Tuesday, May 30, 2023

सरकार के खिलाफ देश भर में सड़क पर उतरे मजदूर, पुलिस से झड़प और कई जगहों पर हुई गिरफ्तारी

(केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर आज देशभर में मेहनतकशों ने केंद्र समेत राज्य सरकारों की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया। इस मौके पर जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए गए। राजघाट पर आयोजित धरने में पहुंचे मजदूरों और कर्मचारियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। इसके साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में भारी तादाद में लोगों ने इन कार्यक्रमों में शिरकत की। इस मौके पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की तरफ से पीएम मोदी के नाम एक खुला पत्र जारी किया गया। उस पत्र के साथ पेश है अलग-अलग जगहों पर आयोजित कार्यक्रमों की रिपोर्ट-संपादक)

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के श्रमिक संगठनों का खुला पत्र

सेवा में,

श्री नरेंद्र मोदी

माननीय प्रधान मंत्री,

भारत सरकार,

नई दिल्ली।

सन्दर्भ : श्रम कानूनों में बेरहम परिवर्तन और राष्ट्रीय संसाधनों और संपत्तियों के निजीकरण को निर्बाध करने के खिलाफ और अन्य मांगों को लेकर 22 मई 2020 को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन।

 महोदय,

विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में बेरहम बदलावों के खिलाफ लगभग सभी केंद्रीय श्रम संगठनों और कर्मचारियों के स्वतंत्र राष्ट्रीय महासंघों के संयुक्त मंच द्वारा 22 मई, 2020 को श्रमिकों के राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शनों के आह्वान की रिपोर्ट आपको अवश्य मिली होगी लॉक डाउन की स्थिति में सबसे अधिक पीड़ित, देश के मेहनतकश लोगों द्वारा की जा रही, जरूरतमंद परिवारों को सीधे सार्वभौमिक भोजन सहायता और नकद सहायता उपलब्ध कराने की मांगों की अनदेखी करते हुए, आपके इशारे पर श्रम कानूनों में किये जा रहे ये परिवर्तन देश में बड़े पैमाने पर निजीकरण के दौर की शुरुआत करेंगे।

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ओड़िशा में विरोध प्रदर्शन।

सबसे चिंतनीय मामले उत्तर प्रदेश , गुजरात और मध्य प्रदेश के हैं, जहां लगभग सभी श्रम कानूनों को तीन साल के लिए निलंबित करने की कवायद की जा रही है। केंद्र सरकार के अनुसरण में और उसके आग्रह पर अन्य राज्यों में भी इस दिशा में कदम उठाए जा रहे है। इस संबंध में और साथ ही तालाबंदी के दौरान श्रमिकों को पूर्ण मजदूरी के भुगतान और उनके रोजगार की सुरक्षा के संबंध में सरकार के स्वयं के निर्देशों / सलाह के बड़े पैमाने पर उल्लंघन के बारे में स्वतंत्र रूप से और एकजुट रूप से ट्रेड यूनियनों ने कई अभ्यावेदन किए हैं लेकिन हमारे ये प्रयास बेअसर साबित हुए हैं। 

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विशाखापट्टनम।

लॉकडाउन अवधि से पहले और उसके दौरान किए गए कार्यों के लिए अधिकांश श्रमिकों को मजदूरी से वंचित कर दिया गया है, लाखों लोगों को रोजगार से बाहर निकाल दिया गया है और आपकी सरकार के निर्देशों का हठधर्मिता पूर्ण उल्लंघन कर उन्हें उनके घरों से बेदखल कर दिया दिया गया है। नियोक्ता वर्ग, जिनके प्रति आपकी सरकार काफी उदार है, द्वारा निर्देशों के उल्लंघन को वैध बनाने के उद्देश्य से अब आपकी सरकार ने इन निर्देशों को लागू करवाने के बजाय उन्हें वापस ले लिया है। प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के बारे में प्राप्त हो रही दैनिक रिपोर्ट उनकी हताशा को दर्शाती है।

