Tuesday, April 23, 2024

मुझे फंसाने के लिए अब एनसीपीसीआर का किया जा रहा है इस्तेमाल: हर्ष मंदर

(सिविल सोसाइटी के सदस्यों को तरह-तरह से परेशान करने और उन्हें फंसाने की कोशिश में सरकार नये-नये रास्ते इजाद कर रही है। अभी तक इस काम में सरकार ने अपनी उन एजेंसिंयों को लगा रखा था जो सीधे अपराध जगत या फिर भ्रष्टाचार या इसी तरह के किसी गुनाह के मामलों को देखती रही हैं। वह सीबीआई हो या कि एनआईए और ईडी हो या ईओडब्ल्यू इसी तरह की संस्थाएं इस काम को करती थीं। लेकिन अब उसने कुछ नई एजेंसियों को भी इस दिशा में सक्रिय कर दिया है जिनका इन सब मामलों से कहीं दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था। इसमें अभी ताजा नाम जो सामने आया है वह बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली एजेंसी एनसीपीसीआर है। दरअसल, इस एजेंसी ने 1 अक्तूबर को पूर्व आईएएस अधिकारी और एक्टिविस्ट हर्ष मंदर से कभी जुड़ी संस्था ‘उम्मीद’ के ठिकानों पर छापा मारा है और उसमें तमाम जो सवाल पूछे गए ज्यादातर हर्षमंदर और उनकी गतिविधियों से जुड़े हुए थे। इस सिलसिले में हर्ष मंदर ने एक बयान जारी किया है। पेश है उनका पूरा बयान-संपादक)

मुझे आज पता चला कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दिल्ली के दो बाल गृहों, उम्मीद अमन घर और खुशी रेनबो होम, जिनसे मैं कभी जुड़ा हुआ था, पर आज सुबह औचक ‘छापे‘ मारे। नेतृत्व खुद एनसीपीसीआर प्रमुख कर रहे थे।

यहां संक्षेप में संदर्भ दिया जाना उपयोगी रहेगा। मैंने भारतीय प्रशासनिक सेवा छोड़ने के बाद महसूस किया कि बेघर सड़कों पर रहने वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए मानवीय सार्वजनिक प्रणाली की तलाश की कोशिश करनी चाहिए। सार्वजनिक नीति निर्माण में उनकी आधी सदी से अनदेखी मेरी नजर में अक्षम्य सार्वजनिक अपराध जैसा था।

मेरे साथियों और मैंने बेघर बच्चों के लिए मौजूदा स्कूली स्थानों को साझा करने का विचार विकसित किया, जहां वह दिन में अन्य बच्चों के साथ पढ़ेंगे और रात में सुरक्षा की नींद सो सकेंगे। यह खुले, स्वैच्छिक, गैर हिरासती आवास थे। बिना घर या परिवार वाले बच्चों के लिए और जहां इनकी सामूहिक देखभाल होगी और बच्चों की सक्रिय हिस्सेदारी पर फोकस होगा।

यह 2011 में सर्व शिक्षण अभियान नीति फ्रेमवर्क में एक मॉडल के रूप में स्वीकृत किया गया और 2018 में समग्र शिक्षा अभियान में भी जारी है। यह विचार पिछले 13 सालों में समर्पित लोगों और संगठनों ने देश के विभिन्न हिस्सों में दोहराया और 10000 बच्चों तक पहुंचे और इस समय 5000 पूर्व बेघर बच्चों की देखभाल कर रहे हैं।

मैं इन संस्थाओं के साथ इस समय जुड़ा हुआ नहीं हूं। पर खासकर दिल्ली में बच्चों के साथ मेरा प्यार का रिश्ता है और वह मुझे हर्ष पापा कहकर बुलाते हैं। मैं जब भी बन पड़े उनसे मिलने जाता हूं, खुद को उनके अच्छे के बारे में आश्वस्त करने के लिए, उनसे बात करता हूं। दुनिया और बेहतर जीवन के बारे में, उनके साथ गीत गाता हूं।

एनसीपीसीआर टीम के दोनों गृहों पर अपने “छापों“ का फोकस चार बातों पर था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण था कि क्या इन बच्चों ने सीएए-विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। दूसरा फोकस था, इन गृहों से मेरे जुड़ाव पर। बच्चों ने समय-समय पर मेरी वहां यात्राओं के बारे में बताया। तीसरा फोकस विदेशी फंडिंग पर था।

