Wednesday, April 24, 2024

यूपी: पुलिस हिरासत में हत्याएं महज संयोग हैं या सोची समझी साजिश?

क्या यह महज संयोग है या सोची समझी साज़िश कि माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी गिरोह के चार सदस्य और करीबी सहयोगी जुलाई 2018 से यानि पिछले पांच वर्षों में न्यायिक हिरासत में मारे गए हैं। सभी हत्याएं अजीब परिस्थितियों में हुईं- यूपी की जेलों के अंदर दो गोलीबारी में और एक अदालत कक्ष के अंदर। लखनऊ कोर्ट में पेशी पर आये संजीव जीवा की हत्या की घटना को अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या की घटना से जोड़कर देखा जा रहा है। इत्तेफाक यह हुआ है कि दोनों ही घटनाएं पुलिस कस्टडी में ही हुई हैं जिसके बाद पुलिस प्रशासन पर सवालिया निशान लगने लगा है। पुलिस कस्टडी में कोई तीसरा यदि आरोपी की हत्या कर देता है तो इसे कानून की भाषा में क्या कहा जायेगा, फर्जी मुठभेड़ या राज्य प्रायोजित हत्या या पुलिस हिरासत में एक्स्ट्रा जुडिशियल किलिंग।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ की कैसरबाग कोर्ट का परिसर बुधवार को उस समय खून के धब्बों से सन गया। यहां पेशी पर लाए गए कुख्यात अपराधी संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की पुलिस हिरासत में ही सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्यारे वकील के वेश में कोर्ट परिसर में मौजूद थे, जिन्होंने मौका पाते ही संजीव जीवा पर ताबड़तोड़ फायर झोंक दिया।

कोर्ट परिसर में अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से सनसनी और अफरातफरी का माहौल बन गया। हालांकि, हमलावरों में शामिल एक युवक को पुलिस ने दबोच लिया, जिसकी पहचान जौनपुर के रहने वाले बदमाश विजय यादव के रूप में हुई, जबकि उसका साथी मौके से फरार हो गया।

संजीव जीवा की हत्या की घटना को अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या की घटना से जोड़कर देखा जा रहा है। इत्तेफाक यह हुआ है कि दोनों ही घटनाएं पुलिस कस्टडी में ही हुई हैं, जिसके बाद पुलिस प्रशासन पर सवालिया निशान लगने लगा है। प्रयागराज में ही माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को बीती 15 अप्रैल को पुलिस कस्टडी में ही बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना में हमलावर पत्रकार के वेश में आए हुए थे।

प्रयागराज में रिपोर्टर बनकर आए बदमाशों में बाहुबली अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस दौरान भी पुलिस की नाकामी पर सवाल खड़े हुए थे और बुधवार को प्रदेश की राजधानी में इतनी बड़ी वारदात के बाद से पुलिस पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।

मुजफ्फरनगर निवासी संजीव माहेश्वरी और उर्फ जीवा लखनऊ जेल में उम्रकैद काट रहा था। जीवा को 1997 में हुए भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्‍याकांड में उम्रकैद हुई थी। उस पर कृष्णानंद राय हत्‍याकांड का भी आरोप लगा था, लेकिन इस मामले में जीवा बरी हो चुका था।

15 अप्रैल 23 को प्रयागराज के एक अस्पताल में रूटीन मेडिकल चेकअप के लिए ले जाते समय माफिया भाइयों अतीक अहमद और खालिद अज़ीम उर्फ अशरफ की हत्या भी पुलिस हिरासत में हुई थी।

घटनाओं के क्रम ने उत्तर प्रदेश की पुलिस को सवालों के घेरे में ला दिया है। क्या इन घटनाओं में पुलिस और जेल प्रशासन की ओर से सुरक्षा में चूक हुई या इन हत्याओं के पीछे कोई बड़ी साजिश है। राजनीतिक दलों ने भी इन घटनाओं पर सवाल उठाए हैं और निष्पक्ष जांच की मांग की है।

इसके पहले 9 जुलाई, 2018 को बागपत जेल में गैंगस्टर प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। गैंगस्टर सुनील राठी ने मुन्ना बजरंगी को जेल के अंदर गोलियों से छलनी कर दिया था। बागपत जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे राठी ने बाद में बजरंगी की हत्या करने की बात कबूल की थी, लेकिन पुलिस हत्या के पीछे उसके सटीक मकसद का पता लगाने में विफल रही। बजरंगी को 8 जुलाई 2018 को घटना से कुछ घंटे पहले ही झांसी जेल से बागपत जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था। इसके अलावा, जेल प्रशासन की भूमिका भी जांच के दायरे में थी कि बंदूक जेल के अंदर कैसे पहुंची।

