चिदंबरम ने आईएनएक्स मीडिया केस में रिश्वतखोरी के पैसे से देश-विदेश में कई संपत्तियां खरीदी या अपने पैसे से खरीदी यह तो अब ट्रायल कोर्ट में जब मुकदमा चलेगा और फैसला आएगा तब पता चलेगा, लेकिन पहले आईएनएक्स मीडिया केस में उनके पुत्र कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी,जेल फिर ज़मानत और अब स्वयं चिदंबरम की गिरफ्तारी के बाद उन्हें यह तो एहसास हो ही रहा होगा की आज मियां की जूती मियां का सर चरितार्थ हो रहा है।
चिदंबरम दूध के धुले नहीं हैं। कभी वकील के रूप में ,कभी नवउदारवाद के पक्षधर वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम ने कार्पोरेट्स की उसी तरह सेवा की है जैसी आज की मोदी सरकार कर रही है। गृहमंत्री के रूप में एनआईए का गठन का श्रेय चिदंबरम को ही है। वित्त से हटाकर गृहमंत्री बनाये जाने पर तत्कालीन वित्तमन्त्री प्रणव मुखर्जी के कार्यालय में जासूसी उपकरण पकड़े जाने पर चिदंबरम पर ही ऊंगली उठी थी , इसे देश भूला नहीं है। छत्तीसगढ़ में डॉ विनायक सेन की गिरफ्तारी का श्रेय भी चिदंबरम के खाते में ही है।
राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता, कालचक्र काफी तेजी से घूमता है। और अक्सर 180 डिग्री घूम जाता है तो पक्ष विपक्ष में चला जाता है और विपक्ष पक्ष बन जाता है। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री चिदंबरम गिरफ्तार हो गए हैं I लगभग 10 साल पहले कुछ ऐसा ही मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुआ था, जब एजेंसियां उनके पीछे पड़ी थीं, तब चिदंबरम गृहमंत्री थे।
गौरतलब है कि ईडी ने अक्टूबर 2018 में एक अटैचमेंट ऑर्डर पास किया था जिसके मुताबिक चिदंबरम ने आईएनएक्स मीडिया केस में रिश्वतखोरी के पैसे से देश-विदेश में कई संपत्तियां खरीदी थीं। ईडी पी. चिदंबरम से पूछना चाहता है कि उनके बेटे कार्ति चिदंबरम ने जो स्पेन में टेनिस क्लब, यूके में कॉटेज के साथ-साथ देश-विदेश में कुछ अन्य संपत्तियां खरीदीं, उनके पैसे कहां से आए थे। ईडी और सीबीआई इन दोनों बाप-बेटे के खिलाफ आईएनएक्स मीडिया मनी लॉन्ड्रिंग केस और एयरसेल-मैक्सिस 2 जी स्कैम केस की जांच कर रही है। पिता-पुत्र के खिलाफ चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है और उनकी प्रॉपर्टीज भी अटैच की गई हैं जिनमें दिल्ली के जोर बाग स्थित चिदंबरम का 16 करोड़ रुपये का बंगला भी शामिल है। स्पेन के बार्सिलोना में खरीदी गई जमीन और टेनिस क्लब की कीमत 15 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
ईडी ने कार्ति का इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) में 9.23 करोड़ रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) भी अटैच कर लिया है। कार्ति का यह एफडी आईओबी के चेन्नै स्थित नुंगाबक्कम ब्रांच में है। साथ ही, चेन्नै के डीसीबी बैंक में 90 लाख रुपये का एफडी भी अटैच किया गया है जो कार्ति से जुड़ी कंपनी अडवांटेज स्ट्रैटिजिक कंसल्टिंग प्राइवेट लि. (एएससीपीएल) का है। ईडी का दावा है कि पीटर मुखर्जी ने एएससीपीएल और कार्ति से जुड़ी संस्थाओं को 3.09करोड़ रुपये दिए थे। पीटर ने जांच के दौरान माना था कि कार्ति के निर्देश पर डेबिट नोट्स तैयार किए गए ताकि कुछ ट्रांजैक्शन दिखाए जा सकें जो असल में कभी हुए ही नहीं। ईडी के अटैचमेंट ऑर्डर में कहा गया है कि जांच में कार्ति से जुड़े संस्थानों में आए पैसे एएसपीसीएल के पास पहुंचने के सबूत मिले। इसमें कहा गया है, ‘एएसपीसीएल को मिले पैसे निवेश किए गए और एएसपीसीएल ने वासन हेल्थ केयर के शेयर भी खरीदे। इनमें से कुछ शेयर बेचकर 41 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया गया।
दूसरी ओर चिदंबरम का दावा है कि एफआईपीबी ने एक टीवी चैनल में इक्विटी पूंजी के 46.126% के बराबर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई ) करने के लिए आईएनएक्स मीडिया को स्वीकृति प्रदान की। तब मौजूदा नीति ने एफडीआईको 74% तक इक्विटी की अनुमति दी थी। इसलिए एफडीआई की मंजूरी में कुछ भी अवैध नहीं था।
वित्त मंत्री के रूप में, आईएनएक्स के लिए एफडीआई अनुमोदन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। एफआईपीबी द्वारा, जिसमें भारत सरकार को 6 सचिव शामिल थे, इसकी मंजूरी दी गई थी और इसकी अध्यक्षता सचिव, आर्थिक मामलों ने की थी। एफआईबीपी द्वारा अनुमोदित प्रस्ताव को उनके (चिदंबरम) के समक्ष सर्वसम्मति से रखा गया था, जो तत्कालीन वित्त मंत्री थे। मई 2007 में, उन्होंने सामान्य तौर पर एफआईपीबी प्रस्ताव को मंजूरी दी।
चिदंबरम का कहना है कि दस साल पहले के मामले में दो साल पहले मौखिक सूचना के आधार पर दर्ज की गई एफआईआर उन्हें राजनीतिक रूप से चुप करने के लिए की गयी है क्योंकि वे (चिदंबरम) सरकार के मुखर आलोचक हैं। एफआईआर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) पर आधारित है, जिसे निरस्त कर दिया गया था और फिर 2018 से लागू किया गया है । इस धारा का उपयोग उन पर पर मुकदमा चलाने के लिए नहीं किया जा सकता है। इस एफआईआर में चिदंबरम का नाम नहीं है। प्राथमिकी में कोई आरोप नहीं है कि उन्हें आईएनएक्स लेन देन में कोई अवैध प्राप्ति हुई है।
इस मामले में कार्ति चिदंबरम सहित मामले के अन्य आरोपियों को जमानत दे दी गई है। कार्ति को जमानत देने के दौरान, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस गर्ग ने पाया था कि एफआईपीबी के सदस्यों ने कहा था कि वे उन्हें नहीं जानते थे और कार्ति सहित किसी ने भी उन्हें प्रभावित करने का प्रयास नहीं किया था। जस्टिस गर्ग के फैसले की उच्चतम न्यायालय ने 3 अगस्त 2018 को पुष्टि की थी।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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