उम्मीद पूरी तरह से भारतीय दानदाताओं से फंडेड है। खुशी के अधिकांश दानदाता भी भारतीय ही हैं, हां इसके कुछ दानदाता विदेशी भी हैं। चौथा सवाल था कि क्या हमने किसी रोहिंग्या बच्चे को शरण दी है। मेरे साथियों ने कहा कि हमारे लिए किसी बच्चे की पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, सिर्फ इतना ही महत्वपूर्ण है कि वह बेघर है या नहीं और उसे देखभाल व सुरक्षा की आवश्यकता है या नहीं।

यह कोई रहस्य नहीं है कि केंद्र सरकार, उसके नियंत्रण वाली विभिन्न सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल करते हुए उनके खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है जिन्होंने दिसंबर, 2019 से मार्च, 2020 तक सीएए/एनआरसी/एनपीआर के खिलाफ शांतिपूर्ण, अहिंसक विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था।

सरकारी मशीनरी के कदमों ने स्पष्ट कर दिया है कि मैं भी उनके निशाने पर हूं। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपने हलफनामों और आरोप पत्रों में दिल्ली पुलिस ने 16 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में छात्रों के समक्ष मेरे भाषण के हवाले से मुझ पर यह अजीब आरोप लगाया है कि मैं उस समूह का हिस्सा था जिसने ‘शांति की आड़‘ में नफरत फैलाई थी, कि मैंने सुप्रीम कोर्ट की अल्पसंख्यकों के अधिकारों व आजादी की रक्षा में विफलता को लेकर आलोचना कर इसकी अवमानना की थी।

इस भाषण और मेरे सभी भाषणों व लेखन से यह स्पष्ट होता है कि इसके विपरीत मैंने हमेशा प्रेम व संविधान की केंद्रीयता की बात की है, अहिंसा के महत्व की बात की है और इसकी भी कि स्वतंत्रता संग्राम व संविधान की आत्मा एक मानवीय और समावेशी राष्ट्र की, जिसमें सभी धर्मों, जातियों और लिंग के लोगों को समान नागरिकता हो, की थी। आज 1 अक्तूबर (जब छापा पड़ा) की सुबह यह स्पष्ट हो गया कि सरकार अपनी एक और एजेंसी एनसीपीसीआर का इस्तेमाल शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और असहमति व्यक्त करने वालों के खिलाफ, मुझे बदनाम करने के लिए कर रही है।

मुझे नहीं पता कि एनसीपीसीआर अपनी इस जांच को क्या रूप देगी। एनसीपीसीआर बच्चों के अधिकारों के लिए भारत की प्रमुख संस्था है और यह उसका अधिकार है कि किसी भी संदर्भ में बच्चों के कल्याण को लेकर जांच करे। लेकिन टाइमिंग, तरीका और सवाल जो उन्होंने पूछे, असामान्य हैं और एजेंसी के इरादों को लेकर संदेह पैदा करते हैं, कि क्या यह एक और उपकरण बनने जा रही है देश में स्वतंत्र कार्यकर्ताओं के खिलाफ विच हंट में।

साफ लग रहा है कि असहमति जताने वालों के खिलाफ पुलिस के आरोपों और मानहानिकारक इशारों से किसी की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने और संस्थाओं को बंद करने का विच हंट का मकसद संविधान की रक्षा के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं को धमकाना और उनकी विश्वसनीयता समाप्त करना और उन्हें चुप कराना है।

मेरे पूर्व सहयोगी बेघर बच्चों के साथ डटकर खड़े रहने को कटिबद्ध हैं चाहे जो हो जाए। मुझे पता है कि हमारा गणतंत्र अपने सबसे भयावह समय से गुजर रहा है, नफरत की राजनीति और आजादियों को कुचलने की प्रवृत्तियां जिस पर हावी हैं।

इसलिए यह मेरा कर्तव्य है और उन सभी का भी जो इस देश व इसकी जनता से प्यार करते हैं कि वह चुप न हों, प्रतिरोध करें और प्यार, भाईचारे व न्याय के लिए बोलें व संगठित हों।

                                                                                  (हर्ष मंदर)

                                                                                  01, अक्तूबर

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