15 मई, 2021 को चित्रकूट जेल के अंदर मुख़्तार अंसारी के दो अन्य सहयोगियों मेराजुद्दन और मुकीम काला को एक अन्य गैंगस्टर अंशु दीक्षित ने गोली मार दी थी। सवाल उठता है कि दीक्षित ने जेल के अंदर पिस्टल कैसे हासिल की। हत्या के पीछे उसका मकसद कभी पता नहीं चला क्योंकि वह खुद इस घटना में मारा गया था।

भारी हथियारों से लैस पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में अतीक अहमद और खालिद अजीम उर्फ अशरफ को भी गोली मार दी गई। तीन हमलावरों लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण मौर्य को मौके से गिरफ्तार किया गया लेकिन तमाम सवाल अभी तक अनुत्तरित हैं।

जीवा, अतीक अहमद और अशरफ की हत्या ने एक बार फिर यूपी पुलिस और कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिये हैं। इस राज्य में पहले भी पुलिस कस्टडी में हत्या को लेकर सवाल उठ चुके हैं। यूपी में पुलिस कस्टडी में हत्याओं का एक पूरा इतिहास है।

गृह मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 20 सालों में 1,888 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन मामलों में पुलिस कर्मियों के खिलाफ 893 केस दर्ज किए गए और 358 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई। हालांकि सिर्फ 26 पुलिस कर्मियों को सजा दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 1996 में एक केस की सुनवाई के दौरान एक आदेश में कहा था कि किसी भी इंसान की पुलिस कस्टडी में हत्या जघन्य अपराध है। इसके बाद भी आंकड़े पर नजर डालें तो साल 2017 से लेकर साल 2022 तक उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में 41 लोगों की हत्या हो चुकी है। लोकसभा में गृह मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार साल 2017 में 10 लोगों की मौत हुई, साल 2018 में 12 लोगों की पुलिस कस्टडी के दौरान मौत हुई, साल 2019 में 3, 2020 में 8 और 2021 में 8 लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हुई है।

यूपी में पुलिस कस्टडी के दौरान हत्या के 5 बड़े मामले

रफीक हत्याकांड

जीवा, अतीक अहमद और अशरफ की मौत ने राज्य में लगभग सत्रह साल पहले हुए रफीक हत्याकांड की यादें ताजा कर दी हैं। कुख्यात डी-2 गिरोह के सरगना रफीक की भी पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई थी। दरअसल रफीक को एसटीएफ के सिपाही धमेंद्र सिंह चौहान के मर्डर के मामले में कोलकाता से गिरफ्तार कर रिमांड पर शहर लाया गया था। उसके बाद कोर्ट ने उसे एके-47 की बरामदगी के लिए जूही यार्ड के पास ले जाने का आदेश दिया। उसे वहां ले जाया जा ही रहा था कि रफीक पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गईं और रफीक को पुलिस कस्टडी में ही मौत के घाट उतार दिया गया।

राजेश टोंटा की हत्या

मथुरा में पुलिस कस्टडी के दौरान मारे जाने की दो घटनाएं हो चुकी हैं। पहली घटना थी 17 जनवरी साल 2015 की। उस वक्त बृजेश मावी की हत्या के मामले में कुख्यात राजेश टोंटा को मथुरा जेल में बंद किया गया था। जेल में राजेश टोंटा और मावी गिरोह के बीच गैंगवार हो गया। जेल में फायरिंग हुई और बंदी अक्षय सोलंकी की मौत हो गई। वहीं इस गैंगवार में राजेश टोंटा सहित दो लोग घायल हो गए। उसी दिन रात के लगभग 11:45 बजे घायल टोंटा को इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था तभी रास्ते में उसे गोलियों से भून दिया गया।

मोहित की हत्या

साल 2012 में सपा नेत्री की हत्या के आरोप में जेल में बंद मोहित की पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई थी। यह घटना उस वक्त घटी जब मोहित को पेशी के लिए ले जाया जा रहा था। उस वक्त इस हत्या का आरोप शूटर हरेंद्र राणा और उसके साथियों पर लगाया गया था।

