सोनिया गांधी के नेतृत्व में 19 विपक्षी दलों ने देशवासियों से कहा-धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, रिपब्लिकन व्यवस्था की रक्षा के लिए उठ खड़े हों

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कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई वर्चुअल बैठक के बाद 19 विपक्षी दलों के नेताओं ने संयुक्त वक्तव्य जारी करके कहा है कि “हम भारत के लोगों से आह्वान करते हैं कि वे अपनी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक रिपब्लिकन व्यवस्था की पूरी ताक़त से रक्षा करने के लिए इस अवसर पर उठ खड़े हों। भारत को आज बचाइए, ताकि हम इसे बेहतर कल के लिए बदल सकें।”

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बुलायी गयी वर्चुअल मीटिंग में भाग लेने वाले 19 विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार के सामने 11 सूत्रीय मांग रखकर, 20 से 30 सितंबर के बीच विरोध प्रदर्शन करने का एलान किया है।

कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से बुलाई गई वर्चुअल बैठक के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि सरकार पेगासस मामले की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराए, तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करे, महंगाई पर अंकुश लगाए और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करे।

विपक्षी पार्टियों ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों, रसोई गैस, खाने में उपयोग होने वाले तेल और दूसरी ज़रूरी वस्तुओं की कीमतों में कमी की जाए। तीनों किसान विरोधी कानूनों को निरस्त किया जाए और एमएसपी की गारंटी दी जाए।

इसके अलावा मानसून सत्र में सरकर द्वारा चर्चा न कराये जाने और मोदी शाह के सदन में न आने के मामले पर साझा बयान में विपक्षी दलों ने कहा है कि “हम केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के उस रवैये की निंदा करते हैं कि जिस तरह उसने मानसून सत्र में व्यवधान डाला, पेगासस सैन्य स्पाईवेयर के गैरकानूनी उपयोग पर चर्चा कराने या जवाब देने से इनकार किया, कृषि विरोधी तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग, कोविड महामारी के कुप्रबंधन, महंगाई और बेरोजगारी पर चर्चा नहीं कराई। सरकार की ओर से इन मुद्दों और देश एवं जनता को प्रभावित करने वाले कई अन्य मुद्दों की जानबूझकर उपेक्षा की गई।

विपक्षी दलों ने मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में हुए हंगामे का उल्लेख करते हुए दावा किया कि विपक्षी सदस्यों के विरोध को रोकने के लिए मार्शलों की तैनाती करके कुछ महिला सांसदों समेत कई सांसदों को चोटिल किया गया और सदस्यों को सदन के भीतर अपनी बात रखने से रोका गया।

विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि कोरोना महामारी के दौरान सरकार के स्तर पर हुए व्यापक कुप्रबंधन के कारण लोगों को गहरी पीड़ा से गुज़रना पड़ा और संक्रमण के मामलों और मौत के आंकड़ों को भी कम करके बताने की बात भी कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय एजेंसियों के संज्ञान में आईं।

साझा बयान में कोविड की तीसरी लहर की स्थिति से बचने के लिए तेज टीकाकरण पर जोर दिया गया है और कहा गया है कि अभी सिर्फ देश के 11.3 प्रतिशत वयस्कों को टीके की दोनों खुराक दी गई हैं और इस गति से इस साल के आखिर तक सभी वयस्कों का टीकाकरण करने का लक्ष्य हासिल कर पाना असंभव है।

विपक्षी दलों ने साझा बयान में आरोप लगाया है कि टीकाकरण की मंद गति की असली वजह टीकों की कमी है। विपक्षी दलों ने साझा बयान में पेगासस जासूसी मामले को लेकर कहा है कि ये बहुत ख़तरनाक है और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला है।

