सेक्स वर्कर्स के लड़कों और 40 साल पार की स्त्रियों के बारे में कोई बात नहीं करता: नसीमा ख़ातून

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नसीमा ख़ातून पिछले दो दशक से सेक्स वर्कर्स के बच्चों के शिक्षा व अधिकारों के लिए काम करती आ रही हैं। वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एडवाइजरी कमेटी की सदस्य और राजस्थान नागरिक मंच महिला प्रकोष्ठ की महासचिव हैं। नसीमा सेक्स वर्कर्स के लिए हस्तलिखित त्रैमासिक पत्रिका ‘जुगनू’ निकालती हैं। इसके साथ ही वो सेक्स वर्कर्स का सामुदायिक संगठन ‘परचम’ चलाती हैं। नसीमा खातून से सेक्स वर्कर्स की जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं पर जनचौक के लिए सुशील मानव ने बातचीत की:

सवाल: आप सेक्स-वर्कर्स के बच्चों से कैसे जुड़ीं?

नसीमा ख़ातून: मैं जुड़ी नहीं हूं। मैं खुद सेक्स वर्कर्स की बेटी हूं तो जुड़ने का क्या मतलब है।

सवाल: सेक्स-वर्कर्स को समाज में बहुत भेद-भाव का सामना करना पड़ता है, उनके साथ ही उनके बच्चों को भी अपमान और भेदभाव की पीड़ा से गुज़रना पड़ता है, आपकी नज़र में सेक्स वर्कर्स के बच्चों की असली समस्या क्या है?

नसीमा ख़ातून: सबसे बड़ी बात यह है कि उनको लोग बच्चा समझते ही नहीं। आमतौर पर लोग मानते हैं कि इस इलाके में बच्चे नहीं होते। सेक्स वर्कर हैं तो क्या, महिला हैं और महिला तो बच्चा पैदा करती है ना, तो उनके बच्चे कैसे नहीं हो सकते हैं। तो आप कैसे डिफाइन करोगे कि वो बच्चे उसके हैं कि नहीं। ऐसा तो कोई मैकेनिज्म है नहीं उनके पास।

इस इलाके में आधारकार्ड, वोटरकार्ड, जैसे ज़रूरी काग़ज़ात कोई सही तरीके से उनके लिए बनाता ही नहीं है। उनके बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र कहां से बनेगा। तो यह बहुत बड़ी चुनौती है। समाज के सामने भी और हमारे सामने भी। ज़्यादातर लोग यही मानते हैं कि सेक्स वर्कर्स बच्चों को अगवा करते हैं। ख़रीदकर लाते हैं या छीनकर लाते हैं। या चुराकर लाते हैं। तो बच्चे वहीं जन्में हैं यह साबित करना सबसे मुश्किल है। मैं वहां की बेटी हूं मैं जानती हूं मेरे सामने ये साबित करना कितना मुश्किल है।

सवाल: सेक्स-वर्कर्स के बच्चों को समाज के साथ ही अन्य बच्चे भी नीची निगाह से देखते हैं। ऐसे में क्या दिन-प्रतिदिन अपमानित होने से उन बच्चों के मानसिक विकास पर कोई नकारात्मक असर पड़ता है?

नसीमा ख़ातून: देखिए कितनी दूरी है। आपके इस सवाल से पता लग रहा है। बहुत दूरी है। ऐसा तो नहीं है कि जिसने भी यह सवाल लिखा है, आपने या आपके संपादक साहब ने वो दुनिया में नहीं रहते। अभी भी बहुत दूरी है। सोचिए अभी मेरी लड़ाई कितनी लम्बी होगी। तो मैं अभी नहीं कह सकती कि कुछ प्राप्त किया है। अभी तो शुरू किया है।

सवाल: सेक्स वर्कर्स के बच्चों के लिए क्या अलग से स्कूल की व्यवस्था है?

नसीमा ख़ातून: नहीं। ऐसी कोई योजना ही अभी तक नहीं बनी है। जो सेक्स वर्कर्स के परिवार के विकास की बात करे। सिर्फ़ एक ही बात होती है कि धंधा गंदा है। जो इम्मॉरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट है वो कहता है कि यह धंधा यदि स्वेच्छा से किया जाये, 18 साल के ऊपर का व्यक्ति यदि स्वेच्छा से कर रहा है तो मान्य है, जबरन कराया जा रहा है तो आमान्य है। तो स्वेछा अस्वेच्छा की तो बात ही नहीं है क्योंकि वो 40 साल से कर रही है। तो अगर उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है तो उनकी बेटी क्या करेगी। तो वह भी वही करेगी ना। फिर आप कहेंगे कि वो जबर्दस्ती करा रही है अपनी बेटी से। और आप उन पर इम्मॉरल ट्रैफिक एक्ट की सेक्शऩ लगाकर लड़की को मां से दूर कर देंगे। तो कोई व्यवस्थित पैकेज नहीं है। खासकर लड़कियों का। रिहैबिलिटेशन सेंटर के नाम पर किस तरह से कितना सुधार लेकर चलते हैं ये लोग सबको पता है।

सवाल: जब हम सेक्स वर्कर्स के बच्चों की बात कर रहे हैं तो उसमें लड़के भी शामिल हैं, केवल लड़कियों की बात नहीं है?

