घाटी गए विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल को श्रीनगर एयरपोर्ट पर रोका, पत्रकारों से की बदसलूकी

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नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली से गए विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल आज जब श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरा तो एक बार फिर उसे उल्टे पैर वापस भेज दिया गया। इतना ही नहीं इस पूरे घटनाक्रम को कवर कर रहे पत्रकारों के साथ पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान बेहद बदतमीजी से पेश आए। यहां तक कि महिला पत्रकारों तक से हाथापाई कर उनके काम में अड़चल डालने की कोशिश की गयी। आपको बता दें कि इसके पहले राज्यसभा में विपक्षी दल के नेता गुलाम नबी आजाद इसकी कोशिश कर चुके थे और उनके साथ भी उसी तरह का सुलूक किया गया था। जबकि आजाद कश्मीर के ही रहने वाले हैं। एक तरह से कहा जाए तो उन्हें उनके घर भी नहीं जाने दिया गया था।

एयरपोर्ट से लौटाए जाने के बाद विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल ने बडगाम जिले के डीएम को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने इस पूरी घटना पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। साथ ही इसे पूरी तरह से गैरलोकतांत्रिक और गैरसंवैधानिक करार दिया है। उन्होंने कहा कि श्रीनगर में न जाने देना उनके मौलिक अधिकारों का भी हनन है। उन्होंने गवर्नर सत्यपाल मलिक के बुलावे का हवाला देते हुए कहा कि हम विपक्ष के चुने हुए और जिम्मेदार नेता हैं और हम लोगों की मंशा बिल्कुल साफ है। हम यहां जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने आए हैं। इसके साथ ही परिस्थितियां कैसे तेजी से सामान्य हों इस दिशा में प्रयास करने आए हैं। उन्होंने केंद्र के वापस भेजे जाने वाले आदेश के पीछे के कारणों को बिल्कुल आधारहीन और तथ्य से परे बताया।

केंद्र की मोदी सरकार ने तो पहले ही पूरे जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक प्रक्रिया से काटकर न केवल राज्यपाल शासन के हवाले कर दिया बल्कि उनके छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया। और इस कड़ी में न विपक्षी दलों से कोई राय लेनी जरूरी समझी और न ही उसकी कोशिश की गयी। अब जबकि विपक्षी दल अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी समझते हुए न केवल घाटी की जनता और वहां के नेताओं से मिलने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि दोनों के बीच टूटे विश्वास के पुल को फिर से जोड़कर एक रिश्ता कायम करने की कोशिश कर रहे हैं तो उसके रास्ते में सरकार ही आकर खड़ी हो जा रही है। अमूमन तो यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह विपक्ष दलों को न केवल भरोसे में बल्कि पूरी तरह से उनको साथ लेकर कश्मीर पर कोई पहल करे।

और यह बात तब और जरूरी हो जाती है जब बीजेपी और मोदी की सरकार उसे राष्ट्र का मसला बताती है। यह बीजेपी और उसके नेताओं की राजनीति का संकीर्ण नजरिया ही कहा जाएगा कि वह राष्ट्र की बात करते हुए भी विपक्षी दलों को किसी मामले से माइनस कर देती ही। और कुछ इस तरीके से मामले को पेश करती है जैसे वह खुद ही राष्ट्र हो। कश्मीर से लेकर देश की दूसरी समस्याओं के मामले में बीजेपी की यह सोच काम करती है।

यह प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व में गया था। और इसके साथ दूसरे नेताओं में गुलाम नबी आजाद, सीपीआई के डी राजा, शरद यादव, डीएमके ट्रिची शिवा, आरजेडी के मनोझ झा शामिल थे। दिलचस्प बात यह है कि आज से कुछ दिनों पहले जब देश की संसद चल रही थी तब वहां के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने घाटी की स्थिति का जायजा लेने के लिए राहुल गांधी को बाकायदा ट्वीट कर आमंत्रित किया था। यहां तक कि उनके पास विमान भेजने तक का प्रस्ताव दिया था। लेकिन आज जब राहुल गांधी श्रीनगर की धरती पर उतरे तो कौन कहे उनका स्वागत करने के मलिक ने उन पर राजनीति करने का आरोप जड़ दिया।

एक तरफ सरकार कह रही है कि श्रीनगर में सब कुछ सामान्य है। और जिंदगी पटरी पर आ रही है। लेकिन जब नेता और मीडिया के लोग जा रहे हैं तब उन्हें घुसने से रोक दिया जा रहा है। आज ही सूत्रों के हवाले से खबर आयी है कि सरकार ने 5 अगस्त के बाद पहली बार नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा है। जिसको कश्मीर को लेकर उनसे बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।

इस नजरिये से भी केंद्र के लिए विपक्षी नेताओं की भूमिका और बढ़ जाती है। इस मामले में भी सत्तापक्ष के किसी नेता और दूत के मुकाबले विपक्ष का कोई शख्स ज्यादा विश्वसनीय होगा। क्योंकि विपक्ष के नेता पहले ही उनकी रिहाई और घाटी में सामान्य जीवन बहाल करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन कर चुके हैं। लेकिन शायद अपने राजनीतिक स्वार्थ में अंधे होने का नतीजा है कि सरकार कहीं किसी स्तर पर भी विपक्षी दलों को शामिल करते नहीं दिखना चाहती है।

बहरहाल आज जब श्रीनगर एयरपोर्ट पर विपक्षी नेताओं के साथ गए संवाददाताओं ने पूरे घटनाक्रम को कवर करने का अपना काम शुरू किया। मौके पर तैनात सुरक्षा बलों के जवानों और पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। और इस कड़ी में उनके साथ हाथापाई शुरू कर दी। जिसमें कई पत्रकार घायल हो गए। कई महिला पत्रकार भी इसकी चपेट में आ गयीं। खास बात यह है कि यह सब कुछ पुरुष पुलिसकर्मी कर रहे थे। अपने इस कृत्य के जरिये भी लगता है कि सरकार मीडिया में यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि बगैर मर्जी के कुछ करने वालों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाएगा।

हेलीकाप्टर में बैठकर घाटी की सैर करनी हो और सरकार के पक्ष को ही देश और दुनिया के सामने रखना हो तो पत्रकारों का स्वागत है। लेकिन उससे इतर अगर किसी भी तरह की स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग की कोशिश की जाएगी तो उसे श्रीनगर एयरपोर्ट के सुलूक के लिए तैयार रहना होगा। लिहाजा कश्मीर में एंबडेड पत्रकारिता का स्वागत है लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग खतरे से खाली नहीं।   

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