Saturday, April 20, 2024

अब मेडिकल सेक्टर की अनदेखी पर सीजेआई ने दिखाया मोदी सरकार को आईना

भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एनवी रमना सरकार को लगातार आईना दिखा रहे हैं। एक दिन पहले ही चीफ जस्टिस ने कहा था कि चुनाव किसी को उत्पीड़न से मुक्ति नहीं दिला सकते और उन्होंने न्यायपालिका में सरकारी दखल को लेकर भी चिंता जताते हुए कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता वरना कानून का शासन कागजों में रह जायेगा। अभी इसकी सुर्खियाँ सूखी भी नहीं थीं कि वर्ल्ड डॉक्टर डे के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि भारत सरकार मेडिकल सेक्टर पर विशेषकर दवा और आधुनिक तकनीक को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि किसी और की विफलता की सज़ा अंततः चिकित्सा कर्मियों को भुगतनी पड़ती है।

अब एक तरफ चीफ जस्टिस रमना ने डॉक्टरों के पक्ष में बातचीत की तो दूसरी तरफ उन्होंने सरकार को भी आईना दिखाने का प्रयास किया। चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि सरकार दवा और आधुनिक तकनीक पर ज्यादा प्राथमिकता नहीं दे रही। उनकी नजरों में देश का स्वास्थ्य क्षेत्र मेडिकल प्रोफेशनल, संसाधन, दवा और आधुनिक तकनीक की कमी से ग्रस्त है। उन्होंने कहा कि देश में मेडिकल प्रोफेशनल और इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी किल्लत है। इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

चीफ जस्टिस रमना ने मेडिकल क्षेत्र में हो रही मुनाफाखोरी की बात भी कही। चीफ जस्टिस रमना ने सरकार की दुखती रग पर हाथ रखते हुए सवाल पूछा कि कॉरपोरेट की मुनाफाखोरी की जवाबदेही डॉक्टरों पर क्यों डाल दी जाती है? इस सब के अलावा डॉक्टरों के कम वेतन पर भी चीफ जस्टिस ने दुख जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि एक योग्य डॉक्टर खुद हॉस्पिटल शुरू कर पाने में खुद को सक्षम नहीं पाता। 8-9 साल तक मेहनत से पढ़ाई करने के बाद उसे एक अच्छा वेतन पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

वर्ल्ड डॉक्टर डे के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि चिकित्सा संस्थानों और सरकार की संबंधित एजेंसियों को अपने प्रमुखों को आगे लाना चाहिए और इस विषय पर खुलकर बात करनी चाहिए। तभी हम अपने डॉक्टरों को 1 जुलाई (डॉक्टर्स डे) को खुश कर सकते हैं।

जस्टिस रमना ने कहा कि बहुत दुख की बात है कि ड्यूटी के वक्त हमारे डॉक्टरों पर हमले होते हैं। डॉक्टर किसी और की विफलता की सज़ा भुगत रहे हैं। कोरोना काल में डॉक्टरों पर कई मौकों पर हमला किया गया है। मरीज की मौत हुई तो डॉक्टरों को निशाना बनाया, अस्पताल में बेड नहीं मिला तो भी डॉक्टरों पर हमला हुआ, सिर्फ कारण बदले लेकिन कई बार डॉक्टरों को लोगों के बेवजह गुस्से का शिकार बनना पड़ा। चीफ जस्टिस एन वी रमना ने इस ट्रेंड पर नाराजगी जताई है जिससे कई और सवाल भी खड़े हो गये हैं।  

जस्टिस रमना ने कहा कि यह दुखद है कि ड्यूटी के दौरान हमारे डॉक्टरों पर बेरहमी से हमला किया जा रहा है। किसी और की विफलता के लिए चिकित्सा पेशेवर क्यों जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं? जस्टिस रमना ने देश में डॉक्टरों और चिकित्सा बुनियादी ढांचे के संबंध में अन्य मुद्दों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार में चिकित्सा निकायों और संबंधित एजेंसियों को इन चिंताओं को दूर करने के लिए एक साथ काम करना होगा। सीजेआई ने कहा कि तभी हम हर साल पहली जुलाई को डॉक्टरों का ईमानदारी से अभिवादन कर सकते हैं।

सीजेआई रमना ने कहा कि चिकित्सा पेशेवरों की अपर्याप्त संख्या, बुनियादी ढांचा, दवाएं, पुरानी तकनीक और सरकार द्वारा चिकित्सा क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं देने जैसे मुद्दे चिंता का विषय हैं। सीजेआई ने कहा कि फैमिली डॉक्टर की परंपरा लुप्त हो रही है, यह देखकर दुख होता है कि अच्छे और योग्य डॉक्टर खुद का एक अच्छा अस्पताल शुरू नहीं कर सकते और जीवित नहीं रह सकते।

सीजेआई ने कहा कि सरकार में चिकित्सा निकायों और संबंधित एजेंसियों को इन चिंताओं को दूर करने के लिए एक साथ काम करना होगा। सीजेआई ने अपने भाषण के दौरान डॉक्टरों द्वारा घातक महामारी से लड़ने के लिए किए गए अथक और निस्वार्थ कार्य को भी स्वीकार किया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आंकड़ों पर ध्यान देते हुए, जो बताता है कि 798 से अधिक डॉक्टरों ने दूसरी लहर में अपनी जान गंवाई है, सीजेआई ने चिकित्सा पेशेवरों की मौतों पर शोक व्यक्त किया।

एक दिन पहले ही जस्टिस रमना ने कहा था कि चुनाव किसी को उत्पीड़न से मुक्ति नहीं दिला सकते। उन्होंने न्यायपालिका में ‘सरकारी’ दखल को लेकर भी चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था, चुनाव तो 1947 के बाद से हो रहे हैं, लेकिन सरकार बदलना इस बात की पुष्टि नहीं करता कि आपको उत्पीड़न से मुक्ति मिल जाएगी। लोकतंत्र के असली मायने समझाते हुए उन्होंने कहा था कि सबका आत्मसम्मान बना रहना लोकतंत्र में सबसे ज़रूरी है।

जस्टिस रमना ने सोशल मीडिया का जजों पर प्रभाव को लेकर भी बात की और कहा कि बाहरी प्रभाव से न्यायिक सिस्टम को बचना चाहिए। जो बातें सोशल मीडिया पर जोर-शोर से उठाई जाती हैं, ज़रूरी नहीं हैं कि वह सच या सही हों। इसलिए अदालत को बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए। कोरोना को लेकर भी उन्होंने चिंता जताते हुए कहा था कि यह संकट कई दशकों तक का असर छोड़ सकता है। ऐसे में हमें एक मिनट रुककर यही सोचना चाहिए कि हमने किसी के लिए क्या किया। हमें आगे भी लोगों की मदद का प्रयास करना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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