श्रवण साहू की हत्या

अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए लखनऊ के सआदतगंज में लड़ाई लड़ रहे एक पिता श्रवण साहू की पुलिस की सुरक्षा में हत्या कर दी गई थी। श्रवण पर जब हमला किया गया तब वह घर पर थे और उनके घर के बाहर पुलिसकर्मी सुरक्षा दे रहे थे। कुछ बाइक सवार बदमाश आए और श्रवण पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

अल्ताफ की मौत

9 नवंबर 2021 को कोतवाली पुलिस की हिरासत में 20 साल के एक युवक अल्ताफ की मौत हो गई थी। पुलिस के अनुसार अल्ताफ के मौत की वजह आत्महत्या थी। उन्होंने बताया कि उसने हवालात के टॉयलेट में टंकी के पाइप पर जैकेट की डोरी से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। हालांकि परिवार ने पुलिस पर हत्या करने का आरोप लगाए थे।

क़ानूनी स्थिति

अगर किसी विचाराधीन कैदी की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी जाती है तो संबंधित अधिकारियों पर आईपीसी की धारा 302, 304, 304ए और 306 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके अलावा, पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 7 और 29 के अनुसार लापरवाह अधिकारियों को बर्खास्तगी या निलंबन की सजा दी जा सकती है।

धारा 302 में हत्या का प्रावधान है, जबकि 304 में गैर इरादतन हत्या का प्रावधान है। 304ए में लापरवाही से मौत का प्रावधान है और 306 में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रावधान है।

दिल्ली के तिहाड़ जेल में गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया की हत्या के बाद अब उत्तर प्रदेश के लखनऊ कोर्ट परिसर में एक गैंगस्टर की हत्या से सियासी गलियारों में खलबली की स्थिति है। इसकी गूंज लखनऊ से दिल्ली तक सुनाई देने लगी हैं। राज्यसभा सांसद और देश के कद्दावर अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एक ट्वीट कर सीधे केंद्र सरकार की नीयत पर ही सवाल उठा दिए हैं। सिब्बल ने गुरुवार की सुबह एक ट्वीट कर केंद्र से सवाल पूछा है कि इस तरह की हत्याएं क्या सरकार को बिचलित नहीं करतीं?

कपिल सिब्बल ने अपने ट्वीट में लिखा है कि “साल 2017 से लेकर 2022 के दौरान यूपी में 41 लोगों की हत्या पुलिस कस्टडी में हुई हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। एक दिन पहले लखनऊ कोर्ट परिसर में अज्ञात हमलावरों ने पुलिस कस्टडी में गैंगस्टर जीवा की गोली मारकर हत्या कर दी। यूपी पुलिस हिरासत में अतीक और अशरफ की भी गोली मारकर हत्या हो चुकी है। हाल ही में दिल्ली के तिहाड़ जेल में टुल्लू ताजपुरिया की गोली मारकर हत्या हुई थी। सिलसिलेवार पुलिस कस्टडी में लोगों की हत्याएं चिंता को बढ़ाने वाली हैं। क्या केंद्र को भी इसकी चिंता है।”

उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ तथा एक्स्ट्रा जुडिशियल किलिन्ग के मामलों को देखते हुए हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने भारत में न्यायेतर हत्याओं पर अपने विचार व्यक्त किये थे और कहा था कि जीवन का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और न्यायेतर हत्याएं इस अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन हैं। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में भारत में पुलिस मुठभेड़ों और न्यायेतर हत्याओं के कई मामले सामने आए हैं जिससे पुलिस द्वारा शक्ति के दुरुपयोग किये जाने को लेकर चिंता जताई जाती रही है।

न्यायेतर हत्या से तात्पर्य राज्य या उसके एजेंटों द्वारा बिना किसी न्यायिक अथवा कानूनी कार्यवाही के किसी व्यक्ति की हत्या करने से है। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे, उचित प्रक्रिया या किसी कानूनी औचित्य के मार दिया जाता है।

संविधान के अनुसार, भारत में कानून का शासन होना चाहिये, संविधान ही सर्वोच्च शक्ति है और विधायिका एवं कार्यपालिका इसी से अधिकृत होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गैर-परक्राम्य अधिकार है। निर्दोषता या अपराध के बावजूद यह पुलिस का कर्त्तव्य है कि वह संविधान को बनाए रखे एवं सभी के जीवन के अधिकार की रक्षा करे।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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