नसीमा ख़ातून: पहली बार किसी पत्रकार ने सही मुद्दा पकड़ा है। मैं पुराने समय से चैलेंज करती हूं कि जो भी काम हुआ है और जहां भी बात होती है सरकार के घर से लेकर एनजीओ और मीडिया तक, सिर्फ़ दो ही बात होती है सेक्स वर्कर्स और बच्चियां। अब महिलाएं हैं तो लड़का और लड़की दोनों पैदा करती हैं। तो जो बहुत बड़ा तबका है इन इलाकों में लड़कों को पूरी तरह से नेगलेक्ट किया गया है। रेड लाइट एरिया में पलने वाले लड़कों के पास क्या विकल्प है। या तो वो दलाल का काम करेंगे या नशा करेगें। तो शुरू से देखें तो लड़कों के एक बड़े ग्रुप को जो नेगलेक्ट किया गया वो कहां गया? वो क्राइम की ही दुनिया में गया ना। हमारी व्यवस्था ने सिर्फ़ और सिर्फ़ महिलाओं की बात की, लड़कियों के निकालने के लिए बात की, लेकिन जो पैदा होकर आ रहा है उसके बारे में कोई बात नहीं की।

सवाल: ऐसे कितेने बच्चें होंगे पूरे देश में कुछ अनुमान है क्या?

नसीमा ख़ातून: बच्चों की संख्या तो नहीं पता। उनकी कोई गिनती भी हुई है ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है।

सवाल: ऐसे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में क्या कोई अड़चन दिखती है, या उनका विकास सामान्य बच्चों की तरह ही होता है?

नसीमा ख़ातून: पहली बात जो बच्चा ही नहीं दिख रहा है समाज में उसका विकास कैसे मापिएगा। बच्चे का मानसिक विकास कैसे मापा जाएगा जब आपके यहां कहीं भी किसी भी सरकार और समाज के पैटर्न में वो बच्चा ही नहीं दिख रहा। 25 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ‘सेक्स-वर्क’ को ‘पेशे’ के तौर मान्यता देते हुए अपने एक फैसले में कहा है कि सेक्स वर्कर्स को इंसान की तरह देखा जाना चाहिए और वे भी सम्मान और समान सुरक्षा के हक़दार हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों तक फैली हुई है।

सवाल: ऐसे बच्चों के लिए समाज में तो कोई सम्मानजनक स्थान नहीं है, शासन-प्रशासन के स्तर पर उन्हें क्या कोई सुविधा मिलती है, या सेक्स वर्कर्स के बच्चों के शिक्षा-रोज़गार के लिए कोई योजना है?

नसीमा ख़ातून: कोई योजना नहीं है। कोई सुविधा नहीं है। पिछले साल मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट का दिशानिर्देश आने के बाद हमारे इलाके में कलक्टर और जज साहेब सब बात करने आये। उन्होंने मुझसे पूछा कि नसीमा क्या किया जाये। तो मैंने अपने यहां यानि मुज़फ्फ़रपुर के 15 बच्चों की सीवी (जिसमें बाकायदा मेंशन था कि ये बच्चे कितना पढ़ें हैं क्या कर रहे हैं) पकड़ाया कि आप इन बच्चों को जॉब दे दीजिए। मैंने उनसे कहा कि अभी आप 15 बच्चों को जॉब देंगे तो बाक़ी लोग भी आएंगे। तो उन्होंने हमसे कहा कि अभी हमारे पास ऐसा कोई भी पैकेज नहीं है नसीमा। अभी उनको ये पैकेज सोचने में ही बहुत टाइम लगेगा। अभी तक तो जजमेंट में कही बात ही नहीं समझ आ रहा इन लोगों को।

सवाल: सेक्स वर्कर्स के बच्चों को समाज की मुख्यधारा में कैसे लाया जा सकता है?

