Thursday, April 25, 2024

सुप्रीम कोर्ट की नई पीठ तय करेगी अवमानना की लक्ष्मण रेखा

प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 अदालत की अवमानना मामले में चल रही सुनवाई फिलहाल टल गई है। उच्चतम न्यायालय की नई पीठ अब मामले की सुनवाई करेगी।प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 में शुरू हुए कंटेप्ट मामले को उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे के पास भेज दिया है ताकि मामले को 10 सितंबर को उचित बेंच के सामने भेजा जा सके। प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने दलील दी थी कि इस मामले में जो सवाल उठे हैं उसे संविधान पीठ के सामने रेफर किया जाए। गौरतलब है कि जस्टिस मिश्रा दो सितंबर को रिटायर हो रहे हैं। यानी अब चीफ जस्टिस तय करेंगे कि मामले को किस पीठ के सामने भेजा जाए।

मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कुछ सवाल तय किए जिसका व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। पहला सवाल यह है कि क्या जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए सार्वजनिक टिप्पणी की जा सकती है, किस स्थिति में ऐसी टिप्पणी की जा सकती है? तथा दूसरा सवाल यह है कि कार्यरत और रिटायर्ड जज के संबंध में ऐसे आरोप लगाते हुए किस तरह की प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए?जस्टिस मिश्रा ने कहा कि बड़ा सवाल इस मामले में आया है कि जब किसी जज पर करप्शन का आरोप लगाया जाता है तो क्या वह पब्लिक डोमेन में जा सकता है उसकी क्या प्रक्रिया है। बता दे कि 2009 में भूषण ने 16 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों में से आधे को भ्रष्ट कहा था। कोर्ट इस मामले की ही सुनवाई कर रही है।

इस दौरान प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने दलील दी कि इस मामले में हमने भी सवाल कोर्ट के सामने दिया है। फ्री स्पीच का जो ज्यूरिस्प्रूडेंस है उसमें स्वयं संज्ञान के कंटेप्ट के मामले में क्या प्रभाव है। यानी अदालत ने खुद समय-समय पर अभिव्यक्ति की आजादी को व्यापक किया है उसका प्रभाव न्यायालय अवमान अधिनियम पर जो पड़ता है उस पर विचार की जरूरत है और उसे संविधान  पीठ  को सुनना चाहिए। राजीव धवन ने कहा कि मामले में अटॉर्नी जनरल को नोटिस किया जाना चाहिए।

तब जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसे दूसरे पीठ  के लिए छोड़ा जाना चाहिए साथ ही मामले में एमिकस क्यूरी की भी जरूरत है। तरुण तेजपाल के लिए पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि व्यापक सिद्धांत का मामला है कि अदालत कितना सुप्रीम है। कानून सबसे ऊपर है। हम आते रहेंगे और जाते रहेंगे लेकिन संस्थान सबसे ऊपर है और बना रहेगा। उसे प्रोटेक्ट करने की जरूरत है। कानून सबके लिए समान तौर पर लागू होता है। मामले को संवैधानिक बेंच भेजा जाए।प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 के अदालत की अवमानना मामले में उच्चतम न्यायालय  मेरिट पर आगे सुनवाई करेगा।

प्रशांत भूषण ने मामले में जो स्पष्टीकरण दायर किया था। उच्चतम न्यायालय  ने स्पष्टीकरण को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि मामले में मेरिट पर सुनवाई होगी। उच्चतम न्यायालय  ने 10 अगस्त को कहा था कि प्रशांत भूषण और जर्नलिस्ट तरुण तेजपाल के खिलाफ वह अवमानना के मामले का परीक्षण करेगा और इस बात का परीक्षण करेगा कि उन्होंने जजों के खिलाफ जो टिप्पणी की थी वह आपत्तिजनक टिप्पणी अदालत की अवमानना है या नहीं।

पिछले 4 अगस्त को उच्चतम न्यायालय  ने इस मामले में कहा था कि अगर हमने स्पष्टीकरण/माफीनामा स्वीकार नहीं किया नहीं किया तो मामले की आगे सुनवाई की जाएगी।उच्चतम न्यायालय  ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पिछली सुनवाई में प्रशांत भूषण ने 2009 में दिए अपने बयान पर खेद जताया था लेकिन बिना शर्त माफ़ी नहीं मांगी थी। उन्होंने कहा था कि तब मेरे कहने का तात्पर्य भ्रष्टाचार कहना नहीं था बल्कि सही तरीक़े से कर्तव्य न निभाने की बात थी। प्रशांत भूषण द्वारा साल 2009 में तहलका पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू को लेकर उन पर अवमानना कार्यवाही चल रही है, जिसमें भूषण ने कथित तौर पर ये आरोप लगाया था कि पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में से कम से कम आधे भ्रष्ट थे।

इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय  ने कुछ सवाल तय किए थे। प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने कोर्ट द्वारा भूषण की ओर से जमा कराए गए 10 सवालों की जानकारी दी और कहा कि इस तरह के मामलों में स्पष्टता के लिए इन सवालों पर संविधान पीठ का विचार करना ज़रूरी है। इसके जवाब में जस्टिस अरूण मिश्रा ने कहा कि मेरे पास समय की कमी है।

उन्होंने कहा कि मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा जाए। चीफ जस्टिस तय करेंगे कि बड़ी पीठ सुनेगी या यही पीठ। जस्टिस अरूण मिश्रा 2 सितंबर को रिटायर हो रहे हैं।सुनवाई के दौरान जस्टिस अरूण मिश्रा ने कहा कि जज तो अस्थाई और कालबद्ध होते हैं, लेकिन सीनियर एडवोकेट्स से सुसज्जित बार स्थाई होती है।फली नरीमन और परासरन जैसे अलंकृत वकीलों ने जितनी प्रक्स्टिस की है वो हमारे सेवा काल से कई गुना ज़्यादा है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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