महिला संगठनों की जांच रिपोर्ट: कश्मीर में कुछ भी सामान्य नहीं, धीरे-धीरे स्थिति में सुधार का दावा गलत

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श्रीनगर। सितंबर 17-21, 2019 को 5 महिलाओं के एक जांच दल ने कश्मीर का दौरा किया। जांच दल में नेशनल फेडरेशन इंडियन वुमन की एनी राजा, कंवलजीत कौर, पंखुड़ी जहीर, प्रगतिशील महिला संगठन की पूनम कौशिक और मुस्लिम वुमन फोरम की सईदा हमीद थीं। जांच दल का कहना है कि हम अपनी आंखों से देखना चाहते थे कि 43 दिन की बंदी ने जनता को, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को कैसे प्रभावित किया। जांच दल ने कश्मीर में अपने अवलोकन व अनुभवों की रिपोर्ट में दो निष्कर्ष दिए हैं। पहला यह कि पिछले 50 दिनों में कश्मीरी लोगों ने भारत सरकार और फौज की बर्बरता और अंधकारमय दौर में कमाल का लचीलापन दिखाया है। दूसरा यह कि यहां कुछ भी सामान्य नहीं है। जिन लोगों का दावा है कि स्थिति धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लौट रही है, उनका दावा पूरी तरह गलत  है।
जांच दल ने कश्मीर दौरे के बाद केंद्र सरकार से मांग की है कि कश्मीर में सामान्य स्थिति कायम करने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को तत्काल प्रभाव से हटा लिया जाए। विश्वास पैदा करने के लिए तुरंत सभी एफआईआर व केस समाप्त कर दिया जाए और उन सभी को, विशेष रूप से उन युवाओं को, जो हिरासत में हैं और जो अनुच्छेद 370 के रद्द होने के बाद से जेल में हैं, रिहा कर दिया जाए। न्याय सुनिश्चित करने के लिए सेना और अन्य सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गई व्यापक हिंसा और यातनाओं की जांच कराई जाए। उन सभी परिवारों को जिनके प्रिय सदस्यों की परिवहन न मिलने और संचार न उपलब्ध होने की वजह से जान चली गयी है, को मुआवजा दिया जाए।

इसके अलावा इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क सहित कश्मीर में सभी संचार लाइनों को तत्काल बहाल किया जाए। अनुच्छेद 370 और 35 ए को पुनर्स्थापित किया जाए। जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक भविष्य के बारे में जम्मू और कश्मीर के लोगों के साथ संवाद की प्रक्रिया के माध्यम से सभी निर्णय लिए जाने चाहिए। जम्मू-कश्मीर के असैनिक क्षेत्रों से सभी सेनाकर्मियों को हटाया जाए। सेना द्वारा की गयी ज्यादतियों की जांच के लिए समयबद्ध जांच समिति बनाई जाए।

श्रीनगर के साथ-साथ जांच दल ने शोपियां, पुलवामा और बांदीपोरा जिलों के कई गांवों का दौरा किया। जांच दल अस्पतालों में, स्कूलों में, घरों में व बाजारों में गया। जांच दल ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पुरुषों, महिलाओं, युवाओं और बच्चों से बातचीत की। दौरे के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुकानें बंद थीं, होटल बंद थे, स्कूल, कॉलेज, संस्थान और विश्वविद्यालय बंद थे, सड़कें वीरान थीं, यह वह पहला दृश्य था जो जांच दल ने हवाई अड्डे से गाड़ी से निकलते समय देखा। इस सब ने जांच दल को  खुलकर सांस लेने पर रोक लगे होने, सजा के माहौल का, एहसास दिलाया।

चारों जिलों के सभी गांवों में लोगों का अनुभव एक जैसा था। सभी ने बताया कि 8 बजे रात के बाद, मग़रिब की नमाज के बाद ही बत्तियां बुझा देनी पड़ती हैं। बांदीपोरा में जांच दल ने एक युवा लड़की को देखा, जिसने अपनी परीक्षा की तैयारी के लिए बत्ती जलाई रखने की गलती की थी, कहीं उसका स्कूल न खुल जाए। फौजियों को इस कर्फ्यू के उल्लंघन पर इतना गुस्सा आया कि वे दीवार फांदकर उसके घर में घुसे और घर में मौजूद पुरुषों, उसके पिता और भाई को सवाल पूछने के लिए ले गए। क्या सवाल? यह पूछने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। तब से वे बंद हैं। पुरुष शाम 6 बजे के बाद घर के अंदर रहते हैं। शाम ढलने के बाद पुरुष और लड़कों का घर से बाहर रहने में भारी खतरा है। अगर एकदम जरूरी है तो हम औरतें बाहर जाती हैं’।

