Friday, March 29, 2024

NIA नये शिकार पर:किसान आंदोलन से जुड़े लेखकों, पत्रकारों, दुकानदारों और एक्टिविस्टों को सम्मन

नई दिल्ली। केंद्र सरकार जब किसान आंदोलन को बदनाम करने की अपनी सभी तरकीबों में नाकाम हो गयी तो अब उसने एनआईए को मोर्चे पर लगा दिया है। और एजेंसी भी अपने काम में पूरी शिद्दत से जुट गयी है। महाराष्ट्र से हटकर उसका पूरा फोकस अब पंजाब और हरियाणा पर हो गया है। यहां उसने खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) के बहाने लोगों को निशाना बना शुरू कर दिया है। इसके तहत उसने ढेर सारे किसानों, दुकानदारों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को नोटिस भेजा है।

पहले से ही एसएफजे के खिलाफ कई मामलों की जांच कर रही एनआईए ने उसके खिलाफ एक और केस दर्ज किया है। 15 दिसंबर, 2020 को दर्ज हुए इस केस में एसएफजे पर सरकार के खिलाफ जमीनी स्तर पर अभियान चलाने के लिए एनजीओ के बहाने फंडिंग करने का आरोप है।

सभी लोग जिनको एनआईए की नोटिस गयी है किसी न किसी बहाने दिल्ली की सीमाओं पर तीनों काले कानूनों को वापस लेने के लिए चल रहे किसानों के आंदोलन से जुड़े हुए हैं। अधिकारियों के मुताबिक एजेंसी ने सोमवार को पांच लोगों से पूछताछ की।

ऐसे लोग जिन्होंने एनआईए की नोटिस हासिल की है उनमें अकाल तख्त के एक पूर्व जत्थेदार और जनरैल सिंह भिंडरावाले के भांजे जसबीर सिंह रोड भी शामिल हैं। रोड का कहना है कि वह इंटरनेशनल पंथक दल और किसान बचाओ मोर्चा से जुड़े हुए हैं और दो दिसंबर से ही सीमा पर आकर इस आंदोलन में शरीक हैं।

कुछ और लोग जिन्होंने एनआईए की नोटिस हासिल की है उनमें प्रमुख हैं- जालंधर के एक लेखक बलविंदर पाल सिंह जो सिख और दलित मुद्दों पर लिखते हैं। उन्होंने बताया कि “मुझे अक्तूबर में कोविड-19 हो गया था। और मुझे अभी भी उससे उबरना शेष है। मैं लगातार किसान आंदोलन और किसान, मजदूर, सिख और दलित विरोधी सरकार की नीतियों के खिलाफ लिख रहा हूं। मैंने एक मेडिकल सर्टिफिकेट भेजी है और मेरे स्वस्थ हो जाने तक उसे रोकने की एनआईए से अपील की है।”

दो दूसरे पत्रकार जिन्हें एनआईए ने पूछताछ के लिए बुलाया है उनके नाम जसवीर सिंह और तेजिंदर सिंह है दोनों क्रमश: मुक्तसर और अमृतसर के रहने वाले हैं। और दोनों अलग-अलग क्रमश: केटीवी और अकाल चैनल में काम करते हैं। जसवीर और तेजिंदर ने बताया कि उनका मानना है कि उन्हें किसानों पर आंदोलन की रिपोर्टिंग करने के चलते सम्मन भेजा गया है। तेजिंदर ने बताया कि वो मीडिया के उस हिस्से को चुप करा देना चाहते हैं जो सरकार के किसान आंदोलन को बदनाम करने के काम में उसका सहयोग नहीं कर रहा है। तेजिंदर, जसवीर और मोनू ने अपनी पेशी को टालने की अपील की है।

अंबाला के एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट विनर सिंह से इंग्लैंड और कनाडा में प्रसारित होने वाले एक सिख टीवी चैनल से छह लाख रुपये हासिल करने के बारे में पूछताछ की गयी है।

65 साल के गुरुचरण सिंह सिख कट्टरपंथी जगतार सिंह हवारा से जुड़े रहे हैं। उन्होंने बताया कि “किसान आंदोलन के चलते कुछ परिवारों ने जो अपने परिजनों को खो दिया है उन्हें मैंने कुछ पैसे दिए हैं। शायद सरकार मुझसे उन पैसों का स्रोत जानना चाहती हो।”

