COVID-19 के संक्रमण से पस्त हिंदू धर्म को अब ‘राम’ और ‘रामायण’ का सहारा

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कोविद-19 महामारी फैलने के बाद मंदिरों के पट बंद हो गए। कोरोना संक्रमण के लाइलाज घोषित होने के बाद सारे आस्तिक धर्म कर्म को छोड़ खुद को सेफ रखने में जुट गए। हर तरफ मौत और दुनिया के ख़त्म हो जाने का भय। दुनिया भर के डॉक्टर और वैज्ञानिक दिन रात कोविड-19 और कोविड-19 संक्रमित मरीजों की तोड़ खोजने में जुट गए। अमेरिका के सिएटल में स्थित कैंसर परमानेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट में कोविड-19 के खिलाफ़ जेनिफर हैलर समेत 45 लोगों पर क्लीनिकल ट्रायल होने की ख़बर आई। कोविड-19 के भय के साये में जी रहे भारत जैसे देश के घोर धार्मिक अवाम ने अपनी सारी उम्मीदें विज्ञान से जोड़ ली। लोगों में एक धारणा बनने लगी कि इस दुनिया को कोविड-19 की चपेट में आकर खत्म होने से यदि कोई बचा सकता है तो वो विज्ञान ही है भगवान नहीं।

दो दिन पहले तो ‘धर्म छुट्टी पर है, विज्ञान ड्यूटी पर है’ सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। 

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने भी अपने फेसबुक वॉल पर लिखा- ‘धर्म छुट्टी पर है, विज्ञान ड्यूटी पर है’ जिस बहुत शेयर किया गया।

ट्विटर पर कइयों ने भाजपा के डॉ. संबित पात्रा को निशाना करके लिखा- “ गौ मूत्र, गोबर, वेद फलाना-धमाका, राष्ट्र सर्वोपरि कहने वाले घर में बैठे हैं और नाम के आगे से डॉक्टर भी हटा दिया है। जबकि विज्ञान वाले अस्पताल में मरीजों का ईलाज कर रहे हैं।”

इसके अलावा चिकित्सा शास्त्र की प्रशंसा में और धर्म की आर्थिकी को लेकर कुछ भावुक पोस्ट भी सोशल मीडिया में तैरने लगे। जिसमें लोगों ने लिखा- “ कोरोना के बाद हम यदि ना भी रहें तो आने वाली पीढ़ी से कह देना, दान देना हो तो अस्पताल बनाने के लिए ही देना। धार्मिक स्थल के भी संकट के समय में दरवाजे बंद हो जाते हैं।”

इससे उन लोगों को चिंतित होना लाजिम ही था जिनकी आर्थिकी और राजनीति धर्म पर ही चल रही थी। उन्हें ये  भय लगने लगा कि कहीं कोविड-19 धर्म से लोगों का भरोसा ही ना खत्म कर दे। जिस तरह से लोगों ने डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की बात मानकर खुद को अलग थलग और साफ सुथरा रखने की मुहिम शुरू कर दी और जिस तरह से उनकी सारी उम्मीदें धर्म के बजाय विज्ञान से जुड़ने लगी थीं उसके बाद उनका डरना तो लाजिम ही था।

भाजपा आरएसएस के कोर कैडरों ने शुरू की महाभारत और रामायण शुरू करने की मुहिम

यूँ तो आज यूट्यूब और सस्ते डेटा के समय में जिसका जब जी चाहे रामायण और महाभारत ऑनलाइन जाकर देख सकता है। कई धार्मिक चैनलों पर ये साल के बारहों महीने आता ही रहता है। ‘सहारा वन’ चैनल पर तो महाभारत और रामायण को अखंड ज्योति जलाए रखने की तर्ज पर लगातार चलता रहता है। फिर प्रश्न ये उठता है कि 24 मार्च को लॉकडाउन के साथ ही रामायण और महाभारत के पुनः प्रसारण की माँग क्यों उठाई गई और सरकार द्वारा इसे कोविड-19 के खिलाफ मुहिम शुरु करने से भी तेज गति से कार्रवाई करते हुए 27 मार्च को रामायण और महाभारत के प्रसारण को दूरदर्शन पर शुरु करने का आदेश दे दिया गया है। इस बीच इसे तमाम न्यूज़ चैनलों और अखबारों के वेब पोर्टल पर ‘पब्लिक डिमांड’ कहकर ख़ूब प्रचारित किया गया। जबकि यह केवल भाजपा और आरएसएस के कुछ हार्ड कोर सदस्यों द्वारा ट्विटर पर शुरु किया गया था।

क्या आरएसएस और भाजपा के मुट्ठी भर हार्ड कोर सदस्यों की माँग को ‘पब्लिक डिमांड’ बताकर लोगों के भयभीत मानस को जबर्दस्ती धर्म के खूँटे से बाँधने की राजनीतिक मुहिम नहीं है।  

प्राण सूत्र हार्डकोर हिंदुत्ववादी पेज है और इसने सबसे पहले 24 मार्च को सुबह 8.53 पर नरेंद्र मोदी और प्रकाश जावड़ेकर को टैग करते हुए दूरदर्शन और अन्य चैनलों पर रोजाना रामायण और महाभारत के एक या दो एपीसोड प्रसारित करने के बारे में सोचने को कहा। 

सचिन गुप्ता ने बीजेपी के कई पोस्ट शेयर किये हैं। इतना ही नहीं उसने लगातार आरक्षण के खिलाफ भी कई पोस्ट लिखे हैं। सचिन गुप्ता ने भी 25 मार्च की रात 9.58 पर रामायण और महाभारत को शुरु करने के लिए मोदी और पीएमओ को टैग किया।