सार्वजनिक परिवहन बिल्कुल नहीं था। जिन लोगों के पास अपनी कार थी अत्यंत जरूरी होने पर भी वह उन्हें लेकर बाहर निकलते हैं। महिलाएं सड़कों के किनारे खड़े होकर कार और मोटरसाइकिल को हाथ दे कर रुकने का इशारा करती थीं। लोग रुकते थे और मदद करते थे। दोनों तरफ की बेबसी ही उनका अघोषित बंधन था। बहुत थोड़ी सी एम्बुलेंस काम कर रही हैं और इन्हें भी रास्ते में पिकेट पोस्ट पर रोक लिया जाता है।

बांदीपोरा अस्पताल में मानसिक तनाव, दिल का दौरा, आदि के मामलों में पिछले 45 दिनों में इतने अधिक मामले आए हैं, जितनी संख्या इससे पहले कभी नहीं हुई। आपात स्थिति में विशेषज्ञ डाक्टरों को ढूढने में परेशानी होती है, क्योंकि फोन पर उनसे सम्पर्क करने का कोई तरीका नहीं है। अगर वे परिसर के बाहर रहते हैं तो उन्हें ढूंढने के लिए सड़कों पर आवाज लगाते हुए जाना पड़ता है ताकि आपात स्थिति प्रदर्शित हो सके। एसकेआईएमएस में एक हड्डी रोग विशेषज्ञ को फौजी नाकेबंदी पर तब रोक लिया, जब वह अपनी ड्यूटी के लिए जा रहे थे और फिर 7 दिन बाद छोड़ा। आयुष्मान भारत एक इंटरनेट आधारित योजना है। डॉक्टरों तथा मरीजों द्वारा अब उसकी सेवा नहीं ली जा पा रही है।

नौजवान लड़कियों ने शिकायत की कि उन्हें फौज प्रताड़ित करती है, यहां तक कि नकाब हटा दिया जाता है। यह भी सुनने को मिला कि फौजी, नौजवान लड़कों पर टूट पड़ते हैं, ऐसा महसूस होता है कि उनकी शक्ल से ही नफरत है। जब पिता अपने बच्चों को बचाने जाते हैं, तो उनसे 20,000 से 60,000 रुपये तक जमा कराए जाते हैं। कश्मीरी नौजवानों के प्रति फौज में नफरत की इंतिहा यहां तक है कि जब किसी के घरों के दरवाजे खटखटाए जाते हैं, घर के बुजुर्ग को दरवाजा खोलने के लिए भेजा जाता है।

हर चेहरे पर फौजी थप्पड़ जमाते हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि कोई कितना बूढ़ा या कम उम्र का है, चाहे वह बहुत छोटा बालक ही क्यों न हो। 14 और 15 साल के छोटे लड़कों को ले जाया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है, कुछ को 45 दिनों तक। उनके कागजात जब्त कर लिये जाते हैं, परिवारों को खबर तक नहीं दी जाती। पुराने एफआईआर बंद नहीं किए जाते। फोन छीन लिये जाते हैं और कहा जाता है कि फौजी कैंपों से उन्हें वापस लिया जा सकता है। किसी ने भी वापस जाकर फोन मांगने की बुद्धिमानी नहीं की, महंगे फोन लेने के लिए भी नहीं। जांच दल को  दिये गये एक अनुमान के अनुसार इस बंदी के दौरान लगभग 13,000 लड़कों को उठा लिया गया है।

जांच दल जहां कहीं भी गया उसे दो निष्ठुर भाव सुनाई पड़े। पहला हमें आजादी चाहिए, हमें न तो भारत का कुछ, ना ही पाकिस्तान का कुछ चाहिए। 70 साल की बेइज्जती और उत्पीड़न अब पूर्ण विच्छेद की स्थिति में पहुंच चुकी है। कुछ लोग कहते हैं कि 370 के रद्द किये जाने से भारत के साथ अंतिम सम्बन्ध भी अब टूट गया है। जो लोग हमेशा भारत के राज के साथ खड़े रहे उन्हें भी सरकार ने नकार दिया है, तो हम साधारण कश्मीरियों की उनकी नजर में औकात ही क्या है?’ उनके सभी नेताओं को या तो पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट (सार्वजनिक सुरक्षा कानून) में पकड़ा हुआ है या घरों में ही नजर बंद कर दिया गया है और आम लोग खुद नेता बन गए हैं और उनका धैर्य भी बहुत गहरा है। दूसरा भाव था मांओं की पीड़ा भरी चिल्लाहट (जिन्होंने अपने बेटों के शरीर पर उत्पीड़न के घाव व लाशें देखी हैं) जो निर्दोषों के साथ बर्बरता समाप्त करने की मांग कर रही है। उनके बच्चों का जीवन बंदूक और फौजियों के बूटों से नहीं रौंदा जाना चाहिए।

(लेखक जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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