विपक्षी पार्टियों ने साझा बयान में कहा है कि पेट्रोलियम उत्पादों, रसोई गैस, खाने में उपयोग होने वाले तेल और दूसरी जरूरी वस्तुओं की कीमतों में कमी की जाए। तीनों किसान विरोधी कानूनों को निरस्त किया जाए और एमएसपी की गारंटी दी जाए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का निजीकरण बंद हो, श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाए और कामकाजी तबके के अधिकारों को बहाल किया जाए। विपक्षी दलों ने सरकार से आग्रह किया कि एमएसएमई क्षेत्र के लिए प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए, खाली सरकारी पदों को भरा जाए। मनरेगा के तहत कार्य की 200 दिन की गारंटी दी जाए और मजदूरी को दोगुना किया जाए, इसी तर्ज पर शहरी क्षेत्र के लिए कानून बने।

विपक्षी सदस्यों ने कहा कि पेगासस जासूसी मामले की तत्काल सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराई जाए। राफेल मामले की भी उच्च स्तरीय जांच हो। भीमा कोरेगांव मामले और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों समेत सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजद्रोह/एनएसए जैसे अधिनायकवादी कानूनों का उपयोग बंद हो और गिरफ्तार मीडियाकर्मियों को रिहा किया जाए।

विपक्षी पार्टियां 20-30 सितंबर के दौरान पूरे देश में विरोध करेंगी और इन दलों की राज्य इकाइयां विरोध प्रदर्शनों के स्वरूप के बारे में फैसला करेंगी। विपक्षी नेताओं ने कहा कि हम 19 दलों के नेता भारत की जनता का आह्वान करते हैं कि हमारे धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य की व्यवस्था की रक्षा के लिए पूरी ताकत के साथ आगे आइए। भारत को बचाइए ताकि हम बेहतर कल के लिए इसे बदल सकें।

गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा बुलाई गई इस बैठक में कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दल के नेता शामिल हुए। बैठक में टीएमसी, एनसीपी, डीएमके, शिवसेना, जेएमएम, सीपीआई, सीपीएम, एनसी, आरजेडी, एआईयूडीएफ आदि के नेताओं ने हिस्सा लिया। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी शामिल हुये। जबकि बुलावा मिलने के बावजूद बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने बैठक से दूरी बनाई। जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) को न्योता नहीं दिया गया है। रामगोपाल यादव के घर पर किसी का निधन हो जाने की वजह से समाजवादी पार्टी भी वर्चुअल बैठक में नहीं पहुंची।

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों की बैठक का उद्घाटन वक्तव्य देते हुये बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। उन्होंने कहा कि सिर्फ संसद में ही नहीं, बल्कि बाहर भी विपक्षी दलों को एकजुट होना चाहिए। सोनिया गांधी ने कहा कि सरकार को विपक्ष की एकता की वजह से ओबीसी बिल में संशोधन करना पड़ा। सरकार के अड़ियल रवैये की वजह से मॉनसून सत्र नहीं चल पाया।

उन्होंने आगे कहा कि “वह समय आ गया है जब हमारे राष्ट्र के हितों की मांग है कि हम अपनी मजबूरियों से ऊपर उठें। भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ वास्तव में हमारे लिए अपने व्यक्तिगत और सामूहिक संकल्प की पुष्टि करने का सबसे उपयुक्त अवसर है।”

बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने देश की वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर समान-विचारधारा के दलों की बैठक आयोजित करने की पहल की तारीफ करते हुये कहा “देश में मौजूदा माहौल बहुत निराशाजनक है। किसान कई महीने से विरोध कर रहे हैं, भारत के लिए दर्दनाक तस्वीर है। देश इन दिनों मंदी, कोरोना, बेरोज़गारी, सीमा विवाद का सामना कर रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने कहा कि जो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं उन्हें साथ आना चाहिए तथा समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि – वर्तमान सरकार इन सभी मुद्दों को हल करने में विफल रही है। जो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं; जो लोग हमारे देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बचाने के लिए मिलकर काम करना चाहते हैं, उन्हें एक साथ आना चाहिए, ऐसा मेरा आवाहन है”।

वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ” आज देश के गैर-भाजपा नेताओं के साथ ऑनलाइन बैठक में शामिल हुआ। हम सभी को एकजुट होकर केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ लड़ना होगा।”

वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक में कहा कि सरकार से मुकाबला करने के लिए आपसी मतभेद भुलाने होंगे।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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