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हैदराबाद

लाखों मज़दूर सड़कों और जंगलों से होकर कई सौ मील तक सड़कों पर, रेलवे की पटरियों पर चलते रहे हैं। भूख, थकावट और दुर्घटनाओं के कारण रास्ते में कई बहुमूल्य जीवन ख़त्म हो गए हैं। इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा पीड़ित महिलाएं और बच्चे हुए हैं। इस विशाल मानवीय समस्या से निपटने में केंद्र और राज्यों के बीच संवेदनशीलता और समन्वय की कमी है। यह स्थिति आपके द्वारा संसद, राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों और उन लोगों को विश्वास में लिए बिना अचानक निर्णय लेने के कारण उत्पन्न हुई है, जो COVID 19 से लड़ने में महत्वपूर्ण थे।

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बोकारो।

प्रवासी श्रमिकों को अंतर-राज्यीय सीमाओं से वापस किया जा रहा है। यह देखा गया है कि श्रमिकों को वापस जाने से रोकने और उन्हें उन कारखानों में काम करने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया जा रहा है, जिनसे वे बाहर निकाले गए थे।इसका अर्थ यह है कि मज़दूरों को पूँजी के हित में किसी भी अधिकार या गारंटी के बिना, बगैर किसी सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और सभी मानवीय गरिमाओं को दरकिनार कर केवल उन लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए जिनका उद्देश्य श्रमिकों के खून और पसीने की लागत पर केवल अपने लाभ को अधिकतम करना है , बंधुआ मज़दूरी के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह मानव अधिकारों के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

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कोलफील्ड झारखंड।

आपकी सरकार द्वारा जारी किये गए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की बहुत चर्चा है, जिसमें कई अर्थशास्त्रियों के अनुसार, आम लोगों के लिए वास्तविक धनराशि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% है; बाकी सभी केवल वित्त मंत्री द्वारा घोषित विभिन्न क्षेत्रों द्वारा विभिन्न उधारों के लिए गारंटी है। लेकिन हमारी तात्कालिक चिंता यह है कि जिन लोगों के रोजगार / आजीविका को लॉक डाउन के चलते छीन लिया गया है, उनके भोजन और अन्य जरुरी आवश्यकताओं के लिए इसमें कुछ भी ठोस नहीं है।

हमें इस तथ्य पर आपत्ति करने की अनुमति नहीं है कि आपकी सरकार ने “नई संसद परियोजना”, “एनपीआर प्रक्रिया” पर बजटीय व्यय को निरस्त नहीं किया है, लेकिन प्रवासी श्रमिकों को उनके गांवों में वापस लाने के खर्च पर बहस हो रही है, जबकि यह प्राथमिकता होनी चाहिए और सरकार की बाध्यकारी जिम्मेदारी भी!

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पुडुचेरी।

संक्षेप में, आपके वित्त मंत्री द्वारा पांच किश्तों में की गई घोषणा, शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों में, कई करोड़ कामकाजी आबादी को कोई राहत देने के बजाय, वास्तविक रूप से विदेशी और घरेलू बड़े कॉर्पोरेट और व्यावसायिक घरानों के स्थायी सशक्तिकरण की योजना है । ये घोषणाएं, गरिमा पूर्ण मानवीय अस्तित्व एवं काम करने वाले लोगों को बुनियादी मानव अधिकारों से वंचित करती हैं। आपकी सरकार द्वारा योजनागत और स्वच्छता श्रमिकों, स्वास्थ्य क्षेत्र, कोरोना के खिलाफ जंग में फ्रंट लाइन श्रमिकों जैसे सबसे निचले पायदान पर कार्यरत लोगों की निरंतर उपेक्षा की जा रही है।

हम फंसे हुए श्रमिकों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने, सभी को भोजन उपलब्ध कराने, बिना किसी शर्त के राशन वितरण के सार्वभौमिक कवरेज के लिए, पूरे लॉक डाउन अवधि के लिए सभी को मजदूरी सुनिश्चित करने, असंगठित श्रमबल (पंजीकृत या अपंजीकृत या स्वरोजगार) सहित सभी गैर-आयकर कर दाता परिवारों को कम से कम तीन महीने यानी अप्रैल, मई और जून के लिए रु 7500 के नकद हस्तांतरण की व्यवस्था के रूप में तत्काल राहत की मांग करते हैं। हम केंद्र सरकार और सीपीएसई के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को फ्रीज करने, पेंशनरों को महंगाई राहत फ्रीज करने, स्वीकृत पदों को समाप्त करने, श्रम कानूनों में किसी भी बदलाव / शिथिलता पर पूर्ण रोक लगाने के आदेश देने की मांग करते हैं।

