Thursday, September 28, 2023

लोकसभा में गुहार लगाने वाले सांसद की रहस्यमय मौत, सरकार-विपक्ष और मीडिया में छाई मुर्दा शांति

मुझे लगता है कि भारत में पत्रकारिता मर चुकी है। कल एक खबर का जो हश्र देखा है, उसे देखकर बिल्कुल यही महसूस हुआ। कल मुंबई में एक होटल से वर्तमान लोकसभा के एक सांसद की लाश बरामद हुई है और वो भी संदिग्ध परिस्थितियों में। वो भी कोई साधारण सांसद नहीं बल्कि वह सांसद सात बार लोकसभा में चुनकर आया है। हम बात कर रहे हैं, केंद्र शासित प्रदेश दादर नगर हवेली से चुनकर आए निर्दलीय सांसद मोहन डेलकर की। पुलिस प्रथम दृष्टया इसे आत्महत्या मान रही है। अब यह एक बड़ी घटना है, लेकिन आप मीडिया में इस घटना की रिपोर्टिंग देखेंगे तो लगेगा कि यह बड़ी साधारण सी घटना है।

आप ही बताइए कि पिछले 70 सालों में आखिर अब तक ऐसी कितनी घटनाएं होंगी, जिसमें निवर्तमान सांसद की संदेहास्पद परिस्थितियों में लाश बरामद हो और उस स्टोरी पर कोई खोजबीन तक न हो! मैंने कल रात 12 बजे तक सैकड़ों न्यूज़ वेबसाइट खंगाल लिए, लेकिन सब में वही मैटर मिला जो एजेंसी ने दिया था। किसी भी पत्रकार ने यह तलाश करने तक की कोशिश नहीं की कि आखिरकार उस सांसद ने तथाकथित रूप से आत्महत्या क्यों की होगी?

इसके बदले फ़िल्म इंडस्ट्री का कोई साधारण सा अभिनेता यदि आत्महत्या कर ले तो आप मीडिया के पत्रकारों की भूमिका को देखिए, पूरा नेशन वान्ट्स टू नो हो जाता कि उक्त अभिनेता ने आत्महत्या क्यों की, लेकिन एक सांसद पंखे से लटक गया/लटका दिया पर कोई नहीं पूछ रहा।

जब सांसद मोहन डेलकर से संबंधित खबरों को मैंने गहराई में जाकर खंगालना शुरू किया तो एक वीडियो हाथ लगा। यह  वीडियो कुछ ही महीने पुराना है। यह वीडियो लोकसभा टीवी का था। इस वीडियो में सदन में मौजूद स्व. मोहन डेलकर आसंदी पर बैठे ओम बिरला को संबोधित करके कह रहे हैं कि सर मेरी बात सुन लीजिए। इस संबोधन में डेलकर अपने खिलाफ स्थानीय प्रशासन के द्वारा किए जा रहे षड़यंत्र की जानकारी दे रहे हैं।

इस वीडियो से ही हंगामा मच जाना चाहिए था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। बात आई-गई कर दी गई। लोकसभा के इस संबोधन के कुछ समय पहले सिलवासा में उनका एक और वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने यह एलान किया था कि मैं अगले लोकसभा सत्र में इस्तीफा दे दूंगा और अपने इस्तीफे के लिए जिम्मेदार सभी लोगों के नामों का खुलासा करूंगा।

उन्होंने कहा, “मैं लोकसभा में बताऊंगा कि मुझे इस्तीफा क्यों देना पड़ा।” आदिवासी क्षेत्रों में विकास के लिए दिल्ली स्तर पर प्रयास किए गए हैं, लेकिन स्थानीय निकायों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सिलवासा में, विकास के नाम पर लोगों की दुकानों और घरों को ध्वस्त किया जा रहा है और सरकारी शिक्षकों और अन्य नौकरियों के लिए परेशान किया जा रहा है।

इस वीडियो में मोहन डेलकर ने गंभीर आरोप लगाया कि देश अराजकता की स्थिति में है और एक तानाशाही राजशाही की तरह शासन चल रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्र का विकास में एक ठहराव पर आ गया था, क्योंकि स्थानीय स्तर पर प्रशासन ने उनके प्रयासों या विकास कार्यों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने इस वीडियो में यह भी कहा था कि मेरे पास स्थानीय अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी सबूत हैं। यानी आप देखिए कि एक निर्वाचित सांसद खुलेआम सदन में स्थानीय प्रशासन के रवैये को लेकर तानाशाही का आरोप लगा रहा है। स्थानीय अधिकारियों की मनमानी की बात कर रहा है और कुछ दिन बाद उसकी लाश मुंबई के एक होटल में पंखे से लटकती पाई जाती है, लेकिन कोई इस बात पर चर्चा तक नहीं कर रहा है। ….तो यह किसका दोष है? …यह दोष सीधा भारत की पत्रकारिता का ही है कि वह सही संदर्भों के साथ खबर पेश नहीं करती है।

(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

अब अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोलेगा भारत? 

कनाडा में खालिस्तानी कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में अब भारत...