जन्मदिवस पर विशेष: जाति, पितृसत्ता और ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद के विध्वंसक पेरियार

Estimated read time 1 min read

हम, खासकर उत्तर भारत के लोग ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ (17 सितंबर 1879 – 24 दिसंबर 1973) के बारे में नहीं जानते हैं या बहुत कम जानते हैं। वे भारत की प्रगतिशील बहुजन-परंपरा के ऐसे चिन्तक, लेखक और राजनेता थे जिन्होंने वर्ण-जाति व्यवस्था, ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और शोषण-अन्याय के सभी रूपों को चुनौती दी। वर्चस्व, अन्याय, असमानता और दासता का कोई रूप उन्हें स्वीकार नहीं था। तर्क-पद्धति, तेवर और अभिव्यक्ति की शैली के चलते उन्हें यूनेस्को ने 1970 में “दक्षिणी एशिया का सुकरात” कहा था।

पेरियार 1920 से 1925 तक कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने गांधी के सशक्त सहयोगी के रूप में काम किया, लेकिन बाद में उनका कांग्रेस और गांधी से मतभेद हो गया। पेरियार ने वामपंथियों के साथ भी मिलकर काम किया, लेकिन उन्होंने देखा कि वामपंथियों द्वारा जाति, पितृसत्ता और धर्म के गठजोड़ की उपेक्षा की जा रही है। वामपंथियों की वर्ग की यांत्रिक यूरोपीय धारणा, इतिहास की एक रेखीय आर्थिक व्याख्या और जाति, पितृसत्ता, धर्म, राष्ट्रवाद और वर्ग के गठजोड़ को समझ पाने में नाकामी के चलते पेरियार को उनसे भी अपना रास्ता अलग करना पड़ा।

पेरियार ने तमिलनाडु में गैर-ब्राह्मणवाद की अगुवा जस्टिस पार्टी के साथ भी मिलकर काम किया। जस्टिस पार्टी की स्थापना 1916 में मद्रास (आधुनिक चेन्नई) में हुई थी। तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 1916 में तब हुई, जब जस्टिस पार्टी ने गैर-ब्राह्मणवादी घोषणा-पत्र जारी किया। ब्राह्मणवाद बनाम गैर-ब्राह्मणवाद का संघर्ष ही इस घोषणा-पत्र का मूल स्वर था।

मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्राह्मणों का वर्चस्व किस कदर था, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1912 में वहां ब्राह्मणों की आबादी सिर्फ 3.2 प्रतिशत थी, जबकि 55 प्रतिशत जिला अधिकारी और 72.2 प्रतिशत जिला जज ब्राह्मण थे। मंदिरों और मठों पर ब्राह्मणों का कब्जा तो था ही, जमीन की मिल्कियत भी उन्हीं लोगों के पास थी।

पेरियार ने देखा कि जस्टिस पार्टी तमिलनाडु में ब्राह्मणों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़कर गैर-ब्राह्मणों के राजनीतिक वर्चस्व को तो कायम करना चाहती है, मगर वर्चस्व और अन्याय के अन्य रूपों के खिलाफ वह चुप रहती है। पेरियार ने अपने आंदोलन को आत्मसम्मान-आंदोलन (सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट) नाम दिया।

पेरियार ने अपनी पत्रिका ‘कुदी आरसू’ में 20 अक्टूबर 1945 को लिखा कि “देश में बहुत सारे आंदोलन चल रहे हैं.. कांग्रेस पार्टी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष कर रही है। जस्टिस पार्टी ब्राह्मणों के राजनीतिक वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष कर रही है। आदि द्रविड़ पार्टी उच्च जातीय हिंदुओं के वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष कर रही है और वर्कर्स पार्टी पूंजीपतियों के वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष कर रही है। इस तरह हर एक पार्टी का उद्देश्य वर्चस्व के किसी एक रूप का खात्मा करना है। लेकिन, यदि कोई पार्टी वर्चस्व के सभी रूपों के खिलाफ एक साथ संघर्षरत है, तो वह आत्मसम्मान-आंदोलन है।”

अपने आत्मसम्मान-आंदोलन के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए पेरियार लिखते हैं, “आत्मसम्मान आंदोलन का मकसद उन ताकतों का पता लगाना है, जो हमारी प्रगति में बाधक बनी हुई हैं। यह उन ताकतों का मुकाबला करेगा, जो समाजवाद के खिलाफ काम करती हैं। यह समस्त धार्मिक प्रतिक्रियावादी ताकतों का विरोध करेगा।”