नसीमा ख़ातून: जब तक समाज की मुख्यधारा के लोग सेक्स वर्कर्स के बच्चों को एक्सेप्ट नहीं करेंगे तब तक कोई मुख्यधारा में नहीं आएगा।

सवाल: समाज के हर व्यक्ति यानि सेक्स वर्कर्स और थर्ड जेंडर का भी मानवाधिकार और क़ानूनी अधिकार है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर वे समाज, शासन-प्रशासन और पुलिस द्वारा उत्पीड़ित होते हैं। उनके अधिकारों को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए क्या पहल होनी चाहिए?

नसीमा ख़ातून: बात होनी चाहिए इस पर। इसके बारे में कोई बात ही नहीं करता। जबकि उस पर बात होनी चाहिए।

सवाल: आप मानवाधिकार आयोग की एडवाइजरी कमेटी की सदस्य हैं, क्या ऐसे आयोग सेक्स वर्कर्स की समस्याओं को संवेदनशीलता से देखते हैं?

नसीमा ख़ातून : अभी तक तो नहीं। लेकिन अब लगता है कि उन्होंने देखना शुरू किया है।

सवाल: वहां आप इस मसले को किस तरह रखेंगी और आगे इसमें क्या योजनाएं बनाने की पहल होगी?

नसीमा ख़ातून: मैंने अभी पहली मीटिंग में उनके सवाल के जवाब दिए हैं। उन्होंने हमें सुना है और उनके मिज़ाज़ बदले हैं। तो देखते हैं आगे क्या होता है।

सवाल: कोरोना और लॉकडाउन के बाद दुनिया में बहुत बदलाव आया है। सेक्स वर्कर्स के जीवन में क्या बदलाव आया?

नसीमा ख़ातून: पहले तो ब्रोथल बेस था। लॉकडाउन के बाद से चीजें बहुत जटिल हो गई हैं। अब आप यह नहीं कह सकते हैं कि कौन सेक्स वर्कर है कौन नहीं है। कहां चल रहा है कहां नहीं चल रहा है। अभी पॉकेट जैसा हो गया है। जैसे पॉकेट एफएम होता है वैसे ये मोबाइल जैसा हो गया है। तो ये कंडीशन किसने बनाया। उन्हीं लोगों ने बनाया है जो लोग कहते हैं कि हम नहीं चाहते कि यह हो। तो समाज में जो बहुत सारे लोग हैं जो यह चाहते हैं कि कुछ बेहतर करें उनको मदद करनी चाहिए इसमें। मदद करने का मतलब यह नहीं कि उनको रोकना है। मदद करने का मतलब यह कि एक जो स्पेस उनका खत्म हो रहा है उस स्पेस को नहीं खत्म होने देना चाहिए। नहीं तो यह बहुत बड़ी बात हो जाएगी कि आप नहीं समझ पाओगे कि कहां आप खड़े हो कहां नहीं। पहले स्पेस था अब नहीं है। स्पेस ही नहीं देंगे तो फिर कैसे आप तय करेंगे कि कौन कहां है। फिर कैसे उन चीजों को लेकर जाया जा सकता है।

सवाल: ब्रोथल बेस तो ठीक है लेकिन रेलवे स्टेशनों पर, बस अड्ड़ों पर होटल, पार्लर्स में हैं तो वहां पर कैसे इनके लिए काम होता है?

नसीमा ख़ातून : ये यहां पर क्यों आये क्योंकि उनका स्पेस छीना गया है ना। कोई भी काम करने के लिए यदि एक जगह नहीं होगा तो क्या होगा। वो वेंडर ही बनेंगे ना। घूम घूमकर बेचेंगे। आप देखे होंगे कि नगर पालिका ने नगर के बाहर वेंडर लगाने वालों को उजाड़ दिया। तो उन्होंने मूव करना शुरू कर दिया। सेक्स वर्कर्स की पूरी पद्धति और परम्परा की बात करेंगे तो पहले उनके लिए एक स्पेस दिया गया था चाहे वो मौर्य काल हो या मुग़ल काल। या कोई औऱ दौर। एक स्पेस क्लियर करके इनके लिये दिया गया था लोगों को पता चलता था कि यहां पर ये लोग हैं। अभी सब रिहैबिलिटेशन रिहैबिलिटेशन बोलकर स्पेस छीन रहे हैं। अब आपके पास तो पैकेज है नहीं अभी भी।

