आज केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के लिये केंद्रीय बजट पेश किया गया। वित्तमंत्री ने इस बजट को ‘अमृत काल’ के अगले 25 वर्षों का ब्लू प्रिंट बताया।
अमृत काल में सरकार ने कंपनियों के लिए रियायती 15 फीसदी कॉर्पोरेट टैक्स को एक साल के लिए और बढ़ा दिया है। वहीं वित्त वर्ष 2020-21 में 2.48 लाख करोड़ की फसल ख़रीद की तुलना में वित्तवर्ष 2021-22 में 2.37 लाख करोड़ की फसल ख़रीदना सरकान ने अपनी नई उपलब्धि गिनाई है।
आज बजट पेश करते हुये वित्तमंत्री ने कहा कि 2021-22 में रवि सीजन और खरीफ सीजन में धान और गेहूं की खरीद 1208 लाख मीट्रिक टन रही है, जिसे 163 लाख किसानों से खरीदा गया। और 2.37 लाख करोड़ का एमएसपी आधारित डायरेक्ट पेमेंट सरकार की ओर से किया गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि आने वाले सालों में पूरे देश में केमिकल फ्री खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इस दौरान गंगा किनारे रहने वाले किसानों की ज़मीन पर खास फोकस रहेगा।
इसके लिए 5 किलोमीटर चौड़ा कॉरिडोर बनाया जाएगा। अमृतकाल के किसानों को ड्रोन के सपने दिखाये गये हैं। इसके अलावा कोरोना की दंश झेल चुकी ग्रामीण जनता को महंगी दवाइयों की सौगात दी गई है। अब भारत में बनाई जा सकने वाली और इम्पोर्ट होने वाली दवा महंगी होगी। इसके अलावा पीएम आवास योजना के तहत 80 लाख घरों के निर्माण के लिए 48 हजार करोड़ का आवंटन की बात है।
हमने इस आम बजट 2022-23 में ग्रामीण आबादी और किसानों को क्या मिला इसके लिये किसान नेताओं और किसानों से बात की है।
बदला लेने वाला बजट
किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा है कि यह सरकार किसान आंदोलन से किसानों से इतना तिलमिलाई हुयी है कि अब किसानों से बदला लेने पर उतारू है। इस बार के बजट में किसानों को न तो पैसा मिला है न ही नाम के लिये भी कोई घोषणा हुई। इस बजट में किसानों को चुप्पी मिली है। उन्होंने आगे कहा कि साल 2022 डेडलाइन थी जब किसानों की आय दोगुना करने का काम होना था। पिछले पांच साल से वित्तमंत्री डबलिंग डबलिंग का डमरू बजा रही हैं। और इस बार जब डबलिंग होनी थी तो एकदम चुप्पी तान ली। पिछले दो साल से कह रहे थे कि एग्रीमेंट इनवेस्टमेंट फंड 1 लाख करोड़ रुपया और खर्च हुआ है सिर्फ़ 2.5 हजार करोड़।
किसानों, कृषि श्रमिकों की उपेक्षा
अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के महासचिव आशीष मित्तल ने बजट पर प्रतिक्रिया देते हुये कहा है, “इस बजट में किसानों और कृषि मजदूरों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है। पारिवारिक आय में कृषि आय का योगदान 48 प्रतिशत से गिरकर 37 प्रतिशत हो गया है। और श्रम मजदूरी का योगदान 32 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया है। उन्होंने आगे कहा कि इस बजट में कॉर्पोरेट और विदेशी निवेशकों, एफडीआई की भीड़ को बढ़ावा, खाद्य प्रसंस्करण, एफपी कंपनियों, खाद्य एकत्रीकरण, ओडीओपी, मेगा फूड पार्क ई- नाम आदि को बढ़ावा दिया गया है।