सत्यम नामक व्यक्ति ने 25 तारीख को वाराणसी के लोगों को प्रेस कान्फ्रेंस के वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा है कि महाभारत का युद्ध 18 दिन में जीता गया था। आज कोरोना के खिलाफ़ युद्ध पूरा देश लड़ रहा है, हमारा प्रय़ास है कि इसे 21 दिन में जीत लिया जाए। और मोदी के इस ट्वीट का रिप्लाई करते हुए उसने लिखा प्यारे सर कृपया दूरदर्शन पर रामाय़ण या महाभारत चलवाइए ताकि कोरोना के खिलाफ 21 दिन की लड़ाई के दौरान हमारी नई पीढ़ी को शिक्षित किया जा सके। सत्यम ने जी न्यूज को भी टैग किया। सत्यम जी न्यूज का बड़ा प्रशंसक है और अपने अधिकांश ट्वीट में वह जी न्यूज को टैग करता है। 

https://twitter.com/satyachouhan2/status/1242835083133775873?s=20

यहां आरएसएस भाजपा के इन हार्ड कोर सदस्यों का नाम और इनके ट्वीट देने का मकसद इतना ही है कि आजकल मीडिया और सरकार की पब्लिक यही है और सरकार इन्हीं की डिमांड आनन-फानन में पूरा करती है। 

सरकार ने शुरु किया रामायण महाभारत

प्रकाश जावड़ेकर ने कल सुबह चहकते हुए ट्वीट किया और नरेंद्र मोदी व दूरदर्शन को टैग करके सूचित किया- प्रकाश जावड़ेकर ने अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा कि “जनती की मांग पर कल शनिवार 28 मार्च से ‘रामायण’ का प्रसारण पुनः दूरदर्शन के नैशनल चैनल पर शुरू होगा। पहला एपीसोड सुबह 9:00 बजे और दूसरा एपीसोड रात 9:00 बजे होगा।” 

सरकार ने जैसे पब्लिक डिमांड पर कोई जनसरोकारीय अभूतपूर्व कदम उठाया हो जी न्यूज़ ने चहकते हुए जानकारी दी कि महाभारत और रामायण फिर से शुरू होगा।

लॉकडाउन की पहली सुबह योगी आदित्यनाथ ने किया रामलला को अस्थाई मंदिर में शिफ्ट किया

लॉकडाउन की पहली सुबह यानि 25 मार्च को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामलला की मूर्ति की शिफ्टिंग की और 11 लाख रुपए का दान किया।

आखिर जब कोविड-19 महामारी के खतरे के चलते भारत के तमाम दूसरे मंदिर जैसे कि वैष्णो देवी, काशी विश्वनाथ, मुंबई का सिद्धिविनायक, शिरडी साईं बाबा, उज्जैन का महाकाल मंदिर, राजस्थान का मेंहदीपुर बालाजी, कोलकाता का रामकृष्ण मठ, उड़ीसा का जगन्नाथ आदि बंद कर दिए गए हैं उस समय अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण कार्य को चालू रखने के लिए लॉकडाउन पीरियड में शिफ्टिंग का काम क्यों किया गया। क्या ये सिर्फ़ भाजपा आरएसएस के राजनीतिक सांप्रदायिक एजेंडे को बनाए रखने के लिए किया गया या इसके तहत हिंदी पट्टी के चेतना शून्य लोगों की चेतना में विज्ञान के विचार को घर करने से रोकने के लिए इस तरह का काम करके संदेश दिया गया। 

मीडिया ने पहले इसे ‘पब्लिक डिमांड’ बनाया फिर पुनर्प्रसारण को ऐतिहासिक कदम बताकर पेश किया 

आज तक चैनल ने लिखा- छोटे पर्दे पर इतिहास रचने वाला चर्चित टीवी धारावाहिक रामायण लॉकडाउन के माहौल में एक बार फिर से वापसी करने जा रहा है। कभी रामायण देखने के लिए सूनी हो जाती थी सड़कें, अब सूनी सड़कों की वजह से लौटा….

ऑल इंडिया रेडियो ने ट्वीट करते हुए लिखा- “सूचना और प्रसारण मंत्री पकाश जावड़ेकर ने पब्लिक डिमांड पर डी डी नेशनल पर कल से रामायण के पुनर्प्रसारण की अनुमति दी।”  

जी न्यूज ने लिखा- प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा की, पब्लिक डिमांड पर दूरदर्शन रामायण का पुनः प्रसारण करेगा। 

रामानंद सागर के ‘रामायण’ के हिंदू समाज का तीव्र सांप्रदायीकरण किया था

आज ये बात सर्वविदित है कि रामानंद सागर के ‘रामायण’ सीरियल ने उस समय के हिंदी पट्टी समाज की राजनीतिक तार्किक चेतना को कुंद करके उसका तीव्र सांप्रदायीकरण किया था। जिसके चलते भाजपा-आरएसएस को हिंदी पट्टी की सियासत में अपनी सांप्रदायिक राजनीति की जमीन तैयार करने में बहुत मदद मिली थी। 1987 में शुरु हुए रामायण के प्रभाव को 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़े जाने की लोकतंत्र विरोधी दुस्साहसिक घटना को अंजाम दिए जाने और उसके बाद नफ़रत, घृणा और सांप्रदायिक हिंसा के एक लंबे सिलसिले जिसमें हाल ही में उत्तर-पूर्व दिल्ली के प्रायोजित सांप्रदायिक हिंसा भी जुड़ गया के संदर्भ में देखा सोचा और महसूसा जा सकता है।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।) 

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