पेरियार ने अपने लेख ‘भविष्य की दुनिया’ में अपने आदर्श समाज की परिकल्पना प्रस्तुत करते हुए तमिल पुस्तक ‘इनि वारुम उल्लगम’ में लिखा: “नए विश्व में किसी को कुछ भी चुराने या हड़पने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। पवित्र नदियों जैसे कि गंगा के किनारे रहने वाले लोग उसके पानी की चोरी नहीं करेंगे। वे केवल उतना ही पानी लेंगे, जितना उनके लिए आवश्यक है। भविष्य के उपयोग के लिए वे पानी को दूसरों से छिपाकर नहीं रखेंगे। यदि किसी के पास उसकी आवश्यकता की वस्तुएं प्रचुर मात्रा में होंगी, तो वह चोरी के बारे में सोचेगा तक नहीं।”

वो आगे लिखते हैं कि “इसी प्रकार किसी को झूठ बोलने, धोखा देने या मक्कारी करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। क्योंकि, उससे उसे कोई प्राप्ति नहीं हो सकेगी। नशीले पेय किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। न कोई किसी की हत्या करने का ख्याल दिल में लाएगा। वक्त बिताने के नाम पर जुआ खेलने, शर्त लगाने जैसे दुर्व्यसन समाप्त हो जाएंगे। उनके कारण किसी को आर्थिक बर्बादी नहीं झेलनी पड़ेगी।”

इसी किताब में वह आगे लिखते हैं, “पैसे की खातिर अथवा मजबूरी में किसी को वेश्यावृत्ति के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। स्वाभिमानी समाज में कोई भी दूसरे पर शासन नहीं कर पाएगा। कोई किसी से पक्षपात की उम्मीद नहीं करेगा। ऐसे समाज में जीवन और काम-संबंधों को लेकर लोगों का दृष्टिकोण उदार एवं मानवीय होगा। वे अपने स्वास्थ्य की देखभाल करेंगे।”

वो लिखते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति में आत्मसम्मान की भावना होगी। स्त्री-पुरुष दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करेंगे और किसी का प्रेम जबरन हासिल करने की कोशिश नहीं की जाएगी। स्त्री-दासता के लिए कोई जगह नहीं होगी। पुरुष सत्तात्मकता मिटेगी। दोनों में कोई भी एक-दूसरे पर बल-प्रयोग नहीं करेगा। आने वाले समाज में कहीं कोई वेश्यावृत्ति नहीं रहेगी।”

पेरियार धर्म को प्रभुत्व और अन्याय का पोषक मानते हैं। वह सभी धर्मों को खारिज करते हुए विज्ञान और बुद्धिवाद का समर्थन करते हैं। वह धर्माचार्यों और विज्ञान के समर्थक बुद्धिवादियों की तुलना करते हुए लिखते हैं, “धर्माचार्य सोचते हैं कि परंपरा-प्रदत्त ज्ञान ही एकमात्र ज्ञान है; उसमें कोई भी सुधार संभव नहीं है। अतीत को लेकर जो पूर्वाग्रह और धारणाएं प्रचलित हैं, वे उसमें किसी भी प्रकार के बदलाव के लिए तैयार नहीं होते।”

पेरियार पितृसत्ता के मूल ढांचे को सीधी चुनौती देते हैं। पेरियार की क्रांतिकारी प्रगतिशील सोच सबसे ज्यादा उनके स्त्री संबंधी चिंतन में सामने आती है। पेरियार महिलाओं की ‘पवित्रता’ या स्त्रीत्व की दमनकारी अवधारणा के कटु-विरोधी थे।

उनका कहना था कि “यह मान्यता कि केवल महिलाओं के लिए पवित्रता आवश्यक है, पुरुषों के लिए नहीं; इस विचार पर आधारित है कि महिलाएं पुरुषों की संपत्ति हैं। यह मान्यता वर्तमान में महिलाओं को निकृष्ट दर्जे का साबित करने की द्योतक है।” पेरियार महिलाओं के शिक्षा प्राप्त करने, काम करने, अपने ढंग से जीने और प्यार करने के अधिकार के जबरदस्त समर्थक थे।

श्रम और पूंजी के संघर्ष में पेरियार श्रमिक वर्ग के साथ खड़े होते हैं। वह साफ शब्दों में लिखते हैं कि “यह श्रमिक ही है, जो विश्व में सब कुछ बनाता है। लेकिन, यह श्रमिक ही चिंताओं, कठिनाइयों और दुःखों से गुजरता है।” पेरियार ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें शोषण और अन्याय का नामो-निशान नहीं होगा।

उस दुनिया का खाका खींचते हुए वह लिखते हैं, “एक समय ऐसा आएगा, जब धन-संपदा को सिक्कों में नहीं आंका जाएगा। न सरकार की जरूरत रहेगी। किसी भी मनुष्य को जीने के लिए कठोर परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। ऐसा कोई काम नहीं होगा, जिसे ओछा माना जाए या जिसके कारण व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाए।”

 (रंजीत अभिज्ञान लेखक हैं और समाज विकास क्षेत्र से जुड़े हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author