम है। वहीं 2023-24 के लिए बजट अनुमान में 18 प्रतिशत और कम करके इसे 60,000 करोड़ पर ला दिया गया है।
हालांकि ग्रामीण विकास मंत्रालय का दावा है कि बजट अनुमान के आधार पर बनते हैं और यदि मांग अधिक होगी तब अतिरिक्त बजट की मांग कर इसकी भरपाई की जाती है। ऐसा पिछले वित्तीय वर्षों के आंकड़ों में देखा जा सकता है। यहां इस बात को मंत्रालय छुपा ले गया है कि कार्य दिवस की मांग और बजट का अनुमान पिछले साल के मुकाबले गिरता क्यों जा रहा है जबकि मांग बढ़ने का आंकड़ा दिख रहा है।
निश्चित ही फर्जी जाॅब कार्ड की समस्या हो सकती है लेकिन जितने बड़े पैमाने पर जाॅब कार्ड खत्म किये जा रहे हैं, उनकी जांच के लिए ग्रामीण स्तर की व्यवस्था से किस हद तक सहयोग लिया जा रहा है? इन सवालों में उन लाखों लोगों की छिन गई मजदूरी दब रही है जबकि सरकार ने उन्हें रोजगार की गारंटी दे रखी है। इस वित्तीय वर्ष में काम मिलने में देरी, कम काम मिलना और भुगतान की समस्या के बारे में खबरें आ रही थीं। साथ ही यह भी खबर आने लगी थी कि मनरेगा के लिए जारी किये गये पैसे का लगभग दो तिहाई अब तक खत्म हो चुका है। अब जाॅब कार्ड बड़े पैमाने खत्म करने की खबर एक चिंताजनक स्थिति को बयान करती है।
यहां यह बात भी ध्यान में रखना होगा कि मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री रहते समय मनरेगा जैसी योजना के प्रमुख विरोधियों में रहे हैं और इसे अनुत्पादक योजना की तरह देखते रहे हैं। कोविड-19 के दौरान यह योजना ग्रामीण मजदूरों के लिए बेहद कारगर उपाय में बदल गयी थी, लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी सरकार की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। जाॅब कार्ड खत्म करने में जो जल्दबाजी सरकार दिखा रही है वह ग्रामीण मजदूरों के जीवन पर गहरा असर डालने वाली साबित होगी।
(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)