मैनें एनएचआरसी को भी बोला कि वो दूसरी दुनिया कौन सी है आप बता दीजिए मैं सबको लेकर चली जाऊं। लेकिन आपके पास वो दूसरी दुनिया नहीं है देने के लिए। लेकिन फिर भी आप क्या कह रहे हैं कि हम बदलाव कर रहे हैं। बदलाव क्या हो रहा है। अब आपको वो चलते फिरते नज़र आ रहे हैं। आपके घर तक नज़र आ रहे हैं। तो अब आपकी बेचैनी है कि भैया ये तो ग़लत हो गया। तो ग़लत उन्होंने नहीं किया। आपने उनको कुछ नहीं दिया सिवाय छीनने के। जो भी है उनके पास वो छीना गया है और अभी भी छीनने की ही बात होती है। आपने देने की कहां कोशिश की है। आप बता दीजिए। आपको अभी तक कहीं ऐसा पहल दिखा। कि प्रशासन और सरकार खुद से जाकर उस इलाके में ये ये काम किये हों। लोगों को राज़ी किया हो जो भी दिया आपने इस शर्त पर दिया कि पहले छोड़ दो। अरे पहले आप बिना शर्त के दो तो फिर आपको खुद पता चल जाएगा कि कितने लोग निकल रहे हैं।

सवाल: सेक्स वर्कर्स का इतिहास में गौरवशाली स्थान रहा है। आम्रपाली, बसंतसेना से लेकर उमराव जान तक। मिथकों में रम्भा, उर्वशी, मेनका का भी जिक्र आता है। तो वर्तमान में सेक्स वर्कर्स को लेकर इतना विद्रूप कैसे?

नसीमा ख़ातून: आज की तारीख में लोग डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि हम वहां जाएंगे उस एरिया में तो लोग जान जाएंगे तो उन लोगों ने कहा कि हम नहीं जाएंगे इन्हीं को डायल्यूट कर देते हैं। जो असल में पंगा है। इनको हटाओ, इनका रिहैबिलिटेशन करो ऐसे करते करते क्या हुआ कि चीजें अब आपके घर तक आ गईं। तो स्थिति अभी यह है। हम कह रहे हैं कि नहीं होना चाहिए लेकिन आप चाहते नहीं हो कि नहीं होना चाहिए।

अगर आप चाहते तो इनके बच्चों को एक्सेप्ट करते। अगर आप चाहते तो इनको यहां स्पेस देते। अगर आप चाहते तो एक महिला जो एक उम्र के बाद इस पेशे से रिटायर हो जाती है उनके लिए बात करते। दो लोग इस इलाके के किसी को नहीं दिखाई देते। एक जो यहां के लड़के बच्चे होते हैं सेक्स वर्कर्स के और जो बुजुर्ग महिलाएं हैं जो सेक्स वर्क से रिटायर हो जाती हैं 35-40 साल के बाद। वो लोगों को दिखाई देना बंद क्यों हो जाते हैं। न सरकार को दिखाई देता है, न मीडिया को न एनजीओ को। जो संस्थाएं हैं उनको नहीं दिखाई दिया अभी तक। लेकिन अब आप जिक्र करोगे तो सबको दिखाई देने लगेगा। सब ढूंढ़ना शुरू कर देंगे।

इस इलाके के लिए एचआईवी पर NACO का एक प्रोजेक्ट चलता है लक्षित हस्तक्षेप (TI) के नाम से। उसमें एक पंगा है, वो कहते हैं कि 40 साल के नीचे जो महिलाएं हैं वो उनके लिस्ट में हैं उनके लिए वो काम करेगें एचआईवी एड्स पर। और सब पैकेज भी देंगे।

लेकिन 40 के पार होते ही वो महिलाएं कुछ नहीं हैं। वो हैं ही नहीं इस दुनिया में। तो उनको राशन भी नहीं देंगे। उनको हेल्थ सुविधा भी नहीं देंगे। उनको कुछ भी नहीं दिया जाएगा। इस बात को हमने अभी राष्ट्रीय मानावधिकार आयोग में भी उठाया है कि आप क्या कहते हो कि 40 के बाद वो लोग ज़िन्दा नहीं रहें। ये मानवता का हनन है। जैसे आम समाज में बुजुर्ग होने के बाद लोग मां बाप को छोड़ देते हैं वही हाल यहां कि महिलाओं का है 40 के बाद उनकी कोई वैल्यू नहीं होती।

सवाल: सबसे ज़्यादा किस जाति, वर्ग या सम्प्रदाय की स्त्रियां हैं इस पेशे में ?

