डिजिटल डिवाइड पर केंद्र की जमकर खिंचाई, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जमीन पर कान रखिए जनाब

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केंद्र सरकार और उनके नुमाइंदों द्वारा डिजिटल इंडिया, डिजिटल इंडिया की रट लगाये जाने की उच्चतम न्यायालय ने जबर्दस्त खिंचाई की। देश में “डिजिटल डिवाइड” पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आप डिजिटल इंडिया, डिजिटल इंडिया कहते रहते हैं, लेकिन आप जमीनी हकीकत से अवगत नहीं हैं। एक ओर केंद्र सरकार कोविड -19 वैक्सिनेशन का एक स्लॉट बुक करने के लिए को-विन ऐप पर रजिस्ट्रेशन की अनिवार्य आवश्यकता पर जोर दे रही है जबकि भारत की आबादी के एक बड़े वर्ग के पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट की पहुंच नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कोविड वैक्सीन के दोहरे दाम और खरीद नीति के औचित्य पर केंद्र सरकार से कड़े सवाल पूछे। उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न राज्यों द्वारा कोरोना वायरस रोधी टीकों की खरीद के लिए वैश्विक निविदाएं जारी करने के बीच केंद्र से पूछा कि उसकी टीका-खरीद की नीति क्या है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा आप निश्चित रूप से रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं, लेकिन आप डिजिटल डिवाइड का जवाब कैसे देंगे? आप उन प्रवासी मजदूरों के सवाल का जवाब कैसे देते हैं, जिन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य जाना है? झारखंड के एक गरीब कार्यकर्ता को एक आम केंद्र में जाना पड़ता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ कोविड-19 से संबंधित मुद्दों (महामारी के दौरान आवश्यक सेवाओं और आपूर्ति के पुन: वितरण में) पर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि किसी व्यक्ति को दी जाने वाली खुराक की संख्या और वैक्सीन के प्रकार और व्यक्ति की पात्रता मानदंड को ट्रैक करने के लिए राष्ट्रीय पोर्टल में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। केंद्र ने यह भी कहा है कि बिना डिजिटल पहुंच वाले लोग वैक्सीन रजिस्ट्रेशन के लिए गांव के कॉमन सेंटर, दोस्तों, परिवार या गैर सरकारी संगठनों की मदद ले सकते हैं।

पीठ ने पूछा कि अगर शहरी केंद्रों में लोगों को वैक्सीन स्लॉट मिलना मुश्किल हो रहा है, तो प्रवासी मजदूरों और ग्रामीणों का भविष्य क्या होगा? जस्टिस रवींद्र भट ने कहा कि यह लोगों के बीच एक डर है। मुझे देश भर के लोगों से संकट के समय फोन आए हैं कि उन्हें स्लॉट नहीं मिल रहे हैं। वे सभी दूसरी लहर के साए में चले गए हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी चिंताओं को उठाया और पूछा डिजिटल डिवाइड के बारे में क्या? सभी को को-विन पर रजिस्ट्रेशन करना होगा। क्या ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए इस ऐप पर वैक्सिनेशन शुरू करना वास्तविक रूप से संभव है? आप उनसे ऐसा कैसे करने की उम्मीद करते हैं? हमारे अपने कानून क्लर्कों और दोस्तों ने कोशिश की है। क्यों हम लोगों के साथ कॉमरेडिटीज के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं और जो एक ही समान हाशिए पर हैं?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, “अगर हम कहते हैं कि कोई समस्या है, तो हम आपसे इस पर गौर करने की उम्मीद करते हैं। भारत में डिजिटल एजुकेशन परिपूर्ण नहीं है। मैं ई-समिति का अध्यक्ष हूं। मैंने उन समस्याओं को देखा है, जो इसे पीड़ित करती हैं। आपको लचीला होना होगा और अपने कान जमीन पर रखने होंगे। यहां तक कि गांवों में भी उन्हें एक साझा केंद्र में वैक्सिनेशन कराना होता है। क्या यह वास्तव में व्यावहारिक है”?

एसजी ने कहा कि सरकार ने कुछ ढील दी है और कुछ श्रेणियों में कार्यस्थल के वैक्सिनेशन और वॉक-इन वैक्सिनेशन की अनुमति दी है। एसजी ने कहा कि वह एक हलफनामे में ब्योरा देंगे। एसजी ने यह भी कहा कि सरकार की नीति पत्थर पर लिखी लकीर नहीं है और गतिशील स्थिति का जवाब देने के लिए लचीली है। पीठ ने सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर केंद्र से न्यायाधीशों द्वारा उठाई गई चिंताओं का जवाब देने को कहा है।