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भेल हरिद्वार।

हम इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम 1979 को मजबूत बनाने की मांग करते हैं, ताकि दोनों छोर पर सरकारों द्वारा और उन्हें सीधे और ठेकेदारों के माध्यम से नियोजित करने वाले प्रतिष्ठानों द्वारा भी प्रवासी श्रमिकों का अनिवार्य पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके । हम एक मजबूत और जवाबदेह कार्यान्वयन तंत्र के साथ मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, आवास और कल्याण की जरूरतों पर पर्याप्त सुरक्षात्मक प्रावधानों की मांग करते हैं। इस अधिनियम को आपके सरकार द्वारा, जैसी की योजना है, निरस्त नहीं किया जाना चाहिए।

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रु्द्रपुर।

हम मांग करते हैं कि आप कारपोरेटाइजेशन, आउटसोर्सिंग, पीपीपी, उदारीकृत एफडीआई आदि जैसे बहु-प्रचारित मार्गों   के माध्यम से सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रमों  और सरकारी विभागों के थोक निजीकरण की अपनी नीति को रोकें, जिन्हें 13 मई से 17 मई 2020 तक वित्तमंत्री द्वारा पैकेज घोषणाओं के दौरान दोहराया गया है और घोषित किया गया था और विशेष रूप से लॉक डाउन अवधि के दौरान आपने खुद अपने सम्बोधन में कहा है। 

सादर,

 INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC

ऐक्टू समेत अन्य केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा आयोजित विरोध-दिवस के मौके पर देश के कई राज्यों में, लॉक-डाउन के दौरान मजदूरों की दुर्दशा और सरकार की मजदूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया। गौरतलब है कि इस विरोध-दिवस का आयोजन ऐक्टू समेत इंटक, एटक, सीटू, एचएमएस, एआईयूटीयूसी, यूटीयूसी, टीयूसीसी, एलपीएफ, सेवा जैसे केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों के संयुक्त आह्वान पर किया गया था। संघ-भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ के अलावा सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों ने आज के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बैंक, बीमा, कोयला, रेल इत्यादि क्षेत्रों के मजदूर-फेडरेशनों ने भी आज के प्रदर्शन में भागीदारी की।

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नई दिल्ली।

देश के लगभग सभी राज्यों में मजदूरों ने केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा श्रमिकों को मौत के मुंह में धकेलने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवाया। इससे पहले भी ट्रेड यूनियनों ने अपने-अपने कामकाज के इलाकों में प्रदर्शन किया है परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाया गया यह पहला विरोध-प्रदर्शन था। बिहार, दिल्ली, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, तेलंगाना इत्यादि राज्यों में कई जगहों पर कार्यक्रम किए गए। बिहार में ऐक्टू के प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने रोकने का भरपूर प्रयास किया परन्तु ट्रेड यूनियनों ने अपना कार्यक्रम जारी रखा। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भी पुलिस की प्रदर्शनकारियों से झड़प हुई। तमिलनाडु में कई ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के ऊपर मुकदमे दर्ज किए गए हैं। इंडियन रेलवेज एम्प्लाइज फेडरेशन  (आईआरईएफ) ने कपूरथला, रायबरेली, वाराणसी, चित्तरंजन इत्यादि जगहों पर प्रदर्शन किया।

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ओडिसा।

संयुक्त ट्रेड यूनियन्स के आह्वान पर ऐक्टू राष्ट्रीय सचिव डॉ. कमल उसरी के नेतृत्व में इलाहाबाद ऐक्टू जिला कार्यालय कर्नलगंज सहित इफको फूलपुर, बिजली संविदा कर्मचारी जोन कार्यालय जार्जटाउन, नगर निगम सफाई कर्मी जल संस्थान, इलाहाबाद मेडिकल वर्कर्स यूनियन, आशा, आंगनवाड़ी, नार्थ सेंट्रल रेलवे ठेका मजदूर शामिल रहे।