नसीमा ख़ातून: सभी जाति की महिलाएं हैं। आखिर किस जाति में महिलाओं के साथ एट्रोसिटी नहीं होती है। सभी जाति धर्म की स्त्रियां कहीं न कहीं घर छोड़कर जाती हैं या मूव ऑन करती हैं। तो आप इस इलाके में यह नहीं फिक्स कर सकते। हां इस इलाके में जाने के बाद वो किसी एक धर्म की हो जाएंगी। लेकिन ये नहीं कह सकते कि वो एक ही धर्म की महिलाएं हैं। ये कहना बिल्कुल ग़लत होगा। लोग वहां जाकर अपने धर्म को कन्वर्ट कर लेते हैं। जैसे मेरी दादी का नाम शांति बीबी है। अब बताइये शांति देवी होना चाहिए ना, बीबी कैसे हो गई।

किसी का नाम रेखा ख़ातून हो उस इलाके में तो आपको क्या लगेगा रेखा है और ख़ातून क्यों है। तो ये कन्वर्टेड है। उस इलाके में उनको स्पेस भी दिया जाता है जो लोग उनको एक्सेप्ट करते हैं। दूसरा, धर्म कोई मुद्दा नहीं है। अपने धर्म को मानना चाहे तब भी ठीक है, न मानना चाहे तब भी ठीक है। सबकी एक ही जाति धर्म है। बाक़ी जो जिस धर्म को मानना न मानना चाहे सब ठीक है। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है यहां। तीसरा उनको कोई बंदिश नहीं है कि आप ये नहीं कर सकते वो नहीं कर सकते।

सवाल: बाहर से भी माइग्रेट होकर स्त्रियां इस समुदाय में आती हैं?

नसीमा ख़ातून: हां! आज सेक्स वर्कर्स दुनिया में केवल एक जगह नहीं मिलते हैं। वो हर जगह मिलती हैं। हर घर के बग़ल में आज की तारीख़ में सब हो रहा है। तो अब ईजी हो गया है सेक्स वर्क।

सवाल : क्या रेड लाइट एरिया में महिलाएं ट्रैफिंकिंग से आती हैं?

नसीमा ख़ातून: नहीं! ट्रैफिकिंग अलग मुद्दा है। ट्रैफिकिंग एक गंभीर विषय है और इस पर काम होना चाहिए। मैं सरकार और प्रशासन दोनों से कहती हूं कि जब तक आप इस इलाके के लोगों के साथ मिलकर काम नहीं करेंगे तब तक ट्रैफिकिंग को नहीं रोक सकते। ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए ये लोग क्या करते हैं कि सेक्स वर्कर्स को ही ट्रैफ़िकर घोषित कर देते हैं। जोकि ग़लत है। वो महिला तो विक्टिम है ना। वो तो आपके उस सताये हुए खेमे से निकलकर वहां गई है। वो ट्रैफिकर कैसे हो सकती है। ट्रैफिकर कौन है जो बाहर रह रहा है। जो मूवऑन कर रहा है हर समाज में रहता है। और वो बड़ी आसानी से लड़कियों को लेकर मूव कर रहा है।

आज जब हम बात कर रहे हैं तब भी कितनी लड़कियों की ट्रैफिकिंग हो रही होगी और वो समाज के अच्छे हिस्से से हो रहा होगा। लेकिन उनकी पहुंच इतनी है कि सेक्स-वर्कर्स महिलाएं उनका कुछ नहीं उखाड़ सकती। इस समाज की महिलाएं खुद ट्रैफिकिंग से चिंतित हैं वर्ना आप बताइये कि मेरी दादी मुझे उस पेशे से बाहर रखने के लिए क्यों संघर्ष करतीं और मुझे इस पोजीशन में ले आतीं। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया।

कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी आने वाली पीढ़ी इस पेशे में रहे। सेक्स वर्कर्स भी नहीं चाहती। लेकिन जो समाज में बैठे ट्रैफिकर हैं वो ऐसा चाहते हैं क्योंकि इससे उनके घर में पैसा आना है। उनको प्रॉफिट होना है और उनका कॉलर पकड़ना सरकार और प्रशासन के बस की बात नहीं है। इसीलिए वो किसको पकड़ेगे, सेक्स वर्कर्स को।

सवाल: कुछ ऐसा जो छूट गया हो और आप साझा करना चाहें?

नसीमा ख़ातून: सवाल-जवाब में यही होता है कि आप उतना ही सुनना चाहते हैं जितना पूछ रहे हैं। हमारा काम आप सवाल-जवाब में कैद करके देखेंगे तो शायद आप जो ढूंढ़ रहे हैं वो नहीं मिलेगा। क्योंकि हर जगह सवाल- जवाब नहीं होता यह बिजनेस में होता है। समाज में तो जीवन पूछा जाता है। ख़ैर एक बात जो मैं हमेशा सबसे कहती हूं, ज़रूरी नहीं है कि पहल किसी एक व्यक्ति को करनी पड़े। कोई भी कर सकता है। बस उनकी मंशा सही होनी चाहिए।

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