पीठ ने पूछा कि क्या यह केंद्र सरकार की नीति है कि राज्यों को निजी निर्माताओं से टीके पाने के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने दें और राज्यों और नगर निगमों को विदेशी टीके पाने के लिए वैश्विक निविदाएं जारी करने दें। हम नीति नहीं बना रहे। 30 अप्रैल का एक आदेश है कि ये समस्याएं हैं। आप लचीले होंगे। आप केवल यह नहीं कह सकते कि आप केंद्र हैं, और आप जानते हैं कि क्या सही है। हमारे पास नीचे उतरने के लिए मजबूत हाथ है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील कि ये नीतिगत मुद्दे हैं, और कोर्ट के पास न्यायिक समीक्षा सीमित शक्ति है, पर उक्त टिप्‍पणियां की। जस्टिस भट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि केवल एक चीज, जिस पर हम चर्चा करना चाहते हैं वह दोहरी मूल्य नीति है। आप राज्यों को चुनाव करने और एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए कह रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि यह कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि राज्य टीके प्राप्त करने के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारी कुछ चिंताएं हैं। हमारे समक्ष अब एक कौतुक है, जहां विभिन्न नगर निगम और विभिन्न राज्य वैश्विक निविदाएं जारी कर रहे हैं। हम जानना चाहते हैं, क्या यह भारत सरकार की नीति है कि उन्होंने वैक्सीन प्राप्त करने के लिए हर नगर निगम, हर राज्य को अपने पर छोड़ दिया है। बीएमसी (मुंबई नगर निगम) की क्षमता को देखें, इसका बजट हमारे कुछ राज्यों के बराबर हो सकता है। क्या भारत सरकार का विचार है कि विदेशी टीकों की खरीद के लिए, अलग-अलग राज्य या निगम बोलियां जमा कर रहे हैं या आप बोलियों के लिए एक नोडल एजेंसी बनाने जा रहे हैं?

जस्टिस रवींद्र भट ने कहा कि पीठ औचित्य को समझने के लिए सरकार की पॉलिसी की फाइलों को देखना चाहती है। उन्होंने कहा कि आज तक हमने नीति दस्तावेज नहीं देखा है जो इसे स्पष्ट करता है। हम फाइलें देखना चाहते हैं। हम तर्क जानना चाहते हैं। यह कहना कि केंद्र कम कीमत पर खरीदेगा, और निर्माता अपनी मर्जी से कीमतें तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। हम तर्क जानना चाहते हैं कि 50 प्रतिशत टीकों का मूल्य निर्धारण निर्माताओं के लिए क्यों छोड़ दिया गया है। हम फाइलें देखना चाहते हैं। जस्टिस भट ने यह भी संकेत दिया कि कीमतों को नियंत्रित करने के लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स कंट्रोल एक्ट के तहत केंद्र के पास शक्तियां उपलब्ध हैं और उन्होंने यह जानना चाहा कि ऐसी शक्तियों का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है।

पीठ ने कहा कि पूरे देश में वैक्सीन का एक ही दाम होना चाहिए। पीठ ने केंद्र से पूछा कि राज्यों को कोविड वैक्सीन के लिए ज्यादा कीमत क्यों अदा करनी पड़ रही है। पीठ ने वैक्सीन के लिए यूनिफॉर्म प्राइसिंग पॉलिसी अपनाने को कहा। केंद्र कहता है कि वो ज्यादा डोज खरीदता है इसलिए कम कीमत अदा करता है। अगर यही तर्क है तो राज्य ज्यादा पैसा क्यों दे रहे हैं? पूरे देश में वैक्सीन का दाम एक होना चाहिए।

पीठ ने केंद्र से पूछा कि जब वो 45+ आयु समूह के लिए 100% डोज राज्यों को उपलब्ध करा रहा है तो 18-44 के लिए सिर्फ 50 फीसदी डोज क्यों दे रहा है।18-44 के लिए 50 फीसदी मैन्युफेक्चरर्स से राज्य केंद्र के निर्धारित दाम पर खरीद रहे हैं और बाकी निजी अस्पतालों को दी जाएंगी। इसका असल में आधार क्या है?आपका तर्क था कि 45+ समूह में मौतें ज्यादा हो रही हैं लेकिन दूसरी वेव में ये आयु समूह गंभीर रूप से प्रभावित नहीं हुआ। इस बार 18-44 समूह हुआ है। अगर मकसद वैक्सीन खरीदना है तो केंद्र सिर्फ 45+ के लिए ही क्यों खरीदेगा?

तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि वह इस साल के आख़िर तक सभी का टीकाकरण कर देगी। केंद्र ने अदालत के द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देने के लिए दो हफ़्ते का समय मांगा। देश में अब तक कोरोना की 21 करोड़ डोज लग चुकी हैं और इसमें से सिर्फ़ 3 फ़ीसद लोगों को ही दो डोज़ लगी हैं। तीसरी लहर की भयावहता की आशंका को देखते हुए टीकाकरण को तेज़ किए जाने को लेकर केंद्र सरकार पर जबरदस्त दबाव है लेकिन ऐसा नहीं लगता कि वह इस साल के आख़िर तक भी देश भर के लोगों को दोनों डोज़ लगा पाएगी क्योंकि वैक्सीन की इतनी उपलब्धता होती नहीं दिख रही है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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