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इलाहाबाद।

सभी ने एक स्वर में श्रम कानून स्थगन के खिलाफ आवाज बुलंद की, लॉकडाउन के नियम का पालन करते हुए प्रतिरोध दिवस मनाया। रेलवे ठेका मजदूर बबली और सुनीता ने कहा हमें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है, हम भुखमरी के शिकार हो रहे हैं, सरकार सिर्फ भाषण बाजी कर रही है। सफाई कर्मी संतोष ने कहा कि सफाई कर्मियों को पीपीई किट नहीं मिल रहा है। इफको फूलपुर ठेका मजदूर देवानंद ने कहा कि इफ़को से बिना कारण ठेका मजदूरों की छंटनी शुरू कर दी गई है। ऐक्टू जिला अध्यक्ष और संविदा बिजली कर्मचारी एससी बहादुर ने कहा बिजली कर्मचारी रात दिन ड्यूटी कर रहे हैं लेकिन उन्हें सुरक्षा किट नहीं दिया जा रहा है। ऐक्टू राज्य सचिव अनिल वर्मा ने कहा कि हम संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं ।

आल इंडिया सेंट्रल कॉउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस के उत्तराखंड महामंत्री कामरेड केके बोरा ने बताया कि आज का प्रदर्शन अल सुबह से देर रात तक विभिन्न रूपों में जारी है। मोदी सरकार द्वारा मजदूरों की जबरदस्त उपेक्षा की जा रही है।

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रुद्रपुर।

 Covid19 के दौर में काम कर रहे मजदूरों को वेतन कटौती व असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। 20 करोड़ से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के कामगारों का रोजगार ख़त्म हो गया है। लाखों मजदूर लोग पैदल जाने को मजबूर कर दिए गए और 600 से ज्यादा लोगों को पैदल जाने की वजह से असमय काल कवलित होना पड़ा। मगर मोदी सरकार मजदूरों को राहत देने की जगह मजदूरों के अधिकार कटौती का नेतृत्व कर रही है। 12 घंटेके कार्यदिवस को कानूनी बनाने से लेकर बीजेपी की सरकार श्रम कानूनों को 1000 दिन के लिये सस्पेंड कर रही है।

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सितारगंज, उत्तराखंड।

मोदी सरकार की मजदूर विरोधी, क्रूर व अमानवीय कार्यवाहियों के कारण मेहनतकशों ने आज पूरे देश में प्रतिवाद दर्ज कराकर इस सरकार से असहमति और अविश्वास व्यक्त किया है। उत्तर प्रदेश समेत देश के कई प्रांतों में वर्कर्स फ्रंट से जुड़े मजदूरों और मजदूर किसान मंच के कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध दर्ज कराया है। वर्कर्स फ्रंट का कहना है कि केन्द्रीय श्रम संगठनों के आह्वान पर आयोजित राष्ट्रव्यापी विरोध के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्विटर और ईमेल द्वारा मांग पत्र भेजा गया। सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, गोण्ड़ा, आगरा, इलाहाबाद, जौनपुर, लखनऊ आदि जिलों में विरोध कार्यक्रम किए गए।  

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झारखंड।

प्रेस को जारी अपने बयान में वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर और मजदूर किसान मंच के अध्यक्ष पूर्व आईजी एसआर दारापुरी ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा की जा रही श्रमिक विरोधी कार्यवाहियां देश के विकास को अवरुद्ध कर देंगी। सरकार ने मजदूरों को न सिर्फ बेसहारा छोड़ दिया है बल्कि उसे मिले संविधान प्रदत्त अधिकारों को भी छीनने में लगी हुई है। असहाय मजदूरों पर लाठी चलवाकर बहादुर बन रही आरएसएस-भाजपा की सरकारें अंदर से बेहद डरी हुई हैं।

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झारखंड।

बड़े कारपोरेट घरानों के लाभ के लिए लगातार तानाशाही की ओर यह सरकार बढ़ रही है और न्यूनतम प्रतिवाद का अधिकार भी यह सरकार नहीं दे रही है, यहां तक कि सरकार से सोशल मीडिया पर भी असहमति व्यक्त करने पर मुकदमे कायम किए जा रहे हैं। केन्द्र सरकार के इन हमलों का मुकाबला राजनीतिक प्रतिवाद से किया जायेगा और आज हुए राष्ट्रीय विरोध में उठाए मुद्दों पर जन संवाद कायम कर मेहनतकशों को इसे राजनीतिक तौर पर सजा देने के लिए तैयार किया जायेगा।

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