होशियारपुर के रहने वाले नोबेलजीत सिंह (37) और करनैल सिंह (55) सिख संगठन आवाज-ए-कौम से ताल्लुक रखते हैं। नोबेल जीत सिंह जिनकी अपनी कपड़े की दुकान है, ने बताया कि “हम इन प्रदर्शनों का पहले दिन से ही समर्थन कर रहे हैं। होशियारपुर के टोलप्लाजा में जाम के दौरान हम लोगों ने हिस्सा भी लिया था। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों के लिए लंगर भी आयोजित किए थे।” करनैल ने बताया कि “हम इन सम्मनों से घबराने वाले नहीं हैं हम कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध-प्रदर्शन जारी रखेंगे।”

इसके अलावा सिख यूथ पावर ऑफ पंजाब (एसवाईपीओपी) के तीन कमेटी सदस्यों पलविंदर सिंह, परमजीत सिंह अकाली और प्रदीप सिंह को भी एनआईए का सम्मन मिला है। पलविंदर सिंह सोमवार को एनआईए के सामने पेश भी हुए। परमजीत सिंह अकाली ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “किसान संगठन कह रहे हैं कि उन्हें पेश होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन हम पेश होंगे क्योंकि हमारे पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है। हमारा लक्ष्य सिख नौजवानों को मजबूत करना है। हमारा एसएफजे से कोई रिश्ता नहीं है।”

दमदमी टकसाल के रंजीत सिंह खुद को खालिस्तानी एक्टिविस्ट करार देते हैं लेकिन उनका कहना है कि एसएफजे से उनका कोई रिश्ता नहीं है। उन्होंने बताया कि “किसानों के विरोध प्रदर्शन में मैंने पगड़ी बांटी थी। मेरे पास उसका बिल है….मैं खालिस्तानी एक्टिविस्ट के तौर पर 2012 से ही काम कर रहा हूं और मैंने कभी भी गैरलोकतांत्रिक या फिर हिंसा का तरीका नहीं अपनाया। मैं किसान आंदोलन का हिस्सा इसलिए बना क्योंकि पंजाब का हर कोई इस मुद्दे से जुड़ा हुआ है।”

लुधियाना के गुरप्रीत सिंह मिंटू मालवा ‘मानुखता दी सेवा’ नाम से एक एनजीओ चलाते हैं जिसने सिंघु पर एक लंगर आयोजित किया था। उन्होंने कहा कि सरकार हमें झुका देना चाहती है।

एक सिख एक्टिविस्ट सुरेंदर सिंह थिकरीवाला सिंघु बार्डर पर कैंप किए हुए हैं और वो वहां पानी, बिस्कुट के साथ भिंडरावाले की फोटो वाली टी शर्ट बांट रहे हैं। उन्होंने बताया कि “एनआईए हम लोगों को डराना चाहती है। एनआईए नोटिस के मामले में मैं किसान संगठनों के निर्देशों का पालन करूंगा। दी गयी तारीख पर मैं पेश नहीं हुआ।”

जंग सिंह एक एक्टिविस्ट हैं जो सिख बंदियों के लिए काम करते हैं। और खास कर ऐसे लोगों के लिए जिनकी सजाएं पूरी हो गयी हैं लेकिन फिर भी उन्हें जेल में रहना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि मैं भी किसान आंदोलन में सक्रिय हूं। सरकार इसलिए यह नोटिस हमें भेज रही है क्योंकि वह साबित करना चाहती है कि इस आंदोलन के पीछे खालिस्तानी हैं।

इसके अलावा लुधियाना के ही रिशमजीत गाभा और नरेश को भी एनआईए की नोटिस मिली है। ननकाना बस कंपनी में दोनों साझीदार हैं। गृहमंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सभी लोग जिनको नोटिस भेजी गयी है उन्हें हाल में विदेश के संदिग्ध स्रोतों से पैसे मिले हैं। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि अभी जिनको सम्मन भेजा गया है उसमें कोई भी आरोपी या संदिग्ध नहीं है। लेकिन अगर उनको विदेश से पैसा मिला है तो एजेंसी को उनसे पूछने का पूरा हक है कि वह राशियां किसलिए हैं।  

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से साभार लिए गए हैं।)  

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