उन्होंने आगे कहा कि कोविड के दौरान मनरेगा पीडीएस के आंकड़े बेरोज़गार हुये लोगों को तुच्छ समर्थन दिखाते हैं। बजट में खाद्य फसल विविधीकरण में सुधार के लिये प्रयास नहीं है। जबकि पर्यावरण के लिये ख़तरनाक पाम तेलों को बढ़ावा दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पीडीएस में नकद हस्तांतरण में शिफ्ट करने की योजना है। सिंचाई के बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिये कोई ठोस कदम बजट में नहीं उठाया गया है।
आशीष मित्तल ने आगे कहा कि रासायनिक मुक्त प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना एक छलावा है। इससे एक ओर उत्पादकता गिरेगी दूसरी ओर सरकार उर्वरक सब्सिडी खत्म कर देगी।
जहर का प्याला है यह बजट
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकार और किसान नेता पुरुषोत्तम शर्मा ने बजट -2022-23 पर प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि “यह बजट कार्पोरेट लूट को बढ़ाने वाला है। इस देश के किसानों और गरीबों के हाथ में जहर का प्याला है। सरकार खासकर प्रधानमंत्री कई सालों से वायदा कर रहे हैं किसानों की आय दोगुनी करने की, लेकिन इसका कोई प्रावधान इस बजट में नहीं है”।
एसएसपी पर ज़्यादा फसलों को ख़रीदने की बात कही गई है लेकिन इसके लिये बजट का कोई प्रावधान नहीं है। आप कह रहे हैं कि हम ज़्यादा ख़रीदेंगे लेकिन आपकी अनाज भंडारण की क्षमता ही नहीं है। भंडारण क्षमता बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है बजट में। खाद, बीज, कीटनाशक, डीजल, बिजली के भारी रेट से खेती की लागत बड़े पैमाने पर बढ़ जाती है लेकिन बजट में इनसे राहत का कोई प्रवाधान नहीं है। किसान को इस बजट से कुछ नहीं मिल रहा है।
किसानों की प्रतिक्रिया
फूलपुर के किसान राजेंद्र पटेल बजट में निराशा जताते हुये कहते हैं महंगाई इतनी ज़्यादा बढ़ गई है। एक बार 10 बिस्वा खेत सींचना हो तो 200 रुपये देने पड़ते हैं। यूरिया, डाई पोटास के दाम तो बढ़े ही हैं। डीजल का दाम, बिजली का बिल, खाद के दाम, बीज के दाम, कम होने चाहिये थे। किसानों का कर्ज़ा माफी के लिये कुछ प्रावधान नहीं किया।
जगदीश पटेल कहते हैं कि ड्रोन लेकर साहूकार लोग कमायेंगे किसानों को क्या मिलेगा। वो बताते हैं कि जिस दुकान से कीटनाश दवा लेते हैं वही मशीन भी देता है। ड्रोन आ जायेगा तो हमें ज़्यादा किराया देना होगा। कमाई कुछ नहीं बढ़ा रही उल्टा यह सरकार एक-एक खर्चा ही बढ़ा दे रही है।
प्रयाराज में नवाबगंज के एक किसान श्रवण कुमार तिवारी कहते हैं कि “इस साल धान की ख़रीदी सरकार ने नहीं की। मैं आज तक इंतजार करता रहा लेकिन सरकारी ख़रीद नहीं हुई। सरकार को किसानों की फसलों के लिये एक स्थायी मंडी हर तहसील में देनी चाहिये जहां बारहों महीने 24 घंटे फसल की ख़रीदी हो। बजट में सरकार ने हमें कुछ नहीं दिया है”।
कृषि मजदूर और बीड़ी बनाने वाली उर्मिला देवी कहती हैं कि “सरकार मनेरगा का काम बंद क्यों कर दी। अब कुछ काम नहीं मिलता है। खेती में भी अब कटाई मड़ाई का काम मशीनों से होने लगा है। वहां भी काम नहीं बचा। हमें राशन के साथ दाल, तेल, मसाला और सब्जी दूध के लिये कुछ नगद देने का इंतजाम सरकार को करना चाहिये। सरकार हाथ विहीन (काम हीन) लोगों के जीने का सहारा नहीं देगी तो कहां जायेंगे हम”।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)